Kaha gai tum naina - 9 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कहाँ गईं तुम नैना - 9

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कहाँ गईं तुम नैना - 9

   
            कहाँ गईं तुम नैना (9) 


फोन की रिंग सुन कर आदित्य वर्तमान में लौट आया। अरुण अंकल का नंबर था। उसने फोन उठाया तो उधर से रमेश की आवाज़ आई।
"भइया साहब की तबीयत बहुत खराब हो गई है। अस्पताल ले जाना पड़ेगा।"
आदित्य फौरन अरुण अंकल के घर पहुँच गया। रमेश रो रहा था। आदित्य ने अंकल की हालत देखी तो रमेश से बोला।
"फौरन मेरे साथ चलो। अंकल को भर्ती कराना पड़ेगा।"
रमेश को साथ लेकर आदित्य अरुण अंकल को अस्पताल ले गया। डॉक्टर ने तुरंत ही उनका इलाज शुरू कर दिया। डॉक्टर का कहना था कि सही समय पर उन्हें अस्पताल ले आए। अब उनकी हालत ठीक है। कल दोपहर तक देखने के बाद डिस्चार्ज कर देंगे। 
रात में आदित्य अस्पताल में ही रुक गया। रमेश ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह है। इसलिए उसे वहाँ रुकने की ज़रूरत नहीं है। पर आदित्य नहीं माना। अस्पताल की कैंटीन में जो मिला वही खाकर अंकल के पास जाकर बैठ गया। 
दवाओं के असर से अंकल सो रहे थे। उसने अंकल की तरफ देखा। आंटी तो कई साल पहले ही दुनिया छोड़ कर चली गईं थीं। एक बेटा था जो मुंबई में था। लेकिन कई साल हुए उसने अंकल से कोई संपर्क नहीं रखा था। अब रमेश ही था जो उनकी देखभाल करता था। 
आदित्य अपने पापा से अधिक उनके साथ खुला हुआ था। नैना के बारे में भी पहले उसने अरुण अंकल को बताया था। उनके कहने पर ही उसके पापा रिश्ते के लिए मान गए थे। जब पहली बार नैना दिल्ली उसके पापा से मिलने आई थी तब अरुण अंकल ने उसका स्वागत एक बहू की तरह किया था। शादी के बाद उन्होंने नैना को तोहफे में वो हार दिया था जो आंटी अपनी बहू के लिए छोड़ गईं थीं। 
नैना को याद कर आदित्य के दिल में टीस उठी। उस दिन उसने नैना को क्यों चले जाने दिया ? उसे रोक कर सारी बात स्पष्ट करने का प्रयास क्यों नहीं किया ? लेकिन अब इन सवालों का कोई लाभ नहीं था।

