Space in Hindi Short Stories by Seema Jain books and stories PDF | स्पेस

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स्पेस

रात के नौ बज गए थे, रेखा चिंता के कारण परेशान हो रही थी। पुत्र अभय अभी तक नहीं आया था ना फोन उठा रहा था। ड्राइंग रूम में पति हिमांशु और पुत्री इला टीवी देखने में मस्त थे। एक दो बार रेखा ने दबी जबान में कहा भी ,अभय को बहुत देर हो गई है। दोनों ने लापरवाही से कहा ,आ जाएगा बेकार परेशान मत हुआ करो ।

तभी अभय को आया देख रेखा आतुरता से बोली ,”बेटा कहां रह गया था ?कॉलेज से कहीं चला गया था क्या? एक फोन ही कर देता।”

अभय लापरवाही से बोला,” मॉम कॉलेज से मूवी का कार्यक्रम बन गया था। दोस्तों के साथ चला गया, फोन में बैटरी खत्म हो गई थी इसलिए फोन नहीं कर सका।”

एक-दो घंटे इधर उधर हो जाते तो वह सब्र कर लेती थी लेकिन पांच छः घंटे बच्चे की कोई जानकारी नहीं होने के कारण उसकी हालत खराब हो गई थी और बेटा इस बात को हल्के से ले रहा था । तीखे स्वर में बोली,” किसी दोस्त के फोन से एक वाक्य बोल देता, मूवी जा रहा हूं तो इतनी टेंशन तो नहीं होती।”

बेटा झुंझला कर बोला,” मॉम कोई बच्चा नहीं रह गया हूं, जो हर समय आने जाने के लिए इजाजत लेता रहूं। प्लीज मॉम अब हम बड़े हो गए हैं हमें स्पेस दो।”

इला भी बीच में बोल पड़ी,” सही कह रहा है भाई ,मॉम अब हम पर हर वक्त नजर रखने की जरूरत नहीं है आपको।”

हिमांशु भी बच्चों की ओर से बोलते हुए बाहर चले गए,” रेखा इतनी चिंता मत किया करो तुम्हारी सेहत के लिए ठीक नहीं।”

रेखा को लगा तीनों ने गुट बनाकर उसके खिलाफ मोर्चा खड़ा कर दिया है ।उसके कार्यक्षेत्र को एक बार फिर परिभाषित किया जा रहा है। उसको रिटायर्ड किया जा रहा है ।अब उसका काम है केवल घर को साफ सुथरा रखना, सब के कपड़ों का ध्यान रखना और सब की सुविधा के अनुसार खाना परोसना ।उसने दुखी स्वर में दोनों बच्चों की तरफ देखते हुए कहा ,”मां हूं तुम दोनों की, तुम ही तो सब कुछ हो मेरे। तुम्हारी चिंता नहीं करूं यह कैसे हो सकता है?” अभय बोला ,”वही तो माॅम, आपने हमें अपनी जिंदगी का केंद्र बना लिया है। लेकिन हमारी अपनी एक बाहरी दुनिया भी है।”

इला ने भी भाई के सुर में सुर मिलाया ,” अब आपके पास समय है आप अपने शौक पूरे कीजिए। अपने लिए समय निकालिए ।आपको देखकर लगता भी नहीं कि पहले आप नौकरी करती थी एकदम से घरेलू लगती हो।”

हां नौकरी तो वह करती थी ,अभय के होने के बाद भी ।ऑफिस जाते हुए ग्लानि होती थी, दिल बैठ जाता था, जब बच्चे को छोड़कर जाती थी। लगता था मां का कर्तव्य ठीक से नहीं निभा रही ।जिस दिन सास ने गुस्से से कहा ,”हमारा काम यही रह गया है, पहले अपने बच्चे पाले अब तुम्हारे पालो ।अब हमसे इस उम्र में यह सब नहीं होता।”

रेखा ने एक बार नहीं सोचा और नौकरी छोड़ दी ।बच्चों को पालने और सास ससुर की सेवा में लग गई। कई साल सास बिस्तर पर रही,रेखा ने उफ तक नहीं की। अपने जीवन की सारी स्पेस परिवार के नाम कर दी। और अब बच्चों को लगता है वह उनके जीवन में नजर रख रही है, चिंता करके उन्हें परेशान कर रही है, उनकी स्पेस खा रही है ।उसका जीवन तो बिजली का खटका हो गया ,जब जरूरत हुई दबा दिया, परिवार के लिए समय दो। इक्कीस साल बाद उसको कहा जा रहा है अपने शौक याद करो और अब उन्हें पूरा करो। इतने सालों में कहां जिंदा रख पाई अपने अस्तित्व को ,अपने अंदर किसी शौक को। कहां रख पाई अपने अंदर की औरत को जिंदा, केवल मां पत्नी और बहू बन कर रह गई।अब अपने जीवन में आ गई रिक्तता को भरने के लिए उसे शौक पैदा करना होगा।