manchaha - 7 in Hindi Fiction Stories by V Dhruva books and stories PDF | मनचाहा - 7

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मनचाहा - 7

अभी औफिस से छूटने का टाईम नहीं हुआ था तो रास्ते में ट्राफिक ज्यादा नहीं था। छः बजे तक हम कोलेज पहुंच गए। वहां पार्किंग में ही रीधीमा और काव्या मिल गई। दोनों ही खुबसूरत लग रही थी। उन्होंने भी हमें compliments दिए। फिर सभी ओडीटोरीयम की ओर चल दिए।

काफी सारे लोग आ चुके थे पर निशा अभी तक नहीं आई थी। कोलेज के सभी प्रोफेसर्स आ चुके थे। हम सब एक जगह ग्रुप बनाकर बैठ गए। फ्रेशर्स पार्टी में हमारे सभी सिनीयर्स आने वाले थे। कुछेक क्षण के बाद निशा और उनके भाई का ग्रुप भी आ गया। मैरी नज़र उस ओर गई, उनके ग्रुप में विकासभाई भी थे। मैंने देखा कि अविनाश सर की नजरें किसीको ढूंढ रही है। जब हमें देख विकास भाई और निशा दोनों ने हवा में हाथ लहराया तो उनकी भी नजर भी हम पर गई, और मानो जिसे वह ढूंढ रहे है वह यही है। हम दोनों की नजरें मिली। उन्हें देखकर lab के बाहर का सिन याद आ जाता है।

काव्या- ये निशा के साथ कौन है जो हमारी ओर इशारा कर रहा है?
मीना- लगता है अपना इंप्रेशन जमाना चाहते है।
मैं- अरे... वो मुझे हाय कह रहे हैं।
काव्या- तुझे? तु कबसे उसे जानने लगी? और हमें पता भी नहीं।
मैं - ओ जासूसों की अम्मा, मैं बचपन से उन्हे जानती हूं। वो मेरे मुंहबोले भाई है, विकासभाई । क्या कुछ भी....
सबने एक-दूसरे का मुंह देखा और जोरों से हंस पड़े। इतने में निशा भी हमारे पास आ गई।
निशा- हाय गर्ल्स..! कैसी लग रही हुं?
दिशा- बोंब लग रही है तु एकदम। लगता है पार्लर से सीधे आई है।
निशा- थेंक्यु दिशा, पर तैयार पार्लर वाली ने नहीं मम्मा ने किया है।
रीधीमा- wow...! आंटी पार्लर चलाते हैं?
निशा- (हंसते हुए) नहीं, मम्मा तो हाउस वाइफ है। उनको शौक़ है इन सब चीजों का। वैसे आप सब भी gorgeous लग रही है specially पाखि। वाकई साड़ी में बहुत खुबसूरत लग रही हो तुम।
मैं- thank you Nisha. And you're also looking nice.

फ्रेशर्स पार्टी विध्यामेम और रोहित सर ने आर्गेनाइज की थी। डो.रोहित हमारे anatomy subject के प्रोफेसर हैं और विध्यामेम के हसबैंड भी। उनकी शादी को अभी पांच महीने ही हुए थे। ये जानकारी हमें निशा ने दी थी। थोड़ी देर में हमारे डिन डो. निरंजन गोयल भी आ गए तो रोहित सर ने पार्टी शुरु करवाई। शाम के सात बजने आए थे तो वेलकम ड्रींक के साथ खाने में सुप और स्टार्टर भी शुरु हो चुका था एक तरफ़। यह देख हमारी जनम जनम की भूखी दिशा " जीस को आना है वह आए" कहकर खाने चली गई। इस लड़की से भुख बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होती।? मेरे और निशा के अलावा सब चले गए दिशा के साथ।  थोड़ी देर में साकेत हमारे पास आया।
साकेत- हल्लो गर्ल्स! आप यहां अकेले?
निशा- अकेले कहा... एक-दूसरे के साथ तो है। ?
साकेत- मेरा मतलब, आप दोनों यहां अकेले?
मैं- बाकी सब सुप के काउंटर पर है और तुम अकेले?
साकेत- नहीं अकेले तो नहीं, राजा भी सुप लेने ही गया है हम दोनों के लिए।

