Maa, Tujhpe laga ye kalank in Hindi Women Focused by Dharnee Variya books and stories PDF | माँ, तुझपे लगा ये कलंक....

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माँ, तुझपे लगा ये कलंक....

घर में शादी का माहौल चल रहा था। पूरा घर सजा था। महेमनो और ढोल नगाड़े की आवाज़ से घर गूंज रहा था। चूल्हे की आग पे पक रहे खाने की खुशबू पूरे गाँव मे फैल गई। आँगन में दुल्हन की हल्दी की रस्म चल रही थी।

ज़री वाली मलमल की साड़ि पहनके नाचती औरतों के बीच हल्दी लगाए बैठी सुमन आँखों से बहते आँसू को काजल के पीछे छुपा कर हँसने की कोशिश कर रही थी। इस भीड़ में उसकी साँसे खो रही थी।घुटन को सीने में दबाकर वह लोगो से बातें करने की कोशिश कर रही थी।

हल्दी खत्म हुई। हाथों में उसके नाम की महेंदी सज चुकी थी। महेंदी में उस 35 साल के आदमी का नाम देख वो तड़प उठी। ये हैवान एक दिन बाद उसका शरीर खा जाएगा ये विचार मात्र से वो बुरी तरह काँप उठी।

शरीर को रगड़ रगड़ के वो हल्दी धो डाली जो अब तक उसके शरीर पर कीचड़ की तरह चिपकी हुई थी।
रो रो के बेहाल सुमन के आँसुओ को जानने वाला यह कोई नही था।

क्या में इसीलिए बनी हु??किसी और कि गलती की सजा मैं क्यों भुगतू??

सुबह होते ही महेमानो की चहल पहल में ये बात फैल गई कि सुमन गायब है।

बातें बनना शुरू हो गई, "अरे, माँ की तरह बेटी भी भाग गई क्या??"

*******

[1हफ़्ते पहले]

विवेक : "सुमन, मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी
है।"
सुमन : "हा, तो कहो ना।"
विवेक : "मैं अब विदेश जा रहा हूं, आगे की पढ़ाई करने और शायद मैं फिर वही सेटल हो जाऊंगा। हमारा साथ यही तक का था। मैं तुम्हें धोखा देना नही चाहता, इसलिए सामने से बता रहा हूं कि हमारी शादी नही हो सकती।हमारे प्यार को न तुम्हारे घर वाले अपनाएंगे और न मेरे..."
सुमन : "मगर क्यो??"
विवेक : "क्योंकि तुम्हारी माँ भाग गई थी।" कहके वह चला गया लेकिन सुमन के कानों में अब तक वो बात गूंजती रही।

सहसा सुमन की नज़र अविनाश पर गई( जो सुमन का सौतेला भाई था जो अब 18साल का हो गया था।)

वो इन दोनों की बाते सुन रहा था।

सुमन : "लो, और एक मुसीबत।"

अविनाश ने घर पे सबको बता दिया।

दादी ने गुस्से में बहोत कुछ सुनाया, पापा ने एक दो थप्पड़ मारे और थोड़ा कम था इसलिए सौतेली माँ ने उसे उसकी माँ जैसी चरित्रहीन भी कहा।

अब उन लेगो की बातों का उसपे ज्यादा असर नही होता था, क्योंकि 20 साल से वो ये सब सुनती आ रही है।

पर इस बार जो अंजाम आया वो बहोत भयानक था।उसके पापा(अमरनाथ) ने उसके डिपार्टमेंट में से एक पोलिस ऑफिसर के साथ मुस्कान की शादी तय करदी। जो एक 35 साल का आदमी था और मुस्कान 21 साल की।

अमरनाथ और दादी ने ये फैसला लिया कि इसे जल्द से जल्द ठिकाने लगदे इससे पहले की ये कहि मुँह कला करे।

और दूसरे दिन से हि शादी की तारीख निकली और महेमान आना शुरू हो गए। पूरे गाँव को उसकी बर्बादी में न्यौता दिया गया था।

