Darr - 2 in Hindi Horror Stories by सीमा कपूर books and stories PDF | डर - भाग - 2

Featured Books
  • ડિજિટલ અરેસ્ટ

    સાયબર માફિયાઓનો નવો કિમીયો : ડિજિટલ અરેસ્ટડિજિટલ અરેસ્ટ : ઓન...

  • કભી ખુશી કભી ગમ - ભાગ ૪

    SCENE 4  [ સ્ટેજ ઉપર લાઈટ આવે કપિલા અને નીલમ ચિંતામાં બેઠા છ...

  • નિતુ - પ્રકરણ 33

    નિતુ : ૩૩ (લગ્ન) નિતુ રાત્રે ઘરે પહોંચી તો ઘરમાં શારદા સિવાય...

  • ભીતરમન - 39

    મારી વિચારધારા સવિતાબેન ના પ્રશ્નથી તૂટી હતી તેઓ બોલ્યા, "મા...

  • ખજાનો - 39

    ( આપણે જોયું કે અંધારી કોટડીમાં કોઈ મૂર્છિત માણસ મળી આવ્યો....

Categories
Share

डर - भाग - 2


नमस्कार दोस्तो जैसा की आप इसके आगे का भाग-1में पड़ चुके हैं,,

उसे लागा शायद लोगो की बातो का असर हो गया होगा।खाना ढ़क कर वह tv चलाने गई,जैसे खाना प्लेट में डाला वह मांसाहारी हो गया,शा़मा ने प्लेट ही फेक दी,और घबराकर डरने लगी मन ही मन में कहने लगी की मैंने तो मांस नहीं लिया था...उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगाऔर भूख तो जैसे मर सी गई हो बस डर और डर ही चेहरे पर था।  उसे बार बार यहीं महसूस हो रहा था जैसे की कोई ना कोई उसके साथ हैं।
उसको अचानक से अपने आस पास से बदबू सी आने लगी उसने घर की सारी खिड़कियां खोल दी,परंतु जो बदबू थी वह बड़ती ही जा रही थी ...घडी़ की सुईयों की टीक टीक और उसके अपने ही कदमों की आहट सांसों का शोर ही बस सुनाई दे रहा था।।

देहशत भरे चेहरे पर सलवटे पड़ती जा रही थी मानो कोई तो हैं जो उसे कुछ तो कहना चा रहा था/पर क्या/जैसे जैसे
रात और भी काली हो रही थी उसका डर और भी डरावना हो रहा था,,एक और बदबू बड़ती जा रही थी दूसरी और पीछे कोई साया था जो उसे जकडे़ जा रहा था।
उसे समझ ही नहीं आ रहा था की यह सब हो क्या रहा हैं,उसने डर ते डर ते मकान मालिक को फोन लगाना चाहा परंतु जब घडी़ की और देखा समय रात्री 2.00 का था उसने फिर सोचा इतनी रात को फोन करुगीँ तो मेरा ही मजा़क बनेगा,वह खा़मोशी से बैठ गई और घडी़ की सुईयों की और देखने लगी की कब यह डरावनी रात बीतेगी।।

काली रात के साथ साथ शा़मा का डर भी वैसे वैसे डर बड़ता ही जा रहा था अपने डर से भागने के लिए बिस्तर में जाकर अपने शरीर को चादर से पूरी तरहा लपेट लिया परंतु घबराहट से पसीने पसीने हो गई बार बार आँखो को कभी बंद तो कभी खोल रही थी उसे ऐसा लगा मानो उसके पलंग के नीचे कोई हैं,कभी दाएं तो कभी बायं से उसे कोई छू रहा हैं।

जैसे ही शा़मा ने चादर से बाहर मुहं किया और डरते डरते बिस्तर के झाकने लगी अपने कप कपाते हाथों थर थराते होठो से जैसे ही वह सिर नीचे की और करने लगी उसकी आँखे पूरी तरहा से खुल गई और जोर जोर से चीखने चिल्लाने लगी,फिर तुरंत ही बिस्तर से उठ कर घर के मुख्य
दरवाजे की और भागने लगी ,दरवाजे को खेलने लगी पर वह खुल ही नहीं रहा था फिर वह जोर जोर से चीखने  लगी और दरवाजे को खट खटाने लगी।।

ना दरवाजा ही खुल रहा था और ना ही कोई मदद मिल रही थी,फिर शा़मा घर की खिड़की की और भागी खिड़की खुल तो गई पर वह वहां से कूद ही ना सकी लोगो को मदद के लिए आवाजँ लगाई पर किसी को उसकी आवाज़ सुनाई ही नहीं आई अब रात के 3.00बज चुके थे,लोग गहरी नींद ले रहे थे तो आवाज़ उन तक केसे पहुँचती।
पर इतने सन्नाटे में क्या कोई ऐसा नहीं था जिसे शा़मा की चीखने चिल्लाने की आवाज़ ही आई हो,,,?