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रात्रि व्यतीत हो गई। दुसरे दिवस भी प्रदर्शन चलता रहा। डॉक्टर गिब्सन तथा उसके साथी चित्रों का आनंद लेते रहे, सबसे मिलते रहे।
डॉक्टर वफ़ाई के समीप जा बैठे।
“डॉक्टर, एक बात मेरे ध्यान पर आई है।“
“कहो वफ़ाई, क्या बात है?”
“आप यहाँ इतने सारे व्यक्तियों से मिले। सभी ने इन चित्रों के विषय में आपसे चर्चा की। किन्तु किसी ने भी आपसे जीत की शस्त्रक्रिया का उल्लेख तक नहीं किया। किसी ने अभिनंदन भी नहीं दिये।“
“वफ़ाई। यह सब लोग यहाँ चित्र देखने आए हैं। मुझे तो यह भी संदेह है कि वास्तव में सब चित्र देखने आए हैं अथवा इस स्थान के रोमांच का आनंद उठाने आए है? तुम्हारे तथा मेरे लिए जीत एक महत्वपूर्ण व्यक्ति है, इन सभी के लिए नहीं।“
“किन्तु, इस दुर्गम स्थान पर एक डॉक्टर इतना बड़ा काम करता है, सफल होता है। क्या इस बात का कोई महत्व नहीं? क्या यह घटना अद्भुत नहीं है?”
“यह तो अपना अपना द्रष्टिकोण है। अपनी अपनी रुचि है।‘
“आप ठीक कह रहे हो।“
डॉक्टर चले गए। दूसरे दिवस की प्रदर्शनी भी सम्पन्न हो गई। भीड़ बिखर गई। वफ़ाई भी लौट आई।
“वफ़ाई, जीत को देखना नहीं चाहोगी?” विक्टर ने पूछा। याना तथा जोगन वफ़ाई की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करने लगे।
“नहीं। छत्तीस घंटे। मैं प्रतीक्षा करूंगी पूरे छत्तीस घंटे तक।“ वफ़ाई का उत्तर सुनकर सभी मौन हो गए।
वफ़ाई की वह रात्री भी प्रार्थना में व्यतीत हो गई। भोर होने पर जोगन ने उससे कहा,”वफ़ाई, थोड़ा विश्राम कर लो।“
“इतनी प्रतीक्षा की है तो कुछ घंटे और सही।“
“कितनी कड़ी तपस्या कर रही हो तुम?”
“सुना है जितनी कड़ी तपस्या होती है, वरदान भी उतना ही उच्च होता है।“ वफ़ाई ने स्मित दिया। जोगन ने भी।
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प्रदर्शनी का तीसरा एवं अंतिम दिवस प्रारम्भ हो चुका था। आज चित्रों की नीलामी होनी थी। दर्शक अत्यंत उत्सुक तथा उत्तेजित थे। बड़े बड़े सौदागर चित्रों की बोली लगाने को अधीर थे।
नीलामी की तैयारी पूर्ण हो चुकी थी। भीड़ की उत्तेजना अपने यौवन पर थी। वफ़ाई नीलामी के नियम बताने लगी। भीड़ शांत हो गई। एकाग्र होकर नियमों को सुनने तथा समझने लगी।
“तो इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए आप सब इन चित्रों की बोली लगाएंगे। यदि किसी को कोई बात स्पष्ट ना हुई हो तो अभी भी पूछ सकते हो। किसी को कोई प्रश्न अथवा संदेह है?” वफ़ाई ने भीड़ से पूछा।
भीड़ मौन थी। वफ़ाई ने पुन: पूछा। भीड़ अभी भी मौन। वफ़ाई ने तीसरी बार पूछा। भीड़ ने कुछ नहीं पूछा।
“तो हम प्रारम्भ कर रहे हैं नीलामी का। सर्व प्रथम जो चित्र मेरे दाहिने हाथ की पंक्ति में तीसरे स्थान पर लगा है उस चित्र की नीलामी होगी।“
याना उस चित्र के समीप जा खड़ी हो गई।
विक्टर नीलामी की इस सारी प्रक्रिया को केमरे के माध्यम से सभी चेनल पर भेज रहा था। सारा संसार इस अनूठी नीलामी को देख रहा था।
भीड़ में से अनेक हाथ उठने लगे, बोलियाँ भी बोली गई।
“तो यह चित्र को खरीद रहे हैं....।” वफ़ाई के शब्द अधूरे रह गए।
“रुक जाओ। इस नीलामी को रोक दो।“
सभी उस ध्वनि की दिशा में देखने लगे। सबके लिए एक आश्चर्य लेकर आया था वह ध्वनि।
