Aai to aai kaha se - 3 in Hindi Children Stories by Dr Sudha Gupta books and stories PDF | आई तो आई कहाँ से - 3

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आई तो आई कहाँ से - 3

बाल उपन्यास

आई तो आई कहाँ से

(3)

क्या लड़के इंटेलिजेंट होते हैं ?

सुबह सारे बच्चे देर से जागे l पंकज नहा - धोकर प्रिंस के घर आ गया l

प्रिंस, क्या तू अभी तक तैयार नहीं हुआ ?

होता हूँ यार, अब आलस छोड़ना पड़ेगा l

छुट्टियां ख़त्म होने को दो - चार दिन ही शेष बचे हैं, तूने सारा होमवर्क कर लिया क्या ?

हाँ, कर तो लिया लेकिन, वो साइंस टीचर का प्रोजेक्ट अधूरा है l

मेरा भी l वो साइंस टीचर भी पूरे ........ लेंडगे ( जमीं पर गए ) .......

दोनों हंस पड़े l ये आरुषि भी न, अजीब मतलब निकालकर हंसाती रहती है l देखने की छोटी, लेकिन है बहुत हंसोड़ l

अच्छा, लड्डू खायेगा ?

हाँ, खा लूंगा l

ये ले, मम्मी ने बनाये हैं बेसन के l

वाह, ये तो बहुत मजेदार है l चलो शतरंज खेलते हैं l

ठीक है, मेरी काली, तुम्हारी सफ़ेद l

ये मैंने चली पैदल l

और ये मेरी पैदल l

ये घोडा मेरा

और ये रहा ऊँट, शह बचो

अरे यहाँ भी l

और ये रही मात l

उफ़, इतनी जल्दी मुझे मात दे दी, किससे सीखा ?

अपने मामा से l वो कहते हैं, ये दिमाग का खेल है l इस खेल में माइंड शार्प होता है l

अच्छा मैं चलता हूँ, प्रोजेक्ट बनाने की कोशिश करूँगा l पापा की हेल्प लेना पड़ेगी l

हाँ, मुझे भी l

***

प्रिंस के पापा ने आवाज लगाईं - प्रिंस चलो, तुम्हारा प्रोजेक्ट बनवाते हैं l आज मेरी छुट्टी है तो पूरा कर लेते हैं l

हाँ पापा, बाकी होमवर्क तो मैंने पूरा कर लिया है पर ये,जमीन पर गए का काम थोड़ा मुश्किल है

क्या, जमीन पर गए ?

ओह, कुछ नहीं पापा, कुछ नहीं l ( वह मन ही मन बुदबुदाया, बच गए बच्चू वरना अभी डाँट पड़ती ) l

पापा, बाजार से कुछ सामान भी लाना पड़ेगा l

हाँ, तुम्हारे टीचर भी ना, हम लोगों को व्यस्त रखते हैं l ‘ पानी का वाष्पीकरण और पौधे कैसे सांस लेते हैं ‘, अब मैं पढूंगा, तभी तो तुम्हें बता पाऊंगा ,फिर प्रोजेक्ट बना पाऊँगा l

हं हं हं हं ... बन गए ना पापा बच्चा, अब मजा आएगा l

पापा यह रही लिस्ट - थर्माकोल, फेविकोल, कलर और शाइनिंग वाले पेन, टेप बस इतने से ही काम चल जाएगा l

ठीक है, मैं चलता हूँ l

बाय पापा l

प्रिंस ...... चलो खाना खा लो l

नो मम्मा l

क्या ?

ओह, यस मम्मा l

खाना खाने के बाद क्या करोगे ?

टी. व्ही देखूंगा l

नहीं, सुबह से तुमने टी. व्ही देख लिया है, क्या कार्टून - कार्टून देखते रहते हो ?

कुछ बाल पत्रिकाएं, पोयम, स्टोरी भी पढ़ा करो l फिर तुम्हारे स्कूल खुल जाएंगे तो वक्त ही कहाँ मिलेगा ?

ये देखो - ये चंदामामा, देवपुत्र, पराग, बालवाटिका, बालप्रहरी मैंने लाकर रक्खी हैं l ये चुलबुली,चाईं माईं खेलो, पम्मी - शम्मी, लालू - चालू, जंगल की एकता पढ़ो जो अच्छी लगे, उस पर शाम को अपने दोस्तों के साथ चर्चा करो, क्या अच्छा लगा, क्यों अच्छा लगा, क्यों अच्छा नहीं लगा ? इससे निर्णय लेने की क्षमता बढ़ेगी और भाषा की पकड़ अच्छी होगी, साथ में कल्पना शक्ति भी तेज होगी l

मेरी प्यारी माँ, आप सचमुच बहुत अच्छी हैं लेकिन, पहले तो आप मना करती थीं, दूसरी कोई बुक पढ़ने के लिए ?