सुमन से एक बार भी राय नही मांगी गई। हल्दी की रात वह डर से कांप उठी थी।20 साल से उसके मन में कई सवाल थे जिसके जवाब टूटी फूटी कहानियों से उसने यूं ही हवा में जोड़े थे। मगर सच्चाई क्या थी। उसे तो ठीक से अपनी माँ का चहेरा तक याद नही। दो साल की थी वह जब सहसा उसकी माँ उसे छोड़के चली गई। और उसके ताने वो आज तक दुनिया से सुनती आ रही थी।

सुमन अपने कमरे में काँपती रूह के साथ सारी अलमारी बिखेर बैठी थी। उसमें उसकी माँ की एक छोटी सी बहोत पुरानी तस्वीर हाथ आई। वह तस्वीर से ही सवाल पूछने लगी,
"तू जानती है, तेरे एक कदम ने मुझे जिंदगीभर की सजा दी है। तू भागी क्यों?? दादी और पापा सौतेली माँ और अविनाश को कितना प्यार करते है, तुम्हे ऐसी क्या परेशानी थी कि तुम भाग गई और इस वजह से वो लोग मुझसे भी नफरत करते है। तुम्हें वापस आना होगा। 20 साल पहले तुमने जो बिगाड़ा है वो सब तुम ठीक करोगी, तुम्हे आना ही होगा, मैं लाऊंगी तुम्हें। मैं ऐसी जिंदगी अब नही जी सकती।"

सुमन ने मन मक्कम बनाया और वह चोरी छुपे अपनी दादी के कमरे से कुछ पैसे लेकर रात के अंधेरे में चल पड़ी अपनी भागी हुई माँ की खोज करने।

सुबह होते ही ये बात हवा की तरह फैल गई कि सुमन भाग गई। दादी सर पे हाथ रखे बैठे थे कि ये सब क्या हो गया और अमरनाथ अपनी पुलिस की गाड़ी लेकर उसे ढूंढने निकल पड़ा।

दादी की आँखे बंद हुई, सालो बाद कुछ पहले जैसा ही दोहराता नजर आ रहा था। वो डर से सिमट गई।

********

सुमन कुछ भी नही जानती थी अपनी माँ के बारे में या उसके परिवार के बारे में। घर मे कोई उसके बारे में बात ही कहा करता।

वह अपना मुह छुपाते, महेंदी वाले हाथ चुन्नी से ढंक के बड़ी मुश्किल से अपने दूर के मासी के गाँव पहोंची। जिसे उसने 12 साल की उम्र में देखा था इसीलिए शायद उसके गाँव का नाम याद रह गया था।

बाकी उसे तो ये तक नही पता था कि उसकी माँ रहती कहा थी।

उसके मसाजी गाँव के मुखिया थे इसलिए उसके घर पहुचने में ज्यादा तकलीफ नही हुई। उसके घर पहुचकर पहले मासी को मिन्नते की कि घर पे कुछ न बताए।

फिर सारी बातें बताकर उसने मासी से ये जान लिया कि उसके नाना नानी किस गाँव में रहते थे। जो कि वो दोनों शायद अब जिंदा नही थे लेकिन इंसान की पहचान हमेशा जिंदा रहती है।

अपनी मासी से बिदाई लेके वह पहोंची अपने नाना नानी के गाँव। गाँव काफी छोटा था इसलिए उसमें पाठशालाएं भी बहोत कम थी। उसने सभी पाठशाला में जा के अपनी माँ का नाम बता के कुछ जानने की कोशिश कर रही थी। मगर कुछ हाथ न लगा। कोई भी पाठशाला में उस नाम की कोई लड़की पढ़ती ही नही थी और वैसे भी इतने पुराने छात्रों के बारे में खोज करने की वहाँ किसे दिलचस्पी थी??