उस दिन नैना के सामने जो कुछ आया उससे वह बहुत आहत हुई थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। वह आदित्य के घर से बाहर निकल गई। उतनी रात में ड्राइव कर वह दोबारा दिल्ली लौट गई। 
नैना के चले जाने के बाद आदित्य सोफे पर गिर पड़ा। नैना उसके बारे में क्या सोंच रही होगी। इस बात का एहसास उसके दिल को कचोट रहा था। वह निर्दोष था इस बात का विश्वास वह नैना को कैसे दिलाएगा। एक बार उसके मन में आया कि नैना को पहले उसकी बात सुननी चाहिए थी। पर फिर उसे लगा कि जो हालात थे उसमें किसी भी पत्नी की प्रतिक्रिया ऐसी ही होगी। बेगुनाह होते हुए भी वह अपनी पत्नी की नज़र में गिर गया। यह सोंच कर उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। 
महक लड़खड़ाती हुई कमरे से बाहर निकली। 
"आदित्य....मैंने तुम्हें पुकारा फिर भी तुम मेरे पास नहीं आए।"
आदित्य की मानसिक अवस्था भी उस समय ठीक नहीं थी। वह जानता था कि अगर वह महक के पास ठहरा तो कुछ अनुचित कर बैठेगा। बिना कुछ बोले वह घर के बाहर निकल गया। 
अगली सुबह जब वह लौट कर आया तो महक का नशा उतर चुका था। उसने आदित्य से पूँछा कि वह कहाँ चला गया था। आदित्य ने उसे कल रात की सारी घटना बता दी। 
"ओ गॉड ! ये क्या हो गया। आदित्य तुम फिक्र मत करो। मैं नैना को सारी बात समझा दूँगी।"
"नहीं महक जो करना है मैं ही करूँगा। तुम इसमें मत पड़ो। यही सही रहेगा कि अब हम आगे ना ही मिलें।"
आदित्य अपने कमरे में चला गया। महक कुछ देर बैठी सोंचती रही। फिर बिना कुछ कहे चली गई। महक के जाने के बाद आदित्य ने नैना को फोन मिलाया। पर उसने फोन नहीं उठाया। आदित्य समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। लेकिन वह एक बार नैना से मिल कर अपना पक्ष रखना चाहता था। ज़रूर वह दिल्ली गई होगी यह सोंच कर वह दिल्ली के लिए निकल गया।
नैना अपने फ्लैट में उदास लेटी थी। उसने आदित्य को दिलोजान से चाहा था। कभी सोंच भी नहीं सकती थी कि वह उसके साथ ऐसा करेगा। वह सोंच रही थी कि अगर आदित्य को उसकी कमी महसूस हो रही थी तो कुछ दिनों के लिए उसके पास आ जाता। लेकिन उसने तो किसी और को अपने अकेलेपन का साथी बना लिया। फिर अकेला क्या आदित्य ही था। वह भी तो उसके साथ के लिए तरस रही थी। लेकिन उसने तो किसी और को अपने गम में शामिल नहीं कर लिया। आदित्य के बारे में सोंच कर उसे बुरा लगता था। तभी तो छुट्टी लेकर उसके पास गई थी। पर उसने तो उसे गहरा ज़ख्म दे दिया। 
दरवाज़े की घंटी बजी। उसने दरवाज़ा खोला तो आदित्य को देख कर गुस्से से बोली।
"चले जाओ यहाँ से। मुझे तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखनी है।"
"नैना प्लीज़...ऐसा मत कहो। मुझे अपनी बात तो कहने दो।"
पड़ोस वाले फ्लैट का दरवाज़ा खुला था। नैना कोई तमाशा करना नहीं चाहती थी। उसने आदित्य को अंदर आने दिया।
"क्या कहोगे तुम। जो मैंने देखा वो गलत था क्या ?"
"नैना जो तुमने समझा वह गलत था।"
"ओह....तो तुम सही मतलब समझा दो।"
नैना ने बात तंज़ में कही थी। लेकिन आदित्य को एक मौका मिल गया। उसने अपने और महक के बारे में सारी बात बता दी।
"नैना इससे पहले हम जब भी मिले मेरे ऑफिस में ही मिले। कल अचानक बिना बताए वो घर आ गई। वो मुझे अपनी ज़िंदगी के बारे में बताने लगी। उसी में देर हो गई।"
नैना को उसकी एक भी बात पर यकीन नहीं हो रहा था। उसने फिर तंज़ किया।
"उसकी ज़िंदगी के गम को भुलाने के लिए ही तुम दोनों ने शराब पी। फिर वो तुम्हारे बेडरूम में पहुँच गई।"
आदित्य के दिल को यह तंज़ चुभ गया। 
"तुम्हारा मुझ पर यकीन इतना कच्चा था नैना। इतनी सी बात से टूट गया।"
"इतनी सी बात। एक पराई औरत आधी रात को तुम्हारे बेडरूम से आवाज़ लगाती है कि आ जाओ। आई एम फीलिंग लोनली। ये छोटी बात है।"
नैना ने आदित्य को घूर कर देखा। उसकी आँखों में उसके लिए क्रोध और घृणा दोनों थे। आदित्य समझ गया कि अब और सफाई देने का मतलब नहीं है। नैना का उस पर भरोसा पूरी तरह से टूट चुका है। उसकी सारी कोशिशें बेकार हैं। 
"अब मैं क्या कहूँ नैना। मैं जो भी कहूँगा तुम उसे झूठ ही मानेगी। मैं तो बिना किसी कसूर के सूली पर चढ़ा दिया गया।"
नैना कुछ नहीं बोली। रिश्ते के टूटने का दर्द आदित्य को अंदर ही अंदर तोड़े दे रहा था। 
"सही कहा तुमने आदित्य। अब तुम्हें कोई सफाई देने की ज़रूरत नहीं। हमारा रिश्ता खत्म हो गया। अलग तो हम पहले ही रहते थे। अब दिल से भी अलग हो गए।"
नैना की इस बात ने कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी थी। आदित्य ने चलते समय नैना की तरफ देखा। उसका चेहरा क्रोध और अपमान से तमतमा रहा था। बिना कुछ बोले आदित्य बाहर निकल गया।
उसके बाद दो साल हो गए थे। दोनों ने ना एक दूसरे से बात की ना ही मिले। आदित्य नैना के लिए तड़पता रहा। पर नैना के बारे में उसे कोई खबर नहीं थी। जब तक मिसेज़ चटर्जी ने नैना के गायब होने की सूचना नहीं दी। 

आदित्य के खयालों में खलल पड़ी जब रमेश ने आकर उसके कंधे पर हाथ रखा।
"भइया आप थक गए होंगे। कुछ देर सोफे पर लेट जाइए।"
आज आदित्य ने बहुत भागदौड़ की थी। वह सोफे पर लेटते ही सो गया। सुबह जब उठा तो अंकल की तबीयत पहले से बहुत बेहतर थी। उन्होंने उसे अपने पास बुलाया। 
"बेटा रमेश ने बताया कि तुम रात भर यहीं रहे। क्यों परेशान हुए।"
"कैसी बात कर रहे हैं अंकल। आप मेरे लिए पापा की तरह ही हैं। वह होते तो क्या मैं घर पर आराम करता।"
"जीते रहो बेटा। भगवान करे तुम्हें तुम्हारी खुशियां वापस मिल जाएं।" 
अरुण अंकल ने अपना हाथ उठा कर उसे आशीर्वाद देने की कोशिश की तो उसने खुद ही सर झुका दिया। 
आदित्य ने पूँछताछ की तो पता चला कि दस बजे डॉक्टर विज़िट कर बताएंगे कि कब डिस्चार्ज करना है। रमेश को निर्देश देकर कि जैसा भी हो उसे फोन कर बताए आदित्य घर चला गया।
नहा धोकर तैयार होने के बाद उसने सबसे पहले इंस्पेक्टर नासिर अहमद को फोन किया। इंस्पेक्टर नासिर अहमद ने उसे आधे घंटे में पुलिस स्टेशन आकर मिलने को कहा। भूख लगी थी। आदित्य ने दूध के कॉर्नफ्लैक्स डाल कर खाए। नाश्ता करते हुए उसने शीरीन से बात कर वहाँ के हालचाल भी लिए। 
नाश्ता खत्म करते ही वह पुलिस स्टेशन की तरफ चल दिया।