करसरा की काजल का कलेजा कसकता है
सुषमा मुनीन्द्र
जो लोग हर स्थिति—परिस्थिति में सकारात्मक भाव रखने का मानस बना लेते हैं, जानते हैं जीवन किसी का भी हो पूर्णतः बाधारहित नहीं होता। इसीलिये ये लोग बाधाओं में भी काम लायक मसला ढॅूंढ़ लेते हैं।
घटना खास नहीं, मामूली है।
मामूली घटना ने नवेली का सकारात्मक भाव से परिचय करा दिया।
जब सड़क मार्ग अच्छा था नवेली साठ किलो मीटर का सफर कार से एक घंटे में पूरा कर सतना से रीवा पहॅुंच जाती थी।
फोर लेन बनाने के उपक्रम ने पथ को ऐसा क्षतिग्रस्त कर डाला है कि कार और कमर को समान रूप से क्षति पहॅुंचती है। पथ के दोनों ओर उन्नत खड़े प्राचीन आयु के वृक्ष काटने, अतिक्रमण हटाने में जो तेजी दिखाई गई थी, अनुमान था बघेलखण्ड जल्दी ही फोर लेन प्राप्त कर लेगा। तीसरा साल है, फोर लेन प्राप्त नहीं हुई। अरसा हुआ नवेली ने बस यात्रा नहीं की है। लम्बी दूरी के लिय रेल, छोटी दूरी के लिये कार को प्राथमिकता देती है। इस बार तय किया अपने पिता की श्राद्ध में कार से नहीं बस से रीवा जायेगी। काफी ऊॅंची होने के कारण बस, उतना न कूदेगी—लहरायेगी जितनी कार कूदती—लहराती है। कमर को क्षति कम पहॅुंचेगी। बस को पहॅुचेगी तो सुकून रहेगा निजी सम्पत्ति नहीं है।
नवेली प्रातः नौ बजे बस स्टैण्ड पहॅुंची। रीवा जाने की तत्परता में कई बसें स्टार्ट थीं। हार्न फॅूकते चालक अपनी सीट पर यॅूं मुस्तैद मानो यात्री मिलें न मिलें वाहन हॉंक ले जायेंगे।
यद्यपि जानकार बताते हैं बस जब तक क्षमता से अधिक न भर जाये हॉंकी नहीं जाती। रीवा .......रीवा ....... रीवा तीक्ष्ण स्वर में चिल्ला कर लोगों को अपनी बस की ओर आकृष्ट कर रहे परिचालकों की पस्त दशा बताती थी उनका काम कितना थकाने वाला है। नवेली अभिजात भंगिमा का प्रदर्शन करती हुई कुछ देर बस स्टैण्ड की गतिविधियों को देखती रही फिर एक बस में चढ़ गई। दूसरी पंक्ति की खिड़की वाली सीट पर बैठते हुये लगा वह शान खो गई है जो शोफर ड्रिवेन कार में यात्रा करने से बनती है। डेढ़ साल की बच्ची को गोद में लिये एक देहाती युवती उसके पास आई —
‘‘मैडम जी, हिंया बइठ जायेंं ?''
