desh ke bahadur..veer savarkar - 3 in Hindi Motivational Stories by Mewada Hasmukh books and stories PDF | देश के बहादुर.. वीर सावरकर - ३

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देश के बहादुर.. वीर सावरकर - ३

सावरकर माने तेज...
सावरकर माने त्याग...
सावरकर माने तप...
सावरकर माने तत्व...
सावरकर माने तर्क...
सावरकर माने तारुण्य...
सावरकर माने तीर...
सावरकर माने तलवार...
सावरकर माने तिलमिलाहट....


वीर सावरकर part-३
आप सभी का स्वागत ओर धन्यवाद है।

वर्ष 1924 में उनको रिहाई मिली मगर रिहाई की शर्तों के अनुसार उनको न तो रत्नागिरी से बाहर जाने की अनुमति थी और न ही वह कुछ साल तक कोई राजनीति कार्य कर सकते थे।
इसीलिए रिहा होने के बाद उन्होंने 23 जनवरी 1924 को ̔रत्नागिरी हिंदू सभा’ का गठन किया और भारतीय संस्कृति और समाज कल्याण के लिए काम करना शुरू किया। थोड़े समय बाद सावरकर तिलक की स्वराज पार्टी में शामिल हो गए और बाद में "हिंदू महासभा" नाम की एक अलग पार्टी बना ली। वर्ष 1937 में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने और आगे जाकर भारत छोड़ो आंदोलन’ ̕का हिस्सा भी बने।

इस टाइम उन्होंने भारत में हिन्दू एकता...ओर हिन्दू समाज को जागृत करने का समाज सेवा कार्य किया..

पतित दलित हिन्दू को मंदिर में प्रवेश कराने के लिए पावन मंदिर निर्माण किया गया .... यहां सभी जाती को प्रवेश मिलता था ..

सावरकर ने अपनी मराठी कविता 
“मल्हा देवाचे दर्शन घेवू द्या” 
में एक निश्चित समुदाय के मंदिर प्रवेश को लेकर किये जा रहे भेदभाव के अन्याय और अपने दर्द को उजागर किया था।
अस्पृश्यता पर महात्मा गांधी से कई वर्ष पूर्व ही सावरकर ने अपने कविता के माध्यम से ध्यान आकर्षित किया था।

हिन्दू एकता जागृति का ये बड़ा अभियान था।

सावरकर और उनकी हिन्दू महासभा ने छूतछात का विरोध किया था और अछूतों के लिए मन्दिर प्रवेश का समर्थन किया था, यह काम उन्होंने उनका धर्मान्तरण रोकने के उद्देश्य से किया था।
वो जानते थे कि अगर दलित जातियां ईसाई और मुसलमान बन गयीं, तो वे बहुसंख्यक बन जायेंगे, और हिन्दू एक अल्पसंख्यक वर्ग बनकर रह जायेगा।

वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक, कवि थे..
जिसकी लिखी बुकस आजदी के कई सालो तक बैन रही।
वो पहले हिंदुत्व के विचार धारा के लेखक थे...
वीर सावरकर की लिखी बुक
हिंदुत्व : who is Hindu...
हिन्दू विचारधारा के लिए गीता साबित हुई..
इस बुक द्वारा सभी अंध दूषण और सामाजिक कुरिवाजों के बारे में खुल के कहा गया...
उन्होंने भारत को पुण्य भूमि बताते परिभाषित करते लिखा था..

"आसिन्धु सिंधुपर्यतों अस्य भारत।"
"भूमिका पितृभू: पुणयभुष्चैव स वै  हिन्दुरितिस्मृत।"

अर्थात; समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिस की  पितृभू है जिसके पूर्वज यही पैदा हुए हैं व यही पुण्य भू है,जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही है वहीं हिन्दू है

सावरकर भारत को “हिंदू राष्ट्र” के रूप में स्थापित करने के समर्थक थे। सावरकर का हिन्दू राष्ट्र का सपना समतावादी था। उनका सपना था कि सभी हिन्दू अपने विरासत को स्वीकारे और सम्मान दें साथ ही साथ सभी नागरिकों को अपने आस्था के अनुरूप जीने की स्वतंत्रता भी थी।

आजादी के बाद उनको 8 अक्टूबर 1951 में उनको पुणे विश्वविद्यालयन ने डी.लिट की उपाधि दी। 

वीर सावरकर ने राष्ट्रध्वज तिरंगे के बीच में धर्म चक्र लगाने का सुझाव सर्वप्रथम दिया था...

वीर सावरकर ने पाकिस्तान निर्माण का विरोध किया और गांधीजी को ऐसा करने के लिए निवेदन किया। नाथूराम गोडसे ने उसी दौरान महात्मा गांधी की हत्या कर दी...
नाथूराम गोडसे और नारायण कापटे को गिरफ्तार किया गया।।
यह दोनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मेंबर होने के नाते आरएसएस पर बैन लगा दिया गया

ओर नाथूराम गोडसे के मित्र होने के नाते वीर सावरकर को भी नजर केद किया गया
वे प्रथम क्रान्तिकारी थे जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने गांधीजी हत्या का झूठा मुकदमा चलाया परंतु साक्ष्यों के अभाव में  निर्दोष साबित होने पर रिहा कर दिया तब उनसे माफी मांगी।

वीर सावरकर कहते थे...
जब किसी व्यक्ति के जीवन के सभी लक्ष्य पूर्ण हो जाए...तब यदि वह मृत्यु की ओर अग्रेशर होता हे तो उसे आत्मसमर्पण कहते है........

