राजेश अभी दो महीने पहले ही एक छोटे कस्बे में बतौर बैंक मैनेजर आया था।नई जगह में अभी ठीक से रहने खाने-पीने की व्यवस्था भी नहीं हो पाई थी। और घर से भाभी के फोन आने शुरू हो गए थे।
"मुन मुन का भौतिक विज्ञान का पेपर है, जल्दी आओ देवर जी ,नहीं तो मुु्ना फेल हो जाएगा ।"
राजेश बड़ी भााभी की कोई बाात नहीं टालता था ।उसके बूढ़े माताा-पिता ,दादी,का ध्यान रखने वाली एक बड़ी भाभी ही तो थीं। छोटे भाई ने नौकरी गते ही अपनी पत्नी संंग। अलग घर ले लिया था, जहां छोटी। भाभी की तानाशाही के चलते घर के लोग बहुत कम जाते थे। राजेश तो कभी माता-पिता को छोड़़ता तो एक राात मुश्किल से काटता ।पूरी रात उसके मन में एक अपने घर का सपना चलता ।
और इसलिए मैनेजर का पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद राजेश ने कर्ज ले लिया था ।
छह घंटे का सफर करके अभी घर पहुंच कर चाय भी नहीं पी थी कि भाभी के आदेश बरसने लगे ।" राजेश मुन्ना को पढ़ा दो और फिर बाजार से सामान ले आना, तुम्हारे भैया की तबीयत ठीक नहीं है । इनकी दवाई भी ले आना ।"
राजेश सर झुका कर " जी भाभी" के सिवाय कुछ नहीं कह पाता। बूढ़ी दादी अम्मा राजेश की मां पर झल्लाती और मां अपना गुस्सा राजेश की बहन पर । पिता ने तो जैसे मौन व्रत ही रख लिया था।
शायद घर की ऐसी किचकिच देखकर राजेश ने विवाह न करने की ठान ली थी ।
दो दिन मुन्ना को पढ़ा कर राजेश वापिस अपने काम पर आ गया । सुबह ५ बजे की बस से चलकर सीधे बैंक गया और शाम ७ बजे अपने कमरे पर । अभी ताला भी नहीं खोला था कि फोन की घंटी बजने लगी । बड़े बेमन से राजेश ने फोन उठाया तो एक मीठी सी आवाज़ आई " आप आ गए घर से । चाय पी ली । कहानी मिली "
राजेश कुछ समझता इससे पहले फ़ोन कट गया ।
तभी राजेश की नजर दरवाजे पर पड़ी जहां एक रंगीन लिफाफा पड़ा था।बहुत सुन्दर लिखाई में एक सुंदर सी कहानी थी उसमें,पर भेजने वाले का नाम नहीं था । कहानी पढ़ कर राजेश को बरसों बाद गहरी मीठी नींद आई ।
अब तो रोज राजेश नई कहानी का इंतजार करता और कहानी आती रही। राजेश के पते बदले,शहर बदले पर उस कहानीकार की कहानियां आती रही और अब तो हर सुबह उसकी मीठी आवाज फोन पर सुनकर ही राजेश उठने लगा था । कब १५ साल जीवन के बीत गए पता ही नहीं चला ।कहानी , कविताओं से राजेश की अलमारियां भर गई। पर मन नहीं भरा राजेश का,अब भी उसकी धड़कन लिफाफा खोलते समय बढ़ जाती थी । हर कहानी में राजेश कुछ ढूंढता पर कहानी उसके अन्दाजे के अनुसार अंत नहीं होती। कहानीकार से स्वयं कई बार मिलने पर भी राजेश उसकी सराहना नहीं करता।कभी उससे कहानियों के पात्रो के बारे में कुछ न पूछता ।
इतने वर्षों में मुन्ना इंजीनियर बन गया,बड़े भईया भाभी ने अलग घर बना लिया,दादी संसार छोड़ कर चली गई । राजेश कुछ अनमना सा रहने लगा , हालांकि उसने भी अपना बड़ा घर बना लिया था ।
कहानीकार ने उस दिन से उसके घर के नाम 'रामायन' के अनुसार राजेश को 'रामजी,' संबोधन दे दिया था ।अब राजेश का मन कहानीकार का हो गया था।और वो उसकी कहानी का पात्र बनकर कहानी को एक सुखद अन्त देना चाहता था ।पर यह बात समझने में राजेश ने देर कर दी थी ।
इतने साल से कहानी लिखते लिखते कहानीकार टूट गया था । और अपने बुरे दिन देखकर ,संसार की सच्चाई को समझते हुए कहानीकार ने अच्छे दाम में अपनी २० साल से संभाल कर रखी सभी कहानियां बेच दी ।
राजेश इस सदमे को सहन न कर सका ,जो कहानियां बीस साल कहानीकार ने सिर्फ उसके लिए लिखीं ,वो एक झटके में किसी और की हो गईं। अब कोई और उनका संपादन करेगा,अपने अनुरूप उनको ढालेगा और उनसे उचित लाभ भी लेगा । राजेश टूट कर बिखरा पर उसने कहानी कार की मजबूरी को नहीं समझा । बीस साल में पहली बार कहानीकार को उसने एक लिफाफा भेजा जिसमें कहानीकार की जी भर कर निंदा लिखी । राजेश ने अपनी टूटने की सारी चुभन कहानी कार को दे दी ।
राजेश ने तो कहानीकार की कहानी का अन्त कर दिया,पर कहानीकार आज भी अपनी कहानी का अन्त ढूंढ रहा है।