Lalima in Hindi Love Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | लालिमा

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लालिमा

"अपने आप को कभी शीशे में देखा है? कैसी दिखती हो? तुम्हें चाहना तो दूर तुम्हें तो कोई घर में भी ना रखें, मुझसे कोई उम्मीद करना छोड़ दो लालिमा, क्योंकि मैं तुमसे तंग आ चुका हूं", यह कहकर यह शिशिर दरवाजे को धड़ाम से बंद कर कर ऑफिस चला गया l लालिमा उदास होकर अपने आपको आईने में एकटक देखती रही उसके बिखरे बाल, उदास और थकी आंखें, सूखे होंठ और मुर्झाया हुआ उदास चेहरा, उसने मन ही मन में कहा ठीक ही तो कहते हैं वो, मेरे जैसे को तो घर में भी कोई नहीं रख सकता l यह कहकर वह रोने लगी है और अपने बीते दिन याद करने लगी, जब शिशिर और लालिमा दोनों कॉलेज में एक दूसरे को चाहने लगे थे, कितने खुशनुमा दिन थे, वो मेरे चेहरे को चांद से भी सुंदर बताता और दिन रात बस प्यार की बातें करते l लालिमा उस दिन को याद करके अपने आप को खुशनसीब मानती, जब उन दोनों ने घरवालों की बिना मर्जी के एक मंदिर में प्रेम विवाह कर लिया था, बहुत खुशहाल जिंदगी जी रही थी लालिमा और शिशिर l शिशिर भी उसे पति के साथ साथ परिवार का भी प्यार देता l सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन धीरे धीरे 5 साल हो गए और लालिमा मां न बन सकी इसलिए शिशिर धीरे-धीरे लालिमा से ऊब चुका था l वह एक बेटे की चाहत में जी रहा था l अब यह लड़ाई झगड़े आम बात हो चुकी थी, लालिमा को अब अपने अंधकारमय जीवन में आशा की कोई किरण नहीं दिख रही थी l कुछ दिनों बाद एक दिन लालिमा शिशिर का इंतजार कर रही थी, रात के 11:00 बज चुके थे, वह मन ही मन अपने को कोस रही थी कि कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हुई कि तभी दरवाजे पर आहट हुई दरवाजा खोलकर देखा तो सामने शिशिर और एक औरत थी, लालिमा ने औरत के बारे में कुछ नहीं पूछा और कहा, "आप हाथ मुंह धो लो मैं खाना लगाती हूं", शिशिर उस औरत के साथ अपने कमरे में चला गया और तेजी से दरवाजा बंद कर लिया, अब लालिमा को अपना जीवन व्यर्थ लग रहा था, कुछ देर बाद दरवाजा खुला, लालिमा अभी भी वही बैठी थी, शिशिर ने चिल्लाते हुए कहा, "अगर मुझे एक बच्चा दे सकती हो तो ठीक है वरना आज से ये यही रहेगी तुम्हारी जगह और तुम इस घर को छोड़कर जा सकती हो कहीं भी कभी भी" l यह कहकर शिशिर और वो औरत दोनों घर से बाहर चले गए l लालिमा अपने दिल पर पत्थर रखकर अब यह फैसला कर चुकी थी कि अब इस जीवन में जीने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं है, वह सुबह होते ही घर से चली गई, लालिमा खुद को मारने के लिए एक ट्रक के आगे जाने ही वाली थी कि तभी उसको एक आदमी ने खींच लिया और चिल्लाया, "दिखाई नहीं देता क्या? कैसे चलती हो? अभी जान चली जाती, अरे कम से कम अपना नहीं अपने परिवार के बारे मे तो सोचो, जान नहीं प्यारी क्या? लालिमा कुछ नहीं बोली लेकिन उसके आंसू सब कुछ बोल पड़े, आदमी ने उसको बिठाया और धैर्य बंधाया कि जीवन में ऐसा होता रहता है लेकिन इसकी वजह से आत्महत्या करना तो एक संगीन पाप है l लालिमा ने कहा, "जो बच्चा औरत एक बच्चा ना जन्म सके, उसका जीवन तो बेकार ही है ना" l कुछ देर बात करने के बाद उस आदमी ने अपना नाम श्रेष्ट बताया और बोला, "अब तुम कहां जाओगी" ? लालिमा निरुत्तर हो कर बैठी रही l श्रेष्ठ बोला, "तुम चाहो तो मेरे यहां रह सकती हो कोई परेशानी नहीं होगी, इतनी बड़ी दुनिया में कहीं भी जाओगी तो तुम्हें परेशानियों का सामना करना पड़ेगा", लालिमा ने भी एक पल के लिए सोचा और श्रेष्ठ के साथ चली गई लेकिन उसे हर पल अपने शिशिर का इंतजार रहता l श्रेष्ठ लालिमा का बहुत ध्यान रखता और उसे हंसाने की कोशिश किया करता, लालिमा जान चुकी थी श्रेष्ठ उससे प्यार करने लगा है लेकिन लालिमा सिर्फ और सिर्फ शिशिर को प्यार करती थी l उधर शिशिर शराब के नशे में डूब चुका था और अपनी सारी जायदाद लुटा चुका था जब उसके पास उसके सारे पैसे खत्म हो गए थे, जो औरतें उसके आस पास बनी रहती थीं वो भी उसे लात मारकर चली गई थीं l अब वह बीमार रहने लगा शराबी होने के कारण नौकरी से भी निकाल दिया गया l अब उसे लालिमा की याद आ रही थी, उसे अपने आप पर पछतावा हो रहा था वह दिन रात अपने आप को कोसता और दरवाजे की ओर निहारता रहता कि एक दिन लालिमा जरूर आएगी l