शिक्षित और अशिक्षित में यही फर्क है। नवेली चॅूंकि शिक्षित जान पड़ती थी, अशिक्षित युवती ने उससे इस तरह अनुमति मॉंगी, जैसे बस नवेली का निजी वाहन है। नवेली ने गर्व में भर कर युवती को बैठने का संकेत किया। युवती यथासम्भव फासला बना कर बैठी तथापि नवेली को लगा उसके और युवती के स्तर में फर्क नहीं रह गया है। दोनों पचास रुपिया टिकिट वाली हो गई हैंं। युवती सावधानी बरत रही थी फिर भी उसका बादामी रंग का मोटे कपड़े वाला मटमैला झोला नवेली की भुजा से छू गया। संक्रमण की आशंका से नवेली ने रुमाल से अपनी त्वचा साफ की। संक्रमण जैसी आशंका से सर्वथा अपरिचित बच्ची, नवेली की कलाई के आकर्षक कंगन को खींचने की कुचेष्टा करने लगी। नवेली कंगन छुड़ाने लगी। बच्चों में शायद प्राकृतिक ताकत होती है। उसकी पकड़ मजबूत थी। मजबूत पकड़ को हिदायत से नहीं आग्रह से ढीला किया जा सकता है। युवती ने पुचकार कर बच्ची का हाथ अपनी ओर खींच लिया। नवेली ने देखा बच्ची के रंग उड़े भूरे बल्कि हल्के पीले कुपोषित दिखते केशों में दो—तीन गुलाबी क्लिप लगी हैं। गले में काले धागे से बॅंधी ताबीज। नवेली खिन्नता से भर आई। गहरे सॉंवले रंग की कुपोषित लग रही बच्ची को कौन नजर लगायेगा जो युवती इतना एहतियात बरत रही है ? और इसे सजाये कितना है ? चॅूंकि नवेली बस में यात्रा करने का मानस नहीं बना पा रही थी, अतः सकारात्मक भाव नहीं रख पा रही थी। इसलिये नहीं समझ सकती थी मॉं के लिये बच्चे का रंग और रंगत अर्थ नहीं रखती।
बस के क्षमता से अधिक भरने पर परिचालक ने पदार्पण किया। एक यात्री जोर से बोला —
‘‘कंडक्टर सुनिहौ ? यह सीट बहुत डिस्टर्व (खराब) हैै। दूसर दो।''
ऐसी आपत्तियों से गुजरने का परिचालक को अभ्यास है ‘‘लाल साहब आप डिस्टर्ब (डिस्टर्ब्ड) हैं। सीट ठीक है।''
‘‘पैसा पूरा लेते हो। सीट अइसी डिस्टर्ब।''
उपद्रवी यात्री को उपेक्षित कर परिचालक ने अचम्भित खड़ी महिला को विलोका —
‘‘मलकिन थोड़ा पीछे जाइये। सीट है।''
‘‘सीट मिलेगी तो बैठॅूंगी, वरना उतर जाऊॅंगी। बहुत बस हैं।''
‘‘सीट है। सभी पसिन्जर (पैसेन्जर) को मिलेगी।''
इधर बस चली उधर यात्री सेल फोन पर सूचना—समाचार लेने—देने में दत्त हुये। किसी के सेल फोन पर कॉंल आ रही है। कोई कॉंल कर रहा है। सार्वजनिक स्थल पर कॉंल आ जाये तो निजी बातों का खुलासा न हो जैसी सावधानी बरतते हुये लोग धीमे स्वर में बात करते हैं। कुछ तो हथेली से लबों को छिपा कर फुसफुसाते हैं। कुछ थोड़ा अलग जाकर बात करते हैंं। कुछ कह देते हैं बाद में बात करेंगे। लेकिन आंचालिकता के अभ्यास स्वरूप बघेलखण्ड के लोग सेलफोन पर रहस्य को भी इतनी ऊॅंची आवाज में बताते हैं कि वह रहस्य नहीं रह जाता। पहली पंक्ति में बैठे यात्री की तेज आवाज नवेली के कानों में पड़ी —
‘‘........... मैं कटिंग (हेयर कट) कराऊॅं न कराऊॅं तुम मुझे सलाह न दिया करो .......... हॉं, नहीं करा पाया .........।''
नवेली ने पूरी तरह खिन्न होकर सिर, सीट की पुश्त पर टिका कर यॅूं ऑंखें मॅूंद लीं जैसे ऐसा करने पर सारी आवाजें चुप हो जायेंगी। लेकिन बस आपका निजी वाहन नहीं है। आप आवाजों से नहीं बच सकते। नवेली के ठीक पीछे की सीट पर विराजमान सेल फोन कान में दताये लड़की तेज आवाज में बोल रही थी। लड़की के अंदाज में नखरा, नाराजगी, नसीहत थी। बात चरम पर आ चुकी थी। जाहिर था लड़की को किसी से बात करते हुये थोड़ा समय हो गया है। नवेली ने पहला संवाद यह सुना —
‘‘........ न हॅंसिये। आपके जैसे हॅंसने वाले बहुत देखे हैं।''
‘‘........।''
‘‘ठीक है, ठीक है। काजल—काजल कह कर हमको तेल न लगाइये।''
‘‘..........।''
‘‘रीवा जा रही हॅू। वहॉं से करसरा जाऊॅंगी।''
अर्थात् काजल नाम की कन्या जिला रीवा के गॉंव करसरा जा रही है।
‘‘.........।''
‘‘नहीं, करसरा में कोई मरा ओरा (वरा) नहीं है। कोई न मरे तो हम करसरा न जायें ?''
