your child is Awesome in Hindi Children Stories by r k lal books and stories PDF | आपका बच्चा कमाल् का है

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आपका बच्चा कमाल् का है

आपका बच्चा कमाल् का है

आर0 के 0 लाल

आज आभास को फिर से पुरस्कार मिला, उसके माता पिता को भी स्टेज पर बुलाया गया और उनकी बड़ी तारीफ की गई। छोटा सा आभास अपने को कितना गौरवान्वित महसूस कर रहा था। वह पढ़ाई के साथ एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में कक्षा में सबसे आगे रहता है।

सोसाइटी के कई लोग भी वहां उपस्थित थे। कुछ को अच्छा लग रहा था और कुछ को नहीं। पड़ोसी सुषमा ने अपनी सहेली चारु को बताया कि यह वही आभास है जो बहुत ही शरारती था। पूरी कॉलोनी के बच्चे उससे डरते थे। अक्सर किसी को पीट देता था या सामान छीन लेता था। पढ़ाई में तो वह एकदम गया गुजरा था। उसके पेरेंट्स से जब शिकायत की जाती थी तो वह इस बात को मानने को तैयार ही नहीं होते। मगर फिर अचानक न जाने क्या हुआ उसमें एक चमत्कारिक परिवर्तन हुआ और उसकी छुपी प्रतिभाएं निखरने लगी।

चारु ने कहा- अरे ऐसा कुछ नहीं है। एक बार बिगड़ा लड़का कहीं सुधरता है। वह तो उसकी मम्मी ने कुछ श्लोक रटा दिए हैं वही सुनाता रहता है। पढ़ाएगी इंग्लिश स्कूल में और कविताएं संस्कृत में। अरे मेरे बच्चे ने कितनी मेहनत से राइम्ज़ सुनाया था - हम्टी डम्टी सैट ऑन ए वाल हमटी डमटी हैड ए ग्रेट फॉल। इंसी विंसी स्पाइडर क्लाइंब अप द स्पाउट। जानबूझकर के टीचर ने उसे कोई ईनाम नहीं दिया मैं उनसे ट्यूशन नहीं दिलाती न। मैं तो यहां से अपने बेटे का नाम ही कटा दूंगी। गुस्से में उसकी सहेली उठ कर चली गई।

यह सारी बातें आभास की मम्मी हर्षिता ने भी सुनी। उसे एकदम अच्छा नहीं लगा । मगर बात तो सही थी जब उसका बेटा तीन वर्ष का था उसकी आदतें बिगड़ रहीं थी। हर्षिता ने बेटे की देखरेख के लिए उसने एक मेट रखा था। हर्षिता जब उसे घुमाने ले जाती वह जिस चीज की फरमाइश करता उसे तुरंत दिलाती। बहुत ढेर सारे खिलौने भी लाकर रख दिए गए थे ताकि उसे कोई कमी ना महसूस हो। फिर भी वह दुखी रहती कि आभास जिद्दी और शरारती हो गया था। अगर उसकी फरमाइश तुरंत न पूरी की जाए तो वह गुस्सा होता था और सामान फेंकता था। किसी को भी मार देता। नर्सरी स्कूल में पैरंट टीचर मीटिंग में भी शिकायत सुनने को मिलती थी। हर्षिता ने कहा टच उड! आज भगवान की कृपा से आभास न केवल सुधर गया है बल्कि उसकी गिनती स्कूल के संस्कारी बच्चों में होती है।

शाम को हर्षिता की सहेलियां घर पर आई और पूछा कि तुमने कैसे बच्चे को मैनेज किया। हर्षिता ने बताया हम लोग बहुत परेशान थे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें । हम दोनों लोगों के पास समय का अभाव था क्योंकि नौकरी करते हैं। हम कई पंडितों के पास गए और इसकी कुंडली दिखाई। साइक्लोजिस्ट के पास गए और टोटके भी किए। हम उस पर बिगड़ते, चिल्लाते और भाषण देकर समझाते मगर बात नहीं बनी। फिर एक दिन मेरे पति के दादा जी आए और कुछ दिन तक साथ रहे। उन्होंने आभास के विषय में मुझसे कहा - आभास एक होनहार लड़का है मगर तुम लोग जरूरत से ज्यादा उसे लाड प्यार देते हो इसलिए शायद बिगड़ रहा है। उसे तुम दोनों में से किसी एक से डरना जरूरी है। तुम अपने बच्चों को प्यार करती हो यह बात अच्छी बात है। तुम्हारे पास समय नहीं है इसलिए तुम्हारा प्रयास होता है कि उसको ढेर सारा गिफ्ट दिला कर उस कमी को दूर कर लो। लेकिन यही बात कभी-कभी बच्चों को बिगाड़ भी देती है।

