ख़्वाबगाह
उपन्यासिका
सूरज प्रकाश
नौ
तभी मैंने विनय को अपनी इस हसरत के इस तरह से पूरी होने के बारे में कहा था - विनय, शादी से पहले से और तुमसे मिलने से भी पहले से मैं कई हसरतें पाले हुए थी और तुम्हारे साथ ये सारी हसरतें पूरी हो रही हैं।
- कोई और हसरत भी हो तो बता दो। हमारे पास पूरे पांच दिन हैं। नॉन स्टॉप। ये मौका फिर मिले न मिले। कह डालो।
- सच, कह डालूं, मैं इतरायी थी।
विनय ने मेरे होंठ चूमते हुए कहा था – कहो तो सही, तुम्हारे लिए आसमान से तारे भी तोड़ कर ले आयेंगे। वैसे भी ये तारों भरा आसमान तुम्हारा ही है। उसने छत की तरफ उंगली से इशारा करते हुए कहा था।
- सच कहूं विनय, अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि हम एक साथ इस जन्नत में हैं। ये सब तुम्हारे कारण ही हो रहा है कि मैं घर की, खुशियों की, हनीमून की और दूसरी हसरतों की ये बकेट लिस्ट पूरी कर रही हूं। पता है, मैंने और मेरी खास सहेली कनिका ने अपनी अपनी बकेट लिस्ट बनायी थी। दोनों की लिस्ट में सौ से भी ज्यादा हसरतें थीं जो हम अपनी अपनी शादी होने के बाद पूरा करना चाहती थीं। इसमें हर तरह की चाहतें थीं। कुछ मजेदार और कुछ बेवकूफी भरी और कुछ असंभव सी लगने वाली भी। तब हम दोनों फर्स्ट ईयर में थीं और एक सहेली की शादी में गयी थीं। वहीं अपनी सहेली की शादी की धूमधाम देख कर हम दोनों ने रात में फेरों के वक्त अपनी अपनी बकेट लिस्ट बनानी शुरू की थी और अगले कई दिन तक उसमें कोई न कोई आइटम जुड़ती रहती थी।
- तो कितनी हसरतें पूरी हुई उस लिस्ट में से।
- मेरी तो पांच सात ही हुई होंगी लेकिन बेचारी कनिका के हिस्से में तो एक भी हसरत पूरी होने की खुशी नहीं लिखी थी। उसने दो तीन महीने के बाद ही घर से भाग कर शादी कर ली थी और आज तक जल्दबाजी में की गयी उस शादी का खामियाजा भु्गत रही है। न मायका रहा अपना, न ससुराल ने ही उसे अपनाया और न ही पति के संग साथ का सुख उठा पायी बेचारी। वह बॉय फ्रेंड जितना अच्छा था, उतना ही खराब पति निकला। कितनी अजीब बात है न विनय कि शादी चाहे जिस तरीके से हो, लव मेरिज, अरेंज्ड मेरिज, या घर से भाग कर शादी, सारी कलई दो तीन बरस में ही उतर जाती है और हर शादी बैंगन कर भर्ता बन कर रह जाती है। बेस्वाद, रंगहीन और फीकी फीकी।
- हमम, कहती चलो।
- अब देखो ना, न तुम अपनी शादी से सुखी, न मैं और न ही मेरी कोई सहेली। अपने ही परिवार में देखती हूं तो सब औरतें गुजारा कर रही हैं और सुखी होने का नाटक कर रही हैं। किसी से भी पूछो कि तुम्हारी शादी में प्रेम है या नहीं, तो वे यही कहेंगी कि अगर पति की इच्छाओं के हिसाब से घर संभालना और उसे रात को खुश करके सो जाना ही प्रेम है तो हम बहुत सुखी हैं।