नवेली आवाजों से बचना चाहती थी पर भेजा आस—पास के संदर्भों को ग्रहण करना अपना धर्म मानता है।
‘‘......।''
‘‘बाबा की सराद्ध (श्राद्ध) में जा रही हॅूं।''
‘‘.........।''
‘‘अच्छा तो आप भी सराद्ध खाने जा रहे हैं ? कटनी ?''
‘‘........।''
‘‘ट्रेन में हैं ?''
मानव चित्त चंचल होता है, यॅूं ही नहीं कहा गया है। नवेली नहीं सोचना चाहती लेकिन काजल की बातें प्रेरित करने लगी। उसे लगा सारे यात्री श्राद्ध में जा रहे हैं। पितरों की तृप्ति के लिये पितृ पक्ष में पॉंच बलि की जाती है। ब्राम्हण बलि, गौ बलि, श्वान बलि, काक बलि, पिपीलिका बली। गाय, श्वान, कौये को टिकरिया (पूड़ी और उड़द के बड़े) खिलाये जाते हैं। लेकिन कौये ढॅूंढ़े नहीं मिलते। मोबाइल टावरों के रेडिएशन से इनकी प्रजनन क्षमता खत्म हो रही है। फसलों में प्रचुर रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक दवाओं से मरने वाले कीट—पतंगों को खाकर कौये मर रहे हैं। सम्भव है एक दिन श्वान और गाय भी ढॅूंढ़े न मिलें।
‘‘.........।''
‘‘आप तीन दिन पहिले भी सराद्ध खाने कटनी गये थे। रोज कटनी जाते हैं ?''
‘‘ ........।''
‘‘अच्छा तो आपके झौआ भर (कई) रिस्तेदार कटनी में बसे हैं। कहीं न कहीं सराद्ध होती रहती है। बस आप लोग ही सीहोरा में रहते हैं ?''
‘‘.......।''
‘‘धीमी आवाज में बात क्यों कर रहे हैं ? हम आपकी प्रेमिका नहीं हैं जो आप फुसफुसा कर बात कर रहे हैं। पत्नी हैं।''
नवेली खुद को निर्लिप्त रखना चाहती है पर लगता है काजल नाम की यह गुस्सैल कन्या यात्रा को दिलचस्प बना कर दम लेगी। नवेली अनायास सोचने लगी। उधर वाला प्राणी काजल का पति है। इसकी बातें सुनकर पता नहीं किस टोन में क्या जवाब दे रहा होगा। मोबाइल का स्पीकर ऑंन होता तो उधर से आते जवाब को सुन पाती।
‘‘आपके जनक—जननी आपके साथ हैं। वे भी सराद्ध खाने जा रहे हैं ? तभी आपकी आवाज नहीं खुल रही है। वे दोनों आपके अगल—बगल बैठें हैं जो हमारी बात सुनेंगे ?''
‘‘.........।''
‘‘आप वहॉं से उठकर बाथरूम के पास काहे नहीं आ जाते हैं ?''
