Bitiya thodi badi ho gayi he (April-2019) in Hindi Poems by महेश रौतेला books and stories PDF | बिटिया थोड़ी बड़ी हो गयी है (अप्रैल २०१९)

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बिटिया थोड़ी बड़ी हो गयी है (अप्रैल २०१९)

बिटिया थोड़ी बड़ी हो गयी है(अप्रैल २०१९)
१.
थोड़ा बड़ा कर दो राजनीति
कि ठंडी ,बेहद ठंडी  रातों में
किसान उसे ताप सकें।
जवान उसे जी सकें
बेरोजगार उसे पा सकें,
शिक्षा उसे माप सके।
ओ राजनीति चक्रव्यूह न बन
गीत का संगीत बन,
राह की कीचड़ न बन।
कहीं सड़क बना दे,
कहीं बिजली जला दे,
कहीं पेड़ लगा दे,
कहीं विद्यालय खुला दे,
अस्पताल की नींव सजा दे,
देश पर प्रहार न कर,
लोगों को विभक्त न कर।
२.
जिन्दगी कहाँ से कहाँ निकल जाती है,
बिना पूछे,आवाज देती है,
पूछो तो चुप रहती है।

कहासुनी जो होती है
विचार-विमर्श जो रहता है,
ज्ञान-विज्ञान जो चलता है,
जिन्दगी के इर्दगिर्द नाचता है।

प्यार का सपना बनता है,
बनकर टूट जाता है,
बातें छोटी-बड़ी होती हैं,
और जिन्दगी यहाँ से वहाँ निकल जाती है।

कोई सुबह के लिए जीता है
कोई शाम तक जीता है,
कोई अंधेरे का आदी है
कोई उजाले का निवासी है।

जिन्दगी कहाँ से कहाँ निकल जाती है,
बिना पूछे,आवाज देती है,
पूछो तो चुप रहती है।
३.
प्यार को लम्बा विश्राम मत दो
पेड़ की डाल की तरह
उसे हिलाते रहो,
कुछ फूल झड़ेंगे
कुछ फल गिरेंगे।
उसे रेंगने दो,
घुटनों के बल चलने दो,
दौड़ने दो,
लम्बी उड़ान भरने दो।
उसे पहाड़ों पर ले जाओ
कोई कसम न दिलाओ
पानी की तरह पतला बना
छिड़कते रहो।
४.
मैंने लिखा कैसे हो?
तुमने लिखा अच्छी हूँ,
फिर उसे मिटा दिया,
फिर लिखा,
ठीकठाक हूँ,
और उसे भी मिटा दिया।
फिर थोड़ी देर सोचा
और लिख डाला-
खुश हूँ,
बीता समय याद आ गया है,
लम्बी बातें छोटी लग रही हैं,
खेतों पर नजर घूमती है,
आकाश से रिश्ता बना हुआ है।
जंगल हरे भरे दिख रहे हैं,
प्यार में दुर्घटना नहीं होती है,
चाय की घूँटों में मिठास है,
पेट भरा हुआ है,
विचार भी मन में आ रहे हैं,
विद्यालय के पास बच्चे खेल रहे हैं,
पक्षियों के घोंसले सुरक्षित हैं,
बहुत खुश हूँ।
५.
कभी-कभी सुबह-सुबह देखने आना-
वह नदी, जो बचपन से बह रही है,
वह पहाड़, जो अडिग है,
वह मृत्यु ,जो पल पल देखी गयी है,
वह समुद्र, जो गरजता रहता है,
वह जंगल, जो बीहड़ हो चुका है।

रास्ते जो कटे -फटे हैं,
पेड़ जो कट रहे हैं,
देश जो बँट रहे हैं,
उदासी जो घिर रही है,
आँसू जो गिर रहे हैं।

खुशियाँ जो गुम होती जा रही हैं,
संस्कृतियां जो नष्ट हो रही हैं,
गांव जो खाली हो रहे हैं,
विवशताएं जो मुँह खोले हैं।

राजनीति जो छिन्न-भिन्न हो रही है,
भ्रष्टाचार जो क्लिष्ट हो रहा है,
 घर जो ढह रहे हैं,
त्योहार जो मर रहे हैं,
गंगा जो मैली बह रही है।

