मैं ही क्यों
अंकिता भार्गव
उस दिन मनस्वी कॉलेज से आई तो उसे घर का माहौल हर रोज़ से कुछ अलग लगा। मम्मा-पापा कुछ व्यस्त लग रहे थे। उसने उन्हें डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा और अपने कमरे में चली आई। कमरे में एक लिफाफा उसका इंतजार कर रहा था जिसमें एक लड़के की फोटो थी। मनस्वी को उस लड़के की सूरत कुछ जानी पहचानी सी लगी। थोड़ा सोचते ही याद आ गया कि इससे तो वह सिमरन की शादी में मिल चुकी है। 'कहीं मम्मा पापा मेरी शादी करने की तो नहीं सोच रहे?' अपनी शादी की बात सोचते ही उसके पेट में अजीब सी गुदगुदी हुई।
”अरे मनस्वी तू भी तो कुछ बता तुझे कैसा दुल्हा चाहिए?” अभी कुछ दिन पहले ही तो नेहा ने मनस्वी से प्रश्न किया था जब सिमरन की शादी में उसकी सभी सहेलियां इकट्ठा हुई थीं, बारात बस आने ही वाली थी, सिमरन के मेकअप का फाइनल टच अप चल रहा था और इस सबके बीच सहेलियों की हंसी ठिठोली का टॉपिक था, किसे कैसा दुल्हा चाहिए?
”मैने अभी इस बारे में कुछ नहीं सोचा। अभी तो मुझे आगे पढना है।” मनस्वी ने सहेलियों को तो टाल दिया पर उसकी आंखों में भी उस पल अपने भावी जीवन के सतरंगी सपने तैर गए। कोई बहुत बड़ी ख्वाहिशें नहीं थी उसकी। उसे तो बस छोटी छोटी खुशियां चाहिए थी। एक ऐसा साथी जो हर सुख दुख में हमेशा उसके साथ खड़ा रहे, उसे जीवन में किसी मोड़ पर कभी अकेला ना छोड़े, बस इतना ही चाहती थी वह।
मनस्वी का अंदाजा सही निकला, कुछ देर बाद मम्मा उसके कमरे में आईं, और तस्वीर दिखा कर कहने लगीं ‘यह नैवेद्य है, यह तुम्हें सिमरन की शादी में देख कर पसंद कर चुका है और अब तुमसे मिलना चाहता, इसीलिए इस संडे को अपने पैरेंट्स के साथ हमारे घर आने वाला है।“ उन्होंने इस बारे में मनस्वी की राय जाननी चाही तो वह मुस्कुरा दी, मम्मा ने उसे प्यार से गले लगा लिया।
सिमरन की शादी में यह नैवेद्य पूरा समय मनस्वी के ही इर्द-गिर्द घूम रहा था। मनस्वी थी ही इतनी प्यारी कि सभी उसे पसंद करते थे। जितनी चुलबुली उतनी ही सौम्य। वह एम.कॉम. फाइनल ईयर की छात्रा थी। व्यक्त्वि कुछ ऐसा कि रूप की नदी पर शालीनता का बांध था। फिर मनस्वी के पिता शहर के माने हुए उद्यागपति थे और मां कई समाजसेवी संस्थाओं से जुड़ी थी। इसके बाद भी उसे घमंड छू कर भी नहीं गया था, सबके साथ उसका व्यवहार दोस्ताना था और वह सबकी मदद को हमेशा तैयार रहती थी। इतने अमीर घर की खूबसूरत और सर्वगुणसम्पन्न मनस्वी को भला कौन अपना जीवनसाथी बनाना नहीं चाहेगा। ऐसे में अगर नैवेद्य उस पर फिदा हो गया तो क्या अलग हुआ।
संडे को मनस्वी के मम्मा पापा ने बहुत ख़ास तैयारियां की थी, घर की सजावट से लेकर लंच के मैन्यू तक सब कुछ स्पेशल था। सभी उत्साहित थे, होते भी क्यों नहीं आखिर नैवेद्य एक मल्टी नेशनल कंपनी में इंजीनियर जो था। वह अमेरिका में रहता था और बहुत हैंडसम भी था। उस दिन मनस्वी भी गुलाबी परिधान में बेहद खूबसूरत लग रही थी।
