Khooni Saya in Hindi Horror Stories by FARHAN KHAN books and stories PDF | खूनी साया

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खूनी साया


Khooni Saya [ Part - 1 ]


• Based On An Original New Story.





कहते हैं इन्सान अपनी परछाईं से बच सकता हेेै, अपने अतीत से नही,
अपने करमो से बच सकता है 
अपने भाग्य से नही,
अनहोनी से बच सकता है
होनी से नही,
होनी को ना आप टाल सकते हैं 
और ना मैं ,
ये और बात है के ज़िन्दगी के इस चक्रर को समझने के लिए मुझे मौत के मुँह तक जाना पड़ा है,
शायद आप इस बात को ना मानते हो,
पर मैं मान चुका हूँ
अब देखिए न मैं यँहा से हज़ारों मील दूर हूँ
पर इस घर की खामोशी को सुनकर कौन कह सकता है,
के आज जो यहाँ होने वाला है,
उसका असर मेरी जिंन्दगी और मौत दोनो पे हो सकता है।
1960 का साल शुरू हो चुका था मौसम गर्मी की और कदम बढ़ा रही थी, और ज़िन्दगी एक नया आगाज़ लिख रही थी  मेरे भाई एक मशहूर नॉवेलिस्ट थे उनकी नॉवेल्स मार्केटिंग में बहुत अच्छी पोजीशन पर थी, उन्हें अलग अलग जगह से कई कॉन्ट्रेक्ट मिल रहे थे, वो उस वक़्त के सबसे बेहतरीन नॉवेलिस्ट थे, उन्होंने कई नॉवेल्स का आगाज़ अपनी ज़बान में किया, अपनी इबतादाई ज़िन्दगी को काटने के लिए अम्मी अब्बू की बात मानकर उन्होंने शादी करली, फिर उनकी ज़िंदगी का आगाज़ सादिया भाभी जान से हुआ अम्मी अब्बू भाईजान की शादी से बहुत खुश थे
धीरे-धीरे भाभीजान ने सबका दिल जीत लिया भाभीजान अम्मी अब्बू का बहुत खयाल रखती और भाईजान भी भाभीजान से बेइंतहां मोहब्बत करते थे, काश अगर उनकी मोहब्बत को मैं इन लफ़्ज़ों अदा कर सकता मगर उनकी मोहब्बत की कोई इनतेहां न थी, मैं उस वक़्त पालमपुर यूनिवर्सिटी से बैरिस्टरी कर रहा था, भाईजान का खत हफ्ते में एक बार जरूर आता था और जिससे मुझे घर के हालात को पढ़ने का मौका मिल जाया करता था भैया ने खत में अम्मी अब्बू की तबियत का ज़िक्र किया जिसे सुनकर मैं बहुत मायूश सा हो गया इसलिए भैया ने मेरे गाँव आने की दरखाश्त की और वैसे भी मेरा फाइनल इम्तेहान खत्म हो चुका था, मुझे भी घर के लोगों से मिले बहुत साल हो चुके थे, घर के सभी लोग भी यही चाहते थे के मैं अपनी छुट्टी गाँव मे बिताऊं इसलिए मैंने होस्टल में छुट्टी की अर्जी दे दी और गाँव की तरफ रवाना हो गया, दिल मे काफी उमंगे जमा हो रही थी पर इसका मुझे अंदाज़ा नही था के ज़िन्दगी मुझे किस मोर की ओर धक्का दे रही थी ये शायद मुझे भी नही पता था, ये किस्मत का खेल हमारी ज़िंदगी के साथ शुरू हो चुका था वक़्त अपनी करवटें बदल रही थी,
और खामोश पल ये इतलाह दे रहा था की ज़िन्दगी किसी मोर पर यूँ जा रुकेगी, जिससे निकलना भी मुश्किल हो जाएगा पर इसकी खबर कहाँ थी मुझे पर दिल ने बताया, की जहाँ खुशियाँ होती हैं वहाँ ग़म भी मौजूद होता है
जहाँ मुस्कराहटें होती हैं वहाँ दर्द भी मौजूद होता है
ऐसा ही कुछ हमारे ज़िन्दगी के साथ भी हुआ जिन्हें लफ़्ज़ों ने कैद कर लिया एहसासों ने समा लिया, और दिल ने किताबों की तरह छाप लिया,