‘‘.........।''
अब नवेली को जिज्ञासा हो रही है। वह काजल द्वारा पॅूंछे जा रहे प्रश्न, दिये जा रहे उत्तर के आधार पर उधर की स्थिति का अनुमान लगाने लगी।
‘‘बाथरूम के पास आ गये ? तभी आवाज खुल रही है। नहींं, मैं नहीं लजाती हॅूं। अकेले नहीं जा रही हॅूं। मम्मी मेरे साथ है। मैं उनके सामने आपसे बात करने में नहीं लजाती। लीजिये, बात कीजिये। .......मम्मी सीहोरा वाले तुमसे बात करेंगे।''
अर्थात् काजल के पति ने तुम भी अपने माता—पिता के सम्मुख मुझसे बात करने में शर्माओगी जैसा कुछ कहा है। काजल ने अपनी माता को सेल फोन पकड़ा कर संकोच में डाल दिया है यह उनकी हड़बड़ाहट से नवेली को ज्ञात हो गया —
‘‘अरे ............. काजल ............ नहीं ............ हम का बात .......... हॉं बेटा ? ............ साखी गोपाल ? खुस रहो, आनंद रहो, जियत रहो, भगवान नीके—कुशल रखें .......... नहीं, आप काजल की कउनो बात का नागा (बुरा) न मानेंगे ........... जबसे सिच्छाकर्मी बनी है, थोड़ा फारबड(फारवर्ड) हो गई है .......... लो काजल से बात करो ............।''
बातों से नवेली ने समझ लिया काजल की माता अशिक्षित अथवा अल्पशिक्षित महिला हैं, जबकि काजल के लक्षण बताते हैं वह बहुत फारवर्ड है।
‘‘विश्वास हो गया न मम्मी हमारे साथ हैं।''
‘‘..............।''
अब नवेली का ध्यान प्रसंग पर केन्द्रित होता जा रहा है। साखी गोपाल का स्वभाव कैसा होगा ? मितभाषी होगा ? या यह इतनी वाचाल है कि उसे बोलने की गुजाइश नहीं दे रही है ?
‘‘नहीं, बाबू और दूनौ भाई करसरा नहीं जा रहे हैं। आप जेंटिलमैनों को इतना टाइम कहॉं होता है ? वह तो औरतें फुरसतहा (फुरसत में) समझसी जाती हैं कि जो काम कोई न करे इन लोगन से करा लो। बाबा की सराद्ध करसरा में करनी पड़ती है। मम्मी अकेले कैसे जातीं ? तो हम लेकर जा रहे हैं।''
नवेली, काजल की बातों पर एकाग्र होती जा रही थी कि एक यात्री ने दखल दे दिया —
‘‘कंडक्टर आगे उस पानी की टंकी के पास गाड़ी रोक देना। वहीं उतरना है।''
परिचालक यात्रियों के टिकिट बना रहा था ‘‘अभी मनकहरी मोड़ से चढ़े, अब उतरना है। बस को ऑंटो समझ लिये हो का ? टंकी के पास उतरने की नौटंकी करने लगे। घर—घर गाड़ी रोक कर पसिन्जर नहीं उतारेंगे।''
‘‘बैठाये हो तभी बैठेे हैं। न बैठाते।''
‘‘ठीक है। पन्द्रह रुपिया निकालो।''
‘‘दस लगता है।''
‘‘पन्द्रह।''
व्यवधान के कारण नवेली काजल की वार्ता को ठीक से नहीं सुन पाई। अब जो सुना वह यह था —
‘‘आपके घर का कायदा दुनिया से अलग है का ? हमारी नौकरी लग गई है इसलिये हम सीहोरा में कम ही रहेंगे लेकिन जितना भी रहेंगे इतना कायदा हमसे न होगा।''
‘‘...........।''
‘‘सीहोरा में बहुत कैसे रहेंगे ? सुभाविक है जब बच्चों को पढ़ाने जवा जायेंगे, सीहोरा में कम ही रहेंगे।''
काजल शिक्षक है लेकिन स्वाभाविक को सुभाविक बोल रही है। नवेली चिंतित हो गई। शुद्ध उच्चारण न कर पाने वाले शिक्षक, विद्यार्थियों को ज्ञानी कैसे बनायेंगे ? विद्यार्थियों का भविष्य क्या होगा ?
