प्रखर की नौकरी लगे अभी कुछ दिन ही हुए थे पर पूरे ऑफिस में प्रखर की बुद्धिमत्ता और कार्यकुशलता के चर्चे थे। आखिर 24 वर्ष की छोटी सी उम्र में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद के खीरी मंडल में अधिकारी के पद पे चयनित होना इतना आसान भी नही होता। पूरे कार्यालय में सभी लोग उससे दुगनी उम्र के थे। ऐसे में इतनी कम उम्र का लड़का अगर सीधे अधिकारी बनके आये और जो सच मे काबिल भी हो तो दूसरों की नज़रों में खटकना ही था।
प्रखर को शुरू के कुछ दिन तो कोई काम नही दिया गया पर मंडल अधिकारी मिश्रा जी के छुट्टियों से वापिस आने के बाद प्रखर को उनके छत्र छाया में काम करने का मौका मिला। आखिर कब तक बिना किसी काम के सरकारी तनख्वाह लेता। शाम को घर जाके आईना के सामने खड़े होके जवाब भी तो देना होता है। पहले दर्जे का ईमानदार जो था। कोई अभिभावक या छात्र दो रुपये की चाय भी पीने की कहता तो तुरंत उखड़ जाता। और अगर कभी पीनी पड़े तो उसके पैसे खुद ही देता।
पूरे कार्यालय में शायद ही कोई ऐसा हो जो छोटे मोटे कार्य के लोगो ने पैसे न लेता हो। ऐसे माहौल में खुद को बचा पाना आसान नही होता। कुछ दिनों में तो लोगो ने उसे टोकना शुरू कर दिया। कहते ईमानदारी की रोटी पेट भरने को पूरी नही पड़ती। बच्चो को स्कूल की फीस और ट्यूशन भी तो भेजना होता है और बीवी के मेक-अप के खर्चे तनख्वाह से पूरे नही होंगे। "अरे, पर ये तो अभी बच्चा है, इसकी तो शादी भी नही हुई ये पैसे का क्या करेगा। पता नही आजकल ईमानदार लोगो की शादी होती भी है या नहीं और अगर होती भी है तो बीवी कितने दिन टिकती है।" सभी कर्मचारी ऐसा कहते और मज़ाक उड़ाते।
प्रखर को इन सब बातों से कोई फर्क नही पड़ता था। उसको तो सिर्फ अपने बीमार पिता, बिन ब्याही बहन और अपने छोटे भाई के स्कूल के फीस की चिंता रहती जोकि इस तनख्वाह से आराम से पूरा हो जाता था। फिर सोंचना कैसा।
एक दिन मिश्रा जी ने अपनी शादी की साल गिरह पर सभी को अपने घर पर रात्रि भोज पर आमंत्रित किया। पूरा स्टाफ उनके घर गया। प्रखर भी गया और मिश्राजी की शानदार कोठी देख कर हैरान रह गया। तीन एकड़ में फैली हुई, शानदार स्विमिंग पूल, चारो तरफ रंगीन लाइटिंग देख कर वह भौंचक्का था। बच्चों के कपड़े और मैडम के जेवरात देख कर बेचारा सोंच में था कि ये सब पुश्तैनी है या अपनी तनख्वाह से बनाया है। लेकिन तनख्वाह से बनाना, ये कैसे हो सकता है। इतनी सी तनख्वाह में अगर साधारण जीवन जी लिया जाए तो वह भी अपने आप मे उपलब्धि है। प्रखर सोंचता," मुझे क्या पनीर खाता हूं और चिकन उड़ाता हूं। कौन कैसे कमाता है और कैसे बचाता है वो जाने और उसका काम।"
