Dastan E - Ashq - 20 in Hindi Classic Stories by SABIRKHAN books and stories PDF | दास्तान-ए-अश्क - 20

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दास्तान-ए-अश्क - 20

(पिछले पार्ट में हमने देखा कि प्रेगनेंसी के वक्त उसे सास ससुर सभी बताते हैं कि तुझे अपने मायके जाना पड़ेगा..  यह सुनकर उसका मन काफी उदास हो जाता है वह अपने घर बिल्कुल ही नहीं जाना चाहते थे उसका मन उठ गया था पर कभी-कभी ना चाहते हुए भी रिश्ते निभाने पड़ते हैं अब आगे) 
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अनचाहे मन से वो अपने कमरे में आकर रेडी होने लगती है !
आज से गोद भराई के बाद मायके जाना था!  प्रसव होने तक वहीं रहना था !
ना चाहते हुए भी उसे वहां जाने के लिए मजबूर होना पड़ा !
"बहु जल्दी कर तेरे मायके वाले आ गए..! रसम का मुहूर्त निकल जाएगा..!"
उसकी सासू मां ने आवाज दी! जब वो तैयार होकर बाहर आई तो सामने मां के साथ बुआ भी बैठी थी!  
उसे देख कर मैंने उठकर उसे गले से लगा लिया !  मां की आंखें भर आई !  
"कैसी है तू मेरी बच्ची..? कभी मां की याद नहीं आई तुझे..? ना कोई खत... ना कोई फोन ..!"
"नहीं मां मैं यहां बहुत खुश हूं..!और उसी खुशी के कारण मुझे आपको फोन करने का ध्यान ही नहीं रहा ! आप मेरी फिक्र क्यों करते हो ? मैं ठीक हूं ..!"
मनोरमा जी उसकी बात में छिपे हुए तंज को समझ गई!
पर वो मां थी ! बेटी को इस समय मां की सख्त जरूरत होती है ,इसलिए वह जानबूझकर अनजान बनी रही!
गोद भराई के बाद वो अपनी मां और बुआ के साथ अपने मायके आ गई !
सब कुछ वैसा ही था!
कुछ नहीं बदला था !
वही घर ..आंगन.. वही अपने ...!  अगर कुछ बदला था तो वो थी वो खुद..उसकी जिंदगी..! उसका एक-एक दिन.. जैसे जिदगी करवट ले रही थी! 
अपने नन्हें की आने की वजह सें मनोरमा जी भी उसका बहुत ख्याल रखने लगी थी! शायद अंदर से वो समझ गई थी कि उनसे कोई नाइंसाफी हुई है ..!
क्योंकि उसका उदासीन रवैया उन्हें अंदर ही अंदर बहुत कठता था!
एक दिन वो मौका पाकर उसके पास आकर बैठ जाती हैं !
"बेटी क्या तु नाराज है मुझसे..? देख मैं तेरी मां हूं तेरा बुरा थोड़े ही चाहती थी..?
इतना सुंदर पति.. इतना बडा कारोबार और बडा घर देख कर तेरी शादी की..! और अगर पहले  तेरी उनसे नहीं जमी वो अलग बात है !
पर अब देख सब ठीक है ना..?
तु मां बनने वाली है और तेरा बच्चा उस घर का पहला चिराग होगा ..!
पगली वो तुम्हें सिर आंखों पर रखेंगे..!
अब तो तू भी अपने मन की गांठे खोल दे बेटा..! जब तू खुद मां बनेगी तब मेरी स्थिति समझेगी..! कई बार बच्चों की भलाई के लिए हमें कुछ कठोर फैसले लेने पड़ते हैं..! पर कोई भी मां अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहती..!" मनोरमा देवी की आंखों में आंसू भर आते हैं !
"मत रो मां..!"
अपनी मां को रोता हुआ देखकर उसका मन पसीज जाता है!
" मैं आपसे नाराज नहीं हूं आपने अपनी तरफ से जो किया अच्छा ही किया होगा आप अपने  मन पर कोई बोझ मत रखे..! कहते हैं खून के रिश्ते कुछ अलग ही कशिश लिए होते हैं..जरा सी कसक से ही खींचे चले आते हैं..! आज उसके साथ भी वही हुआ..! सब कुछ मन में रखकर मां को उसने गले लगा लिया..! फिर से उनकी अच्छी बेटी बन गई..!
"  बेटा उठ जा.. देख कितना दिन सिर पर आ गया है ..!और तू अभी तक सो रही है..!"
कहते हुए  बुआ तेजी से कमरे में आई! "बुआ मुझे पेट में दर्द हो रहा है..! शायद रात को ज्यादा खाना खा लिया होगा..! वह दर्द से बिलबिला कर बोली
पर सारा माजरा बुआ जैसे समझ गई!
वो मां को आवाज देती हुई बाहर भागी! "भाभी...ओ भाभीजी ..! गाड़ी निकलवाओ... लगता है उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गई है!"
