ख़्वाबगाह
उपन्यासिका
सूरज प्रकाश
तेरह
तभी वह हादसा हुआ था। मालती अग्रवाल वाला मामला। बेशक वे विनय के लिए आनंद और बदलाव के या मौज मजे के मौके रहे हों, मेरे लिए किसी हादसे से कम नहीं था।
तब मैं अपने घर पर ही थी।
एक रात को मैंने यूं ही बातों बातों में विनय को बता दिया था कि मुकुल सुबह की फ्लाइट से हैदराबाद जा रहे हैं तो अचानक विनय सुबह सुबह ही आ धमका। मोबाइल की घंटी बजी तो देखा कि विनय का फोन है। आम तौर पर वह इस समय फोन कम ही करता था। हैलो कहते ही विनय ने बताया कि गेट खोलो मैं बाहर खड़ा हूं। मैं हैरान। इस तरह से घर आने की तो कोई बात नहीं थी। वह कभी भी डोर बैल नहीं बजाता। उसे पता है डोर बैल बेशक नीचे के फ्लैट की बजे, ऊपर रहने वाले एक बार झांक कर जरूर देख लेते हैं कि गेट पर कौन है।
हम अरसे बाद मिल रहे थे। मैं विनय के गले से लग कर फूट फूट कर रो रही थी। विनय ने बहुत मुश्किल से मुझे चुप कराया था। मैं सोफे पर उसकी गोद में सिर रख कर लेट गयी थी। वह मेरे बालों में उंगलियां फिरा रहा था। मैंने उसका हाथ थामा हुआ था और मेरी आंखें बंद थीं।
तभी विनय हौले से बोला था – काकुल, मुझे तुमसे कुछ कहना है। मैंने दिलासा दी थी – कहते चलो, मैं सुन रही हूं।
- दरअसल हुआ यह कि कि कि .. वह हकला रहा था।
मैंने आंखें खोली थी – क्या बात है विनय, तुम कहने से हिचक क्यों रहे हो। कहो ना।
उसने फिर से कहना शुरू किया – दरअसल मेरा एक दोस्त है दीपक अग्रवाल। तुम उसे जानती हो।
- हां तो
– उसकी वाइफ है मालती अग्रवाल।
- हां जानती हूं उसे भी। स्मार्ट सी है और किसी कॉलेज में इंगलिश पढ़ाती है। वही ना।
- तो जब हम तुम अरसे से नहीं मिल पा रहे थे तो मैं ड्रिंक करने के लिए दीपक के घर चला जाता था। मालती भी कई बार हमारे साथ बैठ कर पीती थी।
- तो?
- मेरा मतलब है कि मालती से मेरी दोस्ती हो गयी थी। पहले हम बाहर इधर उधर मिलते रहे थे। फिर
- फिर क्या?
- फिर मैं उसे ले कर ख़्वाबगाह गया था
– क्या मैं झटके से उठ बैठी थी - तुम उसे यानी मालती अग्रवाल को ख़्वाबगाह ले कर गये थे। जबकि हम दोनों में यह तय हुआ था कि वहां हम दोनों के अलावा कोई भी नहीं जाएगा। मैं रोने लगी थी।
- अरे ऐसा कुछ नहीं है। बस तुमसे मिले इतना अरसा हो गया था और मालती मेरी अच्छी दोस्त बन गयी थी और उसे भी एक अच्छे दोस्त की जरूरत थी।
– और उस दोस्त की कमी पूरी करने के लिए तुम उसे ख़्वाबगाह ले गये। जरा सुनूं कितनी बार ले कर गये।
- पांच सात बार।
- तय है वह छुट्टी ले कर दिन भर के लिए तुम्हारे साथ रही होगी।
- हां उसने हर बार छुट्टी ली थी या कॉलेज की छुट्टी थी।
- कभी रात भर भी ठहरी।
- नहीं, कभी भी नहीं।
- सच कह रहे हो।
- तुम्हारी कसम।
- वैसे जो काम तुम दिन में करके आते रहे, रात को करते तो क्या फर्क पड़ने वाला था।
- काकुल, ऐसा कुछ नहीं है।
- विनय, अब सफाई देने के लिए तुम्हारे पास बचा क्या है। मैं भड़क गयी थी - पहले अपनी शादी के बारे में नहीं बताया और मुझसे नाता बनाए रखा। तुम ये बात अच्छी तरह से जानते हो कि मैं अपने मुकुल से धोखा करके तुम्हारे साथ जुड़ी रही। आगे इतने बरस से हर तरह का जोखिम ले कर, अपने पति से और परिवार से समय चुरा कर भाग भाग कर तुम्हारे पास आती रही। यहां तक कि तुमने दुल्हन की तरह सज कर आने और हनीमून मनाने के लिए कहा तो भी इन्कार नहीं किया और तुमने मेरे इस प्रेम का क्या सिला दिया। अपने ही दोस्त की बीवी को ले उड़े। कुछ तो सोचा होता कि तुम एक साथ कितने लोगों को धोखा दे रहे हो।
विनय सिर झुका कर चुपचाप बैठा था। उसके पास कोई जवाब होता तो देता।
तभी मैंने विनय के कंधे पर हाथ रख कर पूछा था - दीपक को शक नहीं हुआ।
- यही तो मैं बताना चाहता था कि सारी गड़बड़ी दीपक को पता चलने के कारण हुई। मेरे बताने से पहले ही तुम गुस्सा हो गयी।
– दीपक को पता चल गया है क्या।
- हां, पहले तो दीपक को शक हुआ था। फिर एक दिन उसने हम दोनों का पीछा किया।
- फिर?
