manchaha - 4 in Hindi Fiction Stories by V Dhruva books and stories PDF | मनचाहा - 4

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मनचाहा - 4

         

शादी में पहुंच गए फाइनली। शादी हमारे दूर के चाचा की बेटी की थी। बारात की खातिरदारी चल रही थी अभी। वैसे जिंदगी की भाग-दौड में हमें टाइम नहीं मिलता रिश्तेदारों से मिलने का पर शादीयों में सब मिल जाते हैं। एक चाची है हमारे रिश्ते में जो हमेशा शादी के रिश्ते बतातीं रहतीं सबको। वो हमारे पास आए और भाभी से मेरे बारे में पूछने लगे।
चाची- कितनी बड़ी हो गई पाखि! बहुत समय बाद देखा तुम्हें।
अरे सेतु-मिता लड़का देखा के नहीं इसके लिए?
सेतु भाभी- चाचीजी अभी तों यह छोटी है, अभी-अभी तों कालेज में एडमिशन लिया है। कद-काठी में दिखती हैं पर उम्र ज़्यादा नहीं है इसकी।
चाची- माफ़ करना, मुझे लगा ये बड़ी है। कद-काठी से बड़ी हीं लगती है, रंग सांवला है पर नैन-नक्श बहुत सुंदर है इसके।
उनके जाने के बाद हम सब ज़ोर से ठहाके लगाते हस पड़े।
उस वक़्त दो आंखें हमें देख रहीं थीं जो बारातियों मे से एक की थी। मुझे पता नहीं था आगे चलकर वहीं आंखें मेरा पिछा करने वाली हैं।
जल्दी सोने की आदत की वज़ह से विदाई तक नहीं रूकें और घर को निकल गए।

आज सुबह सुहानी लग रही थी। जुलाई चल रहा है तो थोड़ी गर्मी कम हो गई है। मैं अंगड़ाई लेते हुए बाहर बालकनी में आई तो सामने की बालकनी में विकास भैया खडे़ थें। हमारे घर के सामने राकेश अंकल और रमा आंटी रहते हैं, विकास भैया उनके एकलौते बेटे हैं। बचपन से हम साथ ही बड़े हुए हैं और बहन ना होने की वजह से मुझसे ही राखि बंधवाते है।
विकासभैया- गुड मोर्निंग पाखि।
- गुड़ मोर्निंग भैया।
- सूना है हमारी कोलेज में एडमिशन लिया है, और हमें पता भी नहीं।
- दो दिन से कोलेज आ तो रहीं हुं, अपने ही देखा नहीं होगा मुझे।
- मैं कहां से देखूंगा, मैंने अभी कोलेज आना शुरू नहीं किया है। वैसे भी ये हमारा सेकंड यर है तों स्टूडेंट्स कहा जल्दी आने वाले हैं छूट्टीओ से। मैं कल से ही आने वाला हुं, तु मेरे साथ ही आ जाना।
- थेंक्स भैया, पर में मेरी फ्रेंड के साथ बस से ही जाती हुं। बस से जाना अच्छा लगता है मुझे। पर आप इतनी सुबह जल्दी कैसे उठ गए? नहीं तों रमाआंटी की आवाज यहां तक आती हैं जब आप को उठाने आती है।?
- सही कहती हो, सुबह आंख ही नहीं खुलती कम्बखत। अभी कुछ दिनों से सब फ्रेंड्स मिलके पार्क में जातें हैं जोगिंग के लिए तों उठ जाता हुं।
- ठीक है भैया तो कल कोलेज में मिलते हैं, बातें करती रहुंगी तो कोलेज जाने में देर हो जायेगी। बाय भैया।
- बाय पाखि।

                                                   (२)

आज मैं थोड़ी जल्दी बसस्टेंड पहुंच गई तो देखा वहां साकेत अपनी कार लेकर आया था और राजा की राह देख रहा था। मुझे देख वो मेरे पास आया।
- हाय पाखि! गुड़ मोर्निंग।
मैंने सिर्फ स्माईल की।
- पाखि मैं कोलेज जा रहा हूं, तुम और दिशा कोई दिक्कत न हो तो हमारे साथ आ सकते हैं।
- नो थैंक्स साकेत। तुम्हरे पास कार है तो तुम बस से क्यो आ रहे थे?
- ट्राफिक से बचने के लिए। दिल्ली का ट्राफिक आपको पता ही है। रोज़ बस से ही आऊंगा, यह तो कार सर्विस में देनी है तो ले आया।
थोड़ी देर में दिशा और राजा भी आ गए। राजा साकेत के साथ कार में चला गया और हम बस में।

