Khwabgah - 10 in Hindi Fiction Stories by Suraj Prakash books and stories PDF | ख़्वाबगाह - 10

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ख़्वाबगाह - 10

ख़्वाबगाह

उपन्यासिका

सूरज प्रकाश

दस

आधी रात को तेज गड़गड़ाहट से मेरी नींद खुली। बांसुरी जैसे हवा में डोल रही थी और चीख रही थी। मैं घबरा गयी थी कि पता नहीं क्या हो गया है। उठ कर बाल्कनी तक आयी तो देखा आसमान में बादल बुरी तरह से गरज रहे थे। ये बरसात से पहले की गरज थी। अभी भी अंधेरा था। मैंने भीतर आ कर समय देखा। पौने पांच बजे थे। बरसात की मोटी मोटी बूंदें गिरने लगी थीं। मैंने अंदर आ कर विनय को जगाया था – विनय, बाहर आ कर देखो, नेचर हम पर किस तरह से मेहरबान हो रही है। विनय कुनमुनाया था - सोने दो, क्या हो गया है।

- अरे, देखो ना, हमारी बकेट लिस्ट की एक और हसरत पूरी होने जा रही है। मेरी आंखों से नींद पूरी तरह से जा चुकी थी और मैं विनय को जबरदस्ती उठा रही थी। - चलो नीचे उतर कर बरसात में भीगते हैं।

विनय बहुत मुश्किल से उठा था लेकिन बरसात को देख कर वह भी खुश हो गया था। बरसात में भीगने की हम दोनों की हसरत जाने कब से टल रही थी और अब ख़्वाबगाह में रहते हुए ये मौका लॉटरी की तरह हमारी झोली में आ गिरा था।

हम आधे अधूरे कपड़ों में ही नीचे आ गये थे। इतनी सुबह वहां हमें देखने वाला कोई नहीं था। पार्क में जा कर पहले हम भरी बरसात में हरी घास पर लेट गये थे और बरसात को अपने तन पर पूरी तरह से आने दे रहे थे। उसके बाद बरसात में झूले पर पेंगें बढ़ा कर मस्ती करते रहे। गुनगुना अंधेरा था, तेज बरसात थी, और हम दो थे। इस तरह से भीगने की मेरी कब की हसरत पूरी हो रही थी। मैं जोर जोर से गा रही थी, पार्क में नाच रही थी और प्रकृति का यह अद्भुत उपहार दोनों हाथों से लूट रही थी। मैंने कहीं पढ़ा था कि दुनिया में तीन किस्म के लोग होते हैं। एक वो जो बरसात आने पर दरवाजे और खिड़कियां बंद कर देते हैं। दूसरे वो जो बरसात आने पर अपने घर के दरवाजे खिड़कियां खोल देते हैं और एक तीसरी किस्म भी होती है। दीवानों की जो बरसात आने पर दरवाजे खिड़कियां बंद करके बरसात के मजे लेने के लिए नीचे आ जाते हैं। मैं इसी तीसरी किस्म में आती थी। तभी विनय ने मुझे उठने के लिए कहा था और हम दोनों स्वीमिंग पूल की तरफ बढ़ गये थे।

अद्भुत नजारा था। नीचे और ऊपर पानी ही पानी। संयोग से मुझे पानी पर फ्लोटिंग आती थी तो मैं पानी पर फ्लोट करते हुए बरसात के पानी को अपने तन पर आने दे रही थी। बरसात काफी देर तक रही थी और हमने हर तरह से बरसात के पूरे मजे लिए थे। लगता था कि पूरी सोसाइटी में हम दो ही प्राणी हैं। हम वहीं पर शावर ले कर, पूरी तरह से तृप्त हो कर ऊपर आये थे।

  • जब हम ऊपर पहुंचे तो साढ़े सात बज रहे थे। इतनी देर तक लगातार पानी में खेलते रहने के कारण मुझे कंपकंपी महसूस हो रही थी। मैं विनय से चिपक गयी थी। उसने भी महसूस किया कि मुझे ज्यादा देर तक पानी में नहीं खेलना चाहिये था। उसने मुझे कालीन पर लिटाया, मेरे गीले कपड़े उतारे, और टॉवल से अच्छी तरह से मेरा बदन पोंछने के बाद मुझे एक गाउन पहनाया। मैं अधनींद में थी। जो कुछ विनय कहता जा रहा था, कर रही थी।

    तभी विनय ने मुझे जगाते हुए कहा – काकुल ये पी लो। सर्दी नहीं लगेगी। पूछा मैंने कि क्या है तो उसने यही कहा कि बस, पी लो। बाद में पूछना।

    मैंने कुल्हड़ उसके हाथ से लेते हुए एक ही सांस में पूरा कुल्हड़ गले से नीचे उतार लिया। चाकू की एक तेज धार गले को चीरती हुई महसूस हुई। जो कुछ भी था, वह तेज तो था ही, गुनगुना भी था। मेरे पूछने पर विनय ने बताया कि गुनगुने पानी में रम दी है। अब आराम से सो जाओ। सुबह से उठी हो। इससे अच्छी नींद आएगी और सर्दी भी नहीं लगेगी।