- पहले कई दिन तक तो उसने जतलाया ही नहीं। हम पहले की तरह एक साथ ड्रिंक लेते रहे। जब उसने दो तीन बार हमारा पीछा किया तो पूरी तरह से अपनी तसल्ली कर ली।
- फिर?
- फिर एक दिन जब मैं अपने घर पर ही ड्रिंक ले रहा था तो वह नशे में धुत्त हमारे घर आया। वह पहले कभी भी इस हालत में हमारे घर नहीं आया था। जब मैंने उसे बैठने के लिए कहा और ड्रिंक ऑफर किया तो वह सीधे गाली गलौज पर उतर आया और मेरी वाइफ के सामने उलटा सीधा बोलने लगा। वह एकदम घबरा गयी थी। जब मैंने उसे चुप रहने और आराम से बात करने के लिए कहा तो उसने सारे भेद खोल दिये कि किस तरह मैं उसका घर बरबाद कर रहा हूं। मैं दोस्त के नाम पर कलंक हूं और न जाने क्या क्या। ये सब देख कर मेरी वाइफ बुरी तरह से रोने लगी थी।
- फिर?
- दीपक लगभग आधा घंटा हमारे घर पर रहा। नशे में तो वह था ही, कभी गुस्से में तो कभी रोते हुए गाली गलौज करता रहा और मेरे ही घर में आ कर मेरी मां बहन करता रहा। मुझे बहुत गालियां दीं।
- फिर?
- इस फिर के बाद कुछ कहने के लिए बचता ही क्या है। मैंने एक अच्छा दोस्त खोया, उसकी, अपनी और अपनी बीवी की नज़रों में गिरा। दीपक के जरिये जो दोस्त बने थे, वे सब भी कन्नी काट गये।
- कब की बात है?
- पंद्रह दिन पहले की। बीवी ने तो बात ही करनी बंद कर दी है। उसे पहले से ही शक था कि मेरा किसी से चक्कर चल रहा है और दीपक घर आ कर सारे सबूत दे गया।
ये सब बताते हुए विनय बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रहा था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे रिएक्ट करूं। उससे खफा हो जाऊं या उस पर तरस खाऊं। अपनी बीवी से बेईमानी करके मुझसे नाता रखे हुए है और अब मुझसे भी छुपा कर एक और रास लीला रची जा रही है। आखिर क्या कमी छोड़ी थी मैंने उसे प्यार करने में। मैं उसके लिए अपने पति से बेईमानी करती रही। उसके एक एक बुलावे पर घर वालों से झूठ बोल कर उसके पास भाग भाग कर आती रही। सब कुछ तो उसे सौंप रखा था मैंने फिर भी उसे एक और की जरूरत पड़ गयी कि दोस्त की ही बीवी को अगवा करके सैक्स के लिए मेरे बनाए ख़्वाबगाह में ले जाता रहा। ख़्वाबगाह न हो गया हरम हो गया कि किसी को भी ले जाओ और मजे करो। कुछ तो सोचा होता। दोस्त की बीवी ही बची थी। दीपक ने क्या सोचा होगा कि वह अपने ही घर में एक रकीब को बुला कर शराब पिलाता रहा। अपनी बीवी से उसके संबंध खराब हुए होंगे सो अलग। उसके बाद से पति से कभी आंख मिला कर बात नहीं कर पा रही होगी और दीपक उसके कभी उसे पहले की तरह प्यार कर पाएगा। ऊफ्फ। ये मर्द भी न।
– मालती के क्या हाल हैं। उसकी भी शामत आयी ही होगी। फिर मिले कभी। पूछा मैंने।
– फिर मिल कर अपनी हत्या करानी है क्या। मालती का कुछ पता नहीं, लेकिन शामत तो उसकी भी आयी ही होगी।
- विनय, वो सब जाने दो। मैं तुमसे इस बारे में बाद में निपट लूंगी। एक बात सच सच बताओ। जब तुम मालती को एक नहीं, दो नहीं, पांच सात बार ख़्वाबगाह ले कर गये होगे तो तय है, तुम दोनों वहां पर एकांत में अंत्याक्षरी तो नहीं खेलते होवोगे और न ही रामायण की चौपाइयां दोहराते रहे होवोगे। आदमी और औरत वाला रिश्ता भी निभाया ही होगा। वह भी मेरी चिंता नहीं है। तुम जानो और वह जाने।
