The Author सोनू समाधिया रसिक Follow Current Read वो आख़िरी रात... By सोनू समाधिया रसिक Hindi Horror Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 76 अब आगे,राजवीर ने अपनी बात कही ही थी कि अब राजवीर के पी ए दीप... उजाले की ओर –संस्मरण नमस्कार स्नेही मित्रो आशा है दीपावली का त्योहार सबके लिए रोश... नफ़रत-ए-इश्क - 6 अग्निहोत्री इंडस्ट्रीजआसमान को छू ती हुई एक बड़ी सी इमारत के... My Wife is Student ? - 23 स्वाति क्लास में आकर जल्दी से हिमांशु सर के नोट्स लिखने लगती... मोमल : डायरी की गहराई - 36 पिछले भाग में हम ने देखा की फीलिक्स ने वो सारी बातें सुन ली... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share वो आख़िरी रात... (65) 2.8k 12.2k 3 ?वो! आख़िरी रात.... ?ये बात आज से 50-60 वर्ष पुरानी है।भादों का महीना था। शामके समय कीचड़ से भरे कच्चे रास्ते में खुद को संभालते हुए एक युवक आगे बढ़ रहा था, क्योंकि कुछ देर पहले ही वर्षा बंद हुई थी। अभी तक आसमान में बादल छाए हुए थे, जिससे रास्ता देखने में भी परेशानी हो रही थी। वह युवक अपनी पत्नी को लेने उसके मायके जा रहा था। उस समय यातायात की ज्यादा सुविधा विकसित नहीं हुई थी, केवल तांगों के सिवाय। वो भी बारिश के मौसम में कच्चे रास्तों में फसने के डर से बंद रहते थे। तो लोंगो को पैदल ही लंबे और किचढ़ से भरे रास्तों को तय करना होता था। बारिश के कारण उसको काफी देर हो गई थी चारों तरफ जंगल और ऊपर से खराब मौसम के कारण वह युवक अपने कदम जल्दी जल्दी बढ़ाने लगा। वह पहली बार उस गाँव में आया था। इस लिए उसे मालूम न था कि बारिश के मौसम में उस रास्ते से आना मना था। अब गाँव लगभग 1 किलोमीटर दूर था कि तभी बारिश हल्की फुहार के रूप में प्रारंभ हो गई थी और अंधेरा भी गहराता जा रहा था। क्यों कि भादों का महीना अपनी गहरी काली रातों के लिए जाना जाता है। उस युवक को काफी तकलीफ हो रही थी चलने और रास्ता देखने में। बादलों की गङगङाहट, हल्की बारिश, बदलते हुए हवा के रुख और सियारों की रोने की आवाजें माहौल में डर को घोल रही थी, जो कुछ देर पहले खुश मिज़ाज़ था। उस युवक के ज़हन में भय की लहर दौड़ गई। तभी अचानक पीछे से आवाज आई, "रुको!" "क्क्कौन?" - युवक ने तुरंत मुड़कर कहा। "मैं पास के ही गाँव का हूँ, लेकिन तुम इस समय यहां क्या कर रहे हो?" "मैं पास के ही गाँव में जा रहा था, लेकिन बारिश की वजह से लेट हो गया हूँ।" "अरे! भाई मैं उसी गाँव का हूँ। और वही जा रहा हूँ, चलो तुमको भी पहुंचा दूंगा! 