देखा तो वह दिशा से बातें कर रहा था। फिर साकेत राजा के पास चला गया। ओडिटोरीयम में DJ music system लगाया गया था। सोंग्स भी पार्टी वाले बज रहे थे। डांस फ्लोर पर  कुछ फ्रेशर्स और सिनीयर्स डांस करने आ गए थे। सब हमारे प्रोफ़ेसर्स को भी डांस फ्लोर पर ले आ रहे थे। उन सब के साथ अपने पार्टनर भी थे, फिर क्या... सोंग बजा," जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए...." सभी प्रोफेसर्स अपने पार्टनर के साथ बहुत अच्छे लग रहे थे। उनको देख सब स्टूडेंट्स तालियों के साथ सिटिया भी बजाने लगे।

निशा एक मिनट में आने को कहके अपने भाई के पास चली गई। कुछ कहकर वह वापस आ गई। मैंने आज भी वो लड़की को अविनाश सर के साथ देखा।
मैंने निशा से पूछा- तुम्हारे भाई के साथ जो लड़की है वह कौन है? तो निशा ने बताया कि अविभाई की क्लासमेट श्रुति है और अच्छी फ्रेंड भी।
मैं- अच्छी फ्रेंड मतलब गर्लफ्रेंड?
निशा- नहीं रे... उनकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है।
मैं- तुम्हें कैसे पता?
निशा- हमारे घर में कोई किसी से कुछ नहीं छुपाता। तुमने गायत्री ग्रुप ओफ कंपनी का नाम सुना है?
मैं- हां, वहीं न जो पिछले साल बेस्ट कंस्ट्रक्शन कंपनी का अवार्ड जीती थी। जीनके ओनर भरत पारेख है।
निशा- वो मेरे पापा है और जिस नाम पर कंपनी है वह गायत्री मम्मा का नाम है।
मैं- (चौंक कर) क्या..? तुम भरतजी की बेटी हो ?, तो तुम्हारे भैया को तो कंस्ट्रक्शन लाइन मे होना चाहिए था, डाक्टरी में कैसे आ गए? आपकी तो बहुत बड़ी कंपनी है तो अंकल को हेल्प भी हो जाती।
निशा- पापा भी यही चाहते थे पर भैया पर डाक्टर बनने का भूत सवार था। (हंसते हुए) बाद में वह भूत मेरे मथ्थे डाल दिया तो मैं भी यहां आ गई। हमे मम्मी-पापा ने पूरी छूट दे रखी थी हमे अपना करियर चुनने की। हम चारों अपनी हर बात एक-दूजे से शेयर करते हैं। अगर अविभाई को कोई गर्लफ्रेंड होती तो अब तक घर पर पता चलही जाता। अच्छा बताओ तुम्हारे घर में कौन कौन है?
मैं- मेरे घर में मेरे दो बड़े भाई है, दोनों की शादी हो चुकी हैं। दोनों को एक एक बेटा है।
निशा- तुम्हारे मम्मी पापा?
मैं- दोनों नहीं है, भगवान को शायद उनकी ज़रुरत ज्यादा थी।
निशा- ओह! सोरी, मुझे पता नहीं था। तुम्हारे भैया भाभी तुम्हें अच्छे से रखतें तो है ना?
मैं- इतना समझ लो उन सबकी जान मुझ में बसती है और मेरी मेरे भतीजों में। तुम कभी आना हमारे घर सब पता चल जाएगा। हम जब भी बाहर घूमने जाते है सब साथ ही जाते है एक दूसरे के बिना कोई कहीं नहीं जाता।
निशा- मैं जरुर तुम्हारे घर आऊंगी सबसे मिलने।

बाते चल रही थी तभी दिशा आई हमें बुलाने।
दिशा- कुछ खाएंगी दोनों या बातों से पेट भरने का इरादा है?
मैं- सोरी यार, आज लंच देर से किया था तो अभी भूख नहीं है। निशा तुम कुछ खा लो।
निशा- हमें देर से खाने की आदत है तो मुझे भी अभी भूख नहीं है।
दिशा- अच्छा निशा तो डांस फ्लोर पर चले? पाखि चल तू भी आजा।
मैं- नहीं बाबा, साड़ी में कैसे? गिर जाऊंगी।
दिशा- अरे ठुमके कम लगाना, पर चलना तो तुम्हें पड़ेगा ही क्यो निशा...
निशा- बिल्कुल सही, come on paakhi.
मैं- तुम जाओ न मैं यही ठीक हुं। गिर विर गई तो मज़ाक बन जाएगा मेरा।
दिशा- ( गुस्से में) छोटी बच्ची है क्या जो गिर जाएंगी। चल वरना उठाकर ले जाऊंगी। दिखाउ क्या?
मैं- अरे नहीं..., चलती हुं बाबा उठाना मत मुझे।

