उसको आते हुए देखा था मैंने और जाते हुए भी देख रहा था मैं। दिल मे एक बेचैनी सी हो रही थी। मन कर रहा था कि रोक लू फिर जो दिल में है बोल दू फिर जो होगा देखेंगे। बेचैनी और घबराहट का अज़ीब से संगम था वो। आज भी वो याद करता हूं तो वैसी ही बेचैनी होने लगती है। बस वो मेरी आँखों के सामने से ओझल हो गयी। मैं वही स्टॉप पर खड़ा रह गया और अपनी वाली बस का इंतजार करने लगा। फिर सोंचा अभी घर नही जाऊंगा थोड़ी देर वापिस मंदिर में चलता हूं शांति मिलेगी और अच्छा लगेगा।
मैंने वापिस एंट्री की मंदिर में पर इस बार अकेला था पर पूरे दिन की यादें मेरे साथ थी। उसका मुझे इस तरह देखना , मेरी हर बात का ध्यान रखना। मेरा हाथ पर हाथ रखना, साथ मे खाना खाना सब कुछ बारी बारी से याद आ रहा था। मैं हर उस जगह पर गया जहाँ जहाँ पर पर हम दोनों साथ गए थे। वहां वहां चल के देख जहाँ जहाँ हम साथ चले थे। वहां वहां बैठ के देखा जहाँ जहाँ हम साथ बैठे थे। उसी टेबल पर जाके फिर से वही छोले भटूरे आर्डर किये जो उसके साथ किये थे। जहाँ जहाँ भी गया उसकी खुशबू अभी भी वहां थी। जिस हाथ से उसका हाथ पकड़ा था उस हाथ को अब तक नही धोया था। पता नहीं जब वो जा रही थी तब ऐसा क्या हुआ। मैं डरा हुआ सहमा हुआ सा मंदिर से बाहर आ गया। घर जाने का मन ही नहीं कर रहा था। अगले बस स्टॉप तक यूँही पैदल चलता हुआ गया और वहाँ जाके बस पकड़ी।
दस बज चुके थे और नेहा को गए हुए दो घंटे हो चुके थे और मैं अभी भी बस में था। अभी घर आने में करीब एक घंटा था मैंने सोंचा एक बार कॉल करके पूंछ लेता हूं कि घर पहुंची या नहीं। दिल्ली शहर ही ऐसा है क्या करें। मैंने फ़ोन लगाया तो उसने तुरंत फ़ोन उठा लिया। पर उस समय मेरी बस में भीड़ काफी बढ़ चुकी थी। हमारी बात शुरू तो हो गयी पर आवाज़ साफ साफ समझ नही आ रही थी।
मैंने पूंछा- हेलो नेहा, तुम घर पहुंच गई? हेलो तुमको मेरी आवाज आ रही है ना? हेलो.....
उसने कहा होगा- हाँ आवाज़ आ रही है पर क्या तुमको मेरी आवाज आ रही है? पर मुझे कुछ भी समझ नही आया।
मैंने पूंछा- तुम घर तो पहुंच गई ना?
उधर से कोई जवाब नही आया, मैने फिर से पूंछा पर कॉल कट गयी। मुझे उस भीड़ पर बहुत गुस्सा आया। सोंचा की कमीनों को जान से ही मार दू। फ़ोन अभी हाथ मे ही था। अचानक उसका मेसेज आया मैंने मेसेज पढ़ा उसमें लिखा था-
देव, मैं घर आराम से पहुंच गई हूं पर लगता है तुम अभी नही पहुंचे। आवाज़ नही आ रही है तुम्हारी इसलिए मेसेज किया।
मैंने पूंछा- अच्छा किया, मैं अभी घर नही पहुंचा, डिनर करने लगा इसलिए लेट हो गया। यहां बस में भीड़ बहुत है। इसलिए कॉल पर तो बात नही हो पाएगी। मेसेज पे करना हो तो बताओ?
मैंने लिखा- ओहो, इतना गुस्सा, अरे मैं तो मज़ाक कर रहा हूं। बस ऐसे ही पूंछ लिया। और खाना क्यों नही खाया अभी तक। दिन के छोले भटूरे अभी भी पेट मे है क्या?
मैं मेसेज का इंतज़ार करता रहा पर कोई जवाब नही आया। पांच मिनट बाद जवाब आया- देव, एक बात कहूं?
मैंने लिखा- तो आज कल तुम भी फिल्में बहुत देख रही हो। क्यूँ? अब बता भी दो क्या कहना चाहती हो।
उसने लिखा- कुछ खास नहीं बस इतना कि जब हम मंदिर में थे तब मेरा आपको छोड़ के जाने का बिल्कुल मन नहीं था। मैं और रुकना चाहती थी और आपसे बात करना चाहती थी।
मेरे शरीर मे जैसे करंट दौड़ गया। मैं चकरा गया। मेरी आँखों मे एक आँसू आ ही गया। पर बस में था रो भी नही सकता था। मेरा मन किया कि अभी नोएडा जाऊं और इस लड़की को गले लगा लूं और ज़िन्दगी भर इसका साथ न छोड़ू। कभी न छोड़ू। फिर दुनियां क्या कहेगी, लोग क्या सोंचेंगे वो सब बाद में। पर मैंने किसी तरह अपने आप को संभाला।
मैंने लिखा- अरे पागल है क्या परेशान मत हो किसी और दिन फिर से मिल लेंगे। आखिर हम दूर ही कितना है, ज्यादा से ज्यादा एक घंटा लगेगा। तुम बिल्कुल परेशान मत हो और एक काम करो जल्दी से खाना खाओ और सो जाओ।
मैंने मेसज पढ़के सोंचा की आखिर अब करूँ क्या? ये कैसा सवाल है। अब इसका क्या जवाब दूं। बस से उतर जाऊ और जाके इस लड़की की पिटाई कर दूं। मैं करूं क्या आखिर?
