Khwabgah - 11 in Hindi Fiction Stories by Suraj Prakash books and stories PDF | ख़्वाबगाह - 11

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ख़्वाबगाह - 11

ख़्वाबगाह

उपन्यासिका

सूरज प्रकाश

ग्यारह

अंधेरे में कालीन पर लेटे लेटे मैंने विनय को याद दिलाया कि बकेट लिस्ट की एक आइटम एक दूजे की मसाज करने की भी है। पहले कौन करेगा। विनय ने पहले मसाज करने का ऑफर दिया और इतनी शानदार मसाज की कि मेरा मूड पूरी तरह से संवर चुका था। ये ख्वाबगाह का ही कमाल था कि हम दोनों की छुपी हुई कितनी ही कुशलताएं सामने आ रही थीं।

तभी मैंने विनय को तैयार हो कर फार्मल ड्रेस पहनने के लिए कहा। मैंने भी अपनी शानदार वेस्टर्न ड्रेस पहन ली थी। विनय पूछता रहा कि करना क्या है। उसे सालसा डांस का म्यूजिक शुरू होने पर ही पता चला कि हम सालसा डांस करने वाले हैं। दोनों को ही डांस के स्टैप इतने ही आते थे जितने हमने फिल्मो में देखे थे। लेकिन परवाह किसे थे। हमें कौन सा डांस इंडिया डांस में हिस्सा लेने जाना था। हम खूब नाचे और पसीना पसीना हो जाने तक नाचे। बकेट लिस्ट की एक और हसरत पूरी हो गयी थी।

  • मेरी नींद खुली तो मुझे अपने बदन पर सुरसुराहट सी महसूस हुई। मैंने आंखें खोल कर देखा तो विनय पास बैठ कर मेरे ही बदन पर पेंट कर रहा है। मैं उठने के लिए हिली तो विनय ने मना कर दिया – हिलो नहीं। काम पूरा करने दो। मुझे याद आया कि बकेट लिस्ट में एक हरसत ये भी थी कि हम एक दूजे के शरीर पर मनमर्जी से पेंटिंग करेंगे। मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी – कब से चल रही है पेंटिंग क्लास। और पेंटिंग का सामान तो मेरे बैग में रखा था।

    – उसे छोड़ो। सुबह जल्दी नींद खुल गयी तो यही देखने के लिए तुम्हारा सामान खंगाला कि बकेट लिस्ट की कौन सी हसरत अभी पूरी की जी सकती है। पेंटिंग का ये सामान मिल गया तो इसी से शुरुआत कर दी। विनय ने तब मेरे पूरे शरीर पर न जाने क्या क्या दृश्य बना डाले थे। नदी, नाले, पहाड़, जंगल, शेर चीते और न जाने क्या कहा। कोई लिमिट नहीं थी। कुछ भी तो नहीं छोड़ा था विनय ने मेरे शरीर को अजायब घर बनाने में।

    जब मेरी बारी आयी तो मैंने विनय के शरीर पर प्रकृति कम और भालू और बंदर ज्यादा बनाए। कोई जानवर नहीं छोड़ा जो उसके शरीर पर न रंगा गया हे। जो छोटी छोटी जगहें बचीं, वहां सांप बिच्छू और चीटियां बनायी। विनय छटपटाता रहा लेकिन सुननी किसने थी। जब उसका सारा शरीर चि़ड़ियाघर बन गया तो वह मुंह बनाता हुआ बोला – इसका बदला इसी ख्वाबगाह में न लिया तो मेरा नाम बदल देना।

    मैं खूब अच्छे मूड में थी। तुरंत पूछा - अच्छा जी, तो श्रीमान जी का क्या नाम रखा जाये। वह जवाब न दे पाया लेकिन अपने शरीर पर बनाये चिड़ियाघर का बदला उसने उसी दोपहर को मेहंदी लगाते समय ले लिया था।

    जब इस सेशन की फोटोग्राफी पूरी हो गयी तो पूछा था मैंने – अगली हसरत कौन सी है तो बताया गया - दोपहर को मेहंदी की रस्म है। होना तो ये चाहिये था कि दुल्हन ख्वाबगाह में अच्छे से मेहंगी लगवा कर आती लेकिन कोई बात नहीं, ये रस्म भी हम ही पूरी करेंगे और कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

