manchaha - 6 in Hindi Fiction Stories by V Dhruva books and stories PDF | मनचाहा - 6

Featured Books
Categories
Share

मनचाहा - 6

lab खत्म होने के बाद मैं और दिशा केंटीन चल दिए। देर होने के कारण आज सुबह नाश्ता नहीं किया था। वैसे मैं रोज घर से भरपेट नाश्ता करती हुं तो कोलेज लंचबॉक्स नहीं लाती। दिशा हमेशा लंचबॉक्स लाती है, लंचबॉक्स क्या उसे तो दो तीन लोगों का टिफिन बोल सकते हैं। उसकी मम्मी हमेशा मेरे लिए ज्यादा ही खाना रखतीं है। तभी तो मुझे लंचबॉक्स लाना नहीं पड़ता। मीना, रीधीमा और काव्या भी हमारे साथ आए। समोसे का ओर्डर देकर सब एक टेबल पर जम गए और मेरे अलावा सबने अपना अपना लंचबॉक्स टेबल पर रख दिया, तब तक समोसे भी आ गए।

मीना- यहां के समोसे की बात ही कुछ और है।
दिशा- हां यार, देखते ही मुंह में पानी आने लगता हैं।
रीधीमा- सही बात है, पर घर के खाने की बात भी कुछ और है।
काव्या- अब बातें खतम हुई हो तो खाना शुरू करें? लेक्चर का टाईम हो जाएगा। पाखि तुम्हें आज हमारे टिफिन में से भी खाना पड़ेगा, हमें पता है तु भुखी है।
मैंने दिशा के सामने देखा।
काव्या- अब उसे घूरना बंद कर और खाना शुरू कर वरना फिर चक्कर खा जाएगी।

तभी निशा अपने ग्रुप के साथ आइ। वैसे वो उसका नहीं पर उसके भाई का ग्रुप है। अविनाश सर पे मेरी नजर गई वो और रवि सर मेरे सामने ही देख रहे थे। यह देखकर मैंने तुरंत अपनी नज़रें घुमाली। उनका ग्रुप आठ-दस लोगों का है, उनमें निशा को मिला के पांच लड़कियां हैं। मुझे उनके बारे में ज्यादा तो पता नहीं था पर एक लड़की हमेशा अविनाश सर के आसपास की सीट पर ही बैठती है। शायद वो उनकी गर्लफ्रेंड होगी। नहीं नहीं मैं कुछ नहीं सोचूंगी क्या पता ना भी हो ? और हो भी तो मुझे क्या ?।
थोड़ी देर बाद निशा हमारे पास आई और घर के खाने को देखकर उसके मुंह में भी पानी आ गया। सब ने उसे भी साथ में बैठने को कहां। अपने भाई को कहकर वो हमारे पास आ गई।

निशा- कल से मैं भी लंचबॉक्स लेकर आउंगी, मम्मा तो कहती है पर भाई लाने नहीं देता। उन सब के साथ बैठ के रोज़ बाहर का नाश्ता ही खाना पड़ता है।
मैंने भी सुर पूराया- मैं भी लेकर आउंगी। घर पे breakfast कम करुंगी। सब के साथ मज़ा आएगा खानें में।
बाजू के टेबल से आवाज आई,- कल से हमें भी साथ में खानें का मौका दिजिए। हम भी अपना टिफिन लेकर ही आते हैं।
हमने देखा तो वहां साकेत और राजा बैठे हुए थे।
काव्या- हां क्यो नही, बेशक हमें जोइन कर सकते हो।
दिशा- कल से क्यो? अभी आ जाओ। और हां, अपनी चेयर लेते आना।
अब वे दोनों भी साथ में जूड़ गए।
आज अच्छा लगा सबके साथ बैठकर। नहीं तो तीन दिन से मैं और दिशा अकेले ही थे। इतनी जल्दी अच्छा ग्रुप बन जाएगा सोचा नहीं था। धीरे-धीरे रुटीन बनता गया। रोज आना लेक्चर अटेंड करना, केंटीन में खाना, गप्पे लड़ाना। और हां दिशा उस दिन कुछ बोली भी नहीं जो मुझे बसस्टेंड पर बताने वाली थी। समय बीतता गया और आज फ्रेशर्स पार्टी का दिन भी आ गया।

सन्डे था तो आराम से सो रही थी। उठते उठते नौ बज चुके थे। नहा-धोकर नीचे आई। किचन में बड़ी भाभी नाश्ते की तैयारियां कर रही थी। सन्डे हमारे घर में सब आराम से उठते है दोनों भाभीयों के सिवा सब सोये हुए थे। मीताभाभी घर के मंदिर में पूजा कर रही थी।
मैंने भाभी से पूछा आज नाश्ते में क्या बनने वाला है?
सेतुभाभी- आज आलू परांठा बनाएंगे।
मैं - चलो आज मैं नाश्ता बनाउंगी। बहोत दिनों से मैंने कूछ पकाया नहीं है।
सेतुभाभी- ठीक है, आटा गूंथ लिया है और आलू में मसाला करना है। तुम ये सब करो तब तक मैं डेरी से दूध ले आती हुं।
मैं - क्यो आज दूधवाले भैया नहीं आएं  ?
सेतुभाभी- नहीं, रात को फोन आया था, उनकी मां बिमार है तो गांव जा रहे हैं। तीन चार दिन बाद आएंगे।
मैं- ओह, कोई बात नहीं आज आप ले आओ कल से मैं ले आउंगी। वैसे भी सुबह जल्दी ही उठना होता है। सुबह नाश्ता बना तब तक सब उठ गए थे। नहा-धोकर सब डाइनिंग टेबल पर आ गए।
चाय नाश्ता हो गया तब कविभाइ बोले कि,-आज तो मजा आ गया, बडे दिनों बाद अच्छा नाश्ता खाया, क्या बात है...
तभी बड़ी भाभी ने सबको बताया कि आज मैंने नाश्ता बनाया था।
कविभैया- तभी मैं सोचूं की नाश्ता करने के बाद मुझे पेट दर्द क्यो हो रहा है?
मैं- भैया तु अब मेरे हाथों पिटेगा।