हाँ, आज मुझे आरुषि की मम्मी ने बताया तो मुझे भी समझ में आया कि केवल स्कूली किताबों से बच्चों का सम्पूर्ण विकास नहीं होता l उन्होंने ही मुझे ये सारी पत्रिकाएं दी हैं l अब तुम आराम से पढ़ो, नींद आये तो सो जाओ l

हाँ, ठीक है, शाम को आरुषि के घर जाऊंगा l उसकी बहिन कितनी क्यूट है, मैं उसे खिलाऊंगा और इन किताबों की कहानी, कविताओं पर चर्चा भी करूँगा l

हाँ, यह सही रहेगा l

मम्मा, मैं अब सो रहा हूँ l

ओफ्फो ...... ये प्रिंस भी ना ....... कैसे सोता है, एक लात यहाँ और एक लात वहां, पत्रिकाएं पलंग के नीचे .....

***

शाम करीब 4 बज गए थे l प्रिंस सोकर उठा l दूध पीकर वह आरुषि के घर जाने को तैयार हो गया l माँ ने भी ख़ुशी से कहा - जाओ, घंटे - डेढ़ घंटे में आ जाना l

ठीक है, बाय मम्मा l

प्रिंस ने अपनी साईकिल उठाई और सपाटे से पैडल मारते हुए आरुषि के घर पहुँच गया l

आरुषि .......

उसने साईकिल की घंटी बजाई l दुर्गा ट्रिन - ट्रिन सुनकर दौड़कर बाहर आ गई l प्रिंस ने उसे गोद में उठा लिया

आरुषि, तुमने प्रोजेक्ट पूरा कर लिया ?

हाँ l

अरे तुम तो बहुत फ़ास्ट हो, मुझे तो अभी बनाना है l पापा आज सामान लाएंगे फिर रात में बनाएँगे l परसों से तो फिर स्कूल शुरू l

हाँ और क्या, कैसे पूरी छुट्टियां निकल गईं , पता ही नहीं चला l

आरुषि की माँ ने पूछा - पत्र - पत्रिकाएं पढ़ीं या नहीं ?

हाँ आंटी, बहुत मजेदार हैं, चुटकुले, पहेलियाँ पढ़कर तो बहुत मजा आया और कहानियां भी मजेदार थीं l

अच्छा, कुछ सुनाओ तो सही l

अच्छा ठीक है आंटी,पहले मेरी पहेली का उत्तर बताइये

हाँ, हाँ, पूछो l

नाक से पानी पीता है वह, नाक से खाता खाना

भारी भरकम तन उसका, वह कौन सा पशु बतलाना ?

ऊँ हूँ ऊँ ... सोचती हूँ, सोचती हूँ ... हाथी

हाँ, सही जवाब

आंटी, हमने ‘ चुलबुली ‘ कहानी भी पढ़ी है

अच्छा, उससे क्या सीखा ?

यही कि अपने गुणों का सदुपयोग करना चाहिए, किसी को परेशान नहीं करना चाहिए

बिल्कुल सही l

फिर वह बोला - चलो आरुषि आज साईकिल रेस हो जाए

हां हां, माँ मैं जाऊं ?

ठीक है, अँधेरा होने के पहले आ जाना l

दुर्गा के हाथ में सुन्दर डॉल थी, वह आरुषि को भी पसंद थी l उसने दुर्गा से डॉल लेकर अपनी सायकिल की बास्केट में रख ली और पानी की बॉटल भी l

फिर दोनों साईकिल चलाने निकल गए - हुर्रे s s l एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में दोनों दूर निकल गए l तभी आरुषि का पैर पैडल में फंसा और वह गिर गई l उसे घुटने में हल्की चोट आई l प्रिंस ने उसे उठाया, साईकिल खड़ी की और आरुषि को पानी पिलाया l

इतनी जरा सी चोट लगी है और इतना ज्यादा रो रही है l

लड़कियां बहुत कमजोर और पिन्नी होती हैं l

इतना सुनकर आरुषि बिफर पड़ी l

पिन्ने होगे तुम, तुम लड़के दुष्ट होते हो l मैं कोई क मजोर नहीं हूँ l

प्रिंस जोर से हंसा, देखा रोना भूल गई ना ! मैं तो तुम्हें चिढ़ा रहा था और ये क्या गुड़िया खेलती रहती हो, इतनी बड़ी हो गई हो ?और प्रिंस ने उसकी गुड़िया छुड़ाकर कचरे के ढेर में फेंक दी l आरुषि जोर से चीखी - प्रिंस, तुमने ये क्या किया, मेरी गुड़िया कचरे के ढेर में क्यों फेंक दी ? वह प्रिंस को मारने - पीटने लगी ( उसे वह दर्दनाक हादसा याद आ गया, इसी जगह उसने सचमुच की गुड़िया को देखा था ) l वह बेकाबू हो गई l प्रिंस ने कहा - अरे तुम तो ऐसे चीख रही हो जैसे सचमुच की गुड़िया हो ?

