स्त्री प्रजाति के खत्म होने का खतरा
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क्या एक दिन संपूर्ण विश्व से स्त्री प्रजाति के खत्म हो जाने का खतरा शुरू हो जायेगा क्या भारत में स्त्रियों कि संख्या पुरूषों के मुकाबलें में निरंतर गिर रही है और क्या पुरूषों के मुकाबलें कम होती स्त्रियों के कारण समाज और जीवन में भयानक परिवर्तन आ सकतें है ये कुछ प्रश्न है जो आजकल बुद्धिजीवियों को सोचने को मजबूर कर रहे है आइये पहलें आंकडों की भाषा देखें।
भारत में 1901 में 10,00 पुरूषों के मुकाबलें में 872 स्त्रियां थी जो अब 1981 में 821 रह गयी हैै। और शायद अगली जनगणना तक 804 रह जायेगी, ऐसी स्थिति चीन की भी है चीनी समाज इस भंयकर त्रासदी को ज्यादा बुरी तरह से झेल रहा है और वहां पर हजारों पुरूष शादी से वंचित है पूरे चीनी समाज का ढांचा चरमरा रहा है। भारत के दक्षिणी राज्यों में स्थिति थोडी ठीक है मगर पंजाब,हरियाणा और दिल्ली में स्थिति और भी भयावह है।
पंजाब में प्रति 1000 पुरूषों के पीछे 772 महिलायें व हरियाणा में 765 ही हैं। हरियाणा के कुछ स्थानों में ग्रामीण महिलाओं की संख्या तो 715 तक रह गई है। स्त्री पुरूषों के अनुपात में यह दूरी सोचने को मजबूर करती है। गांवो में शहरों की तुलना में स्त्रियों का अनुपात ज्यादा है हर वर्ष 13 मिलियन लडकियों में से मात्र 11 मिलियन जीवित रहती है। 2 मिलियन लड़कियां मर जाती है। प्रकृति स्त्रियों की रक्षा करती है,वे प्राकृतिक रूप से ज्यादा ताकतवर है,मगर उनका अनुपात कम हो रहा है। किसी छोटी मोटी बीमारी से यदि 100-200 व्यक्ति मर जाते है तो बावेला मच जाता है मगर गर्भपात से इस वर्ष 6 लाख मौतें हुई और किसी ने आवाज तक नहीं उठाई।
महिलाओं की गिरती हुई जनसंख्या के क्या कारण है और इस सम्पूर्ण अव्यवस्था के सामाजिक सरोकार क्या है? महिलाओं पर अत्याचार लड़की पैदा करने के दुख,बांझ होने के कष्ट उनके स्वास्थ के प्रति उपेक्षा उनके अधिकारों का हनन,जीना नरक के समान ,मरना आसान। दान-दहेज खालों। बहु को जलादो। काम काजी महिलाओं के अपने कष्ट और ऊपर से भ्रूण हत्याओं का अवाध चलता सिलसिला। राजस्थान के जैसलमेर जिले में आज भी नवजात बच्चियों को मार दिया जाता है। भ्रूण के मादा होने की संभावना मात्र से भ्रूण लिंग परीक्षण होते ही गर्भपात करा देना। मादा जाति को नष्ट करने का षड़यंत्र लगती हैे।
पिछले वर्ष में ही भ्रूण नष्ट करने की 50,000 से अधिक घटनायें हुई है। और इसी कारण समाज में महिलाओं की संख्या बड़ी तेजी से कम हुई। भ्रूण हत्याओं पर प्रतिबंध तो लगा मगर इससे समस्या सुलझी नही। क्योंकि डाक्टर और निजि क्लिनिक सोनोग्राफी क्रोमोसोम संबधी बीमारियों तथा यौन रोगांे के नाम पर भ्रूण परीक्षण कर रहे है और भ्रूण हत्या भी जारी है।
वास्तव में भ्रूण हत्या या बालिका हत्या को जनसंख्या नियंत्रण के रूप में सोचा जा रहा है,जो गलत है। पुत्र प्राप्ति के प्रबल कारकों में से एक है मादा भ्रूण हत्या।