 एक दिन श्रेष्ठ ने लालिमा को अपने दिल की बात बताइ, लालिमा ने कुछ नहीं कहा लालिमा ने सोचा कि अब वह किसका इंतजार करेगी, श्रेष्ठ इतना अच्छा आदमी है उसका अच्छा ध्यान रखता है वह कितने एहसान कर चुका है लालिमा पर, वह उसको मना नहीं कर सकती इसलिए लालिमा ने भी हां कर दी l दोनों ने शादी कर ली और कुछ महीनों बाद पता चला कि लालिमा मां बनने वाली है, लालिमा को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह मां बन सकती है, वह बहुत खुश थी, उसके माथे पर लगा कलंक अब उसे गर्व जैसा महसूस हो रहा था और उधर शिशिर की हालत और बिगड़ती जा रही थी वह दीवारों पर अपना सर पटकता तो कभी लालीमा की फोटो देख कर रोता और कहता मुझे माफ कर दो कमी तो मुझ में थी लालिमा मैंने इसकी सजा तुम्हें दी l मैं बाप नहीं बन सकता था लेकिन मैं क्या करता अपनी झूठी मर्दानगी की डींगे हांकता रहा, उधर आखिर वह दिन आ ही गया जब लालिमा माँ बनने वाली थी l श्रेष्ठ ने उसे अस्पताल में भर्ती करवाया, लालिमा की हालत बहुत नाजुक थी, वह इस नाजुक हालत में शिशिर का नाम ले रही थी, श्रेष्ठ से रहा नहीं गया और उसे मना नहीं कर पाया और शिशिर को बुलाने चला गया, वह इतना घबराया हुआ था और लालिमा को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था लेकिन वक्त को तो कुछ और ही मंजूर था l श्रेष्ठ घबराहट में तेज गाड़ी चला रहा था और अचानक उसका एक्सीडेंट हो गया इधर से शिशिर की हालत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई तो पड़ोसियों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया और उसी अस्पताल मे लालिमा एक बेटे को जन्म दे चुकी थी लेकिन लालिमा की हालत धीरे-धीरे बिगड़ती जा रही थी लेकिन वह इतनी खुश थी कि उसको अपना दर्द बिल्कुल भी महसूस नहीं हो रहा था, बस आंखों में शिशिर की तलाश थी तभी एक डॉक्टर ने नर्स से चिल्लाते हुए पूछा, "लालिमा का पति आया या नहीं अभी, जैसे ही आ जाए उससे ये पेपर साइन करा लेना, उसकी हालत नाजुक है", शिशिर ने लालिमा का नाम सुनते ही छटपटाने लगा और बोला, "लालिमा, लालिमा कहां है? मैं हूँ उसका पति, वह लालिमा के कमरे तक आया और देखा उसकी अपनी लालिमा चुपचाप लेटी हुई थी और पास में था एक सुंदर सा शिशु जो अभी अभी इस दुनिया में आया था, लालिमा ने सुशील को देखा तो उसकी आंखों में चमक आ गई पर उसने अपना मुहँ घुमा लिया, शिशिर ने उसके पास आकर उसका माथा चूमा और उस से माफी मांगी और बोला, "अब कोई परेशानी नहीं होगी, हम दोनों एक साथ रहेंगे, मुझे माफ कर दो, कमी मुझ में थी और दोस्त में देता रहा तुम से छुटकारा पाने के लिए सच्चाई से मुंह मोड़ने के लिए पर अब मैं समझ चुका हूं और बहुत पछता रहा हूं,मैं तुमसे इस बच्चे के बारे मे कुछ नहीं पूछूँगा, अब हम साथ रहेंगे, रहोगी ना? हमेशा की तरह लालिमा ने कोई जवाब नहीं दिया पर इस बार वो हमेशा की तरह खामोश हो चली थी और उसके पास लेटा प्यारा सा बच्चा हर दुख से बेख़बर, इस काली रात के बाद आने वाली अपनी पहली सुबह का इंतजार कर रहा था l

? समाप्त ?

कहानी पढ़ने के लिए आप सभी मित्रों का आभार l
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?धन्यवाद् ?

? सर्वेश कुमार सक्सेना