वह नाना नानी के घर के आस पास पूछताछ करने लगी तब उसे ये पता चला कि जिस नाम को वो यहाँ तलाश रही थी वह नाम उसका था ही नही। उसकी माँ का नाम उर्वी था जो शायद ससुराल वालों ने बदलकर उर्मिला कर दिया था। फिर सही नाम की तलाश शुरू हुई।

एक पड़ोसी ने बताया कि उसकी बेटी भी उर्वी के साथ पढ़ाई करती थी। लेकिन अब तो वो भी ससुराल थी। थोड़ी कोशिशों के बाद उससे बात हो पाई तब पता चला कि उर्वी उसके साथ सिर्फ 12वी तक पढ़ी थी फिर वह कॉलेज करने दिल्ही चली गई। कॉलेज का नाम जानकर उसका शुक्रियादा कर वह चली छोटे से गांव से दिल्ही।

10 तक पढ़ी सुमन कभी घर से दूर भी नही गई थी और आज वह इतनी साहसी बन गई कि अकेली इस जगह से उस जगह भटक रही थी। ना ही पास फोन और ना ही कोई मददगार, यूं ही एक मंजिल तय कर चल पड़ी थी अंजनी राह पे।

दिल्ही जाने का सफर बहोत लम्बा था। दिल्ली ट्रेन की टिकिट लेके वह स्टेशन पे बैठी। तब उसे ये अहेसास हुआ कि वह इतनी भीड़ भाड़ वाली दुनिया में भी बिल्कुल अकेली है, तन्हा और इसकी वजह है मेरी माँ , याद आते उसके आँख में आंसू आ गया और मन में घृणा। तब तक ट्रेन आ गई। कुछ खाने की चीजें लेकर वह ट्रेन में चढ़ गई।

बहोत लंबा सफर और तन्हाई। मन में कई सवाल थे।

"मेरी माँ ने इतनी पढाई की थी??मुझे तो सिर्फ 10 तक पढ़ने मिला और वह इतने छोटे से गाँव से दिल्ही तक पहोंची थी। इतनी पढ़ी लिखी होने के बावजूद उसने ऐसा कदम क्यों उठाया?? दादी सच बोलती है कि वह अपने आशिक के साथ भाग गई ??? मगर इतनी पढ़ी लिखी लड़की ऐसा कदम क्यों उठाएगी?? क्या उसे एक बार भी मेरे बारे में ख्याल नही आया होगा?? क्या वो इतनी स्वार्थी होगी??

सहसा मन ने इस बात को ज़हन तक नही पहोचने दिया। दिल के कोई कोने से एक आवाज आ रही जो शायद कहना चाहती थी कि बात कुछ ओर है मगर आज तक उसने जो देखा, सुना वह सब उसे वो दबी आवाज सुनने से रोक रहा था।

मन में कई सवालों के साथ ये सफर भी खत्म हुआ।

वह रिक्शा वाले को पैसे खिलाते खिलाते कॉलेज तक पहोंची। ये वो अंतिम कड़ी थी जहाँ से शायद उसकी माँ के बारे में कुछ पता चल सके।

कॉलेज की ईमारत देख वह थोड़ी देर थम गई, इतनी बड़ी और सुंदर जगह उसने आज तक देखी नही थी।

"माँ यहाँ पढ़ाई करती थी?? इतनी बड़ी जगह में कौन मुझे इतने पुराने छात्र के बारे में बताएंगा??"

उसने धीरे धीरे क्लार्क ऑफिस की तरह कदम बढ़ाए...वहाँ पे बैठे बूढ़े इंसान जो चश्मा चढ़ाए कॉम्प्यूटर में कुछ कर रहा था उसने सुमन की आवाज़ को दो बार अनसुना ही कर दिया।

तीसरी बार जोर से सुमन बोली, "सर, 23 साल पहले यहाँ एक लड़की पढ़ती थी उर्वी उसके बारे में कुछ जानना है।"

उर्वी नाम सुनते ही ऑफिस में खड़ी एक औरत के हाथ से चश्मा गिर गया।

उस क्लार्क ने तो 23 साल सुनते ही मना कर दिया ये कहके की, "हम किसी की पहचान ऐसे ही नही बताते...और ऐसे ही पुराने बेमतलबी काम करते फिरेंगे तो आज का काम कौन करेगा??"