‘‘.............।''
न हॅंसो। आपके जैसे हॅंसने वाले हमने देखे हैं। ...........नहीं, हमको नौकरी का घमण्ड नहीं हो गया है। हमारी जबान ही ऐसी है। सुनने वाले को लगता है हम घमण्ड से बात कर रहे हैं या गुस्से से।''
‘‘..................।''
‘‘आप अइसी बात कर देते हैं कि मेरा करेजा (कलेजा) कसकता है। हम नौकरी नहीं छोडें़गे। काहे छोड़ेंगे ? आपकी आलीशान नौकरी नहीं है जो आप हमको पूरी सुविधा देंगे।''
नवेली सोचने लगी — काजल की यह अपनी नौकरी के प्रति सजगता है या इसे अपने वर्चस्व के लिये जूझना आता है। ग्रामीण पृष्ठभूमि की यह लड़की बता रही है गॉंवों में बदलाव दस्तक देने लगा है।
परिचालक फिर चिल्लाया ‘‘रोको, बहुत औरतें हैं।''
सड़क के किनारे खड़ी दस—पन्द्रह ग्रामीण स्त्रियॉं हाथ लहरा कर बस रोक रही थीं। चालक ने विरोध किया ‘‘बस भरी है। इतनी औरतोंं को कहॉं बैठाओगे ?''
‘‘झिरिया मोड़ पर कुछ लोग उतरेंगे। सीटें खाली हो जायेंगी। औरतें बेचारी घाम में खड़ी हैं।''
परिचालक ने कुछ ऊपरी कमाई कर लेने की मंशा से बस रुकवाई लेकिन बस में मात्र दो औरतें चढ़ीं। बाकी दल इन दो को रुखसत करने आया था। परिचालक को तौहीन लगी —
‘‘अइसी—अइसी सवारी। अरे मलकिन थोड़ा ठाढ़ी रहो। झिरिया मोड़ से सीट मिल जायेगी।''
नवेली अब काजल की बातों में पूरी रुचि ले रही थी। लगा परिचालक बार—बार बस रोक कर दर असल उसकी एकाग्रता को भंग कर रहा है। उसने काजल का संवाद सुना —
‘‘हम सच्ची बात किये तो आप बात पलट कर साड़ी का रंग पॅूंछने लगे ? टी शर्ट और जींस पहिने हैं।''
अर्थात् गॉंवों में जींस और टी शर्ट वाली आधुनिकता आ गई है। काजल अपने स्तर पर आधुनिक होने के साथ निश्चित रूप से सुंदर भी होगी। तभी तो साखी गोपाल नाज उठा रहा है। वरना मोबाइल ऑंफ कर देता।
‘‘..............।''
‘‘हमारी याद आ रही है इसलिये साड़ी का रंग पॅूंछ रहे हैं। हम पन्द्रह दिन बीमार रहे, महीना भर कमजोरी रही तब याद नहीं आई ? आप एक दिन को न आये। जनक—जननी न आने देते होंगे। गमन (गौना) नहीं हुआ है इसलिये हम सीहोरा नहीं आ सकते पर आप तबियत देखने आ सकते थे। ............जितनी रोक—टोक, नियम—कायदा है सब लड़कियों के लिये है। लड़कों को छूट ही छूट है।''
अब नवेली की समझ में आ रहा है — गौना नहीं हुआ है अर्थात साखी गोपाल पूरी तरह पति नहीं बना है। इसलिये इसके तैश में उसे रोमांच मिल रहा होगा। पति बनते ही बराबरी खत्म कर देगा। दबाव बनायेगा। ये जिन कायदों को मानने से इंकार कर रही है इसे मानने पड़ेंगे। नहीं मानेगी तो रंजिश होगी।
‘‘............।''
‘‘आप फिर बात पलट कर पॅूंछ रहे हैं मौसम कैसा है। वही है जो कटनी—सीहोरा में होगा। कटनी, सीहोरा, रीवा में बहुत दूरी नहीं है। जाने न (समझे न) ?''