- मेरी चिंता दूसरी है कि इतने खूबसूरत और शानदार ख़्वाबगाह में पैर रखते ही कुछ सवाल उसके मन में आये होंगे। ये तो उसे भी समझ में आ गया होगा कि वह तुम्हारा रेगुलर घर नहीं है और मौज मस्ती के लिए तुमने बना रखा है। ये भी उसके मन में आया होगा कि ये सजावट विनय के बस की तो नहीं है और जब रेगुलर घर नहीं है कि मिसेज विनय की भी नहीं होगी। ऐसी हालत में उसने जरूर पूछा होगा कि ये सब किस फीमेल फ्रैंड की करामात है तो तुमने जरूर मेरे बारे में बताया होगा। और वह यह भी समझ गयी होगी कि जो फ्रेंड आपके ख़्वाबगाह को इतनी खूबसूरती से सजा सकती है वह भी कम से कम वहां कबीर के दोहे सुनाने तो नहीं ही आती होगी।
इसके जवाब में विनय हकलाने लगा था - नहीं, वो ऐसा था और वैसा था करने लगा था।
उसका जवाब बिन कहे ही मुझे मिल चुका था। बेशक इस सारे सीन में मैं बिना सामने आयी एक खराब कैरेक्टर बन चुकी थी लेकिन मालती की निगाह में खुद विनय की इमेज क्या बनी होगी। मालती की हिम्मत की दाद देनी होगी कि पहली ही बार में पता चलने पर कि यह जगह पहले से ही किसी और के लिए बनी है, और इस्तेमाल होती रही है, वह इतनी पढ़ी लिखी होने के बावजूद कैसे वहां जाती रही थी। या तो उसकी प्यास बड़ी होगी या विनय का आकर्षण उसे किसी भी कीमत पर वहां खींच लाता होगा। उसे यह भी तो पता ही होगा कि विनय शादीशुदा है।
मैं खुद को यह तसल्ली देने के बावजूद कि विनय अपनी गलती मान रहा है, उसे माफ कर दिया जाना चाहिये, मैं अरसे तक विनय से सहज संबंध जारी नहीं रख पा रही थी। एक तो बन्नी छोटा था और मेरा पूरा समय मांगता था, हमारी अगली मुलाकात काफी अरसे बाद ही हो पायी थी। एक बात यह भी मेरे मन में आयी थी कि जिस तरह से दीपक को इन दोनों के कुछ ही दिन के रिश्ते की खबर हो गयी थी, हमारे इतने बरस से चले आ रहे रिश्ते पर मुकुल कभी भी शक कर सकता है। कहीं ऐसा हो गया तो मेरे लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात होगी। मैंने सारी बातों पर हर एंगल से सोचा था और यही तय किया था कि तब की तब देखी जाऐगी।
फिर ये भी सोचती हूं तो तकलीफ होती है कि मुकुल से शादी मेरे जीवन का सबसे बड़ा हादसा है। हम दोनों शायद एक दूसरे के लिए ही नहीं बने हैं। उसकी दुनिया मेरी दुनिया से बिल्कुल अलग है और मेरी दुनिया कहीं दूर दूर तक मुकुल की दुनिया से मैच नहीं करती।
हमारी बेशक अरेंज मैरिज हुई है और पूरे परिवार, समाज, यार दोस्तों और शुभचिंतकों के सामने हुई है और परिवार के हिसाब से मैं मुकुल की एक सुखी पत्नी और सोनी परिवार की एक सफल बहू हूं लेकिन मैं ही जानती हूं कि मैं मुकुल की सिर्फ पत्नी हूं और पत्नी के हिस्से में मुकुल की ओर से कोई सुख नहीं आता। वह 10 बरस में कभी भी मेरा नहीं हो सका और मैं कभी भी उसकी नहीं हो सकी।