पर पीछे खड़ी औरत के हाव भाव तबसे बदले थे जब से उसने उर्वी का नाम सुना था।

निराश हो के सुमन वही सीढ़ियों पे बैठ गई आँख से आँसू बहने ही वाला था कि..
उस औरत ने सुमन को अपने पास बुलाया...अपने केबिन में ले जा कर पानी पिलाया, फिर पूछा,
" तुम कौन हो?"
सुमन : "मैं उर्वी चौधरी की बेटी, सुमन हूं।"
ये दो नाम सुनते ही उस औरत ने लंबी साँस ली और कहा, " मेरा नाम निमिशा है। मैं तुम्हारी माँ की पक्की सहेली हूं, हम दोनों यहाँ साथ में पढ़ते थे।बहोत अच्छी दोस्त थी वो मेरी।"
अब सुमन खुद को रोक न पाई, जैसे दिल खाली करने कोई कंधा मिला हो ऐसे वो रो पड़ी। इस दुनिया मे कोई तो था जो उसकी माँ को जानता था।बिना राह की मंजिल पाने चली थी वो जिसमें निमिशा पहला कदम थी।
निमिशा ने सुमन को शांत किया उसके बाद प्यार से पूछा, " क्या हुआ?? तुम इस तरह यहाँ?? और अपनी माँ को क्यों ढूंढ रही हो??"
सुमन ने 2 साल से लेके आज तक कि सारी कहानी बता दी।
सुमन का साहस देख निमिशा की आँखे भी गीली हो गई।
"मैं अपनी माँ के बारे में कुछ नही जानती। क्या आप मुझे कुछ भी बता सकती है?? वो किसके साथ भागी होंगी??"

निमिशा : "तुम्हारी माँ भागने वालो में से नही थी। वो अकेली ऐसी लड़की थी हमारी कॉलेज में जो पूरे गाँव का सामना कर यहाँ कॉलेज पढ़ने आती थी। बहोत हिमंतवाली थी वो। मगर उसके घर पे कुछ हुआ और उसकी शादी एक पुलिसवाले के साथ हो गई और उसने कॉलेज आधा छोड़ दिया। लेकिन वह अपनी दो साल की बेटी को यूं छोड़ कर भाग जाए ऐसा तो हो ही नही सकता। I उसके साथ उस रात कुछ तो हुआ था, जो आज तुम्हारी बातों से मुझे लग रहा है।"

सुमन : "किस रात??"

"जब तुम छोटी थी और तुम्हारी माँ प्रेग्नेंट थी, तब एक रात डेढ़ बजे मुझे उसका कोल आया था। वो कुछ कहना चाहती थी मगर फोन कट गया। पता नही पर उसके बाद उससे कभी बात ही नही हो पाई। मुझे उसकी चिंता होने लगी तो मैं तुम्हारे घर भी आई थी मगर वहाँ का माहौल तो बहोत भयानक था।तुम्हारे नाना नानी का चहेरा काला करके सब उसे गालियाँ दे रहे थे। किसी से पता चला कि उर्वी भाग गई है। उस समय मुझे कुछ समझ नही आया और इस बात को इतने साल हो गए।"

ये सब सुन सुमन और उलझन में पड़ गई। वो वहाँ से निमिशा का शुक्रियादा कर के वापस स्टेशन आती है।

जितने सवाल यहाँ आते वक्त थे, उससे कई ज्यादा यहाँ से जाते वक्त थे...अब?? कहा जाना है ये उसे खुद नही पता था। वह स्टेशन में ही बैठी रही। उसके मन के अंदर इतना शोर था कि उसे बाहर के कोलाहल से कोई फर्क नही पड़ रहा था।

वह सोचती रही,"निमिशा आंटी के हिसाब से माँ एक बहोत अच्छी लड़की थी और बहादुर भी। तो फिर ऐसी क्या वज़ह थी जिसने माँ को भागने के लिए मजबूर किया वो भी प्रेग्नेंसी के दौरान....कहि कुछ तो अनहोनी हुई है, कुछ तो गलत हुआ है जो आज तक छुपा हुआ है सबसे।माँ अगर सही में भागी थी तो फिर पापा तो पुलिस है, उन्होंने माँ को ढूंढा क्यों नहि। माँ के जाते ही एक महीने में उन्होंने दूसरी शादी क्यों कि??? इन सब में एक बात है जो बहोत अजीब है माँ का प्रेग्नेंसी दरमियान भाग जाना। शायद डॉक्टर अंकल को पता हो( अचानक से आए इस विचार ने उसके होंठो पे हल्की मुस्कान ला दी, मानो घने अंधेरे में कोई मोमबत्ती लेके खड़ा हो)

