आईना-ए-अक्स:
(ग़ज़ल संग्रह)
हिमांशु मेकवान
(23)
पिनेका शोख जो पाल रखा है
जिस्म मैं लहू उबाल रखा है
आशिक़ ऐसे ही जिन्दा नहीं है
इश्क़ ने बरकरार कमाल रखा है
आप आएंगे तो पूछेंगे आपसे
बरसो से जो एक सवाल रखा है
क्या नहीं खोया कोई बता दे भी
जिस्मनहीं कंकाल संभाल रखा है
मराने का गम था ही नहीं न रहेगा
हमने खुद को कबसे मार रखा है
***
(24)
छोड़के मैदान इस तरह से भागे है
हमसफ़र नहीं हम भुत के साये है
इश्क़ का सफ़र इतना मुश्किल था ?
इम्तेहां दिया है? या कोई बहाने है ?
जाने का मलाल न होगा न था कभी
हमने कितने अज़ीज़ खोये है पाये है
शुक्रिया अदा होगा? इक रात मैं तेरा
तुझको पाने के नजाने कितने पैमाने है
हम साँस लेते रहेंगे और जी भी लेंगे
जीने के लिए सुनिए और भी ज़माने है
होश मैं रहेना ख्वाब समजो अब आप
आप ही थोड़ी पिलाएंगे और भी मैख़ाने है
लौटने की बात, अब आप से उम्मीद नहीं
इतना भी जानते है हम आपके दीवाने है
होगा कोई और आप के इंतज़ार मैं वहाँ
यहाँ भी दीवाने है और वहां भी दीवाने है
***
(25)
जाना ही मक़सद था
चले जाओ चले जाओ
इश्क़ न कभी आसान था
न होगा किसी के लिए
ये तो कुछ था ही नहीं इस से पहले की तुम्हारी नरम नाजूक कलाइयों पे मोच आये
चले जाओ
लदकपनमें जो कुछ हो गया
मैं कोशिश करूँगा भुला सकूँ
तुमने कुछ ज्यादा उम्मीद लगाई थी जिसको मैं पूरी ना कर सका
चले जाओ
उस हर सामान को ले जाओ उस हर याद को समेत लो आब न तुम चाइए न कोई और गुंजाईश हो इस जहाँ जो बस अकेले पैन की आदत हो और कोई उम्मीद ना चूत जाए
चले जाओ
दबे कदम निकल जाओ धड़कन को न आहट हो आए भी तो इस तरह थे उसी तरह लौट जाओ
चले जाओ
इक अहसान चाहता हूँ जानेके बाद कोई रिश्ते का तार ना रहे जो तुम्हारी और खीच पाये मुझे ख़तम करदो ये सबकुछ जो हमने बनाया था तहस हो महस हो जो इश्क़ का साया था लौटने के सारे रास्ते भी जला दो
चले जाओ
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(26)
उड़ते परिंदों के पर गिने जाते है
अक्सर जो बोते है वोही पाते है
आवारगी और कुछ भी नहीं होती
गुमनाम जिंदगी बेनाम हो जाते है
अच्छा है सबक याद रखेंगे हम
धीरे धीरे ही सबकुछ सिख जाते है
उसका तो कसूर ही नहीं है नादाँ
हम ही दिल को क्या क्या सुनते है
धीरे धीरे सबकुछ छीन रही है जैसे
आहिस्ता से हम भी कही खो जाते है
मकसद था ही नहीं साथ चलने का
मल्लाह बिना लोग दरिया तैर जाते है
आबाद रहे तू और दुआएं क्या करू
इश्क़ है ये अक्सर कई घर जलाते है
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(27)
जिंदगी कोई इम्तेहान हो जैसे
साँस लेना कठिन काम हो जैसे
दरिया अब खुद ही मान बैठा है
नमक उसकी ही जुबान हो जैसे
सियासत हद से पर जा बैठी है
अवाम उसकी गुलाम हो जैसे
मौत अलग अंदाज़ से बुलाएं मुझे
सांसे अब सरेआम नीलाम हो जैसे
तकलीफ से गुजरता है दिन मेरा
रात यादों का बस पैगाम हो जैसे
न मिलने की कोई वजह ही नहीं
मिलना तुजे आखरी काम हो जैसे
आइना अब कुछ ढूँढता है घर मैं
यादों से पुरानी पहेचान हो जैसे
मेरा हाल जो जानना है तो सुनो
खंडर सा कोई मकान हो जैसे
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(28)
अस्थियां हैं या कोई मजाक है
पता है? मौत भी कोई जात है
जिंदा थे तो हालचाल पूछा था?