शायद इसकी वजह ये भी है कि मेरे सामने तुलना करने के लिए दो शख्स हैं मुकुल और विनय। और विनय हर मामले में मुकुल से भारी पड़ता है। बेशक विनय मुझसे तीन बरस बड़ा है और मुकुल सिर्फ 6 महीने, उसके बावजूद हमारी नहीं पटती। हालांकि हमारी एक दूसरे से कोई नाराजगी नहीं है, फिर भी हम न तो अच्छे दोस्त ही बन पाये हैं और न ही प्रेमी प्रेमिका।
और मेरी बदकिस्मती है कि भावनात्मक रूप से तो मुकुल विनय से कमजोर ही पड़ता है, कहते हुए शर्म आती है कि मुझे शारीरिक रूप से संतुष्ट करने में भी वह विनय की तुलना में कम ही ठहरता है।
शायद यह वजह भी है कि मैंने सारे खतरों के बावजूद विनय से नाता नहीं तोड़ा है। इन 12 वर्षों में मैं उसे लगातार मिलती रही हूं।
सारी बातें सोचने के बाद कुछ अरसे बाद हम से फिर पहले की तरह ख़्वाबगाह में मिलने लगे थे।
विनय के दो बच्चे हैं। सच तो यह है कि वह न तो अपनी बीवी को प्यार करता है और ना ही बच्चों के प्रति उसे कोई स्नेह है। मेरा प्रेम ही उसका सबसे बड़ा सहारा है जिससे मैं उसे पिछले दस महीने से वंचित किये हुए हूं।
मैंने सब कुछ जानते हुए भी सब कुछ स्वीकार कर रखा है। जो होता है होने दो। सो व्हाट। है तो है। वह मेरे प्रति ईमानदार है, अपने बीवी के कम पढ़े लिखे होने या जाहिल होने या बदसूरत होने की वजह से घर के फ्रंट पर परेशान है और उसे मेरे साथ रहकर कुछ घंटे के लिए सुख मिल जाते हैं तो क्या बुरा है।
कई बार अपने आपसे मैं सवाल करती हूं कि मैं ये जो भी कर रही हूं, खुद भी अपने पति से बेईमानी कर रही हूं और विनय भी मेरी ही वजह से अपनी पत्नी से बेईमानी कर रहा है। आज से नहीं, पिछले बारह साल से, क्या ये सही है। हम कभी भी पकड़े जा सकते हैं और उस हालत में दोनों ही अपने घर परिवार में मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे। मैं हर बार इस सवाल का सामना करने से कतराती रही हूं।
ऐसा नहीं है कि मुकुल और मेरे बीच सब खराब ही खराब हो और हम एक ही छत के तले दो दुश्मनों की तरह रह रहे हों। हम दोनों के बीच बहुत बार और लंबे लंबे ऐसे अरसे भी आये हैं जब हमने एक दूसरे की कंपनी खूब एंजाय की है। हर बरस किसी न किसी हिल स्टेशन पर जाते हैं, हर महीने आस पास की लंबी ड्राइव पर निकल जाते हैं और हफ्ते में एक बार डिनर के लिए बाहर जाते ही हैं। मुकुल कर जब घर पर डिंक करने का मूड होता है तो वह पहले से बता देता है और मैं उस हिसाब से तैयारी भी करती हूं और उसे कंपनी भी देती हूं।
मुकुल के जीवन की कोई बात मुझसे छुपी हुई नहीं है। वह मुझसे सब कुछ शेयर करता है। यहां तक कि अगर वह किसी लड़की के साथ रात बिता कर आयेगा तो वह भी अगली सुबह मुझे बता देगा। हालांकि वह ऐसा करेगा नहीं।