    सचमुच मैं काफी देर तक सोती रही थी। विनय ने ही जगाया था। तब बारह बज रहे थे। विनय ने ही नाश्ता बनाया था। जब मैं ब्रश करके आयी तो नाश्ता लग चुका था। नाश्ते के साथ रम के दो कुल्हड़ भरे रखे थे। मैं विनय को देख कर मुस्करायी थी – क्या बात है। ख्वाबगाह में सारे रिकार्ड तोड़ने हैं। नाश्ते में रम।

    जवाब में विनय मुस्कुराया था – देखती चलो। हमारी भी बकेट लिस्ट हो सकती है। कुछ तो हमारी तरफ से भी होना चाहिये।

  • अचानक मेरी नींद खुली। कमरे में अंधेरा था और ऊपर आसमान में तारे झिलमिला रहे थे। कहीं दूर दूज का चांद भी दिखायी दे रहा था। पहले तो मैं हैरान हुई कि ये मैं कहां आ गयी हूं। आसपास देखा तो कुछ नजर न आया। नीचे महसूस किया तो कालीन था। अपने तन पर देखा तो एक भी कपड़ा नहीं था।

    तब याद आया कि मैं ख़्वाबगाह में हूं। ये भी याद आया कि छत के लिए आसमानी तारे और चांद सेट करने वाले इंजीनियर ने बताया था कि कमरे में पूरी तरह से अंधेरा हो जाने पर इन तारों का सेंसर खुद काम करने लगेगा और तारे झिलमिलाने लगेंगे। तीसरे दिन में यह पहली बार हो रहा था कि कमरे में अंधेरा था और सेंसर अपना काम कर रहा था। मैंने टटोल कर देखा, विनय पास ही में बेसुध सोया हुआ था। उसे उठाने का मन नहीं हुआ। मैंने बाल्कनी की तरफ देखा, विनय ने सोने से पहले भारी वाले परदे खोल दिये होंगे।

    हम जब से ख्वाबगाह में आये थे, हमारे सारे शेड्यूल बिगड़े हुए थे। न सोने का ठिकाना न खाने का। पता ही नहीं चलता कि वक्त कैसे पंख पसार कर उड़ता जा रहा है। हम दोनों हर समय जैसे बादलों पर सवार होते। बकेट लिस्ट में एक से बढ़ कर एक नायाब हसरतें दर्ज थीं। जो भी याद आतीं और संभव होतीं तो उसे पूरा करने में जुट जाते। कभी मेरी हसरतों की गुल्लक खुलती है तो कभी विनय की। एक के पूरा होते न होते दूसरी सामने आ जाती तो उसमें जुट जाते। मैंने कभी सोचा भी न था कि मेरी बकेट लिस्ट इतने शानदार तरीके से और इतनी जल्दी पूरी हो जाएगी।

  • सोच रही थी कि अगर मेरी जिंदगी में विनय न होता तो क्या होता। ये भी सोच रही थी कि जिनके जीवन में पार्टनर का प्यार नहीं होता उनके लिए करने को क्या बचता है। घर में घुटते रहो, मन मार के दुनिया भर के काम तो करते रहो लेकिन मनमाफिक काम करने के लिए कोई इजाज़त नहीं देगा। करेंगे तो सब तोहमत लगायेंगे। लेकिन एक बार आप मन की करने लगें तो किसी माई के लाल में हिम्मत नहीं होती कि आपको रोक सके। मैंने अपने लिए जो जीवन मंत्र अपना रखे थे कि मन को मारो नहीं और मन के खिलाफ कुछ मत करो। सब कुछ आपके पक्ष में हो जाता है। करना आना चाहिये। बस, यही हम नहीं कर पाते कि लोग क्या कहेंगे। लोग वही करेंगे जो उन्हें करना है यानि तुम्हें कुछ भी नहीं करने देंगे। क्या कोई ऐसा होगा जो कहता कि काकुल तुम दुखी रहती हो क्योंकि तुम्हारी जिंदगी में प्यार नहीं है तो अपने किसी दोस्त के साथ एक खूबसूरत सी ख्वाबगाह बसा लो। कोई नहीं कहता न। छी: मैं भी क्या उलटी सीधी बातें सोच रही थी। मेरे हिस्से में ये ख्वाबगाह लिखी थी तो मैं आनंद ले पा रही थी।

  • तभी मैंने महसूस किया कि विनय नींद में कुनमुनाया है। मैंने हलके से उसे छुआ और कहा कि बहुत धीरे से आंखें खोलना।

    विनय ने धीरे धीरे आंखें खोली। वह भी कुदरत के इस उपहार को ख्वाबगाह में पा का हैरान हो रहा था। सचमुच ऐसा लग रहा था कि हम सुनसान जंगल में तारों भरी रात में जमीन पर लेटे हुए कुदरत का ये तोहफा कबूल कर रहे हैं। विनय मेरे पास सरक आया था। मैंने फुसफुसाते हुए पूछा – कैसा है?