बुआ की बात सूनकर सब आनन-फानन उसे लेकर हॉस्पिटल पहुंचते हैं! 
होस्पटलमे अकथ्य दर्द वेदना सहने के बाद जन्म हुआ उसके नन्हे का.. छोटा सा मासूम वो खरगोश जैसा उसे अपनी गोद में लेते ही उसका सारा दर्द और सारे गम जैसे काफूर  हो गए...!
" मुबारक हो बेटा हुआ है अरे कोई इसके ससुराल वालों को तो फोन कर दो...!वह कितने बेचैन होंगे..!
उसकी बुआ कह रही थी ! 
पर वो सबसे निर्लेप अपलक अपनी उस नन्ही सी जान को देख रही थी!
सबसे सुंदर रिश्ता मां और बच्चे का होता है ये बात आज वो महेसूस कर रही थी ! उसे सीने से लगाते ही उसकी छाती से दूध अमृत की तरह बहने लगा .!
"मेरा बेटा...मेरा लाल..!,
उसे सिने से लगाकर वो अपनी सारी पीडा भूल गई! 
"मैं तुझे कभी अपने से अलग नहीं करूंगी..! तेरा हर सपना पूरा करूंगी..!"
वो खुद से ही बातें करती!  मुस्कुराती..! आज मानो सारी कायनात उसकी बाहों में थी! 
"अरे लो भाई लड़के का बाप और दादी आ गए! भाई जमकर बधाईलो इनसे उसके पति और सास को नर्स घेर कर खड़ी थी! उसने सिर उठा कर उनकी तरफ देखा! मम्मी जी की आंखों में आंसू थे!
पोते को गोद में लेते ही मानो रुका हुआ सैलाब बह निकला!
" बेटा कहां था तू अब तक..! कब से तेरी राह देख रही थी..! कितना सता कर आया तु दादा दादी के पास...!
मां पापा जी कहां है वो नहीं आये?
उसने इधर-उधर देखा पूछा!
"आएंगे बेटी..! पहले वह मन्नत पूरी करने माता के दरबार में नंगे पांव गए हैं..! अरे तू क्यों वहां खड़ा है ले आकर उठा अपने बेटे को ..,!
उनके साथ में खडे उसके पति को कहती है! 
"बिल्कुल तेरे पर गया है ! वहीं आंख नाक बचपन में बिल्कुल तु ऐसा ही दिखता था! पर आज उनकी आंखों में प्यार कम गर्व की चमक ज्यादा थी..! 
जैसे अपनी मर्दानगी साबित करके वो मानसिक तोर पर अकड गया था! 
"कैसी है तू ..? ठीक है ना..? कहते हुए उसके पति ने बच्चे को गोद में उठा लिया..! 
उसके इन दो शब्दों ने जैसे उसके मन को ठंडक दे दी! 
शायद अब वह बदल जाए! 
सोनू बहुत जल्दी से ठीक हो जा! हम बच्चे का नामकरण अपने घर में करेंगे बहुत बड़ा जश्न रखेंगे..!
बस तू आजा उसके साथ..!अपनी ही धुन में बोले जा रहा था..! 
हॉस्पिटल में एक दिन रुक कर वह अपने नवजात शिशु के साथ घर आ गई!
जैसे उसकी जिंदगी ही बदल गई थी
तीन भाई थे किसी को भी बच्चा नहीं था दादाजी घर के वारिस को लेकर काफी चिंतित थे पर जैसे ही इस नन्हीं सी जान का घर में आगमन हुआ..!
घर आते हैं उसने फूल जैसे मासूम बच्चे को अपनी जेठानी के हाथो मे रख दिया! 
"ये लो दीदी जी... आपका बेटा..! "
पर उसकी जेठानी मुह फेर कर चली गई! 
उसमे उसका दोष नही था..! 
उसकी मन:स्थिति वो समजती थी..! 
उसको भगवान ने कोई औलाद नही दी थी!  तो उसको एक स्त्री सहज इर्षा ने जन्म ले लिया था..! 
कहते है एक स्त्री ही स्त्री की सबसे बडी दुश्मन होती हैं! 
उसकी जिंदगी में जेठानी ने ये अहेसास बार-बार करवाया..!
बडे जेठ जी उस पर काफी नरमी से पेश आ रहे थे..!  
जब भी बाजार से आते कुछ न कुछ फ्रूट्स  ले आते थे..!  
उनकी नजरों में बदलाव था जैसे जानबूझकर  वो ख्याल रख रहे थे!
1 दिन उसे किचन में अकेली देखकर भीतर चले आए!
वह उन्हें अपने बड़े भाई साहब मानती थी!
पर वह आते ही बोले!
"सुनो मेरी एक बात मानोगी..?"
' हां कहिए..!" मैंने निर्दोष भाग से कहा था!
"तुम चाहो तो मुझे बच्चा दे सकती हो..!"