पुरे घर में भगदड़ हो गई। चन्टु बन्टु भी साथ में भैया को पकड़ने लगें। दौड़ते- पकड़ते सब बाहर गार्डन में आ गए। बहुत मस्ती मजाक हुआ आज तो। फिर गार्डन में झूले पर बैठकर इधर उधर की बातें करने लगे। मीता भाभी कुछ काम से अंदर गई थी जब बाहर आई तो मेरा मोबाइल उनके हाथ में था जिसमें दिशा का कोल आ रहा था। जब तक मुझे देते रींग बंध हो चुकी थी। मोबाइल देखा तो दिशा के तीन और निशा के दो मिस्डकोल आ चूके थे। ये इतनी सुबह सुबह में क्यो फोन कर रही है। सब बाहर बैठे थे तो मैं फोन करने अंदर आ गई।
कुछ देर रींग जाने के बाद दिशा ने कोल रिसीव किया।
मैं- हाय दिशा! क्या हुआ, इतने फोन क्यो किए? कुछ हुआ है क्या?
दिशा- (गुस्से में) क्या कर रही है तु, इतनी देर से तुझे कोल कर रही हुं। तु कर क्या रही है अब तक? आज पार्टी के लिए तैयार होना है कि नहीं।
मैं- पार्टी शाम को है अभी नहीं। अभी से तैयार हो कर क्या करेंगी?
दिशा- अरे मैं पार्लर में जाने की बात कर रही हुं। मैं और निशा दोपहर एक बजे हमारे घर के पास जो ब्यूटीपार्लर है वहां जाने वाले है और तुम्हे भी आना है।
मैं- मुझे पार्लर नही आना है बाबा, मैं ऐसे ही ठीक हुं। वैसे भी अभी कुछ दिनों पहले एक शादी थी तभी मैंने आईब्रो करवाई थी। तो मुझे ज़रूरत नहीं है। तु और निशा हो आओ प्लीज़।
दिशा- ठीक है, पर शाम को जाना कैसे हैं?
मैं- क्यो, अपनी रामप्यारी है ना। तु साढ़े पांच बजे रेडी रहना मैं तुम्हें लेने आ जाउंगी।
दिशा- तेरी रामप्यारी ने पिछली बार की तरह धोखा दिया तो?
मैं- ए तु डरा मत, वो कभी बंद नहीं पड़ती। पहली बार ही ऐसा हुआ था। भैया गराज वाले के वह दिखा आए थे। अब नहीं बंद पड़ेगी।
‌दिशा- तु श्योर है ना?
मैं- हा बाबा।
दिशा- ठीक है मैं रेडी रहुंगी, टाइम से आ जाना। बाय...
मैं- अरे रुक, मै निशा को कोल कर देती हु की वो चूड़ियां लेती आए पार्लर में तु लेले ना उससे।
दिशा- ठीक है, और कुछ...???
मैं- नहीं और कुछ नहीं। ओके, बाय...
मैंने निशा को कोल करके चूड़ियां दिशा को देने को बोला।

शाम को दोनों भाभीयों ने तैयार किया मुझे। हल्का मेकअप और छोटी बिंदी भी भाभी ने लगाई थी। सेतुभाभी ने तो नज़र का काला टीका भी लगा दिया।
मैंने कहा- भाभी इतनी भी सुंदर नहीं है तुम्हारी ननंद की काला टीका लगाना पड़े।
मीताभाभी- कोन कहता है तु सुंदर नहीं है? हा, रंग भले ही ज्यादा गौरा न हो पर दिखती तो तु अच्छी ही है। और आज तुम्हें पता चल ही जाएगा। सब की नजरें तुम पर न टीके तो कहना।
मैं- चलो कुछ भी मत बोलो। बहोत तैयार कर लिया अब जाने भी दो, दिशा मार डालेगी वरना।
बाहर निकली तो सामने से विकास भैया भी निकल रहे थे। उन्होंने साथ चलने को कहा और मैंने बताया कि मेरी फ्रेंड के साथ जाने वाली हुं। वो कोलेज में मिलते हैं कह कर चले गए।

ठीक साढ़े पांच बजे मैं दिशा के घर पहुंच गई।
आंटी देखते ही बोलें- क्या गजब ढा रही हो तुम पाखि। किसकी नजर न लगे।
मैं- थेंक्यु आंटी। हमारी महारानी तैयार हुई के नहीं?
दिशा- (अपना गाउन लहराते) आ... गई...
मैं- wow! you are looking so beautiful and this black colour dress ?
दिशा- तु भी कुछ कम नहीं लगती यार। काश मैंने भी साड़ी ली होती। अरे हां, निशा ने चूड़ियां भीजवाइ है पहन लें।

दोनों ने मुंह पर दुपट्टा बांधा। दिशा स्कुटी पर one side बैठी थी तो उसे संभलकर बैठने को कहा। और सवारी कोलेज के लिए निकल पड़ी।

क्रमश:
आगे की कहानी जानने के लिए अगले भाग की प्रतीक्षा करें।
अगर आपको यह कहानी पसंद आएं तो आपकी अमूल्य समीक्षा व रेटींग्स जरूर दें। ?