कहाँ गईं तुम नैना (7)
जमुना प्रसाद चंडीगढ़ जा रहा था। रास्ते में उसके पास उसके एक विश्वासपात्र आदमी का फोन आया। फोन पर उसने बताया कि धमकी दिलाने के बाद भी नैना बाज़ नहीं आई है। उसने जमुना प्रसाद की जासूसी के लिए बसंत नाम के एक आदमी को लगा रखा है। बसंत को उसके फार्म हाउस के पास वाली बस्ती में देखा गया है।
यह खबर सुनते ही जमुना प्रसाद का दिमाग तेजी से चलने लगा। वह समझ गया कि शिवप्रसाद ही बसंत है। उसने फौरन गाड़ी फार्म हाउस की तरफ मोड़ने को कहा।
फार्म हाउस से निकल कर बसंत बस्ती के अपने कमरे में आ गया। वहाँ उसने सारे सबूत लैपटॉप से एक पेन ड्राइव में डाल लिए। वह नैना के पास जाने की तैयारी कर रहा था। उसे बाहर से कुछ शोर आता सुनाई दिया। उसने आगे वाली खिड़की खोल कर बाहर देखा तो हथियार लिए कुछ आदमी दिखाई दिए। वह समझ गया कि जमुना प्रसाद को उसकी असलियत की भनक लग गई।
बाहर बदमाश उसे ढूंढ़ रहे थे। समय अधिक नहीं था। उसने पेन ड्राइव अपनी जैकेट की अंदर वाली पॉकेट में रखी। लैपटॉप का बैग कमरे की तांड़ पर रख दिया। कमरे के पीछे के हिस्से में एक सींखचों वाली खिड़की थी। उसने पहले ही यह सोंच कर की ज़रूरत पड़ सकती है उसके सींखचे ढीले कर दिए थे। जल्दी से उसने सींखचे निकाले। इतनी जगह थी कि वह बाहर कूद सकता था।
बदमाश दरवाज़े को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। बसंत जल्दी से बीच की जगह से बाहर कूद गया। तेज कदमों से वह जान बचा कर भागने लगा। बदमाश दरवाज़ा तोड़ कर घुसे तो सींखचों के बीच जगह देख कर समझ गए कि बसंत भाग गया है।
बसंत खुद की जान बचाने के लिए बस्ती के बाहर निकल कर खेतों की तरफ भाग रहा था। लेकिन बदमाशों ने उसे पकड़ लिया। वह उसे ट्यूबवेल के पास वाली कोठरी में ले गए। उसकी भली प्रकार तलाशी ली पर कुछ नहीं मिला। उन्होंने उसे मिल कर खूब पीटा। वह पूँछ रहे थे कि जमुना प्रसाद के खिलाफ जो सबूत इकठ्ठे किए हैं वह कहाँ छिपाए हैं। उसके फोन को भी खंगाला। कुछ ना मिलने पर उसे तोड़ दिया। उन्होंने बसंत को खूब मारा। बहुत मार खाकर भी वह कुछ नहीं बोला। बदमाशों ने जमुना प्रसाद को फोन कर सारी बात बताई। उसने बसंत को मारने के आदेश दे दिया। बसंत अधमरा होकर बेहोश हो गया था। बदमाशों ने उसे मरा हुआ समझ कर बसंत को पास से गुज़रने वाले रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया।
बसंत की तकलीफ उसके चेहरे पर झलकने लगी। उसने आदित्य से कहा।
"सर मेरी किस्मत में बचना लिखा था। उन लोगों के जाने के कुछ ही मिनटों के बाद एक आदमी उधर से गुज़रा। उसने मेरी नब्ज़ टटोली तो मुझे जीवित पाया। वह भला आदमी पास के गांव का ही था। उसने कुछ लोगों की मदद से मुझे अस्पताल पहुँचा दिया। जब तक मुझे होश नहीं आया वह रोज़ अस्पताल आता रहा। चार दिन बाद जब मैं होश में आया और बातें करने लायक हुआ तब उसने मुझे सारी बात बताई। मेरे कहने पर उसने मेरे दोस्त शंकर को फोन कर मेरे बारे में जानकारी दी। जब मैं ठीक हुआ तब शंकर मुझे मेरे घर छोड़ गया।"
बसंत की कहानी सुन कर आदित्य को उससे सहानुभूति हुई। लेकिन एक बात उसे परेशान कर रही थी। उसने बसंत के सामने अपनी दुविधा रखी।
"बसंत तुमने कहा कि उन बदमाशों को तुम्हारे पास कुछ नहीं मिला। लेकिन तुमने खुद ही बताया था कि सबूतों वाली पेन ड्राइव तुमने अपने जैकेट की पॉकेट में डाली थी। ऐसा कैसे हुआ ?"