तुम क्या समझोगे, गुड़िया क्या होती है ? बस गिल्ली - डंडा, हॉकी, बल्ला, क्रिकेट खेलने वाले दुष्ट लड़के ?

अरे, मैं ले आता हूँ तुम्हारी गुड़िया l

लो यह रही l

आरुषि अभी भी प्रिंस को घूर रही थी l आरुषि ने अपनी गुड़िया को अपनी फ्रॉक से ही साफ़ किया - देखो इसे चोट लग गई है और कहीं कोई कुत्ता आ जाता तो ?

अरे, कुछ नहीं हुआ, अब चुप हो जाओ l लो थोड़ा पानी पी लो और गुस्सा ठंडा कर लो l

गुड़िया को गोद में लेकर आरुषि बैठी रही थोड़ी देर ......

तुम आरुषि कब बड़ी होगी ?

मुझे नहीं होना बड़ा l

लेकिन तुम तो बड़े हो गए हो ना, तो अब मेरे साथ मत खेला करो l

क्यूँ ?

माँ कहती है, बड़े लड़कों के साथ नहीं खेलना l

अच्छा तो मैं बड़ा नहीं होऊंगा l

मैं बड़ा हो जाऊंगा तो कैसा दिखूंगा ?

तुम्हारी मूछें, दाढ़ी होंगीं बड़ी - बड़ी पापा की तरह l

और तुम साडी पहनोगी माँ की तरह l

हं हं हं हं मुझे नहीं बनना माँ, ढेर सारे काम करने पड़ते हैं l

अरे पागल, कौन कहता है बड़े होने को, अभी तो हम बच्चे हैं कक्षा 4 के l जब बड़े होंगे, तब देखा जाएगा l

अरे बाप रे, तेरे गिरने के चक्कर में अँधेरा हो गया, माँ बहुत डाँटेगी और फिर मुझे तो प्रोजेक्ट भी बनाना है उन्हीं सर का जो जमीन पर गिर गए l

दोनों ने खिलखिलाते हुए साईकिल उठाई और घर की ओर रवाना हो गए l

***

घर आते ही आरुषि ने आवाज लगाई -

माँ .... भूख लगी है l

दुर्गा मटकती हुई दीदी से लिपटकर अपनी गुड़िया छीनने लगी l

हाँ लो ना, गुड़िया से खेलोगी और वह भी दुर्गा के साथ बैठकर गुड़िया को दुर्गा की गोद में देकर सुलाने लगी -

रानी बेटी सो जा, सपनों में खो जा ......

दुर्गा भी आ आ आ गाने लगी l

माँ ने आवाज लगाई -

चलो बच्चो, खाना खाओ, रात हो रही है फिर जल्दी सोना भी तो है l अच्छे बच्चे जल्दी सोते हैं और जल्दी उठते हैं, ‘ अर्ली टू बेड एंड अर्ली टू राइज ‘ l

लेकिन आज तो मैं कहानी सुने बिना नहीं सोऊंगी l आपको माँ, कोई नई कहानी सुनाना पड़ेंगीं वह भी बड़ी l

अच्छा ठीक, फटाफट खाना खाओ l

सब्जी कौन सी बनी है ?

पालक की भाजी l

छीः छीः मैं नहीं खाऊँगी l

तो मैं कहानी नहीं सुनाऊँगी l

हूँ, ठीक है थोड़ी - थोड़ी खाऊँगी

सब सब्जियां खाना चाहिए तभी तो जल्दी - जल्दी बड़ी होओगी l

मुझे नहीं होना बड़ा, बड़े लोगों को बहुत काम करने पड़ते हैं l

छोटी हो तब भी इतनी समझदार हो, बड़ी होगी तब तो अच्छे - अच्छों के कान काटोगी l

हुं हुं हुं ..... कान कैसे काटूंगी, चाक़ू से ?