    मैं सचमुच हैरान थी कि विनय इतनी अच्छी मेहंदी लगा रहा था। मैं ढेर सारे गाव तकियों के सहारे लेटी थी और वह एक एक अंग पर अपनी कारीगरी दिखा रहा था। बाद में मैंने देखा कि उसने अपने मोबाइल पर यूट्यूब खोला हुआ था और उसी से डिजाइन देख कर मेहंदी लगा रहा था। जब उसकी कारीगरी ऐसे अंगों की तरफ भी बढ़ने लगी जहां आम तौर पर मेहंदी नहीं लगायी जाती या जहां लगी हुई मेहंदी दिखती ही नहीं तो मैंने टोका - ये क्या कर रहे हो। मुझे कल घर वापिस भी जाना है और परसों मुकुल वापिस आ जाएगा। कुछ तो लिहाज करो कि कहां मेहंदी लगानी है और कहां नहीं। तुम्हें अच्छी तरह से पता है कि मेहंदी दो चार दिन में नहीं उतरती। लेकिन विनय जिद पर उतर आये तो फिर उसे कोई नहीं समझा सकता। वह अपनी हठ पूरी करके ही माना। मेरी हालत ये हो गयी थी कि मेहंदी रचे अपने बदन के साथ बैठ भी नहीं सकती थी। हां, पूरे बदन पर मेहंदी रचे जाने का एक फायदा जरूर हुआ था कि इन चार दिनों में विनय ने मुझे पूरे बदन पर जो लव बाइट्स दिये थे, वे सारे छुप गये थे और मैं एक बहुत बड़ी परेशानी से बच गयी थी।

    विनय को मेहंदी लगाने की अपनी बारी आने पर मैंने एक शरारत की। मुझे पता था कि अगर मेहंदी लगा कर तुरंत नहा लो तो मेहंदी उतनी ज्यादा नहीं खिलती। मैंने वही किया।

    जब विनय को मेहंदी लगाने की बारी आयी तो वह बहुत छटपटाया कि मर्दों को मेहंदी नहीं लगायी जाती लेकिन अब मैं कहां मानने वाली थी। वह हर तरह के लालच देता रहा, धमकियां देता रहा, पूरे घर में भागता फिर लेकिन मैं भी उस पर पूरा एक कोन खाली करके ही मानी – जाओ बच्चू, अब घर जा कर बताओ कि सिंगापूर में बिजिनेस ट्रिप पर मेहंदी भी लगती है।

  • ट्वेंटी ट्वेंटी एक बहुत ही मजेदार खेल था जो हम खेल रहे थे। इसमें बारी बारी से अपने पार्टनर को बीस अलग अलग अंगों पर चूमना होता था। इस खेल की खूबी ये थी कि इसमें दोनों ही बराबर के भागीदार होते थे। जिसे चूमा जाना होता था उसे कल्पना करनी होती थी कि अगला चुंबन किस अंग पर होगा। वह सोचने के बाद हां कहता था कि सोच लिया। और तब पार्टनर उसे चूमता था। अगर उसका सोचा गया और सच में चूमा गया अंग एक ही होते थे तो उसे एक पाइंट मिलता थ, वरना वह एक पाइंट हार जाता था। माना कि विनय ने सोचा कि काकुल का अगला चुंबन उसके दायें कंधे पर होगा और अगर काकुल ने उसे सचमुच दायें कंधे पर चूमा तो उसे एक पाइंट मिलेगा लेकिन अगर काकुल ने दायें कंधे के बजाये उसकी बायीं हथेली पर चूमा तो वह एक पाइंट हार जाता था। ये खेल बहुत रोमांचकारी था और इसे खेलने में बहुत मजा आया। अक्सर हम दोनों ही गलत हो जाते और अपना एक पाइंट हार जाते। हम ये खेल बहुत देर तक खेलते रहे और खूब हंसे।

  • - ये बताओ, आज हमने खाना भी नहीं खाया है, क्या खाओगी और क्या पीओगी।

    - पहले दिन जब हम बकेट लिस्ट की बात कर रहे थे तो तुमने फिश कटलेट और वोदका वाले गोलगप्पे खिलाने की बात की थी। आज वही हो जाए।

    - अभी लो। औेर विनय ने सचमुच गोलगप्पे और फिश कटलेट्स का आर्डर दे दिया। मैं पहली बार ये कंबीनेशन खा रही थी। गोलगप्पे में आलू की जगह फिश और पानी की जगह वोदका। अद्भुत कंबीनेशन था। हम दोनों एक दूसरे को खिलाते खाते रहे। तारों भरा आसमान हमारी खुशियों का साक्षी बन रहा था। उस रात हम देर तक एक दूसरे को वो सारी कहानियां सुनाते रहे जो हमारी यादों में टंकी हुई थीं और अचानक याद आने लगी थीं।