गर्भपात को कानूनी मान्यता मिल जाने के कारण भ्रूण हत्या को बढ़ावा मिला है हमारे देश में स्त्री पुरूष अनुपात में निरंतर गिरावट आ रही है, क्योंकि संतान प्राप्ति के नाम पर केवत पुत्र की ही चाहत है, और परिवार कल्याण कार्यक्र्रमों के कारण केवल एक या दो बच्चे और वे भी नर। चीन इस संकट को झेल रहा है,वहां एक बच्चा एक परिवार के नारे के कारण नर भ्रूण ही विकसित हुये अब स्त्री पुरूष का अनूपात गड़बड़ा गया है स्त्रियों के अनुपात में गिरावट के सामाजिक परिणाम अवश्य ही खराब होगें। निरक्षरता,
खराब ,स्वास्थ्य आदि कि कारण लोगों में मनोवैज्ञानिक यौन कुण्ठाओं का विकास होगा। जो आगे जाकर पूरे समाज को विकृत करेगा। इस देश का पुरूष हर काम स्त्री के माथे डाल देना चाहता है,मगर वह कन्या का बाप नहीं बनना चाहता हैं। परिवार कल्याण संबंधी गर्भ निरोधकों का इस्तेमाल भी पुरूष नहीं करना चाहता। हानिकारक प्रभावों के बावजूद यह सब भी स्त्री की जिम्मेदारी मानी जाती है। मादा भ्रूण हत्याओं पर रोक तथा महिलाओं के प्रति अत्याचारों को कम करने के लिये पुरूषों को परिवार कल्याण कार्यक्र्रमों को अपने स्तर पर अपनाना चाहिये। भ्रूण परीक्षण संबधी कानूनों के कड़ाई से लागू करने की आवश्यकता है।
जनसंख्या व्रद्धि के नियंत्रण को रोकने के लिये आर्थिक दण्ड व्यवस्था भी लागू की जा सकती है। भ्रूण परीक्षण को संज्ञेय और गैर जमानती अपराध माना जाना चाहिये। सन् 2024 तक हमारे देश की जनसंख्या 140 करोड़ हो जाने की संभावना है और यदि इसी दर से मादा भ्रूण हत्यायें होती रही तो शायद तब तक स्त्री प्रजाति को अस्तित्व की संकट की लडाई लड़नी पड़गी। यदि स्त्रियों का अस्तित्व नहीं रहेगा,तो मानवता कहां बचेगी? पूरी प्रथ्वी पर एक नवीन प्रकार का पर्यावरणीय असंतुलन आ जायेगा। और स्त्रियां नष्ट हो जायेगी। शायद ऐसा नहीं होगा, क्योंकि वंश चलाने के लिये मनुष्य नामक जाति कि अस्तित्व को बनाये रखने के लिए स्त्री प्रजाति का संरक्षण ही नहीं उसका सही अनुपात भी आवश्यक हैं केवल सरकारी सोच या रीति नीति से कुछ नहीं होगा। पूरे समाज को अपने सरोकारों की चिंता करते हुये स्त्री की रक्षा में जुट जाना होगा। यह काम केवल सरकार या महिला संगठनों का ही नहीं है। यह तो सबका है। सबको मिलकर स्त्री जाति की रक्षा और अनुपात को बढानें के काम करना होगा,क्योंकि भारत में स्त्री संबंधी अधिकांश आंदोलनों का नेत्रत्व पुरूषों ने किया है यथा राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द ,ईश्वरचंद्र विघासागर, गांधी नेहरू जे पी आदि। अतः यदि परिवार समाज और राष्ट्र स्त्रियों की रक्षा का काम नहीं करेगा तो प्रकृ्रति करेगी, क्योंकि एक सीमा के बाद प्रकृ्रति किसी अन्याय को बर्दाश्त नहीं करती हैं।
परिवार कल्याण, सुरक्षित मातृत्व तथा इस तरह के अन्य कार्यकृमों की तरह ही स्त्रियों की सुरक्षा हेतू भी एक राष्ट्रीय कार्यकृम की आवश्यकता है ताकि वे सुरक्षित रहें। स्त्रियां ही नहीं होगी जो मानव का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। हमें इस संकट को समझना होगा। समय रहते चेतना होगा।
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यशवंत कोठारी
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