Thinking is a good habit - 1 in Hindi Philosophy by ALOK SHARMA books and stories PDF | सोंचना एक अच्छी आदत - 1

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सोंचना एक अच्छी आदत - 1

हम हमेशा क्यों सोंचते हैं क्योंकि सोंचना एक अच्छी आदत है । 

जरूरी नही की आप क्या सोंचते रहते है हर समय बल्कि जरूरी ये है कि आप जो सोंच में डूबे रहते है हर वक्त  उसमे ऐसा क्या है जो आपको हर समय सोंचते रहने में मजबूर करता है ।
    सोंच में भी कई प्रकार है जितने लोग उतने प्रकार की सोंच तभी तो बहुत कम ऐसा देखने को मिला है कि दो लोग एक तरह की सोंच रखते हों या एक समय पर दो लोग एक ही भाग पर एक ही प्रकार से सोंच रहे हो,कुल मिलाकर सोंचना एक ऐसी प्रक्रिया है जो इंसानो का मूलतत्व है और ये मूलतत्व सभी का अलग अलग होता है । कभी कभी ऐसा भी होता है कि कई लोग मिलकर एक पहलू पर सोंचते है लेकिन फिर भी उनके सोंचने का तरीका भिन्न ही होगा क्योंकि एक समय मे एक जैसा सोंचना सभी का नामुमकिन है । 
   यदा कदा कभी कभार ऐसा हो जाता है कि सामने वाला जो सोंच रहा है वो हम भी । लेकिन ऐसा कभी कभार होता है । दूसरा पहलू ये भी ही कि आप हर समय यदि सोंचते है तो वो सकारात्मक है या नकारात्मक है ये आपके ऊपर निर्भर है ।

आपको भी पता है कि सकारत्मक सोंच आपको एक बहेतर ज़िन्दगी के रास्ते पर ले जाती है और नकारात्मक सोंच हमेशा ज़िन्दगी में पीछे ले जाती है । 
   फैसला आपको करना है । आप सोंचिए हर वक्त सोंचिए बस ये ध्यान रहे आपके सोंचने का नज़रिया आपकी सकारत्मक मंजिल ही होनी चाहिए । जब भी मौका मिले तब सोंचिए ,खुल कर सोंचिए मैं तो कहता हूँ सोंचने के लिए समय निर्धारित करिये और अपने आप को सोंचने के लिए प्रेरित करते रहे ताकि उसमे औए गहराई आ सके|
  अपने मस्तिष्क से सोंचना यानी अपने मस्तिष्क को बेहतर बनाए रखने का एक अच्छा साधन है । बस कभी चिंता न करे बल्कि चिंतन करे वो भी सकारात्मक पहलुवों पर । लाइफ में कुछ भी हो सही या गलत सब आपके पास्ट में सोंच  का भविष्य में प्रतिफल होता है । भले आपको इसका एहसास हो या न हो। लेकिन जब आपकी सोंच सटीक हो जाती है सकरात्मक दिशा में सोंचती है तो परिणाम बेहतर ही होते है । 

चिंता और चिंतन में बहुत फर्क है पहला नकारात्म दिशा की ओर ले जाता है दूसरा सकारात्मक दिशा की ओर । दोनो ही सोंचने के दो अलग अलग पहलू हैं । ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हमे चिंता करनी है या फिर समस्या के समाधान के लिए चिंतन करना है,  उसपर विचार करना है। 

जब भी हमारा मस्तिष्क सकारात्म सोंचता है समझलो नए विचारों का जन्म होना शुरू होता है और यही अच्छे विचार समाज में अच्छी विचारधारा को हवा देने लगते हैं साथ साथ स्वयं की ज़िंदगी भी अपने ही विचारों पे चलना शुरू हो जाती है और अपने ही सकारात्मक विचारों के बलबूते नए रास्ते और नई संभावनाएं स्वतः  बनने लगती हैं हमें हमारे विचार स्वतः ही प्रेरित करते रहते हैं उस दिशा में चलने के लिए जिससे हम अपने छोटे छोटे लक्ष्य को प्राप्त करते हुए या जीतते हुए हर क़दम आगे ही बढ़ते रहते हैं । ठीक इसके विपरीत नकरात्मक सोंच में होता है। क्योंकि सोंच का काम ही है हमारे विचारों को हमारे सामने प्रकट करना अब वो कैसा भी हो । ये सोंचने के तरीके पर निर्भर करता है। इसलिए चाहे जैसे ही परिस्थिति क्योँ न हो सोंच को हमेशा सकारत्मक पहलू से देखते हुए सोंचना चाहिए। 

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