तभी विनय ने मुझे टोका था - हनी, मामला सीरियस हुआ जा रहा है। अभी तो हमने नाश्ता भी नहीं किया है। दो तीन काम करते हैं। एक तो तुम्हारी बकेट लिस्ट फिर से तैयार करते हैं और देखते हैं कि उनमें से कितनी हसरतें इन आउस हैं और यहीं रहते हुए पूरी की जा सकती हैं। अब तुम कहो कि तुम वोदका के गोलगप्पे खाना चाहती हो तो वो तो खा सकती हो लेकिन चाहो कि गोवा के कंलगूट बीच पर हिप्पियों की तरह न्यूड हो कर समंदर में उतर जाना चाहती हो तो भई उसके लिए तो गोवा ही जाना पड़ेगा।
- ये भी ठीक है। अगर हमारा इरादा इन पांच दिनों में बाहर निकलने का ही न हो तो हम काफी सारी इन हाउस हसरतें पूरी कर पायेंगे।
- हम एक काम करते हैं। तुम्हारी बकेट लिस्ट फिर से तैयार करते हैं और कुछ और बातें इस खूबसूरत ख़्वाबगाह के लिए तैयार करते हैं कि यहां क्या क्या होना चाहिये और क्या नहीं।
- लेकिन मैं कागज पैन तो लाना भूल ही गयी और पैन से तुम्हारी जन्मजात की दुश्मनी है।
- उसकी चिंता मत करो, ये कहते हुए विनय अपनी लुंगी संभालते हुए कमरे में गया था। जब वह लौटा तो उसके हाथ में स्कैच पैन्स का पैकेट था। उसने मुझे सीधे लेटने के लिए कहा और मेरे सीने के ऊपर से चादर हटा दी। मैंने जब पूछा तो क्या कर रहे हो तो वह हंसा था - तुम्हारी बकेट लिस्ट तुम्हारे तन पर ही लिखी जाएगी और मेरी लिस्ट मेरे तन पर। बाद में इनके फोटो लेंगे और डीलिट करने से पहले इन्हें जोर जोर से बोलेंगे और याद कर करके खूब हंसेगे।
- तो शुरू हो जाओ।
और उसने सचमुच सबसे पहले मेरे उन्नत उरोजों पर मेरी पहली इच्छा लिखी। मुझे गुदगुदी हो रही थी। तय है कि वह जो कुछ लिख रहा था, वह मैं लेटे हुए पढ़ नहीं सकती थी। बहुत हुआ तो सब कुछ बाद में वाशरूम में शीशे में ही पढ़ा जा सकता था, और वहां भी सब कुछ उलटा ही नजर आता।
बहुत मजेदार खेल था यह। मैं एक एक हसरत बताती जाती और वह शरीर के अंग अंग पर अलग अलग रंगों से लिख रहा था। उन अंगों पर भी स्कैच पैन चल रहे थे जिनका नाम भी लिखने में शर्म आये। जहां भी इंच भर जगह मिलती, वह अलग अलग रंगों के पैन से लिखता जा रहा था। हद तो तब हो गयी कि उसने मेरे गालों और होंठों को भी नहीं बख्शा। अब मेरे शरीर पर कोई जगह खाली नहीं बची थी। जहां कुछ लिखा नहीं जा सकता था, वहां उसने तितलियां बना दी थीं। मैं रंगीन पोस्टर बन चुकी थी जिस पर तरह तरह की चित्रकारी के साथ मेरी अधूरी हसरतें लिखी थीं।
मैं अपने आपको शीशे में देख कर हंस हंस कर दोहरी हुई जा रही थी।
तब तक विनय फ्रिज में से बीयर निकाल लाया था। कुल्हडों में बीयर सर्व करने का उसका अंदाज निराला था। वह मुझे देख देख कर खुश हुआ जा रहा था और मैं शर्म से लाल हुई जा रही थी।
तभी विनय ने पूछा था – काकुल, तुम घर से बकेट लिस्ट की हसरतों की लिस्ट ही ले कर चली थी या उन्हें पूरा करने का साजो सामान भी लायी हो।
- उसकी चिंता मत करो। जैसे जैसे हसरतों की पोटली खुलती जायेगी, साजो सामान भी प्रकट होता जाएगा।
मेरे रंग बिरंगे तन की ढेर सारी तस्वीरें लेने के बाद अब विनय कार्पेट पर लेट गया और बोला था - अब आप भी मेरे बदन पर चित्रकारी करने की अपनी लिस्ट की अठारहवीं हसरत पूरी कर लीजिये। अब मैंने ध्यान से अपने आपको देखा था। उसने सचमुच हर हसरत को सीरियल नंबर दे रखा था।