बसंत आदित्य के मन के सवाल को पहले ही भांप चुका था।
"वह तो मातारानी के पास है।"
यह पहेली आदित्य को समझ नहीं आई। उसकी हैरानी को देख कर बसंत ने उसे सारी बात बताई।
जब बसंत कमरे की खिड़की से कूद कर भागा था तब वह जानता था कि बदमाशों से अधिक देर बच पाना कठिन है। उसके लिए ज़रूरी था कि वह पेन ड्राइव को उनके हाथ ना लगने दे। उसके मन में यही चल रहा था कि इसे कहीं सुरक्षित छुपा दिया जाए। भागते हुए जब वह खेतों की तरफ जा रहा था तब उसे एक छोटा सा देवी का मंदिर दिखा। उसने देवी से मन ही मन क्षमा मांगी और जूते पहने हुए ही अंदर घुस गया। जैकेट की पॉकेट से पेन ड्राइव निकाल कर उसने देवी जी की प्रतिमा के पीछे छुपा दी। उसके बाद फौरन बाहर निकल कर भागने लगा। कुछ ही देर में वह बदमाशों के हत्थे चढ़ गया।
"सर मैंने सोंचा था कि बदमाशों को चकमा देकर निकल जाऊँगा। बाद में आकर पेन ड्राइव ले लूँगा। पर ऐसा हुआ नहीं। ठीक होने के बाद मैंने जाना चाहा तो रमा ने मुझे कहीं आने जाने से मना कर दिया। उसके मन में डर बैठ गया है। सच तो यह है कि उस सबसे मैं भी अभी तक पूरी तरह नहीं उबर सका हूँ। पर मुझे लगता है कि पेन ड्राइव अभी भी वहाँ सुरक्षित होगी।"
"तुम मुझे उस मंदिर की लोकेशन समझा दो। मैं जाकर वह पेन ड्राइव लाने की कोशिश करता हूँ।"
बसंत ने उसे सब अच्छी तरह समझा दिया। आदित्य जब चलने लगा तो बसंत ने उससे कहा।
"सर वो पेन ड्राइव ढूंढ़ कर उस जमुना प्रसाद को उसके कर्मों की सजा ज़रूर दिलाइएगा।"
आदित्य ने उसे आश्वासन दिया कि नैना को गायब करा कर उसने ठीक नहीं किया। सबूत मिलते ही वह उसे जेल भिजवा देगा।
आदित्य जब गाज़ियाबाद के अगरौला गांव से लौटा तो वह बहुत थका हुआ था। वह आराम करने के लिए लेट गया। शरीर की थकान तो कुछ हद तक मिटी पर उसका दिल फिर से नैना के बारे में सोंच कर दुखने लगा। परेशानी में उसके मुंह से पुकार निकली।
"नैना तुम कहाँ हो ? मैं बहुत परेशान हूँ। कहाँ हो ? कैसी हो ? सोंच सोंच कर मेरा कलेजा फट रहा है। बस एक बार तुम्हें ढूंढ़ लूँ। फिर कहीं जाने नहीं दूँगा।"
आदित्य के मन में एक सवाल हलचल मचा रहा था। उसके और नैना के बीच जो दूरियां आईं क्या उसे टाला नहीं जा सकता था। उस समय दोनों ही ने समझदारी से काम क्यों नहीं लिया। इसके लिए वह नैना से अधिक स्वयं को दोष देता था। जो भी हुआ उसको लेकर नैना बहुत परेशान थी। सही तरह से सोंच नहीं पा रही थी। लेकिन उसे तो समझदारी से काम लेना चाहिए था। नैना को यकीन दिलाने का प्रयास कर सकता था कि जैसा वह सोंच रही है वैसा है नहीं। लेकिन उस वक्त तो वह भी अपनी ऐंठ में आ गया था। उसने नैना को रोकने की कोशिश नहीं की।
आदित्य उन परिस्थितियों के बारे में सोंचने लगा जिनके चलते वह और नैना अलग हुए थे।
आदित्य और नैना की शादीशुदा ज़िंदगी बहुत अच्छी तरह चल रही थी। दोनों के बीच में आपसी प्यार और विश्वास था। दोनों एक दूसरे के का सम्मान करते थे।
काम की वजह से दोनों को अलग अलग रहना पड़ता था। आदित्य आगरा में और नैना दिल्ली में रहती थी। लेकिन जिसे भी मौका मिलता वह दूसरे के साथ वक्त बिताने पहुँच जाता। अक्सर आदित्य ही ऐसा करता था क्योंकी नैना न्यूज़ चैनल में काम करती थी। अलग अलग रहते हुए भी उनके बीच का प्यार कम नहीं हुआ था।