फिर भी उस रात प्रखर ठीक से सो नही पाया। जिंदगी के दोराहे पर खड़ा था। सोंच रहा था कि ईमानदारी की सूखी रोटी अच्छी है या बेईमानी का मलाई कोफ्ता। लोग कहते है कि जो चोरी करता है, बेईमानी करता है, दूसरों का बुरा करता है उसे इसी जन्म में उसका फल मिलता है पर मिश्रा जी तो शान से जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आलीशान कोठी, विदेश में पढ़ें बच्चे, बढ़िया बैंक बैलेंस, सोने के खूब सारे जेवरात आखिर और क्या चाहिए जीवन में।
मिश्रा जी की शादी की सालगिरह ने प्रखर के जीवन में एक भूचाल से ला दिया था। एक तरफ अपने परिवार की जरूरतें दिखी और दूसरी तरफ मिश्रा जी की शान शौकत। दोंनो ही हालात उनको सिर्फ एक ही तरफ लेके जा रहे थे। पता नही बेचारे का मन पहली बार इतना क्यूँ मचल रहा था। पेट मे मछली जोर जोर से करवटे बदल रही थी और शायद हमेशा की तरह बेईमानी ईमानदारी पर हावी होने वाली थी।
देर से ही सही पर प्रखर को नींद आ ही गयी पर सपने में भी प्रखर यही सोंचता रहा। सुबह हुई और प्रखर ने पाया कि उसका सिर भारी है। दांत साफ किये, स्नान किया, नाश्ता किया सिर दर्द की गोली खाई और आफिस जाने के लिए अपने कमरे से निकला। बाहर उसका पूरा परिवार बैठा हुआ था। पिता जी के हाल चाल लेके घर के मुख्य दरवाजे पे पहुंचते ही छोटे भाई ने पीछे से आवाज़ लगाई," भइया, पिताजी की दवाई खत्म होने को है लेते आना और मेरे स्कूल की फीस का भी दिन है शाम को एटीएम से कैश निकाल लाना।" प्रखर ने हाँ में गर्दन हिलाई और बाइक स्टार्ट करके सीधा ऑफिस गया। उसके दिल और दिमाग से रात की बातें बाहर निकलने का नाम ही नही ले रही थीं।
ऑफिस पहुंचते ही बिना किसी से बात किये प्रखर अपनी सीट पर बैठ गया। उसने देखा कि मिश्रा जी अपनी सीट पर नही है। उसने ऑफिस बॉय वीरू को अपने पास बुलाया और पूंछा की आज मिश्राजी दिख नही रहे छुट्टी पर है क्या, वीरू ने बताया कि साहब का फ़ोन आया था। कल के कार्यक्रम में थक गए थे इसलिए आज नही आ पाएंगे औऱ ये भी बोला कि आज का सारा काम आप देखेंगे। प्रखर बोला पर साहब ने मुझे तो कुछ नही बताया। चलो कोई बात नही एक चाय ले आओ।
पूरा स्टाफ आफिस आ चुका था और सभी अपनी सीट पर बैठे थे। प्रखर भी अपने कमरे में था। उसने खिड़की से बाहर की तरफ झांका तो पाया कि एक बहुत बुजुर्ग आदमी और उनके साथ लगभग 15 वर्ष का उनका पोता उसके आफिस की तरफ आ रहे है। प्रखर बैठ गया और अपना काम करने लगा। कमरे के बाहर ऑफिस बॉय वीरू से बुजुर्ग ने पूछा," साहब, मिश्रा जी कहाँ मिलेंगे? वो बोला, " मिश्रा जी तो छुट्टी पर है, प्रखर साहब है कोई काम है तो उनको बात सकते हो।" बुजुर्ग बोला ठीक है मैं उनसे ही मिल लेता हूं। बुजुर्ग आदमी और उसका पोता कमरे के अंदर आया और नमस्ते करके बोला," साहब, मैं पिछले तीन महीने से रोज़ ही दफ्तर के चक्कर लगा रहा हूं पर साहब मेरे बच्चे का छोटा सा काम तक नही हो पा रहा है। साहब मेरी मदद करे। मेरे बच्चे को बारहवीं में प्रवेश नही मिलेगा अगर काम न हुआ तो।