    विनय ने भी बहुत धीमी आवाज में लगभग फुसफुसाते हुए कहा - ख्वाबगाह के सबसे खूबसूरत पल। तुम्हारी पसंद की दाद देता हूं। इतने दिनों से तुम्हें जानता हूं और यहाँ आ कर ही पता चल रहा है कि इंटीरियर में तुम्हारा जवाब नहीं। हर शै एक अलग ही कहानी कह रही है।

    - विनय, एक काम करते हैं। आज हम एक भी लाइट या मोमबत्ती नहीं जलाएंगे। पूरी रात इतनी ही रौशनी में गुजारेंगे और महसूस करेंगे कि अंधेरे में वक्त गुजारना क्या होता है।

    - काकुल, तुम कभी दृष्टिहीनों के संपर्क में आयी हो?

    - इतना ही कि कभी किसी को सड़क पार करा दी या इसी तरह का कोई काम। इससे ज्यादा कभी मौका ही नहीं मिला। तुम ये सवाल क्यों पूछ रहे हो।

    अंधेरे में विनय की आवाज गूंज रही थी – इसके दो कारण हैं। एक तो मैंने उनके जीवन को बहुत नजदीक से देखा है और उनके जीवन की मुश्किलों को समझ सकता हूं और दूसरे मैंने कुछ अरसा पहले एक शार्ट फिल्म देखी थी। उसे तुम्हें सुनाना चाहता हूं।

    - सुनाओ ना

    - आठ मिनट की ये शार्ट फिल्म बंबई में रहने वाले एक दृष्टिहीन संगीत टीचर की है। बंबई में दृष्टिहीन और इस तरह के दूसरे डिफरेंटली चैलेंजल्ड लोगों के लिए हर लोकल ट्रेन में एक अलग डिब्बा होता है।

    - उस ब्लाइंड संगीत टीचर की जिंदगी अच्छी चल रही थी। अच्छी नौकरी थी, शादी हो चुकी थी, एक भाई साथ रह कर पढ़ रहा था और स्कूल की नौकरी के बाद वह एक लड़की के घर जा कर उसे संगीत सिखाता था।

    - फिर

    - फिर एक दिन हुआ ये कि पता चला कि वह जिस लड़की को उसके घर जा कर संगीत सिखाता है, उसे एक लाइलाज बीमारी है।

    - ओह

    - संगीत टीचर स्नेहवश उस लड़की से मिलने जाता रहता है। वह लड़की भी उनका बहुत सम्मान करती है।

    - अचानक पता चलता है कि उस लड़की की मौत हो गयी है और वह अपनी इच्छा मां बाप को बता गयी है कि उसकी आंखें संगीत टीचर सर को डोनेट कर दी जाएं।

    - सो स्वीट, फिर?

    - काकुल, मैं कहानी को यहीं रोक कर तुमसे पूछता हूं कि बच्ची की आंखें पाने के बाद संगीत टीचर की जिंदगी में क्या बदलाव आया होगा।

    - इसमें सोचना क्या, उसकी जिंदगी हर लिहाज से बेहतर हो गयी होगी।

    - यहीं तुम गलत हो काकुल। कई बार हमारे लिए किये गये दूसरों के नेक काम भी हमारी जिंदगी बरबाद ही कर देते हैं। अब इस कहानी में ही देखो, वह जिस स्कूल में संगीत टीचर था, आंखें मिल जाने के बाद सबसे पहले तो उसकी वह नौकरी ही चली गयी क्योंकि वह नौकरी ब्लाइंड परसन के लिए ही थी।

    - ओह

    - दूसरे अब तक वह आराम से लोकल ट्रेन के स्पेशल डिब्बे में सफर करता आया था। आंखें आने के बाद वह सुविधा भी बंद हो गयी। जिंदगी दूभर हो गयी। अब तक वह देख नहीं सकता था तो होम फ्रंट पर सब ठीक चल रहा था। अब पता चला कि उसकी बीवी का किसी से रिलेशन चल रहा है और यह भी पता चला कि छोटा भाई ड्रग्स लेता है।

    - उफ, मैं सोच भी नहीं सकती थी कि किसी की इतनी बड़ी मदद किस तरह से आपकी जिंदगी बरबाद भी कर सकती है।

    - काकुल, जिंदगी कब आपके साथ कैसे खेल खिलाए। माहौल बहुत सीरियस हो रहा है। बोलो, क्या पीओगी।

    - कुछ भी ऐसा पिला दो जिसे मू्ड संवर जाए। मैं तो सोच सोच कर कांप रही हूं कि जीवन कैसे कैसे खेल खेलता है।

    - काकुल, कहानी को कहानी की तरह लो। सीरियस होने की जरूरत नहीं है। तभी उसने पैग तैयार करके कुल्हड़ मेरी तफ बढ़ाया।

    स्कॉच के अंदर जाते ही मूड कुछ संवरा। अब तक हम इस खूबसूरत अंधेरे के आदी हो चुके थे। तारों भरी रात का अंधेरा भी इतना हसीन और रोमांटिक हो सकता है, हम पहली बार महसूस कर रहे थे। मुझे खुद पर शर्म भी आ रही थी कि मैंने कितने बरसों से सचमुच का तारों भरा आसमान ही नहीं देखा था।

    ***