लोग जो बुजुर्ग हो गये हैं,
लड़कियां जो नानी बन गयी हैं,
लड़के जो नाना बन गये हैं,
मौसम जो नये लग रहे हैं,
हँसी जो मध्यम हो चुकी है।

श्मशान जो जल रहे हैं,
कब्रिस्तान जो खुद रहे हैं,
मित्रता जो मिट रही है,
स्रोत जो सूख रहे हैं।
६.
हर सच-झूठ पर हँस सकते हैं,
कुछ नहीं हो तो ईश्वर पर भी मुस्करा सकते हैं,
नेतागिरी है ही ऐसी चीज, 
जब जहाँ बैठ जाइये, उसी के हो जाइये।
७.
यदि उस दिन उस दुर्घटना में मर जाता
तो तुम मेरे ये शब्द नहीं पढ़ रहे होते,
न उस ठंडी हवा का जिगर मैं कर रहा हूँ
तुम तक पहुँचती,
न वह लोककथा जिसे मैं बच्चों को सुना रहा हूँ
तुम्हारी जिज्ञासा बन पाती,
न वह कहानी जिसे पढ़ रहा हूँ
उसे पढ़ पाता,
न प्यार की दास्तान जो कह रहा हूँ
तुम आगे सुन पाते,
न यह घर जिसे खरीद पाया 
वहाँ तुम्हें बुला पाता,
न अपने हाथों को तुमसे मिला पाता,
न दोस्तों से रही सही बातें कर पाता,
न देश के लिए देश की भाषा की वकालत करता,
न शेष शव यात्राओं में जा पाता,
न मेरे रिश्ते जो आँखों में हैं
यों चमचमाते, खिलखिलाते,
न मेरे प्यार की कविता
तुम्हारे सामने पढ़ी जाती।
८.
ओ मेरे गीत तू अब तक जिन्दा है,
जब कि तेरे संदर्भ कब के मर चुके हैं,
मैं चाह रहा था,
तेरी दिवंगत आत्मा के लिए शान्ति मांग जाऊँ,
तेरी एक मूर्ति बना
हर चौराहे पर खड़ा कर जाऊँ।
ओ मेरे गीत,संदर्भ बदल चुके हैं-
वह भरीपूरी झील सूखने को है,
साफ हवा मिटने को है,
धरती का तल बदलने को है,
गांव की राह कटने को है,
मन सब बदलने को हैं।
शब्द, शैतानी करने लगे हैं,
या कहूँ शैतान हो गये हैं,
ओ मेरे गीत, तू अब तक जिन्दा है।
९.
चलो, कुछ बातें यहीं रख जाते हैं
कुछ पत्थर पर लिख जाते हैं,
कुछ किसी मन को दे जाते हैं
कुछ श्मशान में जलाने ले जाते हैं।

मुट्ठी भर जंगल को दे जाते हैं,
अंजलि भर नदी में रख आते हैं,
 कुछ धरती के आँचल से बाँध देते हैं,
कुछ मनुष्य में रोप देते हैं।

चलो,अपनी बातों से गीत बना देते हैं
कुछ उनका संगीत सुना जाते हैं,
कुछ पक्षियों की  चहक से चिपका देते हैं
कुछ आकाश पर टिमटिमाने देते हैं।

जाने से पहले का प्यार समझ लेते  हैं
वसंत के कुछ फूल रख लेते हैं,
जिन्दगी के आर-पार रहने की
कुछ कसरत कर लेते हैं,
चलो, कुछ बातें यहीं रख जाते हैं।
१०.
फिर खबरबात ले लें,
पहाड़ के पलायन से
पहाड़ की आबोहवा तक।
नारद मुनि की तरह घूम लें,
इधर की खबरबात उधर दे दें,
कुछ लोगों का दर्द घोल,
कुछ हँसी-खुशी मिला,
कुछ मौसम का हालचाल दे,
कुछ प्यार के मुहाने खोल,
 खबरबात को उन तक पहुंचा दें।
११.
मुझे भी रचने दो प्यार की कविता,
कहने दो शब्दशः अपनी बातें,
निखरने दो, आँखों को कभी-कभी,
भटकने दो ,दर्द को इधर-उधर।