नैवेद्य के घरवालों को मनस्वी इतनी पसंद थी कि उन्होंने उसी दिन सगाई करने का आग्रह किया। एक बेहद खुशनुमा माहौल में मनस्वी की नैवेद्य से सगाई हो गई। नैवेद्य की फैमली को शादी की जल्दी थी क्योंकि वो लोग नैवेद्य की शादी के लिए ही अमेरिका से भारत आए थे और अगले महीने उन्हें वापस जाना था। वो लोग उसके पहले नैवेद्य और मनस्वी की शादी कर देना चाहती थे। शादी की तारीख पंद्रह दिन बाद की तय हो गई। शादी में समय कम था इसलिए तैयारियां जोर शोर से शुरू हो गईं।
रोशनी से नहाए मंडप में दुल्हन के जोड़े में सजी मनस्वी परी जैसी लग रही थी। नैवेद्य भी कहीं कम न था। हर ओर खुशियों का आलम था। मनस्वी की सहेलियों की हंसी ठिठोली के बीच शादी की रस्में कब पूरी हो गई पता ही नहीं चला और विदाई की बेला आ पहुंची थी। विवाह के गीतों में भी अब विदाई की कसक आ गई। मम्मा-पापा के प्यार की छांव से निकल कर मनस्वी डोली में आ बैठी। उसकी आंखों से आंसुओं की झडी़ रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी। वह तो अपने मम्मा पापा का हाथ ही नहीं छोड़ रही थी। नैवेद्य उसका हाथ थामें था मानों उसे तसल्ली दे रहा हो कि सब ठीक है। फिर भी वह पीछे मुड़-मुड़ कर मम्मा पापा को तब तक देखती रही जब तक कि वो लोग उसे दिखाई देने बंद नहीं हो गए।
नैवेद्य के घर मनस्वी का शानदार स्वागत हुआ। वहां सबके व्यवहार को देख कर मनस्वी भूल ही गई कि वह अभी यहां नई है। बल्कि उसे तो महसूस हो रहा था कि जैसे वह हमेशा से इसी परिवार का हिस्सा थी। मनस्वी को नैवेद्य के साथ अपने सारे सपने सच होते लग रहे थे। वह खुद को बेहद खुशनसीब समझने लगी थी। नैवेद्य मनस्वी को भी अपने साथ ही अमेरिका ले कर जाना चाहता था। और इसके लिए उसने मनस्वी के वीज़ा से संबधित कार्रवाही भी शुरू कर दी थी।
कुछ दिन बाद मनस्वी के भैया-भाभी उसे पग फेरे की रस्म के लिए घर ले जाने आए, नैवेद्य की मम्मा ने उनकी बहुत शानदार खतिरदारी की, नैवेद्य का व्यवहार भी उनके साथ काफी दोस्ताना था। मनस्वी के भैया भाभी उनके व्यवहार से अभिभूत हो गए।
विदाई से पहले नैवेद्या की मम्मा ने कहा, ”नैवेद्य तुम मनस्वी को बार बार फोन करके परेशान नहीं करना, तुम्हें और मनस्वी को घूमने के लिए तो अमेरिका में खूब वक्त मिलेगा, पर मनस्वी को अपने मम्मा पापा के साथ रहने का अवसर अब अगले कुछ साल तक शायद ना मिल सके। इसलिए अभी तो इसे अपने मम्मा पापा के साथ कुछ वक्त बिताने दो।” मनस्वी ने नैवेद्य की ओर देखा वह भी अपनी मां की बातों से सहमत था।
”ओके मिनी, मैं प्रोमिस करता हूं कि तुम्हें बार बार फोन करके परेशान नहीं करूंगा। बस तुम इतना करना कि अपने मम्मा पापा की ढेर सारी मीठी यादें समेट लाना। ताकि अगले चार साल तक तुम उनकी याद में उदास ना रहो। क्योंकि अब हम अपनी मिनी को उदास नहीं देख सकते,” मनस्वी मुस्कुरा दी। जाने कैसा था वो पल, उस पल उसका मन दो हिस्सों में बंट गया, एक मन उसे मम्मा पापा की ओर खींच रहा था जबकी दूसरा इस घर के लोगों से रिश्तों के धागे जोड़ रहा था।