डॉक्टर गिब्सन ने चलित कुर्सी पर बैठे जीत को लेकर प्रवेश किया। पूरी भीड़ विचलित हो गई।
वफ़ाई ने जीत को देखा। जीत ने स्मित दिया, वफ़ाई ने भी।
जीत, मेरा मन करता है कि सब कुछ छोडकर मैं दौड़ आऊँ तेरे पास। तुझे मेरे आलिंगन में ले लूँ। इस संसार के सभी बंधनों को तोड़ दूँ। इस भीड़ को छोड़ दूँ।
जीत के मन में भी यही भाव चल रहे थे।
वफ़ाई जीत की तरफ चलने ही वाली थी कि उसे अपने चरणों को रोकना पड़ा।
भीड़ अनियंत्रित हो गई। कक्ष में अव्यवस्था व्याप्त हो गई। वफ़ाई ने स्थिति को समझा और अपने चरणों को रोक लिया।
“शांत हो जाइए। आप सर्व से मेरी प्रार्थना है कि आप अपना धैर्य बनाए रखें। हम नीलामी का कार्य आगे बढाते हैं। आप से प्रार्थना है कि आप शांत हो जाइए। मैं आपसे हाथ जोड़ पुन: विनती करती हूँ कि शांत हो जाइए।“
भीड़ धीरे धीरे वफ़ाई के शब्दों को सुनने लगी, समझने लगी। भीड़ शांत होने लगी। शांत हो गई।
“मित्रों। आप सभी यहाँ तक आए, इस प्रदर्शनी का आनंद लिया। इसके लिए मैं आप सभी का धन्यवाद करता हूँ। मुझे आशा है कि आप लोगों को निराशा नहीं हुई होगी।“ सभा का दौर संभालते हुए डॉक्टर गिब्सन ने कहा।
“इस प्रदर्शनी का उदेश्य था कि जीत का उपचार हो तथा नीलामी से जीत के उपचार का खर्च निकाला जाय। जीत अब स्वस्थ हो चुका है। जीत के उपचार के खर्च हेतु मैं कोई राशि नहीं ले रहा हूँ। किन्तु मैं राशि के रूप में इन सभी चित्रों को ले रहा हूँ। यह सारे चित्र मैंने ले लिए हैं। अब कोई चित्र की नीलामी नहीं होगी। मैं आप सब से क्षमा चाहता हूँ।“
डॉक्टर के इन शब्दों ने भीड़ को पुन: विचलित कर दिया। भीड़ कि मानसिकता को भली भांति समजते थे डॉक्टर।
डॉक्टर के एक संकेत पर डॉक्टर के साथियों ने सभी चित्रों को सुरक्षित रूप से वहाँ से हटा लिया। भीड़ में आक्रोश जन्म लेने लगा। धीरे धीरे वह बढने लगा। भीड़ नियंत्रण खोने लगी। भीड़ उपद्रव करना चाहती थी किन्तु डॉक्टर के साथियों ने स्थिति को नियंत्रण में कर लिया। विवश भीड़ धीरे धीरे बिखरने लगी। भीड़ लुप्त हो गई। प्रदर्शनी कक्ष खाली हो गया।
वफ़ाई सभी बंधनों को तोड़कर दौड़ गई जीत के पास। जीत आँखें बंध कर बैठा था। वफ़ाई ने जीत के हाथ को अपने हाथ में लिया, अपनी छाती से लगाया, आँखें बंध कर ली।
“जीत, परीक्षा की क्षण व्यतित हो गई। तुम सकुशल तो हो ना?” जीत ने कोई शब्द नहीं कहे। मन ही मन विचार करता रहा।
वफ़ाई, मुझ में इतनी शक्ति नहीं कि मैं उठकर तुम्हें अपने आलिंगन में भर लूँ। तुम्हारा यह स्पर्श मुझे जीवन के शुभ संकेत दे रहा है। वफ़ाई, मेरे माथे पर तुम हाथ रख दो। आज तुम मेरी दादी बन जाओ, मेरी नानी बन जाओ। इसी तरह मुझे स्पर्श करते रहो। मेरे समीप ही रहो।
वफ़ाई ने जैसे जीत के मन की बात सुन ली हो, जीत के माथे पर अपने हाथों का मृदु स्पर्श करने लगी।
वफ़ाई, तुम आज भी मेरे मन की बात सुन लेती हो, समज लेती हो। तुम मुझे नया जीवन प्रदान कर रही हो। तुम्हारे स्पर्श में कोई संजीवनी है।
“जीत, तुम कुछ बोलते क्यों नहीं? आँखें खोलो जीत। मैं वफ़ाई, तुम्हारी वफ़ाई।“
“वफ़ाई। तुम्हारा स्पर्श मुझे हिम की शीतलता दे रहा है।“ जीत ने आँखें खोली।
“वफ़ाई, तुम...।“ जीत बोलते बोलते रुक गया।