आ जाने दो, बचपन को निकट,
दौड़ने दो, मन को दरबदर,
प्यार को रचने दो कथा पर कथा,
उष्मा जीवन की निकलने दो राह दर राह।

मुझे निकलने दो, राह बढ़ाने के लिए,
बाँट लेने दो,अपनी प्रिय बातें,
सोच लेने दो, कुछ रंग न मिटने वाले,
पार जाने दो, भीड़ के शोरगुल से,
चुप्पी को तोड़ लेने दो, शान्ति के लिए।

इस हिमालय को बड़ा रहने दो, ऊँचाई के खातिर,
इस गंगा को पवित्र रहने दो,संस्कृति के कारण,
इस मिट्टी को याद रखो,किसी  जन्मदिन के लिए,
अनजान खुशियां खोज लो,जिन्दगी के लिए।
१२.
ओ जिन्दगी, तेरी आदत हो गयी है मुझे,
सुबह को देखूँ, लम्बी मुस्कराहट ले लूँ,
शाम को देखूँ, एक गीत गुनगुना लूँ,
अनन्त होने के लिए इतना ही बहुत है,
चलते-चलते तुम्हारी आदत हो गयी है मुझे।
१३.
मैं तो सुख-दुख में बीत गया
पर ज्योति योंही रहती है,
लोग आते जाते हैं
आकाश योंही रहता है।

राह से लोग गुजरते हैं
राह वहीं रह जाती है,
संघर्ष नये बनते हैं
जीजिविषा सदा चलती है।

प्यार के कथानक बदलते हैं
प्यार शाश्वत रह जाता है,
यादों के संदर्भ रूक जाते हैं
जीवन आगे बढ़ जाता है।

प्राण हवा हो जाते हैं
ज्ञान खड़ा रह जाता है,
 ये काया बदल जाती है
दिन-रात चलते रहते हैं।
१४.
मुझे,तेरी आदत हो गयी है, 
सुबह - शाम आने की वजह मिल गयी है,
सीढ़ियां चढ़ने का बहाना मिल गया है,
सोयी धुनों को जगाने का अवसर मिल गया है।

हिमालय तक जाने का मौका मिल गया है,
यादों में टहलने का अवसर दिख रहा है,
चलते-चलते, तुम्हारी आदत हो गयी है।

गंगा में नहाने का उत्सव मिल गया है,
भारत की  गूँजों से सामना हो गया  है,
मुझे, तेरे गीतों की आदत हो गयी है।

अनादि प्यार की आवाज मिल गयी है,
आते-जाते, संस्कृति की राह मिल गयी है,
मुझे,प्यार की आदत हो गयी है,
आँखों में रहने की वजह मिल गयी है।
१५.
अब निर्दोषों को मारने का सिलसिला चल पड़ा है,
हरेभरे पेड़ों को काटने का दौर दिख रहा है,
प्यार का उपवास चल रहा है,
हर घर से कुछ धुँआ निकल रहा है।
घातक विस्फोट कहाँ नहीं हो रहे हैं,
दुनिया काँप- काँप कर रो रही है।
घर की दीवारों में दरार तो पहले भी थी,
पर ऐसी फाड़ पहले शायद न थी।
प्यार की पुरानी बातें कहूँ या न कहूँ,
पर नयी पन्ने लिखे पढ़ा तो करूँ।
नये पेड़ लगाने से स्वयं को जोड़ूं,
छाया के विषय में अक्सर सोचा करूँ।
१६.
मतदान की स्याही अंगुली पर
कितने दिन टिकेगी?
लोकतंत्र की लाठी
जनता के हाथों में  कुछ दिन दिखेगी,
किसको मारेगी,पता नहीं।
१७.

