Him Sparsh - 85 in Hindi Fiction Stories by Vrajesh Shashikant Dave books and stories PDF | हिम स्पर्श - 85

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हिम स्पर्श - 85

85

“जीत, क्या हुआ? तुम रुक क्यों गए? कहो जो कहना हो।“ वफ़ाई ने जीत से कहा।

“दिलशा...द, डॉक्टर नेल्सन....।“ जीत आगे नहीं बोल सका। जीत के मन में प्रेम तथा धृणा के मिश्रित भाव प्रकट हो गए।

“क्यों याद कर रहे हो उन लोगों को?”

“वफ़ाई, मैं उन्हें याद नहीं कर रहा हूँ, वो लोग यहाँ तक आ गए हैं।“

“कहाँ है? यहाँ कोई नहीं है हम दोनों के सिवा।“

“पीछे देखो, वफ़ाई।“

वफ़ाई पीछे घूमी। उसे एक स्त्री तथा एक पुरुष दिखाई दिये।

यह तो वही दो व्यक्ति है जो सारे चित्र किसी भी मूल्य पर खरीदना चाहते थे। जो मुझ से गुस्सा होकर चले गए थे। तो क्या यही है दिलशाद तथा डॉक्टर नेल्सन?

“जीत कैसे हो?” दिलशाद ने समीप आते हुए पूछा।

“डॉक्टर गिब्सन ने उपचार किया है जीत तुम्हारा। तुम शीघ्र ही स्वस्थ हो जाओगे।“ डॉक्टर नेल्सन ने कहा।

“वफ़ाई, यह दिलशाद तथा यह डॉक्टर नेल्सन।“

“जी।“ वफ़ाई ने कोई उत्साह नहीं दिखाया।

“जीत, हम वफ़ाई से मिल चुके हैं।“ दिलशाद ने कहा।

जीत ने वफ़ाई को देखा।

“हाँ, जीत। प्रदर्शनी के प्रथम दिवस ही यह दोनों मेरे पास आए थे तथा सारे चित्र खरीदना चाहते थे।“

“हमने यह भी कहा था कि आप जो चाहो वह मूल्य हम देने को तैयार हैं। किन्तु वफ़ाई नहीं मानी।“ नेल्सन ने कहा।

“अब तो प्रदर्शनी भी पूरी हो चुकी है और सारे चित्र डॉक्टर गिब्सन ले गए हैं। इस बात की चर्चा अब व्यर्थ है।“ वफ़ाई ने बात बदल दी।

“वफ़ाई तुम ठीक कह रही हो। हमें उस बात को अब भूल जाना चाहिए। हमारे शब्दों के लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।“ दिलशाद ने तथा नेल्सन ने हाथ जोड़ लिए। वफ़ाई ने कोई प्रतिभाव नहीं दिया। जीत भी मौन ही रहा।

“जीत, तुम्हारे चले जाने के पश्चात हमने तुम्हें हर स्थान पर ढूंढा। तुम कहाँ चले गए थे?” नेल्सन ने कहा।

जीत मौन रहा।

“जीत, तुम घर लौट आओ। मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ।“ दिलशाद ने कहा। जीत मौन रहा।

“जीत, अब चलो भी तो। मुंबई चलते हैं। तुम्हारा बाकी उपचार मैं करूंगा। तुम पूर्ण रूप से ठीक हो जाओगे।“ नेल्सन ने आग्रह किया।

जीत निरुत्तर रहा। वह वफ़ाई को देखता रहा। वफ़ाई ने आँखों से संकेत दिया, जैसे कह रही हो कि

जीत, दिलशाद तुम्हारी पत्नी है। उसके पास लौट जाओ।

जीत ने अधरों को चुस्त बंध कर लिया। अपने अंदर जैसे कोई घूंट को पी रहा हो। वह घूंट कड़वा था।

“जीत, हम कल ही मुंबई लौट रहे हैं। तुम तैयार हो जाओ।“ दिलशाद ने कहा। वह जीत के समीप गई। जीत की चलित कुर्सी को ले जाने लगी।

“दिलशाद, रुक जाओ।“ जीत चीख पड़ा।

“मैं कहीं नहीं जाने वाला।“

दिलशाद रुक गई।

“जीत, शांत हो जाओ।“ वफ़ाई ने जीत के माथे पर मृदु स्पर्श किया। जीत धीरे धीरे शांत हो गया।

“जीत, तुम स्वस्थ हो रहे हो। तुम्हें बाकी उपचार की आवश्यकता है जो मुंबई में हो सकता है। तुम दिलशाद तथा नेल्सन के साथ मुंबई लौट जाओ।“ वफ़ाई ने कहा।

“यह संभव नहीं है, वफ़ाई। मैं उसे छोड़ चुका हूँ। मैंने मेरे जीवन से उन पृष्ठों को हटा दिया है। मैं उसे फिर से नहीं जोड़ना चाहता।“ जीत ने आक्रोश व्यक्त किया।

“जीत, ऐसे उत्तेजित होना तुम्हारे स्वस्थ्य के लिए अभी उचीत नहीं है। तुम शांत हो जाओ। हम बाद में बात करते हैं।“ नेल्सन ने कहा।