जब भी आदित्य नैना से मिलने पहुँचता तब वह पूरी कोशिश करती थी कि उसके साथ अधिक से अधिक समय बिता सके। नैना जब आदित्य के पास आगरा पहुँचती तो उसका पूरा प्रयास रहता कि नैना के लिए यह समय यादगार बन जाए। ताकी जब वह दिल्ली में अकेली हो तो उस समय को याद कर खुश हो सके। इस तरह आपसी तालमेल के साथ जीते हुए पाँच साल बीत गए।
नैना को दुनिया न्यूज़ चैनल में प्रमोशन मिला था। अब उसका दायित्व पहले से बहुत बढ़ गया था। इसके कारण अब वह आदित्य को अधिक समय नहीं दे पाती थी। अब दोनों पहले की तरह जल्दी जल्दी नहीं मिल पाते थे। पहले इसकी भरपाई फोन पर बात कर हो जाती थी। बाद में फोन पर बात भी कम हो गई।
ऐसा नहीं था कि इसकी वजह से दोनों के बीच प्यार कम हो गया था। लेकिन आदित्य नैना के साथ के लिए तरस रहा था। नैना का भी यही हाल था। लेकिन दोनों ही खुद को मजबूर पा रहे थे। इन्हीं दिनों में आदित्य की मुलाकात अपने स्कूल के दिनों की दोस्त महक सबरवाल से हो गई। महक के माता पिता का उसके स्कूल के समय ही तलाक हो गया था। वह अपनी माँ के पास रहती थी। बारहवीं के बाद उसकी माँ उसे लेकर अपने भाई के पास न्यूज़ीलैंड चली गई। उसकी माँ ने वहाँ दूसरी शादी कर ली। महक अपने मामा के साथ रहने लगी। पढ़ाई पूरी होने के बाद वह पिछले कई सालों से अपने मामा का इंडियन रेस्टोरेंट संभाल रही थी।
साल भर पहले महक के पिता की मृत्यु हो गई थी। वह अपनी सारी जायदाद अपनी इकलौती संतान महक के नाम कर गए थे। महक यह सोंच कर हिंदुस्तान आई थी कि यहाँ जो भी जायदाद है उसे बेंच कर वह वापस न्यूज़ीलैंड चली जाएगी। लेकिन यहाँ आने पर उसका इरादा बदल गया। चंडीगढ़ में उसके पिता की एक हवेली थी। जो उसके दादा ने बनवाई थी। बचपन में एक दो बार वह छुट्टियों में वहाँ गई थी। हिंदुस्तान आने के बाद जब वह हवेली देखने गई तो उसके प्यार में पड़ गई। वह अभी भी अच्छी स्थिति में थी। महक ने तय कर लिया कि वह हवेली को एक हेरिटेज होटल में बदल देगी।
महक और आदित्य दो साल पहले फेसबुक के ज़रिए एक दूसरे से दोबारा जुड़े थे। आदित्य ने उसे अपने बिज़नेस व निजी जीवन के बारे में बहुत सारी बातें बताई थीं। महक भी उसे अपने जीवन के बारे में बताती रहती थी। महक हवेली को होटल में तब्दील करने के लिए भाग दौड़ कर रही थी। इसी सिलसिले में वह दिल्ली गई थी। लौटते समय वह आदित्य से मिलने आगरा चली गई।
महक चाहती थी कि होटल शुरू होने के बाद आदित्य अपनी ट्रैवेल ऐजेंसी के माध्यम से भारत भ्रमण के लिए आए लोगों को उसके होटल में ठहरने के लिए प्रेरित करे। आदित्य अपने स्कूल के दिनों की दोस्त की मदद करने के लिए तैयार हो गया। महक जल्द से जल्द हवेली को होटल बनाना चाहती थी। इस सिलसिले में उसने अपनी कोशिशें बढ़ा दीं।
महक का अब अक्सर ही दिल्ली आना जाना लगा रहता था। जब वह दिल्ली आती तो आदित्य से मिलने आगरा भी जाती थी। आदित्य और महक की दोस्ती जो स्कूल के दिनों में पीछे छूट गई थी अब दोबारा नए सिरे से आरंभ हो रही थी। वैसे तो महक के हिंदुस्तान आने से पहले दोनों सोशल मीडिया के ज़रिए एक दूसरे से बात करते रहते थे। आदित्य ने तो उसे अपने जीवन के बारे में लगभग सभी कुछ बता दिया था। पर महक ने उससे बहुत सी बातें नहीं बताई थीं। अब आदित्य का साथ पाकर वह खुल रही थी। उसके साथ अपने दिल का दर्द बयां कर हल्का महसूस करती थी।