मैंने लिखा- तू सच में पागल हो गयी है। ऐसी बातें क्यों कर रही है। तु भी यही है और मैं भी यही हूं। तुम खाना खाके सो जाओ प्लीज।
बस में मैं अकेला ही रह गया था या शायद पीछे की लास्ट सीट पर एक या दो लोग रहे होंगे। मैं अपनी आंसू से भरी आखों को छिपा रहा था।
मैंने सोंचा अभी तो ये परेशान है लेकिन कल तक फिर से सब नार्मल हो जाएगा तब आराम आए बात करूंगा और सब कुछ अच्छे से समझा दूंगा। और कल मैं इसको अपने दिल की पूरी बात कह ही दूंगा। फिर अगर ये नाराज़ भी हो गयी तो मुझे गम नही होगा। आखिर दोस्त बनके भी तो ज़िन्दगी काटी जा सकती है वैसे भी मैंने इसको प्रॉमिस कर दिया है छोड़ तो नही सकता इसको अब।
लेकिन अगर दोनों ही बातें उसको समझ नही आई तो हमेशा के लिए इससे दूर हो जाऊंगा। कभी इसके सामने नही आऊंगा। कभी नहीं।
मैने अपनी माँ से कहा-अरे माँ कितनी बार बोला है आपको कि ट्रैन में खाना मिलता है और इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है। आप घबराया मत करो इतना। मैं कोई ना कोई जुगाड़ कर ही लूंगा खाने का वैसे भी तीस घंटे लगते है हैदराबाद जाने में। कब तक वही पूरी कचोरी खाऊंगा मेरी प्यारी माँ। पर माँ तो माँ है नही मानी और उसने ख़ूब सारा खाना पैक कर ही दिया।
जिंदगी कितनी बदल गयी है। दस साल पहले किसी ने सोंचा भी नहीं होगा कि साढ़े पांच इंच स्क्रीन वाला एक फ़ोन आएगा और ट्रेन में हमको बोर नहीं होने देगा। जितना बड़ा फ़ोन होगा उससे भी बड़ी मेमोरी होगी जिसमें दर्जनों फ़िल्मे आ जाया करेंगी। सच मे ट्रैन में यात्रा करना इतना भी बुरा नहीं रहा। हैडफ़ोन लगाओ और बाक़ी सब कुछ भूल जाओ।
मैं लखनऊ रेलवे स्टेशन पहुंच गया और हमेशा की तरह मुझे स्टेशन छोड़ने कोई भी नही आया। अब आखिर बच्चा बड़ा जो हो गया है। मैंने सोंचा कि हैदराबाद जाना है किसी से दोस्ती कर ही लूंगा ट्रैन में टाइम पास के लिए और फिर पहुंच जाऊंगा। ट्रैन आयी और मैं अपना सामान लेके ट्रैन में चढ़ गया और अपनी सीट पर जाए बैठ गया। ट्रैन अच्छी थी पर खाली थी ज्यादा लोग यात्रा नहीं कर रहे थे। शायद आगे आने वाले स्टेशनों पर और लोग चढ़ेंगे। मैंने अपना ट्राली बैग सीट के नीचे डाल दिया और ट्रैन अटेंडेंट से अपना कंबल और चादर मांगी। पूरे कम्पार्टमेंट में अकेला ही था बातें करने के लिए कोई था ही नहीं। गाने सुनने का भी मन नहीं था। पर डर भी इसी से लगता था। अकेलेपन से। पहले उन्नाव आया और फिर कानपुर और फिर वही होने लगा जिसका मुझे हमेशा डर रहता है, यादें वही यादें जिनको सोंच के आग लग जाती है और नफरत का तूफान दिल और दिमाग का बैंड बाजा देता है और मैं सात साल पहले के उन्हीं दिनों में पहुंच जाता हूं।
हाँ सात साल पहले। अभी 2015 चल रहा है और 2008 की खूबसूरत यादों के बारे में तो मैं आपको बता ही चुका हूँ। मैं फिर से उन्हीं यादों में खोने ही वाला था कि सबसे पहले उसका चेहरा मेरी आंखों के सामने आया। फिर वही 2008 की सर्दियों की रात सामने आ गयी। जब वो दीवानी होके मुझसे बोली थी कि -देव, तुम मुझे हमेशा याद तो रखोगे ना और मैंने कहा था कि हाँ नेहा में तुमको ज़िन्दगी भर याद रखूंगा पर आज मैं ये कहता हूं कि मैं तुमसे इतनी नफरत करता हूं तुम सोंच भी नही सकती। जो तुमने मेरे साथ किया उसे भूला भी नहीं जा सकता। शायद तुम इसी लिए मुझसे पूंछ रही थी कि मैं तुमको याद करूँगा की नहीं और नफरत करने के लिए याद तो करना ही पड़ता है।
गलती क्या थी मेरी। सिर्फ एक दिन मिले थे पर मैंने अच्छे से तुम्हारा खयाल रखा था। मैं तो तुमको घर तक छोड़ के आता एक बार कहती तो सही। तुमने तो जाने से पहले बात तक नही की थी नेहा। तुमको जाते हुए देखा था पर तुमने तो कभी पलट कर देखा तक नहीं, क्या इतना बुरा लगा था मैं। और अगर बुरा लगा भी था तो कम से कम एक बार बताती तो कम से कम एक मौका तो देती। मुझे पता है कि मैं दिखने में अच्छा नही हूं पर भगवान ने मुझे ऐसा ही बनाया है तो मैं क्या करूँ नेहा। मेरे पास अच्छी नौकरी नही है नेहा पर मैं कोशिश तो कर रहा हूं ना। आज नही तो कल कभी न कभी नौकरी मिल ही जाएगी। मुझे पता है नेहा कि तुम माइक्रोसॉफ्ट में काम करती थी और वहाँ के लोग बहुत स्मार्ट और पैसे