ओ मौसम, अब तो खुल जा
बहुत दिनों से खराब है
अब तो खुल जा।
फसल मुरझायी हुई है
वृक्षों के फूल झड़ चुके हैं,
रास्तों में धुंध है
रिश्ते सहज नहीं हैं,
देशों में तनातनी है
आकाश से उम्मीद कम है,
तू हमारे सूरज को बाहर निकाल,
ओ मौसम,थोड़ा खुल जा।
१८.
कभी-कभी मुस्कान से दूर तक पहुंच जाना,
कभी-कभी प्यार से दूर तक आ जाना,
योंही अचानक बढ़ा देना राहों की लम्बाई,
समय को खोल देना सबके लिए दूर तक,
जैसे नदी निकल जाती है दूर
पक्षियां उड़ कर बस जाती हैं दूर,
मनुष्य उजाले में आ जाता है दूर-दूर तक,
बीज पहुंच जाता है एक देश से दूसरे देश,
ऐसे ही प्यार को ले आना दूर-दूर तक।
कभी-कभी मुस्कान ले दूर तक हो आना,
कभी-कभी निडर हो दूर तक आ जाना,
कभी-कभी घर की हँसी को दूर-दूर तक बिखेर देना,
कभी ले जाना मोहक मन को दूर-दूर तक।
असफलता कर लेती है लम्बी यात्राएं,
सफलता को जाना है उससे दूर,
 हम हर साल हँसते हैं
मुस्कराते हैं सुन्दर क्षण में,
संतुष्टि से ही बनते हैं अद्भुत पुल
जो जोड़ते हैं फूल को फूल से,
हमने देखा है दूर मुस्कराता आकाश 
और उसकी छवि ली है बार-बार, 
एक अव्यक्त हँसी के लिए हम जाते हैं दूर-दूर तक बिना पूछताछ के।
१९.
अपने घर की तरह
प्यार को भी साल दर साल रहने दो,
वह घर के कोनों में है जो
खेतों की शक्ति में है जो
नदी के बहाव में है जो
घराट की आवाज में है जो।
वह बिस्तर पर लिपटा है
घर के पेड़ पर चढ़ा है,
किताबों में छिपा हुआ है,
राहों में आ जा रहा है।
उसने कुछ गिना नहीं है
कुछ भी तोला नहीं है,
हमारी उदासी के लिए
कुछ खुशियां बटोर कर रखी हैं।
जीवित रहने के हर प्रयास में
उसकी सुगंध समायी है,
चलने के हर कदम में
उसकी आशा छिपी हुयी है।
२०.
चलने का अहसास मिल गया
दुनिया में प्यार का इन्द्रधनुष दिख गया।
दुनिया वालो जिन्दगी से कहना,
 बचपन में चला सदा याद रखना।
२१.
मेरी बातों ने क्या गुनाह किया
कि इधर सन्नाटा है,
मुझे लगता है, उम्र के इस मोड़ पर संक्षिप्त हो जाऊँ।
२२.
बिटिया थोड़ी बड़ी हो गयी है
इस कोने पर रखे दिये को
अपने हाथ से उस कोने तक ले जाती है,
उजाला जो इधर है, उधर तक ले जाती है।
स्वयं चाह रही है
बिजली खोलना,पंखा चलाना
अपने नन्हे हाथों से
बड़ी-बड़ी रोटियां रचना।
घर के इस कोने से उस कोने तक दौड़
उठा लाती है हर वस्तु
हमारे आसपास रख जाती है बड़ी -बड़ी मुस्कान,
जिसे हम कभी उठा लेते हैं,कभी छोड़ देते हैं।
बिटिया थोड़ी और बड़ी हो गयी है,
बहुत बातूनी, बहुत नटखट ,
प्यार करने को कहती है,
ऊंचाई पर चढ़ने लगी है।
गोद में उछलती-कूदती,
आँखें खुली रखने को बोलती है,
बिटिया थोड़ी और बड़ी हो गयी है।
२३.
इधर की बातें उधर मत ले जाना,
प्यार का इतना भारीपन, किसी से मत कहना।

जब होश उड़ने लगें, दवादारू की बात मत करना,
हो सके तो ईश्वर पर निगाह रखना।

प्यार का पुराण  खत्म नहीं होता,
इधर पलटो, उधर स्रोत सा खुल जाता।

शब्दों की उदासी दबायी नहीं जाती,
इतने बड़े मन से कही नहीं जाती।

प्यार के ठिकाने बहुत हैं,
लेकिन आँसू से बड़ा कोई ठिकाना नहीं है।
**महेश रौतेला ई