अरे पागल, कान काटना तो मुहावरा है, जब कोई छोटा बुद्धिमान व्यक्ति बड़ों को अपनी बुद्धि से परास्त कर दे तो उसे कान काटना कहते हैं l

तब तो मैं प्रिंस के कान जरूर काटूंगी, बहुत बनता है आज जब मैं गिर गई साईकिल से, मैं रो रही थी तो वह मुझे पिन्नी और कमजोर बोल रहा था l

अरे, कहाँ लग गई तुम्हें , दिखाओ l

ये घुटना छिल गया l

ओफ्फो, लाओ टिंक्चर लगा दूँ, तुमने बताया नहीं ?

इसलिए कि मैं थोड़े में नहीं रोती l

प्रिंस कह रहा था, लड़के कमजोर नहीं होते, क्या यह सच है माँ ?

नहीं, लड़कियां बहादुर होती हैं लड़कों के बराबर ही l

माँ, मुझे ये तो बताओ क्या लड़के इंटेलिजेंट होते हैं ?

अरे, ये कैसा प्रश्न है ?

मेरी क्लास में सारी लड़कियां लड़कों से ज्यादा इंटेलिजेंट हैं, दूसरे सेक्शन में भी लड़कियां ही मेरी तरह क्लास केप्टिन हैं इसलिए मुझे लगता है, लड़के सिर्फ ऊधम और खेल - कूद में आगे रहते हैं l

नहीं, लड़के भी इंटेलिजेंट होते हैं लेकिन, वे थोड़ा लापरवाह होते हैं l

बातूनी लड़की, चलो फटाफट हाथ - मुंह धोओ, ब्रश करो, फिर चलो बिस्तर में, तुम्हें एक कहानी सुनाती हूँ -

भावना नाम की एक लड़की थी l वह पढ़ने में बहुत होशियार थी l वह अपना क्लास वर्क, होमवर्क हमेशा पूरा करती थी l उसकी एक सहेली थी निधि l वह क्लास वर्क करने में थोड़ा आलस करती थी l क्लास में डाँट पड़ने के डर से एक दिन उसने अपनी सहेली भावना की नोटबुक चुपके से उठाकर अपने बस्ते में रख ली थी कि मैं घर पर आराम से उसकी कॉपी से उतार कर क्लास वर्क पूरा कर लूंगी l शाम को जब भावना ने अपना स्कूल बैग देखा तो उसमें नोटबुक नहीं थी l वह समझ गई, निधि ने ही उसकी नोटबुक ली होगी l वह उसके घर अपनी कॉपी लेने चली गई l उसकी माँ बाजार सब्जी लेने गई थी l घर में छोटा भैया सोया हुआ था l भावना ने सोचा, माँ के आने के पहिले मैं आ जाऊँगी , अगली गली में ही तो निधि का घर है l लेकिन जब वह निधि के घर से कॉपी लेकर लौटी तो उसने देखा, उसके घर में आग लगी हुई है l भैया किचिन में सोया था, वह आग के कारण जाग गया था l शार्ट सर्किट के कारण शायद आग लगी थी l किचिन में गैस सिलेंडर रखा था l भावना घबरा गई किन्तु अगले ही क्षण उसने कापियां बाहर रखीं और धधकती आग की परवाह किये बिना बैडरूम से कम्बल उठाकर उसने लपेटा और जलती आग में किचिन से भैया को उठाकर कम्बल में लपेटते हुए बाहर आ गई l तब तक उसकी माँ भी आ गई थी l आग और धुआँ देखकर पड़ौसी भी इकट्ठे हो गए थे l माँ ने भैया को गोदी में लिया और भावना को गले लगाया l यदि भावना बहादुरी और समझदारी से काम न लेती तो आज न मालूम क्या हो जाता, कहीं गैस सिलेंडर फट जाता तो ? यह सोचकर माँ बहुत घबरा गई l सब लोगों ने भावना की बहुत तारीफ की l सरकार द्वारा उसे सम्मान और पुरस्कार भी दिया गया l मुसीबत के समय बुद्धि और विवेक से काम लेना चाहिए, घबराना नहीं चाहिए l आरुषि ने कहानी बहुत ध्यान से सुनी l वह बोली - माँ, मैंने भी तो बहादुरी का काम किया है ना ? यदि दुर्गा को कचरे से न उठाती तो ? माँ आश्चर्य से आरुषि का मुंह देखने लगी किन्तु, अगले ही पल माँ ने आरुषि को गले लगाते हुए कहा - सचमुच तुम बहादुर हो आरुषि l मैंने तुम्हें पुरस्कार में सचमुच की गुड़िया वापस लाकर दी है ना l चलो अब सो जाओ l माँ ने बिजली बंद की और सभी सो गए l

***