हर्षिता ने उन्हें बताया- मुझे तो कभी खिलौने मिले ही नहीं। इसलिए मैं प्रयास करती हूं कि मेरे बेटे के पास हर तरह के खिलौने हों और सब सुख सुविधाएं हों। मैं तो ज्यादा ज्यादा पैसा उसके लिए खर्च करती हूं।

दादू ने कहा - हां तुम्हारी सोच काबिले तारीफ है परंतु बच्चे अपने पेरेंट्स से ही सीखते हैं और यदि उन्हें वह हर चीज मिल जाएगी जिसकी उम्मीद वे नहीं करते तो वे कभी जिंदगी में प्रयास नहीं करेंगे और पैसे की भी अहमियत नहीं समझेंगे। बच्चे को सब कुछ पका पकाया दे देने से बच्चा कुछ कठिन करने से डरने लगता है। इतना ही नहीं, उसकी जिद नहीं पूरी होने पर वह बहुत गुस्से वाला हो जाता है। दूसरों पर अपना हाथ तक उठा देता है।

हर्षिता ने आगे बताया कि मैंने महसूस किया था कि लोग मेरे पीछे मेरे बच्चे की बुराई करते थे, कोई उसकी तारीफ नहीं करता। मैंने सोचा कि यह भी एक कारण हो सकता है। अगर कुछ ऐसा किया जाए जिससे इसकी तारीफ हो जाए तो इसके व्यवहार में अवश्य परिवर्तन होगा। हम लोगों ने एक प्रयोग करना चाहा। जब भी वह कोई सामान फेंकता तो हम उसकी तारीफ करते कि बहुत अच्छा थ्रो किया है। फिर से एक बार फेंको ताकि वह और आगे तक पहुंच जाए। पहले तो वह गुस्से में सामान फेंक रहा था मगर दोबारा हम लोगों ने देखा कि उसने बिना किसी गुस्से के सामान फेंकने की कोशिश की। एक दिन उसने नेल पॉलिश अखबार पर फेंक दी मुझे बहुत गुस्सा आया लेकिन मेरी पति ने ताली बजाई और कहा कि क्या बढ़िया पेंटिंग तैयार हो गई है। उसे अच्छा लगा। घरेलू स्तर पर हम दोनों ने इस तरह के कई कार्य किए और पाया कि मेरे बेटे में थोड़ा सा बदलाव दिखाई पड़ रहा था। हम लोगों ने तय किया कि कुछ ऐसा किया जाए ताकि इसकी प्रशंसा सार्वजनिक रूप से भी हो। मगर क्या करें समझ में नहीं आ रहा था।

हर्षिता ने बात बढ़ाई कि एक दिन हमारे घर में सत्यनारायण की कथा थी पंडित जी टीका लगाकर और पीला ड्रेस पहन कर के आए थे। उन्हें देख कर आभास ने वैसा ही पहनने की इच्छा जताई। हमें एक रास्ता दिखाइए पड़ा। हमने सोचा कि जन्माष्टमी के अवसर पर इसे कृष्ण जी के रूप में तैयार करके स्कूल भेजेंगे। साथ ही उसे कुछ श्लोक भी रटा देंगे। हो सकता है कि लोग इसे पसंद करें। हमने उसे रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाने की कोशिश की ताकि वह श्लोक को समझ कर याद कर सके। सच बोलूं उसे बहुत मजा आता था और वह बातों को कंसंट्रेट करने लगा था।

कृष्ण जी के पहनावे में जब आभास उस दिन स्कूल गया तो बहुत ही प्रभावी लग रहा था ।उसकी टीचर मंच पर सभी बच्चों को कुछ सुनाने को कहा। सभी बच्चों ने अंग्रेजी में सुनाया मगर आभास को तो ट्विंकल ट्विंकल भी नहीं आता था। टीचर ने कहा तुम्हें जो आता है वही सुनाओ। आभास ने रुक रुक कर ही सही पर जोरदार तरीके से बोलना शुरू किया-

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ: । निर्विघ्नं कुरुमे देव शुभकार्येषु सर्वदा ।।

सब उसे देखते ही रह गए। फिर उसने हाथ जोड़ कर गायत्री मंत्र भी सुना दिया।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् । भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ||
उसकी टूटी-फूटी भाषा में सबको बहुत मजा आया और सब ने बहुत जोरदार तालियां बजाई। आभास ने कहा मैम मैं एक और सुनाऊं। अनुमति मिलने पर उसने सुनाया

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

अब तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज रहा था। वहां बैठे प्रिंसिपल साहिबा ने पूछा बेटा इसका मतलब भी जानते हो? उसने कहा जी मैम!