जैसे ही हम डांस फ्लोर पर गए ग्रुप की लड़कियां वहीं थी। हमारी क्लास के ज्यादातर स्टूडेंट्स डांस करने आ गए थे। निशा के भाई और उनका ग्रुप भी आ गया था। ओडिटोरियम काफी बड़ा था तो ज्यादा क्राउड नहीं लग रहा था। हम अपने ग्रुप के साथ डांस करने लगे। धीरे-धीरे माहोल जमने लगा था। यो यो हनी सिंह, बादशाह और गुरु रंधावा के सोंग्स ने तो  कमाल कर दिया था। लाइटींग्स् भी अब म्युझिक ‌के साथ ताल मिला रही थी। माहोल के हिसाब से लाइट्स भी थोड़ी कम करदी थी। लगता था जैसे किसी क्लब में आ गए हों। धीरे-धीरे सब अपना पार्टनर ढूंढ के कपल डांस करने लगे, सब अपनी धुन में डांस कर रहे थे। तभी अविनाश सर एकदम से मेरे सामने आ गए तो मैं झेंप गई। मै कुछ समझूं उससे पहले उन्होंने ने मुझे पकड़कर मेरी पीठ अपनी ओर करदी। मैं गुस्से से मुडी तो मेरे कंधे पकड़ मुझे ऐसे ही रहने का इशारा किया और कान के पास आकर बोले,- तुम्हारे ब्लाउज़ का एक  हुक खुल गया है।
मैं- oh shit...

मुझे चुप रहने को कह वो हुक बंद करने की कोशिश करने लगे। गनीमत थी कि हम कौने में डांस कर रहे थे वरना इज्जत का फालूदा हो जाता आज तो मेरा। हम दोनों धीरे-धीरे डांस तो कर ही रहे थे जिससे किसीको कोई शक न हो। और इससे भी अच्छी बात यह थी कि किसीका ध्यान हम पर न था ऐसा मैं सोच रही थी। जब हुक लग गई तब अविनाश सर ने डन कहा। मैं उनकी ओर घूमी और उन्हें थेंक्यु कहा। जैसे ही हम दोनों ने हमारी आसपास देखा तो ओर कोई नहीं पर रविसर हमारी ओर देखकर मुस्करा रहे थे। उनको देख मैं शर्म से पानी-पानी हो गई। अविनाश सर ने उन्हें एक मुक्के का इशारा किया और चुप रहने को कहा। वो फिर वहां से रविसर के पास चलें गए। वहां उन दोनो मे बात होने लगी।

रवि- क्यो बे अवि, ये सब क्या चल रहा है?
अविनाश- तु ऐसा-वैसा कुछ मत समझ। मैंने सिर्फ उसकी हेल्प की है समझें।
रवि- क्यो तु किसी से कह भी सकता था न। तो...
अविनाश- किससे कहता?
रवि- क्यो, निशु से नहीं कह सकता था?
अविनाश- कहता तो वह क्या सोचती? मेरी फ्रेंड पर नजर रख रहे हो कहकर बात घर तक ले जाती। तु जानता नहीं क्या उसे। वो बेचारी को तो पता भी नहीं था कि उसका हुक...
रवि- अच्छा बेचारी हंममम.... । हेल्प तो हमें भी चाहिए कही बार पर हमको तो नहीं मिलती
अविनाश- चल अब बस भी कर वरना यही पिटेगा।
क्रमशः

कहानी के अगले भाग को जानने के लिए मुझे फोलो करें। कहानी अच्छी लगे तो जरूर कमेंट करे और रेटिंग्स भी दे। कहानी में त्रुटि लगे तो जरूर बताएं मुझे अच्छा लगेगा।