Dastane Ashq - 22 in Hindi Classic Stories by SABIRKHAN books and stories PDF | दास्तान-ए-अश्क - 22

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दास्तान-ए-अश्क - 22

एक औरत जब कोई भी बात मन में ठान लेती है ,तो कहते हैं भगवान भी उसे उसकी जगह से हिला नहीं सकते!
उसने मन ही मन फैसला कर ही लिया था कि वह अपने बच्चे को ठीक करेगी!
उस पर दिल और दिमाग से ध्यान देगी!  उसे बिल्कुल ठीक कर देगी! लेकिन इस समय उसे अपने पति का साथ चाहिए था! जो उसके बच्चे का पिता था!  लेकिन वह निर्मोही अपनी ही दुनिया में लीन रहता था! वो अपने बच्चे के लिए वो मानो एक पत्थर बन चुका था ! लेकिन उसने डॉक्टर के कहे अनुसार अपने बच्चे की परवरिश करनी शुरू कर दी !
नन्ना दूध नहीं पीता था !लेकिन उसे जिंदा रखने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी था उसे दूध पिलाना!
वह तरह-तरह के जतन करती !
कभी बिल्ली दिखा दी ,कभी मोर, कभी बंदर और कभी अपने चार मंजिला मकान की छत पर चढ़कर उसे चिड़िया दिखाती! और दूध पिलाती !
नन्ना धीरे धीरे अपनी जिंदगी की तरफ लौट रहा था!
जैसे-जैसे वह थोड़ा बड़ा हो रहा था!
घर के सामने एक मैदान साथ पड़ा था! उसमें डॉगी ने कुछ बच्चे को जन्म दिया! नन्ने को लेकर वह अक्सर उसके पास चली जाती थी! छोटे छोटे डॉगी के पिल्लो को दूध दे आती थी! दूध पीते पीते वह पिल्ले दौड़ कर उसे इर्द-गिर्द घेरा डालकर उछल कूद करने लगते थे नन्ना काफी खुश हो जाता था उनके साथ भी एक लगाव सा हो गया था..! दूसरी सुबह जब वह उठी तो वहां एक भी बच्चा नहीं था! उन पिल्लों की मां गुमसुम इधर-उधर दौड़ रही थी, और देख रही थी डॉगी की हालत देखकर वह घबरा गई! 
बावली सी होकर वो भागकर उस मैदान में पहुंच गई !
डॉगी की आंख में आंसू थे !
दूध से भरे उसके आंचल से दूध बहने लगा था!
एक मां की तड़प को उसने महसूस की..! उससे रहा न गया!
अड़ोस पड़ोस की औरतों को बात की..!
फिर सब ने मिलकर बच्चों को इधर-उधर ढूंढा..!
उसकी कोशिश रंग लाई.. अपनी जगह से दूर हुए बच्चे लकड़ियों मलबे में छुप गए थे..!  उन सब को अपनी जगह पर लाने काफी मशक्कत उठानी पड़ी..!
उन्हें अपनी मां के पास पहुंचाया..,!
सारे बच्चे दौड़ कर उसकी मां के आंचल से  उछलकर दूध पीने लगे ..!
औरतों की भीड़ में से कोई चीख उठा था अरे बच्चों की मां तो रो रही है.!
डोगी की आंखों में उसने पहली बार आंसू देखे..!
अपने नन्ने को उसने सीने से लगा लिया! 
आंखे बरबस ही बरस रही थी..! एक माँ का अपने बच्चो से मिलन देखकर..! 
एक जानवर अपने बच्चों के लिए ईतना फिक्रमंद था तो वो कैसे अपने नन्ने के लिए गैर जिम्मेदार हो सकती थी? 
नन्ने की मां का भी हौसला बढ रहा था !उसे लग रहा था कि शायद भगवान उसकी सुन रहे हैं !उसकी आशाओं और उम्मीदों का एक ही द्वार था और वह था उसका नन्ना ..! उस को दी जाने वाली परवरिश..!