वाले होंगे पर जितना प्यार में तुमको देता वो भगवान भी नही दे सकता। तुम्हे तो ये पता भी नही कि मैं तुमसे कितना प्यार करता था और तुमको ये भी नही पता कि आज मैंने तुमसे उससे भी ज्यादा नफरत करता हूं। तुम मेंरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हो नेहा। तुमको तो शायद ये भी नही पता होगा कि हमारे मिलने के अगले दिन मैं तुमको अपने प्यार के बारे में बताने वाला था। अगर तुम हाँ कहती तो ज़िन्दगी कुछ और ही होती। और अगर तुम ना कहती तो मैं वैसे ही हमेशा के लिए तुसे दूर चला जाता। पर तब मुझे इस बात की तकलीफ न होती कि तुमने मुझे धोखा दिया बल्कि मुझे लगता कि कम से कम तुमने मुझे एक मौका तो दिया।
मैने तुम्हारी कितनी इज़्ज़त करता था और तुम मुझे अचानक छोड़ के चली गयी। कम से कम ये तो बताके जाती की कहाँ जा रही हो और क्यों जा रही हो। इतना बुरा भी नही था मैं जितना तुमने मुझे मेरी नज़रों में बना दिया। आज तक संभाल नही पाया हूं अपने आपको। सोते जागते चलते रुकते हर समय बस तुम, तुम्हारा चेहरा और तुम्हारी यादें। तुमने मुझे मज़बूत नही कमजोर किया है नेहा। मैं गलत था। मैं सोंचता था कि तुम्हारे साथ चलके जिंदगी में कहीं तो पहुंच ही जाऊंगा पर तुमने मुझे अपने साथ चलने लायक ही नही समझा।
नेहा कम से कम हज़ार बार मैंने तुमसे माफी मांगी होगी, ऑरकुट पे, फेसबुक पे, फ़ोन के मैसेज पे और ईमेल पर भी की अगर मुझसे कोई गलती हो गयी हो तो मुझे बताओ तो सही। आँखे पथरा जाती थी मेरी सारी रात रो रो के और तुम्हारे जवाब के इंतजार में। इतना बुरा भी नही हूं मैं। पर आज तक तुम्हारा एक भी जवाब नही आया। इतनी शिद्दत से नफ़रत करने लगी थी मुझसे तुम पर इसे भी ज्यादा शिद्दत से प्यार करने लगा था मैं ये तुमको नही दिखा कभी।
कितने चक्कर लगाए मैंने तुमहारे आफिस के पर कभी किसी ने अंदर तक के नही जाने दिया। फिर आखिर कार मुझे हार कर दिल्ली छोड़नी ही पड़ी और कसम है दिल्ली में कभी कदम नही रखूंगा और उस गली कभी नही जाऊंगा जिस गली तुम कभी चली भी थी।
इतना कहते कहते मैं जोर जोर से रोने लगा और अपने बाल नोचते हुए कहने लगा मुझे माफ़ कर दो नेहा मुझे माफ़ कर दो प्लीज मेरे पास आ जाओ मुझे सिर्फ एक मौका देदो मैं तुमको बहुत प्यार दूंगा और मैं तुमको हमेशा याद रखूंगा प्लीज।
जून के महीना था बाहर मौसम काफी गर्म था। मेरे दर्द के इंतेहा की और ट्रेन के रफ्तार दोनों का पता ही नही चला और मैं झांसी पहुंच गया। मैं अपनी सीट पर सिर पर हाथ रखके बैठा था। तभी किसी ने बोला- भाई साहब एक बात बोलूं अगर आप बुरा न माने तो? मैंने देखा लगभग मेरी ही उम्र का एक लड़का अपना एक बैग लेके मेरे सामने वाली सीट पर बैठा हुआ था। उसकी बात सुनके मैंने अपना हाथ नीचे किया और मैं शीशे से बाहर देखने लगा।
उसने बोला- सिर पर इस तरह हाथ रखना अपशकुन होता है पता नही आप मानते है या नहीं पर मैं मानता हूं।
जवाब था मेरे पास पर मैंने चुप रहना ही ठीक समझा।
थोड़ी देर बाद वो बोला- आप कह जा रहे है सर्।
मैंने बताया- हैदराबाद
उसने बोला - काफी लंबी यात्रा है आपकी।
मैन पूंछा- क्यूँ? आप कहाँ तक जा रहे हैं?
वो बोला- जहाँ आप जा रहे है उससे थोड़ा पहले उतर जाऊंगा।।
मैने देखा था उसके पास समान भी कम ही था। शायद हर महीने या पंद्रह दिन में यात्रा करता रहता होगा। खैर मुझे क्या। कुछ भी करे मुझे क्या फर्क पड़ता है।
मैंने उसकी तरफ देखा तो काफी खुश लग रहा था। और मुझे देख देख कर मुस्कुरा भी रहा था।
उसने फिर पूंछा -चाय पियेंगे? अपने घर से बनवा के लाया हूं। माँ ने बनाई है एक दम कड़क वैसे भी AC कोच में चाय और भी अच्छी लगती है पर मैंने देखा और माना ही कर दिया। पता नही वो लड़का इतना क्यों चिपक रहा था। मेरा मूड वैसे ही बहुत खराब था। पिछले छह घंटे में मैंने अपना दिल और दिमाग दोनों ही इतने खराब कर लिए थे कि अब अच्छी बातें भी मुझे बुरी लग रही थी। वो धोखेबाज लड़की जिसने मेरी जिंदगी में आके मेरी जिंदगी बर्बाद कर दीं उसको कभी माफ नही करूँगा और गलती से कहीं मिल गयी तो....पता नही क्या कर दूंगा।
वो लड़का बोला- और सर् आप हैदराबाद में करते क्या है? कहीं किसी सॉफ्टवेयर कंपनी में तो नहीं?