आज कोलेज के नोटिस बोर्ड पर फ्रेशर्स पार्टी के बारे में लिखा था। जो इस सप्ताह के रविवार को थी और थीम रेड एंड ब्लेक कलर था। मेरे पास तो दोनों में से एक भी कलर सिंगल नहीं था, अब घर जाकर भाभी की ड्रेस या साड़ी देखनी पड़ेगी। पार्टी की बातें करते करते सब क्लास में आ गए। थोड़ी देर बाद विध्यामेम आएं,  उन्होंने अनाउंस किया- अगले रविवार को फ्रेशर्स पार्टी का आयोजन किया है आपने सबने नोटिस बोर्ड पर पढ़ा हीं होगा। पार्टी का टाईम शाम को 6:00 से 11:00 का है, और सब लोगों को ड्रेस कोड में ही आना है। पार्टी हमारे कोलेज के ओडिटोरियम  होल में रखी गई है तो सभी स्टूडेंट्स  समय से आ जाएं।
चार लेक्चर खत्म होने के बाद फ्री टाइम मिला। जिसमें निशा ने क्लास की सभी लड़कियों को बुलाया और कौन क्या पहनने वाले हैं वह डिसकस करने लगे। निशा के अलावा में सबसे धीरे-धीरे बात करने लगी थी।

आज निशा ने सामने से पूछा कि पाखि तुम क्या पहनोगी?
मैंने कहा कि मेरे पास इस कलर्स की ड्रेस नहीं है। मैं मेरी भाभीयों से पूछूंगी की उनकेे पास इस कलर्स में ड्रेस हे या नहीं। नहीं तो मुझे नई खरीदनी पड़ेगी।
निशा- मेरे पास भी नहीं है ऐसी ड्रेस। एक काम करो तुम घर पर पूछलो अगर ये कलर्स ना हो तो हम साथ में चलते हैं शोपिंग। गर्ल्स जीनको भी नई ड्रेस लेनी है वह सब हमारे साथ शोपिंग चल सकती है। इस तरह हम सब एक-दूसरे को जानने भी लगेंगे। मुझे तो निशा का यह रूप देख के हैरानी हुई। जो कभी किसी से  बात नहीं करती वो बोल रही है। फिर सबके मोबाइल नंबर एक्सचेंज हुए, जिसे भी आना है वह एक-दूसरे को इंफोर्म करेगा। तो तय रहा हम आज शाम कोलेज से चार बजे निकल जाएंगे और जिसे आना है वह साढ़े पांच बजे करेलीबाग वाले मार्केट में मिलते हैं।

घर जाकर भाभीयों से पूछा पर एक कलर्स के ड्रेस नहीं थे उनके पास। दिशा के पास ब्लेक ड्रेस थी तों वो तो नहीं आएंगी शोपिंग। मैंने निशा का नंबर लिया था तो कोल करके उसे अपने आने के बारे में बताया, और मैं तैयार होने चलीं गईं। हमारे साथ मीना, रीधीमा और काव्या भी आने वाले हैं निशा ने बताया था। दिशा का कोल आया कि वो भी साथ में आएगी। भाभी ने खरीदारी के लिए पैसे दिए और नए जूते भी लेने को कहा।