फिर भी कुछ तो है जो हम दोनों के रिलेशन में मिसिंग है। उसके साथ बितायी हर इंटीमेट रात के बाद भी मैं मानसिक रूप से, शारीरिक रूप से और भावनात्मक रूप से अधूरी रह जाती हूं। हर बार मेरा अंधा कूंआ और खाली हो जाता है और मैं तड़पने के अलावा कुछ नहीं कर पाती। मेरी कौन सी प्यास है जो बुझती हो या कहूं कि मुकुल मुझमें कुछ खालीपन हर बार और हर रोज छोड़ देता है इसलिए उसकी सारी अच्छाइयों के बावजूद मैं उसे प्यार नहीं कर पाती। मुकुल के जीवन का कुछ भी तो ऐसा नहीं है जो मेरे जीवन से मेल खाता हो।
दूसरी तरफ विनय मेरी हर पल खुशी का, रोमांच का, जीवन की हर छोटी से छोटी बात का ख्याल रखता है और बदले में मैं भी रखती हूं। विनय से ये खूबसूरत रिश्ता तोड़ देने पर मेरे सारे खूबसूरत अहसास खत्म हो जायेंगे।
एक और सवाल है जिससे मैं अरसे से कतरा रही हूं। क्या मुझे ये सब करते हुए गिल्ट फील होता है। मैं इस सवाल का जवाब अच्छी तरह से जानती हूं लेकिन बचना चाहती हूं।
मैं जानती हूं कि जिस दिन मैंने ईमानदारी से इस सवाल का जवाब खुद को दे दिया, मेरी पूरी दुनिया एक ही झटके में खतम हो जायेगी। ये खूबसूरत रिश्ता खत्म करते ही मैं एक चूल्हे चक्की वाली एक आम औरत रह जाऊंगी जिसकी जिंदगी में न प्रेम होगा न रोमांच। वह किसी से अपनी बात शेयर करने के तिए तरस जायेगी और जब वह अपने पति से कुछ चाहेगी तो उसने कुछ भी सुना नहीं होगा या न सुनने का नाटक करेगा। मैं अपने पति की बाहों में आज तक नहीं झूली हूं और न कभी झूलने की उम्मीद ही का सकती हूं। कभी उसके साथ खेल नहीं खेले हैं। अगर उसने मेरी बकेट लिस्ट की हसरतें पूरी की होतीं, या प्रेमी या दोस्त बन कर मेरी हर खुशी या तकलीफ में बराबर की भागीदारी की होती तो मैं विनय को छोड़ने के बारे में सोच भी सकती थी।
मेरे लिए इससे बड़ी तकलीफ क्या होगी कि जब तक मेरे बालों में कोई उंगलियां न फेरे, मुझे नींद नहीं आती। शादी के दिन तक ये भूमिका मां निभाती रही। मैंने हनीमून पर ही मुकुल को ये बात बता दी थी। उसने पांच सात दिन तो मेरा ये चोंचला पूरा किया, लेकिन फिर भूल भाल गया। उसे हर बार ये बात याद दिलानी पड़ती है। जब से हम अकेले सोने लगे हैं मुझे इस काम के लिए विनय को कहना पड़ता है कि वह बेशक फोन पर ही यही, चैट पर ही सही, मुझे यह अहसास दिलाए कि वह मेरे बालो में उंगलियां फेर रहा है। मैं थोड़ी देर तक हुं हुं करती रहती हूं फिर पता ही नहीं चलता, कब नींद आ जाती है।
पिछले दस महीने से मुझे ये सुख नहीं मिला है। मेरा भी तो मन करता है कि मैं दूसरे कमरे में सो रहे अपने पति की बांहों में दुबक कर सो जाऊं और उससे लाड़ लड़ा कर कहूं कि वह मेरे बालों में उंगलियां फेर कर मुझे सुला दे। यही तो नहीं हो पाता मुझसे और मैं देर तक करवटें बदलती जागती रहती हूं। अब पिछले कुछ महीनों से ये भूमिका मेरा सात बरस का बेटा बन्नी निभा रहा है। कहां तो मुझे उसे थपकी दे कर सुलाना चाहिये, वही मेरी मां बन कर मेरे बालों में उंगलियां फिरा कर मुझे सुलाता है।
मोबाइल की घंटी अब भी बज रही है।
कभी तो मैं फोन उठाऊंगी। तब सब ठीक हो जाएगा।
अब जो भी हो रहा है, उसे जस का तस चलने देना चाहती हूं।
अब प्रेम है तो है।
सो व्हाट।
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