“नहीं। जो भी बात करनी है अभी ही करेंगे। मेरा निर्णय अटल है। मैं मुंबई नहीं आ रहा हूँ।“ जीत ने कहा। जीत मौन हो गया, बाकी सब भी। समय के क्षण व्यतीत होने लगे।

सब मौन थे किन्तु सब के भीतर यूध्ध चल रहा था। सब उस यूध्ध को जितना चाहते थे किन्तु सब परास्त हो रहे थे।

अंतत: दिलशाद ने साहस जुटाया, बोली, ”जीत, तुम मेरी उस एक बात से व्यथित थे। तुम मुझ पर गुस्सा थे। मैं जानती हूँ कि तुम किस बात पर गुस्सा हो। मैं मेरी उस भूल के लिए लज्जित हूँ, नेल्सन भी। तुम्हारे जाने के पश्चात मैंने तथा नेल्सन ने एक दूसरे को स्पर्श तक नहीं किया। पश्चाताप की अग्नि में हम दोनों जलते रहे हैं। हम दोनों तपस्या कर रहे हैं।“

“जीत, दिलशाद सत्य कह रही है। हमारी तपस्या तभी सफल होगी जब तुम दिलशाद के पास लौट आओगे। तुम लौट रहे हो ना, जीत?” नेल्सन ने कहा।

“नहीं।“ जीत ने कहा।

“जीत, तुम्हें विश्राम कर लेना चाहिए। कितने थक गए हो तुम? इस बात को हम समय पर छोड़ दें तो?” वफ़ाई ने सुझाया।

“मैं भी तो यही कह रहा हूँ। यह समय ऐसी बातों के लिए उचित नहीं है।“ नेल्सन ने कहा।

“मैं ठीक हूँ। मैं यह बात को टालना नहीं चाहता। इस विषय पर मेरा निश्चय मैं बता चुका हूँ। मैं मुंबई नहीं लौटूँगा।“ जीत ने कहा।

“बाकी उपचार के लिए जीत का मुंबई जाना आवश्यक है। जीत, तुम मेरी बात मान लो, मुंबई लौट जाओ।“ वफ़ाई ने कहा।

“मैं अनेक बार ना कह चुका हूँ। बस, आगे और कोई चर्चा नहीं होगी इस बात पर।“ जीत क्रोधित हो गया। वफ़ाई उसके माथे पर हाथ फेरती रही।

“वफ़ाई, हमें जोगन से बात करनी चाहिए। वह हमें इस प्रश्न का समाधान देगी। हम में से कोई उसकी बात टाल नहीं सकता।“ दिलशाद ने कहा।

“यह उत्तम सुझाव है, दिलशाद। चलो हम जोगन से बात करते हैं।“

सब जोगन के पास गए।

“आप सब चाहते हैं कि मैं इस पर मेरा निर्णय कहूँ। आप सब मेरा निर्णय मानोगे यह मेरे लिए सम्मान की बात है। किन्तु यह आप सब के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ा प्रश्न है तो इसका निर्णय भी आप अब को ही लेना चाहिए। मैं आप से यह स्वतन्त्रता छिन नहीं सकती। आप सब मिलकर उचित निर्णय करें।“ जोगन जाकर एक पत्थर पर बैठ गई।

“बात तो अधिक उलझ गई। अब क्या करें?” नेल्सन ने कहा।

“आप सब मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।“ जीत ने कहा।

कुछ समय वाद विवाद चलता रहा। कोई किसी निर्णय पर सहमत नहीं हुआ।

“यह बातें अंतहिन है। ऐसे तो कोई बात नहीं बनेगी। हमें कोई तो निर्णय करना होगा।“ दिलशाद ने कहा।

“आप वाद विवाद करते रहो। मुझे जोगन के पास ले चलो।“ जीत ने कहा।

वफ़ाई ने जोगन की तरफ देखा। वह चीख पड़ी।

“जीत, नेल्सन, दिलशाद। देखो, जोगन को देखो....।“

सब जोगन को देखने लगे।

“यह क्या? जहां जोगन थी वहाँ जोगन के आकार की हिम की प्रतिमा कैसे आ गई? जोगन कहाँ है?” दिलशाद भी चीख पड़ी।

“जोगन की हिम प्रतिमा पिघल रही है। पानी का झरना बन बहने लगी है। यह क्या हो रहा है?” हिम प्रतिमा के समीप जाते हुए नेल्सन ने कहा।

“जोगन, जोगन...।”

“तूम कहाँ हो जोगन?”

“जोगन, जोगन, जोगन।“

जोगन की हिम प्रतिमा पिघलती रही, सब उसे पुकारते रहे किन्तु वह कहीं नहीं मिली। उस क्षण के पश्चात किसी ने जोगन को नहीं देखा। कोई नहीं जानता कि जोगन कौन थी? कहाँ से आई थी? कहाँ चली गई? अपने साथ एक रहस्य लेकर वह विलीन हो गई।

दिगमूढ़ से जीत, वफ़ाई, दिलशाद तथा नेल्सन स्थिर से खड़े रहे, मौन हो गए। कोई कुछ कह नहीं सका। जैसे सब के अंदर से प्राण चले गए हो, केवल शरीर रह गया हो।

समय का दीर्घ टुकड़ा बीत गया।