सुमन ने जल्दी से अपने गाँव की टिकिट करवाई और ट्रेन में बैठ के पहोंची अपने गाँव।

उस गाँव में एक ही डॉक्टर था, ज्यादातर औरतो की डिलिवरी वही करते थे।सुमन के सौतेली माँ की डिलीवरी भी वही की गई थी।

वहाँ जा के उसने डॉ. को पहले धीरे से समजाया की उसके पापा को ये बात पता न चले।

डॉ. अजय सुमन को और उर्वी को अच्छे से पहचानता था।

डॉ. अजय : "सुमन बेटा, तुम्हे ऐसा भी क्या जानना है मुझसे?? जो तुम अपने घरवालों को भी नही बताना चाहती"

सुमन ने फिरसे वही कहानी डॉ.अजय को सुनाई, मगर इस बार उसके मन में अपनी माँ के प्रति घृणा नही थी, चिंता थी।

"अजय अंकल, आप मेरी माँ के बारे में कुछ भी बता सकते हो?? मैं अब तो इतना जरूर जानती हूं कि वह भागी नही थी, जरूर कोई वजह थी जीसने उसे ऐसा कदम उठाने पर मजबूर किया।"

"नही बेटा, मैं इस बारे में कुछ भी नही जानता और उसको इतने साल बीत गए कि कुछ याद भी नही।"

ये सुनते ही सुमन की एक आखरी आश टूट गई।

ये देख डॉ. अजय ने उसे कहा, "तुम निराश मत हो, मैं पुरानी फाइल खोल के देखता हूं शायद उसमें तुम्हारे काम का कुछ मिल जाए।"

सुमन की आँखों में फिर से आश जगी...पल पल की दूरी पर उसकी बेताबी बढ़ रही थी कि आखिर उस रात ऐसा क्या हुआ था??

डॉ.अजय ने फाइल निकाली और उसमें देख के कहा, "बेटा तुम्हारी माँ यहाँ आखरी बार आई तब वह सिर्फ प्रेग्नेंट ही नही बल्कि अपने साथ एक रोग लेके भी आई थी।और इससे मुझे याद आया कि तुम्हारी माँ का शायद तीन बार अबोशन भी हो चुका था, और उस समय उसके गर्भ में जो बच्चा था वो भी बड़ी मुश्किल से पल रहा था। उस गर्भाशय के रोग की वजह से बच्चे के जन्म के बाद उसकी सर्जरी भी होने वाली थी...पर फिर तो..."

ये सब सुनना सुमन के लिए आसान नही था। ये सब क्या हो रहा था उसकी माँ के साथ और उस बच्चे के साथ भी। अब कोई ऐसा नही बचा था उसकी दादी और पापा के सिवाय जो उसे उस रात की कहानी के बारे में बता सके।

निराशा के बादल ओढ़ वह सुनमुन यूं ही चली गई। हॉस्पिटल के बाहर बैठ के वह रो रही थी।मुँह से हल्की सी चीख निकल गई, माँ तुम कहाँ हो?? तुम्हारे साथ क्या हुआ था?? तुम जहाँ भी हो मेरे पास आ जाओ...माँ मेरे पास आ जाओ...उसके शब्द अब आँसू बनके बहने लगे। उसे अब कोई परवाह नही थी कि गाँव मे कोई उसे देख लेगा या उसके पापा उसे घसीटते ले जाएंगे....उसके जहन में अब सिर्फ उसकी माँ दौड़ रही थी।

सहसा कोई उसके सामने आ के खड़ा हो गया।
"अविनाश, तुम???"

*******

हाथ पे हाथ धरे कुछ भी नही होने वाला, अब वक्त आ गया है कि आमने सामने ही बात की जाए।

सुमन बड़े जोश के साथ घर गई जाके सीधे रुकी अपने पिता के कमरे में, अलमारी खोल उसमें से बंदूक निकाली और जाके ताक दी अविनाश के सिर पर...