  • चौथी रात जब हम सोने वाले थे तो मैंने अपने बैग से एक ही साइज और रंग की दो टीशर्ट निकाली और एक विनय को देते हुए कहा - अभी एक तुम पहनोगे और एक मैं पहनूंगी। हम इन्हें कल रात तक नहीं बदलेंगे। कल सुबह नहायेंगे भी नहीं। दिन भर इसी टीशर्ट में रहेंगे। विनय हैरान हो रहा था – ये कौन सा खेल है। बकेट लिस्ट में तो नहीं था। मैंने बताया कि बकेट लिस्ट में था, मैंने जानबूझ कर नहीं बताया था। अब हम इस बारे में कोई बात नहीं करेंगे। यहां से जाने के वक्त तक। और हम दोनों ने एक जैसी टीशर्ट पहन ली थी।

  • पांचवें दिन में हमने खूब मस्ती की और अमूमन बकेट लिस्ट की हर इच्छा को पूरा करने की कोशिश की। हम कुछ ऐसी हरकतें भी करते रहे जो मौके के हिसाब से अचानक सूझ गयी थीं और पहले से बकेट लिस्ट में नहीं थीं।

    हम बचपन के खेल खेलते रहे और खेलों से जुड़े गीत याद करते रहे। हम यहां भी हर खेल – अक्कड़ बक्कड़ बंबे बो, अस्सी नब्बे पूर सो, सो कलोटा तीतर मोटा चल मधांणी पैसा खोटा से करते। हम खेल में बेईमानी करते। कभी वह घोड़ा बनता और मैं उसकी पीठ पर सवार हो कर चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक कहते हुए पूरे कमरे के चक्कर काटती, कभी हम आंखों पर पट्टी बांध कर लुका छिपी खेलते।

    विनय कैमरा लाया था और मुझे पहली बार पता चला कि वह फोटोग्राफी भी कर लेता है। फोटो सैशन सबसे लंबा चला था। हम एक दूसरे के न्यू्ड और सेमी न्यूड फोटो लेते रहे। सेमी न्यूड के लिए घर का कौन सा ऐसा सामान होगा जो हमने अपने तन पर रख कर शूट न लिये हों। कपड़े, बरतन, लैंप शेड, टोकरियां, चुन्नियां, स्कार्फ, बोतलें, गुलदस्ते, गुब्बारे सब कुछ हमने तन पर रख कर फोटो लिये। बाद में ये फोटो हमने लैपटॉप पर देखे तो हंसते हंसते दोहरे हो रहे थे।

    ये सारे फोटो रात को सोने से पहले एक बार फिर देखे गये, मजे लिए गये और सब डिलिट कर दिये गये। ये और इस तरह की बाल सुलभ शरारतें सारा दिन चलती रहीं।

    सचमुच इन पांच दिनों में फ्लैट से बाहर नहीं निकले थे, बस खाने पीने के सामान बाहर से आता रहा। कभी हम कपड़ों में होते, कभी यूं ही अंडर क्लोथ्स में या न्यूड ही मस्ती करते रहे, बातें कर रहे होते।

  • पांचवीं शाम को वहां से निकलने की तैयारी करनी थी। मन हो न हो, वापिस जाना ही था। मुझे हंसी आ रही थी। हम दोनों ढेर सारे कपड़े ले कर आये थे और बैग में से दो जोड़ी कपड़े भी नहीं निकले थे। सारा कचरा नीचे ले जा कर फेंकना था, फ्रिज में देखना था कि कोई खराब होने वाली चीज न रह जाये। इस तरह का सारा सामान नीचे वाचमैन को दे देना था। फिर पता नहीं, कब आना हो।

    मैं रसोई में ये सारा काम कर ही रही थी कि तभी विनय ड्राइंगरूम से एक सुराही ले कर आया और बताने लगा कि काफी सारी वोदका सुराही में रह गयी है। मैंने देखा, फ्रिज में दो बोतलें बीयर की भी थीं।

    - इनके निपटाने के तरीके हैं। बीयर तो अभी सामान पैक करते करते खत्म कर ली जाएगी और वोदका स्प्राइट की बोतल आधी खाली करके उनमें भर देते हैं। अभी फ्रिजर में रख देते हैं। रास्ते में टैक्सी में पीते चलेंगे। कहीं तो डिनर भी कहीं करना ही होगा।

    हम अपने अपने बैग पैक कर चुके थे और टैक्सी नीचे आ चुकी थी। मैं फ्रिजर से वोदका निकालने के लिए रसोई में गयी तो मेरे पीछे पीछे विनय चला आया। मेरे पीछे सटता हुआ बोला - हम कुछ भूल तो नहीं रहे हैं।