मम्मा पापा मनस्वी को देख कर निहाल हो गए। मनस्वी को भी उनसे मिल कर बहुत अच्छा लग रहा था। वह जीवन में पहली बार इतने दिनों तक अपने परीवार से दूर रही थी। सभी उसके ससुराल वालों के बारे में जानने को आतुर थे। वह सबकी जिज्ञासाएं भी शांत कर रही थी और साथ ही अपना फोन भी चैक कर रही थी। फेसबुक, व्हाट्सऐप कहीं भी नैवेद्य का कोई मैसेज नहीं था। शायद उसने अपने प्रोमिस को कुछ ज्यादा ही सीरीयसली ले लिया था। मगर मनस्वी को उससे बात करनी थी, उसने खुद उसे कॉल किया तो भी उसका फोन नहीं लगा।
एक बार तो उसने गुस्से में फोन को साइड टेबल पर पटक दिया मगर फिर यह सोच कर कि शायद अभी नैवेद्य किसी काम में व्यस्त होगा और रात में फ्री हो कर फोन करेगा उसने फोन उठा कर अपने पास ही रख लिया और सो गई। अगले दिन भी नैवेद्य ने मनस्वी से कोई कॉन्टेक्ट नहीं किया। उसे नैवेद्य के साथ अपने वीज़ा की फोरमैलिटीज़ पूरी करने अमेरिकन एम्बेसी जाना था। मगर जब नैवेद्य का कोई मैसेज़ नहीं आया तो मनस्वी को वहां भी अपने भैया कुनाल के साथ जाना पड़ा।
अमेरिकन एम्बेसी जाकर उन्हें पता चला कि नैवेद्य ने तो मनस्वी के वीज़ा के लिए एप्लाई ही नहीं किया। यह सुन कर दोनों भाई बहन हैरान रह गए, खासकर मनस्वी क्योंकि नैवेद्य ने वीज़ा के पेपर्स पर उसके साइन तो करवाए थे, पर फिर वीज़ा के लिए एप्लाई क्यों नहीं किया?
”व्हाट इज़ दिस मनस्वी, नैवेद्य कितना इररिस्पोंसिबल है। तुम लोगों के जाने में कितना कम वक्त बचा है, और उसने अभी तक तुम्हारे वीज़ा के लिए भी एप्लाई नहीं किया।” दोनों गुस्से में भुनभुनाते घर आ गए। मनस्वी ने इस बाबत बात करने के लिए नैवेध्य को कॉल किया पर उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा था। उसने परेशान होकर अपनी सासुमां को कॉल किया ताकि वह उन्हें नैवेद्य की लापरवाही की शिकायत कर सके मगर हैरानी की बात थी कि उनका फोन भी स्विच ऑफ ही आ रहा था।
उसे तब और भी आश्चर्य हुआ जब नैवेद्य के पिता का फोन भी स्विच ऑफ ही आया। उसने अपनी मम्मा को बताया। सभी परेशान हो उठे। आखिर सबके फोन एक साथ बंद कैसे हो सकते हैं। मनस्वी के पापा कमल कुमार ने उसके ससुराल जा कर पता लगाने का निश्चय किया। मनस्वी भी उनके साथ हो ली।
वहां जाकर उन लोगों को पता चला कि नैवेद्य और उसकी फैमिली तो एक दिन पहले ही अमेरिका के लिए निकल गए। उन्होंने अपने मकान मालिक से कहा कि मनस्वी का वीज़ा रिजैक्ट हो गया है इसलिए वह अभी उन लोगों के साथ नहीं जा पाएगी। यह सब सुन कर मनस्वी आश्चर्यचकित रह गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उन लोगों को इस तरह झूठ बोलने की क्या जरूरत थी? नैवेद्य ने तो मनस्वी का वीज़ा लगाया ही नहीं फिर वह रिजेक्ट कैसे हुआ और उनकी फ्लाइट तो दस दिन बाद की थी फिर वो लोग इतने दिन पहले क्यों चले गए?