सियासत की कितनी औकात है
वो सख्स, सख्स था ही नहीं ?
फ़रिश्ता था कोई आफताब है
चुपचाप तो था वो कई सालों से
मौत का मातम भी लाज़वाब है
साँस थम गई आराम है सुकूँ हो
जनाब चहेरे पे नकली नकाब है
जीते जी सियासत की ही नहीं
मौत से सियासत का ख़्वाब है
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(29)
अँधेरे से है पहेचान और क्या चाहिऐ?
हाथ मैं हैं एक जाम और क्या चाहिए?
बदनाम वैसे भी बहोत है ज़माने मैं
उससे ही हुआ नाम और क्या चाहिए ?
जिन्दा भी हूँ और जी भी रहा हूँ देखो
मौत का जूठा है पैगाम और क्या चाहिए?
मैख़ाने से रिश्ता पुराना बहोत पुराना
तुम उसे बार का दो नाम और क्या चाहिए?
दोस्त दोस्ती की क्ससँ तुज सा कोई नहीं
फरिश्तों दूर से ही सलाम और क्या चाहिए?
जाम दोस्त के बिना अधूरा अधूरा है
आ पूरा कर तू ये काम और क्या चाहिए ?
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(30)
जिस दर से ए थे उसे ही उजाड़ डाला
आदमी ने औरत को नंगा कर डाला
देखते ही रह गए बाज़ारू चीज़ थी वो
ढंके हुए जिस्म को गंगा कर डाला
फायदे है क्या? क्या मिला तुम्हे हैवानो
सोई हैवानियत को चंगा कर डाला
जाके शक्ल दिखाना अपनी माँ बहन को
की तम्हारी जैसी को नंगा घुमा डाला
नर्क देखोगे तुम तुम्हारी करतूत से मानो
अंधी है सियासत तुम्हे अँधा कर डाला
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(31)
खंज़र से खुरदने जैसी ही बात है
ये जो तुजे याद करने की बात है
कब तक मनाये खेर मियां बोलो
ये सपने मैं बात करने की बात है
आना शायद मुक़मिल ही ना हो
जाने से ये भी अनजाने सी बात है
कभी हक़ीक़त को जानो तो बताना
सच ही थाव्जो फ़साने की बात है
ज़िन्दगी क्या है मालूम हैं तुजे तो सुन
तेरे साथ होने या ना होने की बात है
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(32)
सुनो जा रहे हो चले जाओ
वो सब कुछ लेजाना जो तुम्हे याद ही नहीं
मेरे सीने मैं कूच धड़कने है तुम्हारी आज भी
कुछ रात की बातें जो सिर्फ हमारी है
कुछ मानाने की तरकीबे जो तुमने सिखाई है
शायद अब वो मेरे काम न आयेगी
जिंदगी बस युही कट जायेगी।।
वो कुछ लम्हे है जो मैंने संभल के सपनो की अलमारी मैं रखे है ।
जो सिर्फ हमारे है नाजुक है जरा संभल के,
टूट न जाए सुनो, तुम अलमारी ही ले जाओ
कुछ हसीं पलों का एक पिटारा भी है जो अब मेरे काम का नहीं शायद उसमें कुछ तुम ले जा सको " पल " तो वैसे भी सिकुड़ से गए होंगे इस जुदाई की आंधी मैं, शायद तुम कुछ और रख पाओ
सुनो जा रहे हो चले जाओ।।
और हा जाना ही है तो मुझे कुछ दे के जाना कभी न लौटनेका एक जूठा सा बहाना।।
मैं इंतज़ार अब नहीं करूँगा शायद।।
सुनो जा रहे हो चले जाना
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(33)
ये जो किस्से है, वो पुराने है
सब जानते है, हम दीवाने है
ये जो लोग है,वहीँ मिलते है
जहाँ मुहोब्बत के, फ़साने हैं
है कौन शरीफ ये दुनिया मैं
किस्से उन्ही के, ही सुनाने है
जलती बस्ती सुकूँ क्यूँ देती है
मजहब और भी तो, जलाने है
कुछ किस्से आधे है, तो क्या ?
पूरा करने को अभी तो, ज़माने है
जो लहूलुहान सा खड़ा है ना
ये इश्के जखम बड़े, पुराने है
मुड़े सब तो मैं भी, मुड़ गया
तेरी गली के मोड़, क्या सुहाने है
वार जब अपनों पे करते है तो
क्या पक्के लगते सब, निशाने है
***