देखते ही देखते 1 साल बीत गया!
नन्ना अब ठीक होने लगा था !
लेकिन अभी वह बहुत चिड़चिड़ाता था! बहुत रोता था नॉर्मल बच्चों से कुछ ज्यादा..! 
डॉक्टर ने कहा था कि जैसे ही उसके अंदरूनी कमजोरी भर जाएगी वह धीरे धीरे ठीक हो जाएगा !
डॉक्टर उसे बहुत हौसला देती और शाबाशी भी कि वह बहुत अच्छे से अपने बच्चे की परवरिश कर रही है !लेकिन ये बात तो वही जानती थी एक-एक दिन वह कैसे निकाल रही थी!
हर सुबह एक नई जंग के साथ शुरू होती! पर उसे सुकून था कि उसका बच्चा ठीक हो रहा है ! लेकिन शायद  उसकी जिंदगी में अभी और भी तूफान आने बाकी थे! एक दिन घर के कामों से निवृत होकर अपने नन्हे को सुलाकर जैसे ही वह सोने के लिए बेड पर लेटी !
उसके पति बेडरूम मे आया !
उसे लगता है कि शायद वो उससे कोई बात करना चाहते हैं! 
वह उठ कर बैठ गई!
"आज आप इतनी जल्दी कैसे आ गए?
" तु मुजसे पूछती है ..? मेरा घर है क्या मैंने जल्दी घर नहीं आ सकता..?"
"क्यों नहीं आ सकते..?आपको कभी किसी ने रोका है घर जल्दी आने के लिए.? लेकिन आप तो खुद ही घर पर नहीं आते..! 
"ज्यादा बोलो मत चुपचाप रहो..!
वह तन कर जवाब देते हैं..!
"अच्छा सुनो..!"
उसकी तरफ देखते हुए बोले!
"जी कहिए ..!"
"देखो अपना बेटा अब ठीक हो रहा है मैंने तुम्हारे कहे अनुसार 1 साल तक वेट किया!
लेकिन मां कह रही थी कि हमें दूसरा बच्चे का प्लानिंग कर लेना चाहिए..!
वो हैरान रह जाती है कि आज भी वह सिर्फ मतलब के लिए ही उसके पास आए हैं नहीं मुझे अभी दूसरा बच्चा नहीं चाहिए पहले मुझे नन्हे को अच्छी तरह पालना है उसे ठीक करना है उसके बाद ही मैं दूसरे बच्चे के बारे में सोचूंगी 
तू कौन होती है मुझ पर हुक्म चलाने वाली और सोचने वाली घर भी वैसे ही होगा जैसे मेरे मां-बाप और मैं चाहूंगा 
हां हां आप सब को तो मैं एक बच्चा पैदा करने वाली मशीन ही लगती हूं कभी आपका बच्चा पैदा करूं और कभी आपका बड़ा भाई मुझसे यही उम्मीद करता है आज वह गुस्से से उबल पड़ी 
नहीं रहना मुझे आपके साथ 
नहीं बनना मुझे आपके बच्चों की मां 
  मैं अपने बच्चे के साथ अपनी जिंदगी निकाल लूंगी इसे पालूंगी और एक अच्छा इंसान बनाऊंगी आपकी तरह नहीं जो औरत को सिर्फ एक बच्चा पैदा करने वाली मशीन समझता है और उसकी इज्जत नहीं करता 
क्या बकवास कर रही है बहुत जुबान चलने लगी है तेरी खबरदार जो मेरे घर वालों के बारे में एक भी लफ्ज और बोला!"
आज की रात फिर उसके लिए कयामत की रात बन जाती है ! 
आज फिर उसका पति उसकी मर्जी के खिलाफ उसकी अस्मत को तार-तार करता है! 
"छोड़ दो मुझे क्यों आप मेरे साथ ऐसा करते हो..?
मुझे और बच्चा नहीं चाहिए ..! नन्ना आपका ही बेटा है क्या आप नहीं चाहते कि वह जिंदा रहे ..? उसे अच्छी परवरिश मिले ..? बीमार है उसे मुझे मेरी और आपकी जरूरत है..! मत करो जबरदस्ती प्लीज मुझे छोड़ दो ..!"
लेकिन वह इंसान मानव नही कठपुतली बन चुका है अपने परिवार वालों और समाज के हाथों की..! वह समाज जहां पर बच्चे होना ही मर्द की मर्दानगी है ..!
और ना चाहते हुए भी एक औरत को मर्द की ऐसी मर्दानगी भोगनी पड़ती है ..!सहनी पड़ती है..!
औरत होना इतनी बड़ी सजा बन जाएगा  उसे आज मालूम पड़ा..!
लेकिन भगवान ने जिंदगी दी है तो जीना तो पड़ेगा ही...!
धीरे-धीरे घिसट घिसट  कर वह जीती थी! समय अपनी रफ्तार से चलता है नन्ना अब 2 साल का हो गया  आज फिर उसे उल्टियां हो रही थी फिर उसे चक्कर आ रहे थे  उसका पति जो रोज उसके साथ जबरदस्ती कर रहा था उसका नतीजा था कि वह फिर  प्रेग्नन्ट हो गई! 
ना तो शरीर  और ना ही मानसिक रूप से  वह तैयार थी लेकिन घर वालों को तो एक बच्चा चाहिए था तंदुरुस्त लेकिन क्या गारंन्टी थी कि वह बच्चा भी तंदुरुस्त ही होगा हमारे सामने जो चीज होती है हम उसकी कदर नहीं करते लेकिन जो हमारे पास नहीं होता हम उसकी आस लेकर जीते हैं उसके साथ ससुर और पति भी शायद इसी मिथ्याभिमान में जी रहे थे लेकिन वह अपने पेट से जन्मे हुए बच्चे को कैसे इग्नोर करें ऐसे में उसकी जिम्मेदारी बढ़ गई ..!
एक बच्चा गोद में और एक बच्चा पेट में नारी जीवन हाय तेरी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखों में पानी....