हम सब तय की हूइ जगह पर पहुंच गए। बारी बारी सब दूकानों में देखते देखते सबकी शोपिंग होने लगी, एसेसरीज भी लेने लगे। पर मुझे कुछ पसंद हीं नहीं आ रहा था। देरी होने के कारण निशा और दिशा के अलावा सब चले गए। मुझे अभी तक कोई ड्रेस पसंद नहीं आई थी पर मैंने जूते ले लिएं थें।
दिशा- ओर कितना घुमाएंगी हमें मेरी मां। एक तों भूख के मारे मेरी जान जा रही है और तु घुमाएं जा रहीं हैं।
निशा- वैसे भी आठ तो बज ही गए हैं, क्यो न हम साथ में डिनर करें।
दिशा- आईडिया बूरा नहीं है।
मूझे हैरानी हो रही थी, ये वही अकडु निशा है जो पहले दिन मिलीं थीं, या मैंने पहचाननें में गलती कर दी। फिर सबने अपने अपने घरों पर फोन कर दिया। आखिरकार हम एक साड़ी की दुकान के पास आए, वहां स्टेच्यू को ब्लेक सिक्वेंस की साड़ी पहनाई गई थी जिसमें रेड बोर्डर लगीं थीं। मुझे वो एक नज़र में ही भा गई। उसकी प्राइज भी बजेट में थी तो उसी को लेने का निर्णय किया, और अच्छी बात यह थी कि ब्लाउज़ स्टीच किया हुआं था। बस फिटींग्स हीं करवानी है। पर मेरे पास मेचिंग बेंगल्स नहीं है।
निशा-  डोंट वरी रेड कलर की बेंगल्स है मेरे पास, तुम्हें आ जाएगी। यह बहुत ही अच्छी साड़ी है पर हम सब ने तो इंडो वेस्टर्न स्टाइल के ड्रेसिस लिए है, तुम भी कुछ ऐसा ही लेती।
मैं- पर मुझे उसमें कुछ पसंद नहीं आया, क्या साड़ी अच्छी नहीं लगेगी?
निशा और दिशा साथ में ही बोल पड़े,  "ये बहुत अच्छी है अम्माजी" और तीनों हस पड़े।
तीनों मैन रोड पर स्थित एक होटल में डिनर के लिए गए। अंदर जाकर बैठे हीं थे कि सामने वालीं टेबल पर साकेत, राजा और कुछ हमारी हीं क्लास के लड़के थे। साकेत की नजर हम पर पड़ी और वह उठकर हमारे पास आया।
साकेत- अरे... पाखि आप लोग यहां?
दिशा- हां, हम यहां। क्यो नही आ सकते?
साकेत- आ सकते हैं, क्यो नही आ सकते?
दिशा- वही तो तुमसे पूछ रहीं हुं क्यो नही आ सकते?
मैं- तूं चुप रहना दिशा। हम शोपिंग करने आए थे और अब डिनर करने।
साकेत- हम भी शोपिंग के लिए ही आए थे। आप चाहें तो हमें जोइन कर सकती हैं, हमने अभी आर्डर नहीं दिया है।
निशा- हां हां, क्यो नही। ऐसे ही पहचान बढ़ेगी। क्यो दिशा... 
दिशा- हां चलो।
मुझे थोड़ी हिचकिचाहट हों रहीं थीं। निशा ने मेरे सामने देखकर इशारे से चलने को कहा। बड़ा टेबल अरेंज्ड कराके सब साथ बैठ गए। फिर फ्रेशर्स पार्टी की बातें होने लगी, कौन क्या पहनने वाले हैं और क्या नहीं, कितने बजे सब मिलेंगे।सब एक-दूसरे से खुलकर बातें करने लगे सिवा मेरे। डिनर खत्म करके सब घर को निकल पड़े।

आज मैं और दिशा मेरी स्कूटी से आये थें और निशा अपनी एक्टिवा से। निशा का घर हमारे घर से आगे था पर वो आज अपनी मौसी के घर जाने वाली थी। उनका घर विपरीत दिशा में था तो वह चली गई। मैं और दिशा स्कूटी से घर की ओर जा रहें थे तभी बिच रास्ते स्कूटी बंद पड गई। रात के साडे नौ बजे थे, ट्राफिक भी था तो स्कूटी साईड में ले जाकर स्टार्ट करने लगी पर वो स्टार्ट ही नहीं हो रही थी। ट्राफिक के कारण कोई हेल्प भी नहीं कर रहा था। ऐसे में पांच सात मिनट हो गए। तभी पिछे से आवाज आई- में आई हेल्प यू?



आगे की कहानी जानने के लिए मेरे अगले भाग की प्रतीक्षा करें। अगर आपको मेरी यह कहानी का भाग पसंद आएं तो आप अपनी अमूल्य समीक्षाएं और रेटिंग्स जरूर दें  ?