मैंने भी नंबर दे कर विनय की हसरतें लिखना शुरू किया ही था कि वह बोला - तुम्हारी बकेट लिस्ट ज्यादा खूबसूरत है। सब कुछ तो आ गया है। आगे पीछे हम सारी हसरतें पूरी करेंगे ही। तुम यहां वे बातें लिखो जो तुम इस ख़्वाबगाह के लिए हों। हम दोनों ये लिस्ट बनाते हैं और कोशिश करेंगे कि उन्हें पूरा भी करें।
ये भी ठीक था। ख़्वाबगाह बहुत हसरतों से बनाया गया था और उसके लिए भी कुछ नियम कायदे होने चाहिए।
विनय बोला था - मोबाइल बिल्कुल बंद। लेकिन मैंने एतराज किया – आप बीवी को सिंगापूर से फोन करें न करें, हमारे पति देव जरूर करेंगे। फोन बंद रखना ठीक नहीं होगा। एक बात और भी है। हमें बीच बीच में खाने पीने के सामान का आर्डर भी तो देना होगा। उसके लिए भी तो मोबाइल चाहिये। ये जरूरत बड़ी थी। अलबत्ता, ये तय किया गया कि मुकुल के अलावा किसी का फोन एटैंड नहीं किया जाएगा और फोन साइलेंट मोड पर ही रखा जाएगा। विनय ने मौके और जरूरत के हिसाब से मेरी ये बातें मान लीं। फिर एक के बाद एक नियमों पर सहमति होती रही और मैं लिखती गयी। जैसे इस घर में कभी टीवी नहीं आएगा। कोई भी, न मेरा, न उसका, परिचित यहां आ सकेगा, और न ही किसी तीसरे के बारे में बात ही की जायेगी। किसी को भी इस ख्वाबगाह के बारे में नहीं बताया जाएगा। दोनों में से किसी की भी जो भी इच्छा हो, दूसरा पूरी करने की कोशिश करेगा। यहां सिर्फ यहीं बिताये जाने वाले पलों की बात की जाएगी, न अतीत, न वर्तमान। खाना पीना, समय के हिसाब से नहीं बल्कि मूड के हिसाब से, नहाना एक साथ, ये और इस तरह की और बातें मैंने विनय के गोरे तन पर, गालों पर लिखीं। आखिरी शब्द उसकी पलकों पर और होंठों पर लिखे - आइ लव यू।
विनय भी खुद को शीशे में देख कर खूब हंसा। उसके फोटो लेते समय मैंने देखा, चार बज रहे थे, अब तक हम पता नहीं किस दुनिया में विचर रहे थे।
तभी विनय बीयर का घूंट लेते हुए बोला था - एक आइटम यह भी है कि हम यहां पर हर बार एक साथ नहाएंगे। आज तो उसकी जरूरत कुछ ज्यादा ही है, वरना आगे पीछे के रंग कैसे उतरेंगे। यह कहते हुए वह बीयर की सुराही और कुल्हड़ भी बाथरूम में लेता आया।
हम दोनों ने एक दूसरे को खूब मल मल के नहलाया और खूब हंसते खिलखिलाते रहे, बीयर पीते रहे, एक दूसरे के गाल खींचते रहे। और जैसा कि होना ही था, हमने वहीं पर जमीन पर तेज फव्वारे तले सैक्स करने की अगली हसरत भरी रस्म भी निभायी।
जब हम नहा कर और एक दूसरे को पोंछ कर ख़्वाबगाह में आये तो विनय ने मुझे एक पल के लिए रुकने के लिए कहा। वह मेरे लिए एक ड्रेस निकाल कर ले आया और बोला - मैं पहनाऊंगा। और जिद करके मुझे ब्रा, पैंटी, और दूसरे कपड़े पहनाए। मैं जान बूझ कर झुक रही थी और उसका काम मुश्किल कर रही थी। जब उसने मुझे कपड़े पहना दिये तो मैंने भी उसे रुकने के लिए कहा और अपने कपड़ों का एक सेट, ब्रा, पैंटी ले कर आयी और बोली - अब मैं तुम्हें ये पहनाऊंगी और शाम तक तुम इन्हीं कपड़ों में रहोगे। ये मेरी बकेट लिस्ट का एक आइटम था।