मैं बोला- हाँ, सॉफ्टवेयर कंपनी में ही हूं। बहुत टाइम हो गया। तुमको सॉफ्टवेयर कंपनी से कोई प्रॉब्लम है क्या?
वो बोला- नहीं, पर हैदराबाद, बैंगलोर और नोएडा में हर दूसरा आदमी सॉफ्टवेयर में ही होता है ना इसलिए। कुछ भी पर्सनल नही हैं।
मैं मुस्कुराते हुए बोला- अच्छा।
पर मुझे नोएडा के नाम सुनके मिर्ची तो लग गयी थी।
मैंने पूंछा- और आप बताइए आप क्या करते है?
वो बोला- मैं भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं, पहले एक बड़ी कंपनी में काम करता था अब खुद की कंपनी डाली है नोएडा में। अभी उसी काम से जा रहा हूं।
मैं बोला- हां, अच्छा है, पर खुद की कंपनी खोलना आसान नही है इन दिनों। मेरे दोस्तों के ग्रुप ने एक बार कोशिश की थी हमारे इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम सुनते ही भगा दिया सबको। अब सारे किसी न किसी बड़ी कंपनी में है पर खुद की कंपनी कोई नही खोल पाया। आप ने कब की अपनी इंजीनियरिंग?
वो बोला - लंबा टाइम हो गया भाई, 2007 में की। आई आई टी मुम्बई से।
वो यह बता भी रहा था और मुझे देखकर मुस्कुरा भी रहा था। कॉलेज का नाम सुनके मैं बिल्कुल सन्न रह गया। मेरी सांसे रुकने को थी और गले मे अजीब सी कड़वाहट आ गयी।
फिर आगे वो बोलता ही रहा मुझे कुछ पता नही क्योंकि मेरा ध्यान हट गया था उसकी तरफ से।
उसने आखिरी में बोला- क्या हुआ भाई, कहीं खो गए आप? सब खैरियत।
मैं अपने को संभालते हुए बोला- कुछ नही बस कुछ पुराना है तुम्हारी आई आई टी मुम्बई से। बस वही याद आ गया था।
वो बोला- ऐसा क्या कर दिया है आई आई टी वालों ने आपके साथ , कितने अच्छे होते है वहाँ के लोग।
मैं बोला - हाँ सच कह रहे हो आप, सच मे बहुत अच्छे होते है। वैसे आपने अपना नाम नही बताया?
निहाल सिन्हा नाम है मेरा- वो बोला और उसने अपना हाथ मिलाने के लिए मेरी तरफ बढ़ाया।
मैंने हाथ मिलाते हुए बोला- अब। आप ये मत कहना कि आप एलेक्टोनिक्स इंजीनियर है। और मैं जोर से हंसा।
वो बोला- नहीं मैं इलेक्ट्रॉनिक्स नहीं मैकेनिकल इंजीनियर था पर सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी लगी तो अब सॉफ्टवेयर सॉफ्टवेयर खेलता हूं। वो छोड़िए आप ये बताइये न कि आई आई टी से आपका क्या लफड़ा है?
मैंने बोला- कुछ नही थोड़ा पर्सनल है।
वो बोला - कोई बात नहीं अगर आप चाहो तो क्या पता मैं आपकी मदद कर सकू आपकी सोंच बदलने में। वैसे भी सफर लंबा है।
वो जब भी कुछ बोलता तो मुस्कुराता रहता था जो मुझे बुरा लग रहा था। जितना मैं उसको समझ रहा था वो बातूनी था पर बुरा इंसान नही था।। मैंने पहली बार किसी को अपने बारे में बताने की सोंची। औऱ बताने में कोई नुकसान भी नही था आखिर आज के बाद मैं उस लड़के से कौनसा मिलने ही वाला था।
मैंने निहाल से बोला- 2007 में मेरी दोस्ती हुई थी एक लड़की से तुम्हारे कॉलेज की थी। तुम्हारे ही बैच की। पर अपनी ज्यादा चली नहीं। धोखा दे गई जैसा सब लड़कियां करती है।
वो बोला- सब नहीं करती है भाई।
मैंने बोला- इसीलिए मैं किसी को कुछ बताना नही चाहता।
वो बोला- अच्छा सॉरी, पहले आप बता लो फिर मैं बोलता हूं।
मैंने अचानक उत्तेजित होके ऊंची आवाज में बोल दिया। पर वो शांत रहा और मुस्कुराता रहा।
मैं तुरंत ठंडा होके बोला- कुछ नही यार, तुम्हारे बैच में रही होगी अगर तुमको याद हो, नेहा, नेहा सचान नाम था उसका।
अचानक वो गंभीर होके बोला- भाई वो स्टार थी अपने कॉलेज की। पढ़ाई में ठीक ठाक पर पेंटिंग में सुपरस्टार थी वो। आज भी उसके बनाये हुए पेंटिंग कॉलेज में लगे हुए है। उसे कौन नही जानता। पर तुम उसको कैसे जानते हो?