१९६३ में उन्होकी पत्नी यमुनाजी का देहांत हो गया।
बाद में
१९६५ में सावरकर जी भी ज्यादा तर बीमारी के कारण कमजोर हुए...
३ फरवरी १९६६ को उन्होंने मोत को आमन्त्रित करते अन्न जल का त्याग किया..२६ फरवरी १९६६ को ११ बजे बॉम्बे में अपना देह त्याग कर चिर निंद्रा में लीन हो गए।

वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार थे। उन्होंने परिवर्तित हिंदुओं के हिंदू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं आंदोलन चलाये। सावरकर ने भारत के एक सार के रूप में एक सामूहिक "हिंदू" पहचान बनाने के लिए हिंदुत्व का शब्द गढ़ा..
उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद और सकारात्मकवाद, मानवतावाद और सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व थे।

वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे जब उनका देहांत हो गया तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा...तो कांग्रेस सरकार ने यह कहकर रोक दिया कि वे संसद सदस्य नहीं थे....
बल्कि चर्चिल की मौत पर यही संसद ने शोक मनाया था....

बाद में संसद भवन में वीर सावरकर जी का चित्र न लगाया जाए  इसीलिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनियागांधी ने राष्ट्रपति डॉ,अब्दुल कलाम को पत्र लिखा था, लेकिन राष्ट्रपति ने सोनिया गांधी के सुझाव को नकारते हुए वीर सावरकर जी का चित्र अनावरण खुद अपने कर कमलों से किया था।

वाजपाई कहते थे कि सावरकर महासागर की ही तरह शक्तिशाली थे। सेल्यूलर जेल की ऊंची दीवारें भी उनके साहस को तॊड़ नहीं पायी। जेल के अंदर अपरिमित दैहिक परिश्रम, अंग्रेज़ों की प्रताड़न के बावजूद उन्होंने अपनी साहित्य के भंडार से देश को दिशा दिखाई थी।


1857 के स्‍वातंत्र समर में हिंदू-मुस्लिम एकता का जिस तरह से सावरकर ने जिक्र किया है, उस तरह आजाद भारत के इतिहास में भी किसी पुस्‍तक में नहीं किया गया है, खुद महात्‍मा गांधी व नेहरू की किसी पुस्‍तक में हिंदू-मुस्लिम एकता का इतना सुंदर चित्रण नहीं है, लेकिन चूंकि सावरकर ने हिंदुत्‍व शब्‍द की अवधारणा दे दी, इसलिए उनके उस सौहार्द्रपूर्ण लेखन को ही इतिहास से काट दिया गया। यही नहीं, चूं‍कि नेहरू को सावरकर का हिंदुत्‍व में आस्‍था पसंद नहीं था इसलिए उन्‍हें जानबूझ कर महात्‍मा गांधी की हत्‍या में घसीट लिया गया।
आजाद भारत अंडमान निकोबार जेल का नाम सावरकर के नाम पर करने पर भी कांग्रेस को यह बात रास नहीं आई थी और सोनिया गांधी के नेतृत्‍व वाली ‘मनमोहनी सरकार’ के दौरान उनके नाम की पटटी उखाड़ कर फेंक दी गई थी। जीते जी केवल 25 साल की उम्र में 50 वर्ष की सजा पाने वाले सावरकर को आजाद भारत में भी इतिहास की पुस्‍तकों में मार दिया गया और आज की युवा को देखिए कि उसे इस सब से कोई मतलब ही नहीं है। ब्रिटेन व अमेरिका के युवाओं में आज भी अपने देश के महापुरुषों के प्रति श्रद्धा है, लेकिन भारत के युवा को अपने महापुरुषों के बारे में जानने, उन्‍हें पढने की फुर्सत ही नहीं है।

वाजपाई कहते थे कि सावरकर महासागर की ही तरह शक्तिशाली थे। सेल्यूलर जेल की ऊंची दीवारें भी उनके साहस को तॊड़ नहीं पायी। जेल के अंदर अपरिमित दैहिक परिश्रम, अंग्रेज़ों की प्रताड़न के बावजूद उन्होंने अपनी साहित्य के भंडार से देश को दिशा दिखाई थी।


काल स्वयं मुझसे डरा है,
मै काल से नहीं
काले पानी का कालकुट पीकर,
काल के कराल स्तंभों को झकझोर कर,
मै बार बार लौट आया हूं,
ओर फिर भी में जीवित हूं,
हरी मृत्यु है,
में नहीं....

समाप्त 
हसमुख मेवाड़ा.....

सभी का आभार।।



देश के बहादुर.....आगे वेट करिय ऐसे ही एक महानायक क्रांतिकारी पुरुष के स्मरण लेख की।।