‘‘झिरिया मोड़ वाले आगे आ जाओ ........।''
काजल की बातों को लेकर नवेली की चेतना पूरी तरह जागृत हो चुकी है। लगा बार—बार व्यवधान देकर परिचालक साजिश रच रहा है। पन्द्रह यात्री उतरे। इस बीच साखी गोपाल ने क्या कहा, काजल ने क्या जवाब दिया जानने से नवेली साफ तौर पर वंचित रह गई। काजल कह रही थी —
‘‘आपकी आदत को हम जानते नहीं क्या ? आप हमको टाइम—कुटाइम कॉंल करते हैं। आज हम कर लिये तो कहते हैं अब बंद करो।''
‘‘.............।''
‘‘हम समझ रहे हैं पैसा कट रहा है पर आप बैलेंस की चिंता न करो।''
‘‘............।''
‘‘नहीं। हमारे पास बहुत पैसा नहीं हो गया है। न ही हमारे बाबू के पास है। होता तो आपके बाबा शादी में रिसा न जाते। ..........सुन लीजिये ........... आपके बाबू आये, हमारे घर में नया ट्रैक्टर खड़ा देखा तो हुलहुला गये कि ट्रैक्टर वाला आदमी है। दहेज अच्छा देगा, बारात का स्वागत अच्छा करेगा। अच्छा किये भी पर आपके बाबा रिसाये रहे। बाबू ट्रैक्टर का लोन आज भी नहीं चुका पाये हैं। हम पॉंच भाई—बहिनों की जिम्मेदारी उनके ऊपर है। पूरा धन हमको ही दे देेगे ?''
‘‘...........।''
‘‘लोन की िंचंता हम काहे न करें। घर की सबसे बड़ी संतान हॅूं। चिंता करूॅंगी।''
‘‘............।''
‘‘नवम्बर में गमन होना है। बाबू को एक बार फिर बहुत खर्च करना पड़ेगा ......... सुनिये, गमन में बाबा को न लाइयेगा। सादी में अगल—बगल से दो लोग पकड़ कर उन्हें चला रहे थे लेकिन वे ठीक से चल नहीं पा रहे थे। लोग कह रहे थे काजल की ससुराल में पूरी बटालियन है। तीन साल के पड़पोता से लेकर पचासी साल के बाबा तक बारात में आये हैं।''
‘‘................।''
‘‘हम नाराज नहीं हैं। हम भले के लिये नरम, किन्नर (नखरे) करने वालों के लिये गरम हैं। अच्छा रखते हैं।''
‘‘...............।''
‘‘अरे कितना बोलें ? बस बाई पास से पेट्रोल पम्प की ओर मुड़ रही है। रीवा पहॅुंच रहे हैं।''
काजल, नवेली को पूरी तरह से शिकंजे में ले चुकी है। नवेली सोच रही है — संचार तकनीक ने क्या—क्या सुविधा दी, क्या—क्या खत्म कर दिया। रोज मोबाइल पर बात करते हुये ये दोनों एक—दूसरे को इतना जान गये होंगे कि जब काजल ससुराल जायेगी इसे कुछ भी अनोखा नहीं लगेगा। जिज्ञासा नहीं होगी। असमंजस या झिझक नहीं होगी। मुख पर नई दुल्हन वाली लुनाई नहीं होगी।
‘‘............।''
‘‘रीवा में बैकुण्ठपुर वाली बस पकड़ लॅूंगी। करसरा मोड़ पर उतार देगी। वैसे एक—दो जीप भी करसरा आती—जाती हैं। देखते हैं क्या साधन मिलेगा।''
‘‘............।''
‘‘काहे का डर ? सतना से जवा (गॉंव) बारह किलो मीटर है। बस से अकेले आती—जाती हॅूं। सड़क के किनारे जवा मोड़ पर एक कच्चा घर है। उसी के सामने उतर जाती हॅूं। उस घर में अपनी साइकिल रख दी हॅूं। स्कूल मेन रोड से एक किलो मीटर भीतर है। साइकिल से जाती हॅूं। लौटकर साइकिल उसी घर में रखती हॅूं। बस, जीप जो भी मिले। सतना आ जाती हॅू।''
अर्थात् काजल सतना से जवा आती—जाती है। नवेली के भीतर एकाएक भगिनी भाव उदित होने लगा। काजल कुछ हजार रुपियों के लिये जोखिम उठाती है। परिश्रम करती है। जबकि वह कार द्वारा सतना से रीवा आने जाने में हजार—डेढ़ हजार रुपये पेट्रोल में व्यय कर देती है। वायु प्रदूषण बढ़ता है। वायु प्रदूषण को कम करने में व्यक्तिगत प्रयास करते हुये बस यात्रा को प्राथमिकता देनी चाहिये।
‘‘..............।''
‘‘काहे ? ट्रैक्टर चला लेती हॅूं, साइकिल क्यों नहीं चला लॅूंगी ?''
