दुनिया के इस आपाधापी में राधिका अपने आप को धकेलते हुए आगे बढती जा रही थी। उसे सिर्फ इतना पता था कि किसी भी तरह उसे अपने आप को संभालते हुए आगे बढना है आत्मनिर्भर बनना है।, और अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसे घर की चारदीवारी में ही कैद रहना पडेगा। क्योंकि वह जानती थी,भारतीय सामाजिक ढांचा कुछ इस तरह ही है पढाई खत्म होते ही शादी।
मानो लडकियों को सिर्फ इसलिए पढाया जाता है कि शादी हो जाए।जबकि दुनिया वैैैश्विक स्तर पर दुुनिया 21/22 शताब्दी की ओर अग्रसर होते जा रही है पर लोगों की संकीर्ण सोच का कुछ नहीं हो सकता है वो कहतेें है ं न "ढाक के वही तीन पात" वही हाल सामाजिक संंस्था का है। MA first year करते ही उसकी शादी तय कर दी गई।
उसदिन वह बडे़ उदास मन से वो college आयी। उसका चेहरा पहली बार इतना बुझा बुझा सा था।मेरे बहुत पूछने पर रोतेे हुए कहने लगी "मैडम मुझे और पढना है दुनिया में खुद को स्थापित करना है गर शादी हो गई तो सारे रास्ते बंद हो जाएंगे"। "प्लीज आप कुछ करो न, मेरे अभिभावक से बात करके देखो न"" प्लीज मैडम...."मैं उडना चाहती हूँ सब कुछ हासिल करना चाहती हूँ जो एक लड़का हासिल करता है।"
वाकई आज मैं खुद ब खुद में असहाय महसूस कर रही थी, असमंजस में पड़ी रही काफी समय तक। मेरे अंतरमन से आवाज आती रही।मैंने काफी जद्दोजहद के बाद यह तय किया अब कोई लड़की सामाजिक बलिवेदी के हाशिये पर कुरबानी नहीं देगी। राधिका को लेकर उसके घर गई बहुत देर समझाने के बाद अभिभावक इस नतीजे पर पहूँचे की राधिका को आगे पढाएंगे। मैंने अपने ही Bed college में राधिका का दाखिला करवा दिया।
मेरा" एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर" वाला मिशन साकार होता दिख रहा था। यह मेरा पहला प्रयास जो था। अब मेरा उद्देश्य राधिका को प्रोत्साहित करना बन गया। उसकी ही मदद से पांच छात्राओं का शीघ्र ही दाखिला करवा दिया। राधिका एक वर्ष में अच्छे अंको से उतीर्ण हो गई। कुछ ही दिनों में उसे एक विद्यालय में नौकरी मिल गई। उसके अभिभावक बहुत खुश हुए। घर में कुछ आमदनी का इजाफा हुआ।कुछ ही दिनों में घर की परिस्थितियों में आमूल परिवर्तन हुआ। जो माता पिता अपनी आर्थिक स्थिति से जल्दी से निपटाने के लिए राधिका का विवाह कराने की सोच चुके थे। वही माता पिता आज अच्छे रिश्ते ढूंढ रहे थे।
आज उन्हें समझ आ चुका था बेटियां कभी बोझ नही होतीं । न ही ं वो किसी प्रकार से निपटने का साधन। कुछ ही दिनों में एक अभियंता से उसकी शादी हो गई। आज वही राधिका मेरे द्वारा बनाए गए "एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर" संस्था को चला रही है अब मैं जीवन के वैश्विक दौड़ में अकेली नहीं।
मेरे हर कदम पर कई राधिकाएं है ं समय समय पर मैं सबकी कहानी आपके सामने रखूंगी। पर हां सबकी कहानी राधिका के जैसी सरल और आसान नहीं। सबके रंग अलहदा है ं सबके सपने अलहदा है ं सबकी सोच अलग है और सबकी जीवन शैली भी राधिका से बिलकुल अलग••••
•••••••••••••••••••••••• डॉ रीना"अनामिका "