इतनी देर में टी टी आ गया और टिकट चेक करने लगा, मैंने अपना टिकट चेक कराया और वो टिकेट देख कर चला गया।
मैंने निहाल को बताया कि हम ऑनलाइन मिले थे और फिर दोस्ती हो गयी बस उसके आगे पता नही वो कहाँ चली गयी। मैंने निहाल को ये जाहिर नही होने दिया कि आज भी मैं नेहा के नाम से रोज रोता हूं और आज भी मुझे उतना ही दर्द है जितना सात साल पहले उसके बिना बताए जाने पर हुआ करता था। मैंने माहौल को हल्का ही बनाये रखा और अपने आंसुओं को भी अपने अंदर ही छिपाए रखा।
वो बोला - चली गयी मतलब? तुम्हारी बात समझ नही आई क्या तुम उसके बॉयफ्रेंड हो?
मैंने पता नहीं क्यूं शक हुआ कि ये लड़का या तो कुछ जनता है या फिर फालतू के टाइम पास कर रहा है। पर इसको अपने बारे में कितना बताया जाए कितना नहीं बताया जाए कितना जरूरी है कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो हर आधे घंटे में मुस्कुराते हुए अपने घर से लाई हुई चाय पीने लगता था।
चाय की चुस्की लेते हुए वो बोला- अगर तुम सच और पूरी बात बताओ तो मैं भी कुछ बातें तुमसे साझा करूँगा। पर जैसे कि तुम मुझपे भरोसा न करके तोल मोल के बोल रहे हो वैसे ही मुझे भी भरोसा नही है तुमपे इसलिए मुझे भी तोल मोल के बोलना पड़ रहा है। मुझे नेहा सचान के बारे में जानकारी तो है। पर.....
अब तक मैं उग्र था और वो रक्षात्मक पर अब उसने मुस्कुरा मुस्कुरा के मुझको रक्षात्मक बना दिया। मेरे मन मे भावना और क्रोध का एक अजीब सा द्वंद्व चल रहा था। पर इस बार भी क्रोध की विजय हुई और फिर भी मैंने उसको अपनी पूरी कहानी नही सुनाई।
हम दोनों कुछ देर शांत बैठे रहे। वो कभी चाय पीता कभी खिड़की से बाहर देखता और कभी मेरी तरफ। अभी तक उसने मुझे ये भी नही बताया था कि उसका आखिरी स्टेशन कौन सा है। कहीं ऐसा न हो कि ये बिना कुछ बताये ही चला जाये। हर स्टेशन के आने से दस मिनट पहले मेरी दिल की धड़कने बढ़ जाती पर अभी तक वो नही उतरा इस बात की खुशी भी थी।
थोड़ी देर बाद वो अपना सामान लेके उठा और ट्रेन के दरवाज़े के पास जाके खड़ा हुआ। और दो मिनट बाद ही चंद्रपुर स्टेशन आ गया। और वो वही उतरने लगा। अब मुझे अपनी गल्ती का एहसास हो चुका था। मैं उसकी तरफ एक उम्मीद भारी नज़रों से देख रहा था और ये सोंच रहा था कि अगर अब दस मिनट ही मिल जाये तो मैं अपनी कहानी बताके उस लड़के आ भरोसा जीत कर नेहा के बारे में जान लूं कि अभी वो कहाँ है और ख़ुश तो है ना। पर अब देर हो चुकी थी। उसने जाने की सोंच ली थी। कुछ ही पलों बाद ये जगी हुई उम्मीद भी खत्म होने वाली थी। मेरे गुस्से और नफरत ने फिर मुझे वहीं लाके खड़ा कर दिया। ट्रैन रुकी, निहाल ट्रैन से उतरा उसने बैग नीचे रखा। मैं ट्रैन से नीचे नही उतरा और दरवाजे पर ही खड़ा रहा। स्टेशन खाली था बिलकुल भीड़ नही थी और बहुत गर्मी भी थी। मात्र एक मिनट के लिए ही ट्रैंन वहां रुकी और हरी झंडी होते ही फिर चल दी। ट्रैन के चलते ही निहाल मेरे पास आया और बोला- शादी कर लो देव, प्लीज शादी कर लो अब। हाँ देव एक बात और उसे भूल जाओ क्यूंकि वो अब नही है कहीं भी नही है। वो सभी को छोड़ के जा चुकी है बहुत पहले।
ट्रैन चल चुकी थी और मेरे पास कोई रास्ता नही था ट्रैन से कूद भी सकता था पर हिम्मत नही जुटा पाया पर कुछ ही पलों बाद मन में आया कि कूद ही जाता हूं। ज़िंदा रहने का हक भी नही है मुझे। मरना चाहता हूं मैं अब आखिर ज़िंदा रहके भी क्या करूंगा अब।
मैं होश खोने ही वाला था कि- एक मिनट उसने मुझे देव कहके बुलाया। पर उसने मुझसे कभी मेरा नाम पूंछा ही नही और मुझे अच्छे से याद है मैंने उसे अपना नाम बताया ही नहीं। फिर इसको नाम कैसे पता मेरा। ये कैसे हो सकता है ।
उस लड़के के साथ बिताया हर एक पल फ्लैशबैक की तरह मेरी नज़रों के सामने से बीता और मैं शत प्रतिशत सही था कि उसने मैंने उसको अपना नाम नही बताया था।
मैंने अब सोंचा कि कैसे भी इस लड़के से मिलना है चाहे कुछ भी हो जाए। मैंने ट्रैन के दरवाजे पर लटककर रिजर्वेशन तालिका पर नज़र दौड़ाई पर उसमे उसका नाम नही था। फिर मैंने सोंचा की शायद निहाल ने टी टी को कुछ पैसे देके सीट कन्फर्म करवाई हो। मैं भगता हुआ टी टी के पास पहुंचा और बोला- सर् मेरे सामने वाली सीट पर लड़का बैठा हुआ था क्या उसकी कोई जानकारी मिल सकती है आपसे।
टी टी बोला- कैसी जानकारी सर्? क्या हुआ सामान चोरी हो गया क्या?