घर में सबकी जान हथेली में आ गई। अचानक इतने दिनों बाद घर आई सुमन का ये रवैया देख सब हैरान हो गए।

दादी : "अरे, क्या कर रही हो पागल लड़की, छोड़ अवु को गोली चल जाएगी तो अनर्थ हो जाएगा।"

घर में से चीखने चिल्लाने का शोर आने लगे, सभी पड़ोसी तमाशा देखने पहोच गए।

सुमन : "अनर्थ तो हो चुका है दादी, मेरी माँ के साथ। अब मुझे किसीकी परवाह नही।मुझे परवाह है तो सिर्फ मेरे माँ की और उसकी कोख में पल रहे उस बच्चे की। आपने बहोत बतादी अपनी कहानी, अब मुझे सच जानना है। बताओ...क्या हुआ था मेरी माँ के साथ, क्यों वो आज हमारे साथ नही है, ऐसा क्या हुआ था कि वह अपनी गर्भवती हालत में भाग गई, बताओ..बताओ..." उसकी आवाज़ में न तो पहले जैसा डर था और न ही किसीकी मर्यादा।

सुमन को ऐसा देख सबके पसीने छूट गए, अमरनाथ और दादी डर के मारे काँप उठे।

अमरनाथ : "बताता हूं ... बताता हूं...तुम अवु को कुछ मत करना छोड़ दो उसे, छोड़ दो, उसकी कोई गलती नही है।"

सुमन : "गलती तो मेरी भी नही थी 19 साल से फिर भी में भुगत रही थी न , तो अब ये भी भुगतेगा।
आप सच बताओ वरना आज अपने लाडले बेटे से हाथ धो बैठेंगे।

" नही...नही..." डर के मारे अमरनाथ तोते की तरह बोलने लगा,

"तुम्हारी माँ जब कॉलेज के आखरी साल में थी तब तुम्हारे नाना को किसीने दारू के धंधे में फंसाया था। मैंने तुम्हारे नाना को छोड़ने पे एक शर्त रखी और उसी शर्त के अनुसार तुम्हारी माँ की मुझसे शादी हुई। शुरुआत में सब ठीक चल रहा था। वह अपना कॉलेज छोड़ घर सम्भालती थी और फिर तुम्हारा जन्म हुआ।
घर में एक बेटी के बाद हमे एक बेटा चाहिये था। उसी वजह से तुम्हारी माँ का तीन बार अबोशन करवाया, क्योंकि तीनों बार उसकी कोख में लड़की ही पल रही थी। हर बार तुम्हारी माँ नही मानती और हमे जबरदस्ती करनी पड़ती। जब वह चौथी बार प्रेग्नेंट हुई तो डॉकटर ने कहा कि उसके गर्भाशय में गांठे हो गई है, इस बच्चे के बाद वह कभी प्रेग्नेंट नही हो सकेंगी...लेकिन हमने दूसरे डॉक्टर को दिखाया जिसने हमे कहा कि ऐसा कुछ नही होगा। ऑपरेशन के बाद वह फिरसे प्रेग्नेंट हो सकती थी। तो मैं और माँ खुश हो गए और मैंने फिर उसे हॉस्पिटल आने के लिए कहा। हम ये देखने जा रहे थे कि बेटा है या बेटी?? बरसात की मौसम थी। अंधेरा होने के बाद गुप्त तरीके से वो जाँच करवाने वाले थे, तुम्हारी माँ जिद पे अड़ी थी कि उसे ये जाँच नही करवानी, जो भी हो वो उसे जन्म देना चाहती थी लेकिन मैं ये नही चाहता था। कुछ ही घंटों में उसकी बारी आने वाली थी, मैं अकेले में डॉक्टर से बात करने गया इतने में वो हॉस्पिटल से भाग गई। अंधेरा काफी हो चुका था, मैं उसे ढूंढने चला गया। भागते भागते वो एक जंगल की ओर बढ़ गई और मैं गाड़ी लेके उसके पीछे पड़ा था, मेरा खून खौल रहा था उसकी इस पचकानी हरकत पे। मैं बहोत चिल्लाया मगर वो मुझसे बचने की चाह में भागी जा रही थी। अचानक तेज बारिश शुरू हुई...मेरी गाड़ी बंध हो गई। मैं वही गाड़ी छोड़ उसके पीछे भागा.... मेरे हाथ में आते ही मैंने उसे जोर से थप्पड़ मारा, मुझे होश ही नही रहा था। सारा गुस्सा उस थप्पड़ में बह गया, वो बुरी तरह से गिर गई और सिर पथ्थर से टकराके खून से लथपथ हो गया। मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ, बारिश बढ़ती ही जा रही थी और तुम्हारी माँ अपने आखरी साँस गिन रही थी। अब मेरे हाथ में कुछ नही था। मेरी आँखों के सामने वह मर गई और उसकी कोख में पल रहा बच्चा भी। अब उसे ऐसे घर ले जाता तो मुझपे और माँ पे कई सवाल उठते... हमारा घर बदनाम हो जाता। इस सबसे निकलने का मुझे एक ही तरीका दिखा। मैंने जंगल में माँ को खुदाई का सामान ले के बुलाया और उसे वही दफना दिया। तबसे लेके आज तक हम ऐसे ही जी रहे थे कि वह भाग गई, लोगो को भी यही बताया ताकि उसकी लाश किसीके सामने न आये...."अफसोस कि एक धारा आज अमरनाथ की आँखों से भी बह रही थी।