कमल कुमार मनस्वी को लेकर अपने घर चले आए। उन्होंने सिमरन के पापा अनुपम से पूछताछ की तो वह भी परेशान हो गए। उन्होंने नैवेद्य के बारे में पता करने का हर संभव प्रयास किया तो आखिर जो सच सामने आया वह बहुत भयानक था। नैवेद्य पहले से ही शादीशुदा था और उसकी पत्नी अमेरिका में ही रहती थी।
उन लोगों को पैसों की जरूरत थी और किसी अमीर परिवार की भारतीय लड़की से शादी, पैसा कमाने का उनके लिए सबसे आसान तरीका था। सिमरन के विवाह में मनस्वी और कमल कुमार से मिलकर वे अच्छी तरह समझ गए थे कि वे अपनी बेटी को दहेज के रूप में एक अच्छी खासी रकम देंगे और शायद इसीलिए मनस्वी उन लोगों का एक आसन सा शिकार बन कर रह गई। वह रकम हासिल होने के बाद अब उन्हें मनस्वी की जरूरत नहीं थी इसलिए वे लोग उसे किसी बेकार सामान की तरह छोड़ गए थे।
अनुपम भी बहुत शर्मिंदा थे आखिर यह शादी उन्हीं के कहने पर ही तो हुई थी। नैवेद्य के पिता को बरसों से जानते थे अनुपम। उसी जानकारी के दम पर ही तो उन्होंने कमल कुमार से नैवेद्य और मनस्वी के रिश्ते की बात की थी। वह तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि नैवेद्य का परिवार उन्हें इस तरह का धोखा भी दे सकता है।
अब कमल कुमार को समझ आ गया था कि उनकी बेटी विवाह के नाम पर एक फ्रॉड का शिकार हो चुकी थी मगर वो कुछ नहीं कर सके सिवाय मनस्वी को तलाक दिलवाने के जो नैवेद्य ने बड़ी ही आसानी से दे दिया। वह मनस्वी के जीवन में हवा के झोंके की तरह आया था पर बवंडर बन उसकी खुशियां उजाड़ कर चला गया। अब मनस्वी की जिन्दगी में बर्बादी के निशानों के अलावा और कुछ भी नहीं बचा था।
बिखर गई मनस्वी और उसके दुःख में टूट गए उसके मम्मा पापा। कमल कुमार ने खुदको इतना विवश कभी महसूस नहीं किया। टेंशन के कारण उन्हें हार्ट अटैक आ गया। उसने अपनी मम्मा को भी कई बार छुप छुप कर रोते देखा था। मनस्वी के लिए अब खुदको संभालना जरूरी हो गया था, वह पहले ही काफी कुछ खो चुकी थी और अब कुछ ओर नहीं खोना चाहती थी।
उसने अपने मम्मा पापा को अपनी चिंता से निजात दिलाने के लिए शहर ही छोड़ दिया। क्योंकि वह अच्छे से जानती थी जब तक वह उनके सामने रहेगी वो लोग कभी चैन नहीं पा सकेंगे। वह मसूरी चली आई। मसूरी में उसने एक गर्ल्स कॉलेज में जॉब कर ली और साथ में पी. एच. डी. के लिए भी रजिस्ट्रेशन भी करवा लिया। दिल्ली की भागमभाग से दूर उसे इन पहाड़ों की गोद में कुछ सुकून मिला मगर दिल पर लगा घाव अभी भी हरा ही था।
साल गुज़रते रहे, कलेंडर बदलते रहे, मगर मनस्वी के दिल का घाव इतना गहरा था कि कभी भर ही नहीं सका, वह दोबारा किसी पर विश्वास ही नहीं कर पाई, बस जिन्दगी के बियाबान में अकेली ही चलती रही। मनस्वी अब एक जानीमानी शिक्षाविद डा. मनस्वी हो गई थी, जाने कितनी ही छात्राएं उसके अधीन पी. एच. डी. कर चुकी थीं और कितनी ही कर रही थीं। देश के कई विश्वविद्यालयों में उसकी लिखी किताबें पढ़ाई जाती थीं। पर समाज में इतना सम्मान पाने के बाद भी उसके जीवन में एक खालीपन था। अतीत का जख्म उसके मन में अब भी रह रह कर कसक पैदा करता रहता था। मैं ही क्यों? नैवेद्य ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? यह उसके जीवन के ऐसे अनुत्तरित प्रश्न थे, जिनके जवाब वह आज भी तलाश रही थी।
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