मैं बोला- नही नहीं, सामान नहीं पर कुछ जरूरी बात थी। देखिए न चार्ट में शायद उसका कुछ डिटेल हो।
टी टी बोला- आपका सीट नंबर तो बताओ?
मैं बोला- A1-13, वो मेरे सामने ही बैठा था।
ये कहते कहते मेरी आँखें भर आई क्यूंकि बात अब निहाल के जाने की नहीं नेहा के इन दुनियां से जाने की भी थी। मैं कांप रहा था। रोने का मन फिर से कर रहा था। या कहूँ मर के उसके पास जाने का मन था। बस अब यही एक तमन्ना रह गयी थी कि कैसे भी बस एक बार उससे माफी मांग सकू।
इतने में टी टी बोला- अरे सर् ये तो सेकंड AC का कोच है इसमें तो लखनऊ से सिर्फ एक ही रिजर्वेशन था वो भी देव नाम से और इसके अलावा और पूरा कोच ही खाली आया है। ये बिल्कुल नई ट्रैन है ना ज्यादा लोग नहीं जानते इस ट्रैन के बारे में।
मैं हैरान होके बोला- पर झांसी से एक लड़का मेरे सामने बैठा था उससे मेरी बात भी हुई उसने अपना नाम निहाल बताया। और आप बोल रहे है कि कोई ट्रैन में आया ही नही मेरे अलावा। ये कैसे हो सकता है।
टी टी बोला- वही मैं भी आपसे पूंछ रहा हूं जो आप कह रहे है वो भी कैसे हो सकता है। अगर आपको यकीन नही है तो आप ट्रैन अटेंडेंट से पूंछ लो। आखिर कंबल और चादर तो आपके निहाल ने भी लिए होंगे।
मैं फौरन भागता हुआ अटेंडेंट के पास पहुंचा और उससे पूंछा कि मेरे सामने वाली सीट पर जो लड़का था क्या उसने उसको कंबल या चादर दिया था?
वो बोला - नही साहब, इस कोच में तो सिर्फ आप ही है बाकी एक भी आदमी आया ही नही तो कंबल किसको दूंगा।
मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल गयी थी। मेरे होश उड़ चुके थे। कुछ भी पल्ले नही पड़ रहा था कि आखिर इतनी देर से मैं किससे बात कर रहा था और कौन था वो जिसने जाते जाते मुझे शादी करने की सलाह दी। जिसको मेरे नाम बताए बिना ही मेरा नाम पता था।
"पर हाँ जब टी टी टिकट चेक करने आया था तब उसने सिर्फ मेरा ही टिकट चेक किया था उसने तो सामने वाली सीट के लड़के से बात भी नही की थी। क्या वो लड़का सिर्फ मुझे ही दिख रहा था? और वो इतना मस्कुरा रहा था। क्या करूँ मैं किसके पास जाऊ समझ नहीं आ रहा था"
निहाल कौन हो तुम और नेहा को कैसे जानते हो। आखिर ये चल क्या रहा है। अचानक मेरी तबियत बिगड़ने लगी और मैं अपनी सीट पर जाके बैठ गया और कंबल ओढ़ने लगा। जैसे ही मैन कंबल खोला उसमे से एक डायरी निकलकर जमीन पर गिर पड़ी। मैंने उस डायरी को उठाया और देखा उसके कवर पर लिखा था- 2008 और नीचे लिखा था "नेहा"।
सच मे निहाल कोई था ही नहीं वो सिर्फ एक माध्यम था नेहा का मुझसे बात करने का और अपनी बात मुझ तक पहुंचाने का कि शादी कर लो क्यूंकि वो सचमुच में इतनी दूर जा चुकी है कि कभी वापस नही आ सकती। और उसे पता था कि मैं चाहे उससे कितनी भी नफरत कर लूं मैं आज भी सिर्फ उसी से प्यार करता हूं और करता रहूंगा। किसी आदत को छोड़ने के लिए उसी को आना पड़ता है जिसने वो आदत डलवाई हो। शायद इसीलिए नेहा निहाल बनके मेरे पास आई थी पर मैं उसको कुछ कह ना पाया कुछ भी बता न पाया।
अब मेरे पास सिर्फ मेरे आँसू थे और थी नेहा की लिखी हुई एक डायरी। मैंने अपनी भीगी हुई आंखे पोंछी और डायरी का पहला पन्ना खोला।
मैंने डायरी खोली और देखा कि पहले पन्ने पर नेहा की एक पुरानी फ़ोटो लगी हुई थी उसको देखकर एक बार फिर मैं भावुक हो गया। उसकी मुस्कुराहट ने एक बार फिर मेरे दिल मे हलचल पैदा कर दी। आंखों में पानी भर आया था पर मैं अपने हाथ से उसकी फ़ोटो को छूने से रोक नहीं पाया ठीक उसी तरह जैसे सात साल पहले मैंने उसको छुआ था। मन ही नही किया इसकी आंखों से अपनी नज़र हटाने का। लग रहा था कि जैसे अभी पूंछ लेगी की कैसे हो देव? मुझे याद तो करते हो ना? तुम ख़ुश तो हो ना देव? पर मैं कैसे कहता कि हां मैं तुम्हारे बिना ख़ुश हूँ। कहना चाहता था कि अगर तुम नही तो कुछ भी नहीं। जिसकी नफरत के सहारे जिंदा हूं आखिर प्यार भी तो उसी से जो था।