वातावरण में सन्नाटा छा गया, ये शायद खतरनाक तूफान के पहले की शांति थी।

सुमन के हाथ से बंदूक छूट गई, वो जमीन पर जिंदा लाश की तरह गिर गई और चीख चीख के रोने लगी। उसके इस रुदन ने वहाँ खड़े सबके रोंगटे खड़े कर दिए, दादी भी सिर पे हाथ पटक के बैठ गई। जिस राज को उसने इतने सालों से संभाल के रखा था वह आज बेरहमी से बाहर आया था। अब आने वाले तूफान को रोकने की किसी में हिमंत नही थी।

अविनाश भी गुस्से से लाल पिला हो गया, उसने अमरनाथ को खिचके एक चाँटा मारा, " शर्म आती है मुझे तुम्हें बाप कहने में, घिनोने इंसान हो तुम।"

अब सब बर्बाद हो चुका था। सुमन दौड़ के गई अमरनाथ के पास और उसकी कमीज़ खीच के गुस्से में बोलने लगी, "इतनी भी क्या लालसा थी तुम्हें बेटे की, की उसके सामने तुम्हें कुछ न नजर आया। तुम हत्यारे हो पाँच पांच जीव के और ऊपर से मेरी माँ का नाम बिगाड़ के तुम जी कैसे सकते हो, ये क्यों नही समझ आता कि एक जीव पहले होता है, लड़का या लड़की बाद में.... वह चीख चीख के बोलने लगी, कब तक ये सब चलता रहेगा??? लड़का लड़की एक समान ये बात चीख चीख कर बतानी क्यो पड़ती है?? दोनों की तुलना करें ही क्यों?? दोनों की अपनी अपनी अहेमयत है, दोनों के बिना समाज अधूरा है, फिर सिर्फ लड़के की आशा क्यों?? लड़कियों को क्यों ये साबित करने की जरूरत है कि वे लड़को से कम नही, क्या वह एक लड़की बनकर नही रह सकती, किसीसे उसके पद की तुलना क्यो करते हो?? न जाने मेरी माँ की तरह और कितनी औरते इस दुःख से गुजर रही है.... बंध करो ये घिनोनी हरकत।ईश्वर के दिए जीव को पालना सीखो नही की उसके मोल करके उसे मारना। हर शादी के पहले क्या दहेज के साथ ये शर्त भी रखनी पड़ेगी की लड़की ऐसे घटिया इरादों के लिए अबॉर्शन नही करवाएगी???"

सभी चुप थे। सुमन की आवाज़ सबके कानों से होकर दिल को चीर रही थी। मुझे नही रहना ऐसे समाज में। वह पीछे मुड़ी और अविनाश के पास गई, "अगर उस दिन हॉस्पिटल तुमने मेरी हिमंत बढाके ये काम नही करवाया होता तो शायद ये घिनोना राज राज ही रह जाता, शुक्रिया। मेरी माँ के नाम से ये कलंक हटाने के लिए।"

कहके वह बिना पीछे मुड़े चली गई....अपनी माँ को न्याय दिलाने की नई राह पे....

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समाप्त