गुरु ब्रह्मा है। गुरु विष्णु है। गुरू ही शंकर हैं।गुरु ही साक्षात परम ब्रह्म है। हम गुरुओं को प्रणाम करते हैं।

उसे बेस्ट ड्रेस एवं टीचर्स की वंदना के लिए इनाम दिया गया। था। शायद इसी क्षण उसके दिमाग में बद्लाव क्लिक हुआ। दूसरे दिन मेरे पति ने उसके द्वारा नेल पॉलिश गिराने से बन गए पेंटिंग को बड़ा कराकर उसके कमरे में लगा दिया। अब वह सभी से बताता यह उसने बनाया है और लोग उसकी तारीफ करते । इसी चक्कर में वह सब बच्चों से दोस्ती भी करने लगा और धीरे-धीरे उसकी मारने की आदत छूट गई। वह कक्षा में कितना नंबर ला रहा है इसकी परवाह हम लोगों ने कभी नहीं की बल्कि तारीफ करते कि उसने 10 में से 5 नंबर तो पाए हैं। उसको कोई लग्जरी देने से पहले हम लोग देखते हैं कि वह अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है या नहीं। छोटे बच्चों में जिम्मेदारी का मतलब पढ़ाई, होमवर्क पूरा करने, नहाने धोने, घर को साफ रखने और बड़ों की इज्जत करने की जिम्मेदारी हो सकती है। हम सिर्फ उसके ग्रोथ के लिए उसे अनुभव कराते कि जो कुछ भी उसके लिए किया जा रहा है इसके लिए उसे थैंकफूल होना चाहिए।

अब उसकी फरमाइश के साथ एक कंडीशन जोड़ देते हैं कि तुम ऐसा करोगे तो हम तुम्हें वह देंगे। इससे वह कोशिश करता है । हर बच्चे के अंदर कोई विशेष काबिलियत होती है जिसका प्रयोग करके हम उसके पूरे जीवन की प्रगति को एक नई दिशा दे सकते हैं। हमें धैर्य के साथ बहुत मेहनत करना पड़ा।

उसकी सहेली इशानी ने पूछा - तुम्हारा बेटा जब जिद करता था तो तुम क्या करती थी क्योंकि जब मेरा बेटा जगजीत जिद करता है तो मैं साफ मना कर देती हूं मगर इसके पापा उसकी बात मान जाते हैं। कभी-कभी तो वह अपने ग्रैंडपेरेंट्स सहारा लेता है जो कहते हैं कि अभी बच्चा है, सामान दिला दो। इससे भी वह बहुत जिद्दी होता जा रहा है।

हर्षिता ने बताया- “पहले मेरे यहां भी ऐसा होता था मगर हम दोनों में यह संकल्प कर लिया है कि हम में से कोई भी अगर मना कर देगा तो दूसरा चुप रहेगा। बच्चे को नहीं सुनने की आदत भी डालनी चाहिए क्योंकि जीवन में उन्हें अनेकों बार ‘नो’ की परिस्थिति से गुजरना पड़ेगा। हम कोशिश करते हैं कि वह हमारी न की इज्जत करें । बच्चों का जिद करना, रूठना और मनाना तो उसके विकास की प्रक्रिया है। इसको नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए हम उसकी हर पसंद पूछते हैं और पूरी करने की कोशिश करते हैं।”

इशानी ने फिर पूछा कि बच्चे आजकल हमेशा मोबाइल टीवी से ही चिपके रहना पसंद करते हैं इस विषय में तुम क्या करती हो?

हर्षिता ने उत्तर दिया- “आज तकनीकी युग में बच्चों को मोबाइल या टीवी से दूर नहीं रखा जा सकता लेकिन हमने उसके लिए एक स्क्रीन टाइम निर्धारित कर दिया है। इसका कड़ाई से पालन करते हैं कि टाइम आउट का मतलब है टाइम आउट।” आज हमारी सोच बदल गई है। हम बच्चे को गिफ्ट से ज्यादा मेमोरीज देने की सचते हैं। हम चाहते हैं वह अपनी प्रतिभा के अनुसार इंसान बने।

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