मैंने एक पन्ना पलटाया और डायरी पढ़ना शुरू किया। शुरुआत के कुछ पन्नो में उसने अपने बचपन की कुछ ख़ूबसूरत यादों को दोहराया था और फिर आई आई टी में अपने चयन के पीछे की मेहनत को भी बताया था। इन्ही सब के बीच कहानी 2007 पर पहुंच गई। वहाँ उसने ऑरकुट पर हुई हमारी दोस्ती का जिक्र किया था। मेरे बारे में भी लिखा था। उसने हर उस बात का जिक्र किया था जो हम करते थे चाहे वो शुरुआत में ऑरकुट पर मिलना हो, मेरा नाराज होकर भरोसा खो देना हो या फिर पहली बार फ़ोन पर बात करना। वो भी मेरे लिए उतनी ही परेशान थी जितना कि मैं था। उसका नोएडा आना सिर्फ मेरे लिए था मुझसे मिलने का एक बहाना था। नही तो वो हैदराबाद या भारत से बाहर भी जा सकती थी।
उसने बताया कि कैसे वो भी मेरे ईमेल का इंतजार करती रहती थी क्यूंकि उसको मुझसे बातें करना अच्छा लगता था। वो भी हैरान थी कि क्यूंकि उसने भी कभी किसी अनदेखे और अनजाने इंसान से दोस्ती नही की थी। बिल्कुल न मिल पाने के बदले सिर्फ एक बार एक दूसरे को देख लेना ये भी तो एक शुरुआत ही थी। हमने मंदिर में एक दूसरे के साथ जो भी समय बिताया उसका भी पूरा पूरा वर्णन था। उसके शब्दों में इतना कुछ छुपा हुआ था कि पढ़ने के बाद आंसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे।
मैंने डायरी आखिरी से पढ़नी चालू की ये सोंचके की शायद कुछ पता चले कि आखिर उसको हुआ क्या था। डायरी पूरी भरी हुई नहीं थी इसलिए मुझे इस बात का यकीन था कि इसके बाद शायद उसने कुछ नहीं लिखा होगा या लिख नही पाई होगी। मैंने एक बार फिर आए पढ़ना शुरू किया-
"आज मैं देव से आखिर मिल ही आयी। झूठ बोल कर मिलना बुरा लग रहा है पर पता नही क्यूँ आज उससे मिलने के बाद झूठ बोलना सच से भी ज्यादा अच्छा क्यूँ लग रहा है। उसके साथ बिताया एक एक पल इतना खूबसूरत था कि उसको वहाँ से छोड़के आने का मन ही नहीं कर रहा था। पर वो भी बिल्कुल गधा ही है। एक बार भी रुकने के लिए नहीं कहा औऱ लल्लू ने एक बार भी बात नहीं की के फिर आगे कब मिलना हो पायेगा। पर जैसा भी है अच्छा है। मंदिर में जब हम दोनों छोटे से पानी के कुंड के पास थे तो पता नहीं सिक्का डालकर उसने भगवान से क्या मंगा होगा। मैंने तो सिर्फ भगवान से इतना ही मांगा कि मेरे देव की हर ख्वाहिश पूरी हो चाहे मैं उसकी ख्वाहिश में रहूं या नहीं। पिछले एक साल में उसने मेरी ज़िंदगी बदल के रख दी नही तो मैंने भी खुशियों की उम्मीद ही छोड़ दी थी। वो आया और तब जाके ज़िन्दगी वापिस आयी है। वो थोड़ा सा कंफ्यूज और थोड़ा सा परेशान रहता है पर जब हम साथ हो जायेंगे फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। कल शाम तक अगर उस लल्लू ने मुझसे कुछ भी नहीं कहा कि उसके दिल मे क्या है तो मैं ही रात में सब कुछ बोल दूंगी। अगर उसके दिल मे भी वही है जो मेरे दिल मे है तो फिर जिंदगी साथ मे बिताएंगे और अगर उसके दिल में मेरे लिए कुछ भी नही है तो फिर मैं हमेशा के लिए चली जाऊंगी उससे दूर बहुत दूर।
पर भगवान करे ऐसे कभी न हो देव कि हम अलग हो और एक दूसरे बहुत दूर चले जाएं। काश ऐसा हो कि ये डायरी हम दोनों बूढ़े होने पर एक साथ मिल कर पढ़े और इन खूबसूरत दिनों को फिर से याद करें। भगवान करें ये दिन कभी खत्म ही ना हो क्यूंकि डर लगता है कल पता नही क्या हो। वो मुझे समझेगा भी या नहीं।
कल का दिन बहुत बड़ा है बहुत बड़ा कल सब कुछ बदल जायेगा दोस्ती भी और रिश्ता भी।
अरे लिखते लिखते इतना लेट हो गया पता ही नहीं चला और कल आफिस भी तो जाना है। बाकी कल लिखती हूं आगे जो भी होगा देखेंगे। एक बात कहूं देव-आई लव यू।"
उसके आगे कुछ भी नही था और पन्ने तो खाली थे पर शब्द खत्म। उन कोरे कागजो पर शायद वो मेरे साथ अपना भविष्य लिखना चाहती थी पर अचानक वो दूर हो गयी हम सबसे इस दुनियां से। उन तारों के भी पीछे जो आज सबसे ज्यादा चमकते है और मुझे चिढ़ाते है। पर उसके इन शब्दों ने फिर से एक बार उसको सही और मुझे गलत साबित कर ही दिया।