‘‘.............।''
‘‘बाद में बात करूॅंगी।''
बस, रीवा बस स्टैण्ड में रुक गई। नवेली ने काजल की वार्ता से खुद को इतना जोड़ लिया था कि लगा दूसरी दुनिया से ठीक अभी वास्तविक दुनिया में वापस लौटी है। युवती के कंधे से चिपक कर बच्ची सो गई है। नवेली को मॉं—बेटी से सहानुभूति हुई। लगा आम जीवन वस्तुतः कठिन, असुविधाजनक, बाधाओं से भरा होता है। खास बात यह है आम लोग उद्यम नहीं छोड़ते। संघर्ष करते हैं। रोजमर्रा के जीवन से अलग—थलग रहते हुये उसने वह ताकत, क्षमता, जुझारूवृत्ति खो दी है जो इस युवती, काजल या आम जन में स्वाभाविक रूप से मौजूद है। नवेली, युवती से बोली —
‘‘लोगों को उतर जाने दो। बच्ची को लेकर आराम से उतरना।''
‘‘जी, मैडम जी।''
नवेली, काजल को भर नजर देखना चाहती थी। काजल ने सफर को रोचक बनाया या नहीं बनाया लेकिन नवेली का ध्यान उन झोल—झटकों की ओर बिल्कुल नहीं गया जो लगे होंगे। ........... काजल अपनी सीट से उठकर बस के गेट की ओर जाते हुये नवेली की सीट के समीप से गुजरी। नवेली ने देखा सीधे पल्ले वाली उसकी मॉं ग्रामीण सरल स्त्री लग रही है। काजल ढीली टी शर्ट, नीले चुस्त जींस में सजी है। नवेली का ख्याल था जिस गुरूर से साखी गोपाल को परास्त कर रही थी निश्चित तौर पर काजल सुंदर होगी लेकिन वह मध्यम ऊॅंचाई की सॉंवली युवती थी। अलबत्ता अपने स्तर से ऊपर उठकर शिक्षाकर्मी जैसा लक्ष्य पा लेने का आत्मविश्वास उसके चेहरे पर था। लोग छोटे—छोटे लक्ष्य बनाते हैं, हासिल करते हैं, खुश रहते हैं। जबकि वह बस यात्रा करने का मानस नहीं बना पा रही थी। यदि अड़चनों से जूझने का मानस बना लें तो अड़चनों से गुजरने की मजबूती पाई जा सकती है। नवेली मुस्कुरा दी। रूप—रंग को जाने दो। आत्मविश्वास काजल को खास बना रहा है। यह बस यात्रा याद रहेगी। याद रहेगी करसरा की काजल जिसका कलेजा साखी गोपाल की पता नहीं किस बात के लिये कसक रहा था।
***
सुषमा मुनीन्द्र
द्वारा श्री एम. के. मिश्र
एडवोकेट
लक्ष्मी मार्केट
रीवा रोड, सतना (म.प्र.) — 485001
मोबाइल : 07898245549