प्रखर ने हैरानी से पूंछा," कौन सा काम बाबा?"" बुजुर्ग बोला," मेरे बच्चे की अंकतालिका में पिता के नाम ग़लत छप गया था उसको सही करवाना है। सब इस काम के पैसे मांग रहे है। मैं गरीब आदमी हूं साहब मेरे पास घूस देने के लिए एक पैसा भी नही है। और साहब वैसे भी विभाग की गलती के लिए मैं घूस क्यों दू?" मेरा बच्चा पढ़ने में अच्छा है, आप लोगों की गलती की सज़ा उसे क्यों मिले साहब। मैं तो आज मिश्रा जी से इस बात की शिकायत करने आया था, पर आप मिल गए। साहब मेरी मदद करिए। ये कहते हुए उस बुज़ुर्ग ने एक सौ रुपये का नोट प्रखर के हाथ मे थमा दिया और बोला," साहब मेरे पास बस ये है, इसमें ही कुछ हो सके तो कर दो नही तो यही आपके कमरे के सामने मैं अपने प्राण त्याग दूंगा।"
सौ रुपये हाथ मे देख के प्रखर के होश ही उड़ गए। कल शाम को ही तो बेईमानी ईमानदारी पर हावी हो रही थी और आज ही उसे वो मौका भी मिल गया। कुछ समय के लिए वो सन्न रह गया। क्या करता उसने कभी ये सब सोंच ही नही था, न कभी इच्छा हुई न कभी मौका मिला। वैसे भी सबके लिए ईमान बेचना आसान नही होता। सौ का नोट हाथ मे लेके वो किसी और ही दुनिया में चला गया। शाम को पिताजी की दवाई लेके घर जाना है पर अगर मैंने इस गरीब के पैसों से दवा ली और कहीं पिताजी को कुछ हो गया तो, आखिर मेरे लिए तो ये पैसा हराम का ही हुआ। अगर इस पैसे से मैंने छोटे भाई के स्कूल की फ़ीस दी और कही इस बार वो फैल हो गया तो? कही ऐसा न हो कि मैं इस पैसे को मैं अपनी बहन की शादी के लिए बचाऊ और उसके साथ ही कुछ बुरा हो जाये। कही इस पैसे से मैंने अपनी बाइक में पेट्रोल डलवा लिया और एक्सीडेंट हो गया तो! एक पल में जाने क्या क्या सोंच गया वो। आखिर ये पैसा मेरी कमाई का नही है हराम का है। और ये हराम का सबको पच जाए ये जरूरी तो नही।
अचानक बुजुर्ग आदमी की आवाज़ आयी," क्या हुआ साहब, मेरे पास एक सौ रुपये और है पर साहब मुझे अभी घर भी जाना है, बस वाले को किराया भी देना है नही तो मैं वो भी आपको दे देता, आखिर बच्चे के भविष्य का सवाल है। प्रखर मुस्कुराया और सौ का नोट वापिस करते हुए बोला,"ऐसी बात नही है बाबा, बस इस सौ के नोट ने लाखो के सवाल का जवाब समझा दिया और जिस रास्ते मे कोहरे की धुंध थी उस रास्ते को शीशे से चमका दिया। आप ये अंकतालिका यहाँ जमा करो और तीन दिन बाद आके नई वाली ले जाना। ये कहते कहते प्रखर ने बुज़ुर्ग के सामने हाथ जोड़ लिए और बुजुर्ग को विदा कर दिया।
अब प्रखर रोज़ शाम को आराम से आता है , परिवार के साथ बातें करता, खाना खाता और फिर समय पर सो जाता। सुबह बिल्कुल तारो ताज़ा उठता। आखिर ईमानदारी की रोटी में नींद बहुत अच्छी आती है।
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ईमानदार होने के लिए हमको सारी दुनियां के ईमानदार होने का इंतजार नही करना है, बस खुद को देखते चलिये। खुद को संभालने और समझाने की चाभी हमारे अंदर ही होती है, बस घुमाने भर की देरी है।
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आपका
देव