हाँ, वो मुझसे प्यार करती थी और मैं उसको हमेशा गलत ही समझता रहा उसको धोखेबाज़ समझता रहा मैंने उसको कितना बुरा भला कहा पर उसने तो कभी धोखा दिया ही नहीं बल्कि ज़िन्दगी ने खुद उसके साथ धोखा किया था। मैंने अपनी ज़िंदगी के सात साल नफ़रत में निकाल दिए। पर मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा आज कि तुम जहां भी हो नेहा ही सके तो मुझे माफ़ कर देना।
मुझे आज तक ये तो पता ही नही चल पाया कि आखिर नेहा को हुआ क्या था और उसने दुनिया क्यूँ और किन हालातों में छोड़ी पर मैं इतना तो समझ ही गया हूँ कि मेरी जिंदगी में उसके आने की क्या मकसद था। मकसद सिर्फ इतना था कि मैं प्यार को समझ सकूं, भरोसा करना सीख सकूं। पता नही क्यूँ आज लग रहा था कि इस सब के लिए मैं ही जिम्मेदार हूं। अगर उस दिन मैंने मिलने के लिए इतनी ज़िद्द न कि होती तो हम न मिले होते और वो कहीं भी होती पर शायद ज़िंदा होती। इससे भी अच्छा ये होता कि मैंने अपनी परीक्षा के दिनों में ऑरकुट लॉगिन ही न किया होता। मैंने प्यार में सब कुछ पाकर उसको खो दिया और उसने प्यार में सब कुछ खोकर आज मुझे फिर से हमेशा के लिए अपना बना लिया।
वो नेहा थी या निहाल था फर्क नहीं पड़ता वो ट्रैन में कब चढ़ा, कैसे चढ़ा, कब उतारा फर्क नही पड़ता पर कुछ समय के लिए ही सही एक बार फिर से उसने मेरी ज़िन्दगी में आके फैले हुए अंधेरे को हटा एक नई सुबह दिखाई है।
कुछ समय बाद मैं हैदराबाद पहुंच गया और अपना आफिस जॉइन किया। अगले ही दिन छुट्टी ली और फ्लाइट से दिल्ली आ गया। आखिर अब कसम भी तो तोड़नी थी कि दिल्ली में कभी कदम नहीं रखूंगा वाली। आखिर वो दिल्ली ही तो थी जहाँ मैंने उसको पहली बार देखा था और वो दिल्ली ही थी जहां मैने उसके साथ एक खूबसूरत दिन बिताया था और वो दिल्ली ही तो थी जिसने मुझसे मेरी नेहा को हमेशा के लिए छीन लिया। दिल्ली में मैं एक बार फिर अपने वही दिन उसके ही साथ जीना चाहता था।
मैं फिर चार बजे शाम को सरोजिनी नगर के बस स्टॉप पर था और उसके फ़ोन के आने का इंतजार करता रहा । इंतजार करते हुए शाम के छह बज गए पर इस बार कोई फ़ोन नही आया और न ही किसी बस की किसी खिड़की पर वो मुस्कुराते हुए बैठी दिखी। पर ये देखकर अब रोना नही आता बल्कि अपनी की हुई गलतियां दिखती है और खुद पर ही तरस आता है।
अगले दिन मैं ग्यारह बजे अक्षरधाम मंदिर पहुंचा। गेट पर चारो तरफ देखा हज़ारों की भीड़ थी पर उनमें बस वो नही थी जिसका इंतज़ार मैंने उस दिन किया था। अंदर जाते समय इस बार मुझे कोई भी नही देख रहा था। मंदिर में मैं हर उस जगह गया जहाँ वो मुझे अपने साथ लेके गयी थी। मैं हर उस रास्ते पर चला जहाँ कभी वो मेरे साथ चली थी। छोले भटूरे आर्डर तो कर दिए पर इस बार पता नही क्यूँ मैं खा नहीं पाया। गला को भर आया था दर्द से। मुझे पता था कि वो कहीं नही है कहीं नही पर जब भी मैंने अपनी आँखें बंद करके अपना हाथ बढ़ाया तो उनसे मेरा हाथ जरूर थामा। वो वही थी मेरे साथ मेरे करीब हाथों में हस्त डालके। मैं फिर उसी पानी के कुंड पे गया जहाँ उसने सिक्का डाल कर मेरे लिए मन्नत मांगी थी। पर इस बार बारी मेरी थी। मन तो था कि भगवान से इस बार नेहा को ही मांग लूं पर मेरा भगवान इतना भी अच्छा नही है। मैं सिर्फ इतना ही कह पाया कि वो जहां भी हो खुश हो और मेरी फिक्र न करे।
नेहा मैं तुमसे मिलूंगा जरूर आज नही तो कल तब ना कोई नौकरी होगी न कोई दिल्ली होगी और ना कोई ट्रैन और न कोई मंदिर और न कोई मंदिर का भगवान जो हमको अलग कर सके। सिर्फ मैं और तुम, दूर बहुत दूर बादलों से भी आगे और तारों से पीछे जहां कोई भी हमको अलग नही कर पायेगा। हम फिर हमेशा साथ रहेंगे और खूब सारी बातें करेंगे अनंत के लिये।
लिखने को बहुत है पर सोंचता हुआ यही रुकना सही है। क्यूंकि जैसे जैसे आगे बढ़ रहा हूं वैसे वैसे उसकी यादें और भी गहरी होती जा रही है। मेरा लिखा हुआ हर एक शब्द उसको मेरी नज़रों के सामने लाता है और मैं फिर मैं रुक जाता हूं।
इति
............
इस कहानी के कुछ अंश उसकी डायरी से लिये गए है इसलिए उनमे बदलाव संभव ना था। कृपया इस अंतिम भाग पर अपना कमेंट और लाइक अवश्य दे। इससे लेखक को प्रोत्साहन मिलता है
.......देव