'एक से भले दो '!" "सही कहा भाई चलो। "-युवक ने राहत की साँस लेते हुए कहा। " हाँ भाई! चलो मैं आगे आगे चलता हूँ, तुम मेरे पीछे पीछे चले आओ। "वह अंजान व्यक्ति फुर्ती से अपनी लाठी को टेकता हुआ आगे चलने लगा। उस युवक को वह व्यक्ति अंधेरे की वजह से साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था और दूसरी वजह दोनों के दरमियाँ फासला अधिक था। लेकिन धुंधली सी आकृति से वह व्यक्ति काफी हट्टा कट्टा और लम्बा मालूम पड़ रहा था। अब रात हो चुकी थी और कीङे - मकोङों, सियारों के रोने की आवाजों से वातावरण को भयावह बना रहे थे, लेकिन उस युवक पर कोई असर नहीं था क्योंकि उसके साथ उस गाँव का ही व्यक्ति था। कुछ देर चलने के पश्चात वो दोनों उस गाँव के नजदीक पहुंच गए। लेकिन अब दोनों की मुस्किल और बढ़ गई थी क्योंकि उस गाँव में पहुँचने के लिए एक नाले को पार करना पड़ता है।जो गर्मियों और सर्दियों में सूखा पड़ा रहता था जिसमे से रास्ता था लेकिन अब उसमे बहुत पानी था जिसका बहाव तेज़ था। रात में उस नाले के पानी की तेज़ खर खराहट की आवाज और भयंकर बहाव किसी भी तैराक के इरादे कमजोर करने के लिए काफी था। उस युवक के ज़हन में खौफ ने फिर से दस्तक दे दी थी। डर से उसके पांव वही ठिठक गए, लेकिन वह व्यक्ति बिना डरे आगे बढ़ा जा रहा था। तभी उसने मुड़कर उसने उस युवक से कहा - "अरे! रुक क्यूँ गये तुम? आ जाओ मेरे साथ में तैरना भी जानता हूँ, डरो मत! आ जाओ। मैं जा रहा हूँ न आगे।" वह युवक अभी तक डर रहा था। तभी वह सहायता के लिए नाले के उस पार बने घर में कोई व्यक्ति हो जो उन दोनों की सहायता कर सके इस आशा में उसने आवाज लगा दी। तभी वह व्यक्ति बोल पड़ा -" क्या हुआ? मैं हूँ न। फिर भी सहायता के लिए चिल्ला रहे हो रात के समय सब सो रहे होंगे देखो मैं घुस गया पानी में तुम भी आ जाओ, आ जाओ डरो मत!" - उस व्यक्ति ने गंभीर स्वर में कहा। वास्तव में वह पानी में बिना झिझक के उतर चुका था। उधर उसकी आवाज पास ही के घरों में सो रहे लोगों को सुनाई दी। " लगता है कोई नाले के उस पार है, जो सहायता के लिए बुला रहा है। चलो जाकर देखते हैं। "-सहायता के लिए तत्पर एक व्यक्ति ने कहा। "कही कोई भूत तो नहीं है जो हमें सहायता के लिए आवाज देकर छलना चाहता हो।" "चलो! ये तो वहीं जाकर पता चलेगा!" सब अपनी लाठी और लालटेन लेकर उस नाले की तरफ निकल पड़े। तब तक उधर वह युवक उस व्यक्ति के कहने पर पानी में उतर गया। "आओ मेरा हाथ पकड़ लो।" "हां! लो, चलो। "-उस युवक ने पानी में आहिस्ता उतरते हुए उस व्यक्ति का हाथ पकड़ते हुए कहा। वो दोनों पानी में कुछ दूर चले ही थे कि उधर से गाँव वालों ने आवाज लगाई। "कौन है? हम लोग आ चुके हैं। अगर सहायता चाहिए तो आवाज देकर हमें बताओ।" उस युवक ने उनको आवाज देनी चाही तो उस व्यक्ति ने उसका मुह अपने हाथों से दवा दिया। "क्या हुआ।" "श्श्श्श्श्श....! मैं हूँ न तुम्हारे साथ फिर क्या जरूरत है किसी और की।" - उस व्यक्ति की बातों में गुस्सा था और उसका सारा शरीर बात के दौरान कांप रहा था। उस व्यक्ति ने उस युवक को तेज़ी से खींचते हुए नाले के तेज़ बहाव के बीचो बीच ले जाकर छोड़ दिया। वह युवक गोता खाने लगा। "ये क्या कर रहे हो, बचाओ मैं डूब रहा हूँ। "उस व्यक्ति ने उसका हाथ पकड़ लिया जिससे वो बच गया, लेकिन इस बार उसकी पकड़ में अंतर था। उस युवक को उस व्यक्ति की पकड़ एसी लगी जैसे उसका हाथ किसी नुकीली धातु से बनी चीज़ में फस गया हो। उस युवक के होश तब ठिकाने नहीं रहे जब उसने उस व्यक्ति की बातें सुनी। " ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हा.... तुझे क्या लगा मैं तुझे इतनी आसानी से बह जाने देता। आज तेरी बलि चडे़गी मेरे हाथों से। तू मेरा शिकार है। ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हा.... ।" "क्क्कौन हो तुम?, क्या चाहते हो मुझसे?" "तेरी मौत हूँ मैं ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हा....... ।"तभी जोरदार आवाज के साथ बिजली चमकी उसके प्रकाश में उस व्यक्ति का घृणित और विकृत चेहरा देखकर उस युवक की एक खौफनाक चीख बुलंद हो गई और उसने झटके से उस दरिंदे जो कि एक जल पिशाच था उससे हाथ छुड़ाकर वापस किनारे की तरफ दौड़ा। और बचाओ बचाओ की आवाज लगाने लगा, लेकिन तब तक गाँव वाले किसी भूत की आवाज समझ कर वापस चले गए थे। वह वापस किनारे पर पहुंचता तब तक उस जल पिशाच ने उसका पैर पकड़ कर खिंच लिया और उसे गहराई में ले गया। पानी में काफी देर तक उथल पुथल होती रही कभी कभी उस युवक की दर्द भरी चीख भी गूंज जाती। अखिरकार पानी में हलचल होना बंद हो गई शायद वह युवक अब जिंदगी और मौत की लड़ाई हार चुका था। ऎसा लाज़मी था क्योंकि जल पिशाच कोई आम भूत की नस्ल नहीं होती है उसकी सबसे ज्यादा ताक़त पानी में होती है, जहाँ उसको मात देना नामुमकिन है। सुबह... जब लोग नाले के पास से गुजरे तो उन्हे पानी में किसी व्यक्ति के पैर तैरते हुए दिखे क्यों कि सुबह तक नाले का पानी भी कम हो गया था। सब दौड़कर गए और देखा कि उस युवक की लाश थी जो रात को आवाज लगा रहा था। सबने देखा तो उस युवक का सर मिट्टी के अंदर धंसा हुआ था और बाकी का पूरा शरीर उल्टा पानी में तैर रहा था। उसका सर निकाला गया तो देखा उसका सारा चेहरा खून से लथपथ था और आंखों का कोई नामोनिशान नहीं था। वह जल पिशाच ऎसे ही कई लोगों को अपना शिकार बना चुका था। लोगों का मानना है कि बुरी शक्तियां बरसात के मौसम में रात को और गर्मियों में दोपहर को सक्रिय रहतीं हैं। हो सके तो कही भी अकेले और खराब मौसम में अपरिचित क्षेत्र में न जाएं। नोट :-यह घटना सत्य है, जो मध्यप्रदेश के भिंड जिले के एक पिछड़े गाँव में घटित हुई थी। ये वही गाँव है जिसका ज़िक्र मैं अपनी पिछली सत्य भूतिया बाकया पर आधारित कहानी 'प्रेत संतति' में किया था। ये कहानी केवल प्रत्यक्ष दर्शियों के वक्तव्य पर आधारित है न कि यह घटना के सत्य होने का दावा करती है और न ही किसी भी प्रकार के अन्धविश्वास को बढ़ावा देती है। तो फिर जुड़े रहिए ऎसे ही रोमांचक और रहस्यमयी बाकयो से रूबरू होने के लिए जो आपके रोंगटे खड़े दे। कहानी कैसी लगी बताना मत भूलिएगा और अपनी प्रतिक्रिया देना भी मत भूलना। ? जै श्री राधे ? ?आपका सोनू समाधिया 'रसिक' ✝️समाप्त ✝️ Download Our App