मुझे लगा बच्चे की तलब मे उन्हें पागल सा कर दिया है सो कहा ठीक है हमारा अगला बच्चा हम तुम्हें दे देंगे मैं उनसे बात करूंगी..!
"अरे नहीं..! तुम समझी नहीं..! उसको बताने की कोई जरूरत नहीं है!"
"मुझे सब पता है तेरा पति तुझसे कैसा व्यवहार रखता है ..! उसका तेरे साथ मेलजोल कैसा है ..!"
पर  तू फिक्र ना कर मैं हूं ना..! तुझे किसी चीज की कभी कोई कमी नहीं आएगी बस मुझे तुझसे एक बच्चा चाहिए..
अपना बच्चा  पूरी  दौलत का एकमात्र वारसदार रहेगा!
मैं सारी जिंदगी तेरा ख्याल रखूंगा..!
जेठ जी की बातें सुनकर वह डर जाती है..!
"यह गलत है और मैं कभी ऐसा नहीं करूंगी..!  
आप अपने मन से यह गलतफहमी निकाल दो कि आप मुझसे फिजिकल रिलेशन रखकर कोई बच्चा  पैदा कर पाओगे..! मैं एक सीधी और पतिव्रता नारी हूं..!"
" तुम समझ नहीं रही हो तुम्हें अंदाजा भी है कितनी दौलत है मेरे पास..? और सीधी सी बात है घर की बात घर में रहेगी मान जाओ..!"
इतना कहकर उन्होंने जैसे ही उसका हाथ पकड़ना चाहा..!
गुस्से से आग बबूला हुई उसने एक जबरदस्त थप्पड जेठ जी के गाल पर रसीद कर दिया!
"तुम्हारे लिए औरतें सिर्फ भोगने का साधन मात्र होंगी मगर एक बात कान खोल कर सुन लो तुम..! मैं वैसी औरतो मे से नहीं हूं जो पैसों के लिए अपनी इज्जत का सौदा करती है .!
अगर बच्चे का इतना ही मोह है तो किसी अनाथ आश्रम से बच्चा अडॉप्ट कर लो..!"
"तुम्हारा यह थप्पड़ मुझे हमेशा याद रहेगा..! तुम्हें बहुत भारी पड़ेगा ..!
देख लूंगा मैं तुमको..!"
इतना कहकर पैर पटक कर वह वहां से गुस्से में बाहर चला जाता है...!
उसका बदन पूरी तरह कांप रहा था उसे लगा यह बात सासू जी को जरूर बतानी चाहिए!
सासु जी के कमरे में पहुंचकर उनके पास बैठ जाती है और सी सपने लगती है!
"क्या हुआ मेरी बच्ची तेरी आंखों में आंसू क्यों..?"
तब वह अपनी सास के सीने से लग कर जेठ जी की करतूत के बारे में सब कुछ बता देती है..!
अपनी बहू की बात सुनकर सासू जी का चेहरा सूख जाता है वह उसके आगे हाथ जोड़कर कहती हैं!
"तू चुप हो जा मेरी बच्ची इस बात का जिक्र किसी के सामने मत करना वरना मेरे बेटे का घर खराब होगा टूट जाएगा..!  समाज में अपने परिवार की बहुत बदनामी होगी..!
तेरे पापा जी यह जिल्लत सह नहीं पाएंगे..! जहर का एक घूंट पी जा मेरी बच्ची भूल जाए इस बात को कि कुछ हुआ था..!
वह अपनी मतलबी सास आंखों में रोष भर के देखती रहती है..!
कैसी बेबसी थी अपने पर हो रहे अत्याचार के लिए वह आवाज नहीं उठा सकती थी घर के सदस्य भी सब कुछ जानते हुए टोकने की बजाय चुप रहकर गुनाह को बढ़ावा दे रहे थे..!
ससुर जी पॉलिटिक्स में थे रोज ब रोज उनके मिलने वालों की कमी नहीं थी!
दिन भर सभी औरतें नीचे किचन वाले हॉल में रहती थी!
दिन में किसी को भी अपने कमरे में जाने की सख्त मनाई थी!
उसे अपने बच्चे को दूध पिलाने के लिए भी कभी कभी डरना पड़ता था क्योंकि उसका जीत दरवाजा लॉक किए बगैर कभी भी अंदर आ जाता था..!
और वह अपने आप को उसकी बुरी निगाहों से बचाया करती थी!
  पर वह कब तक अपने आप को ऐसे इंसान से बचाती जो  उसके रूप पर नजरे गड़ाए हुए था.?
    ********
(क्रमश:)

औरतों के साथ बहुत से परिवारों में ऐसे अन्याय होते हैं और परिवार की आबरू समाज में उछालने का डर  बता कर परिवार के मुख्य सदस्य भी उन्हें चुप कर देते हैं!
पर आखिर में बुरे का नतीजा बुरा होता है! ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं सबको अपने अपने कर्मों की सजा भुगतनी है!





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