विनय ने खुशी खुशी ब्रा और पैंटी पहन लिये थे। यही नहीं, मैंने उसके होंठों पर लिपस्टिक लगायी और मेककअप भी किया। वह बैठा हुआ खुशी खुशी सब कराता रहा। तब हमने अलग अलग पोज में तस्वीरें खिंचवायी थीं।
हम देर तक इसी तरह की शरारतें करते रहे थे। खाना बाहर से मंगवाया गया था। खाना खाने के बाद मैंने उसे कार्पेट पर सीधे लेट जाने के लिए कहा था। उसके लेटने के बाद मैं उसकी दूसरी तरफ इस तरह से लेट गयी थी कि हम दोनों के सिर एक दूसरे के कंधे पर हों। बहुत मजेदार पोज था ये। बहुत पहले टीवी पर सिलसिला फिल्म देखते समय अमिताभ और रेखा को इस पोज में लेटे देख कर मेरी ये ख्वाहिश हुई थी कि कभी मुझे भी इस तरह अपने प्रियतम के साथ लेटने का मौका मिले। इस तरह से लेटे हुए हम दोनों छत की तरफ देख रहे थे और अंत्याक्षरी खेल रहे थे। दोनों में से गाना किसे आता था। बस बेसुरेपन को ही अपनी कला मान कर मजे ले रहे थे।
रात के ड्रिंक्स बाल्कनी में लेने की योजना थी। तन पर सिर्फ एक एक कपड़ा पहने हुए। ये छूट थी कि जो मर्जी पहन लो बस, एक ही कपड़ा होना चाहिये। मैंने विनय के बैग में से एक टीशर्ट निकाल कर पहन ली थी। विनय को कुछ नहीं सूझा तो वह हाफ पैंट पहन कर आ गया था।
बाल्कनी में गुनगुना अंधेरा था। कांच की मेज पर ड्रिंक सज गये थे। पिछले दिन हमने रैड वाइन पी थी और दूसरे दिन सुबह से ही बीयर की सुराही खाली कर रहे थे। शाम को स्कॉच का प्रोग्राम बना। ये तय हुआ था कि हर बार अलग ड्रिंक लिया जाए। वही सुराही और कुल्हड़। दोनों देर तक एक दूजे की बांहों में झूले पर लेटे रहे।
अचानक मैंने विनय से पूछा था – सिगरेट पीओगे। पूछा था विनय ने – कहां है सिगरेट। न तुम पीती हो न मैं। आएगी कहां से।
- अरे आ चुकी है। बकेट लिस्ट की आइटम है। उस समय याद नहीं रही थी। मैंने ला कर रखी है।
हम दोनों ने ही कभी सिगरेट नहीं पी थी। बस जला कर होंठों से लगानी आती थी। दोनों खूब खांसते रहे लेकिन जब तक पूरी सिगरेट खत्म नहीं हो गयी, कभी मुंह से और कभी नाक से धूंआ निकालने की कोशिश करते रहे।
रात का खाना भी बाहर से मंगवाया गया।
ख़्वाबगाह में दूसरे दिन के तीसरे सैक्स की रस्म बाल्कनी में असली चांद तारों को साक्षी बना कर झूले पर ही निभायी गयी। अद्भुत आनंद के पल थे वे। हम झूले पर ही सो गये थे।
आधी रात को जब हम सोने के लिए भीतर आये तो एक अजब सी खुमारी हम पर तारी थी। मैंने विनय से कहा कि मुझे गोद में उठा कर भीतर ले चलो। उसने मुझे गोद में उठाने के बजाये पीठ पर उठाया। मेरे दोनों हाथ उसकी गरदन पर थे और दोनों पैर उसकी कमर के दोनों तरफ हाथों से संभाले हुए थे। मुझे बहुत मजा आ रहा था और मैंने इसी तरह से उसकी पीठ की सवारी करते हुए विनय से कमरे के कई चक्कर कटवाये।
***