    मैं हैरान थी। सब कुछ तो देख चुके, पैक कर चुके। ऐसा कुछ भी तो नजर नहीं आ रहा था।

    मैंने कहा - विनय पहेलियां मत बुझाओ। खुद बताओ, क्या भूल रहे हैं।

    वह मुस्कुराया – वन फॉर द वे।

    - स्प्राइट में रास्ते के लिए वोदका डाल तो ली है।

    - मैं ड्रिंक की बात नहीं कर रहा। देखो, हमने तबीयत से इतनी बार और इतने तरीके से और हर बार अलग अलग जगह सैक्स किया है कि हर बार का ये अनुभव याद रहेगा। ये जो हमें आखरी बार वन फॉर द वे करना चाहिये था, वही भूल रहे हैं।

    मैं मुस्कुरायी - तो जवाब की नीयत खराब हो रही है। साफ साफ बोलो न।

    - दरअसल मेरा एक दोस्त है। उनकी शादी को कई बरस बीत चुके हैं। लेकिन उनकी सैक्स लाइफ बहुत ही शानदार है। उन्हें कहीं बाहर जाना होता है, फंक्शन में, पार्टी में या फिल्म देखने ही, वे घर से निकलने से पहले सैक्स करके और एक साथ नहा कर निकलते हैं।

    - वाह, क्या खूब।

    - वे इसके दो फायदे गिनाते हैं। पहला कि वे घर से पूरी तरह से संतुष्ट और फ्रेश निकलते हैं और उनके चेहरे सबसे ज्यादा दमकते रहते हैं। वे पूरे फंक्शन में सबसे ज्यादा खु्श नजर आते हैं। दूसरे उन्हें इस बात का कोई झंझट नहीं रहता कि रात को थके हुए आओ तो चाह कर भी सैक्स करने की हिम्मत नहीं रहती। दोनों ही लौटने के बाद की इस शिकायत से बच जाते हैं।

    - लेकिन जनाब नीचे टैक्सी आ चुकी है।

    - चलने दो उसका भी मीटर। ये कहते कहते विनय रसोई में ही मेरे आधे कपड़े उतार चुका था।

    और इस तरह ख़्वाबगाह का उस बार का आखिरी सैक्स हमने रसोई में किया था। वही एक जगह बची थी।

    इस तरह से हमने बरसों की और बरसों के लिए अपनी साध पूरी कर ली थी।

    जब हम नहाने जा रहे थे तो मैंने विनय को याद दिलाया कि ये टीशर्ट मैले कपड़ों में नहीं जाएगी। उतार कर एक तरफ रख दो। मैंने अभी भी कल पिछली रात से पहनी एक जैसी टीशर्ट का भेद नहीं खोला था।

    जब हम नहा कर निकले तो मैंने बताया कि अब हम एक दूसरे की पहनी टीशर्ट पहन कर घर जाएंगे। विनय ने हैरानी से मेरी तरफ देखा। मैंने हंसते हुए बताया कि हम पिछले चौबीस घंटे से अपनी अपनी टीशर्ट पहने हुए हैं। अब तक हमारे बदन की खुशबू इनमें अच्छी तरह से रच बस गयी है। टीशर्ट बदल कर हम कल सुबह तक एक दूसरे के महक के साथ जीएंगे। है ना मस्त आइडिया।

    विनय ने मुझे गले से लगाते हुए प्यार से कहा कि मैं हैरान हूं कि तुम इतने शानदार आइडियाज की खान हो। अगर मैं ये फ्लैट न खरीदता तो न तो ये ख्वाबगाह बनता और न ही तुम्हारी बकेट लिस्ट सामने आती और न ही पूरी करने के मौके मिलते।

    - थैंक्स तो मुझे कहना चाहिए विनय कि यहाँ आ कर मुझे अपनी बकेट लिस्ट की सारी अधूरी हसरतें पूरी करने का मौका मिला। ये खूबसूरत लम्हें मुझे अरसे तक याद रहेंगे।

  • वापसी में स्प्राइट की बोतल में वोदका हमारा खूब साथ दे रही थी। हम देर तक सड़कों पर आवारागर्दी करते रहे। टैक्सी वाले से ही कहा कि किसी अच्छे से ढाबे पर खाना खिलाने ले चले।

    जब विनय ने मुझे घर पर छोड़ा तो रात के दो बज रहे थे।

    विदा होते समय हमने तय किया था कि कुछ दिन तक बिल्कुल भी नहीं मिलेंगे, फोन पर बात भी नहीं करेंगे। हम दोनों ही कुछ दिन तक इन खूबसूरत दिनों की याद में जीना चाहते थे।

    ***