Khwabgah - 8 in Hindi Fiction Stories by Suraj Prakash books and stories PDF | ख़्वाबगाह - 8

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ख़्वाबगाह - 8

ख़्वाबगाह

उपन्यासिका

सूरज प्रकाश

आठ

ख़्वाबगाह में जब मैंने पहली बार सारी घंटियां बजती सुनीं तो मेरी सांस एकदम तेज हो गयी थी। मैंने बेशक दुल्हन की तरह भारी गहने और साड़ी वगैरह नहीं पहने थे लेकिन मेकअप और पहनी हुई लाल साड़ी में मैं किसी दुल्हन से कम नहीं लग रही थी। गहनों का सेट पहना ही था। मुझे सचमुच यह अहसास हो रहा था कि ये मेरी सुहाग रात है। बेशक विनय मेरा पति नहीं था। मैं अपने दोस्त का अनुरोध मान कर यह बाना धारण करके खड़ी थी। दुनिया का आठवां अजूबा घट रहा था। शादी के बाद दोस्त के साथ सुहाग रात। पति के होते हुए।

विनय दरवाजे पर था। उसके दोनों हाथों में सामान था। शॉपिंग बैग्स और ट्राली बैग। उसके पीछे दोनों हाथों में पचीसों की संख्या में रंगीन और बड़े बड़े गैस के गुब्बारे लिए वाचमैन खड़ा था। मैंने वाचमैन से गुब्बारे लिए और ऊपर आसमानी छत तक चले जाने दिये।

वाचमैन के चले जाने के बाद मैंने विनय को दो मिनट के लिए दरवाजे पर ही रुकने के लिए कहा। शापिंग बैग और ट्राली बैग भीतर के कमरे में रख आयी। तब मैंने अपना एक स्कार्फ उसकी आंखों पर बांध दिया और इस तरह से उसका हाथ पकड़ कर भीतर लायी।

कमरे में ढेर सारी मोमबत्तियां जल रही थीं। तब मैंने विनय की आंखों पर से स्कार्फ हटाया और उसकी पीठ से लिपट गयी। विनय फटी फटी आंखों से इस खूबसूरत ख़्वाबगाह को देख रहा था। कमरे में जल रही ढेरों मोमबत्तियां, अगरबत्तियों और फूलों की मिली जुली महक और आंखों को भा जाने वाली सजावट। मैंने बाल्कनी खुली रखी थी और वहां से आती हवा में छत से लटक रही बांसुरी अपने आप बज रही थी।

वह हैरानी से पूरे ड्राइंग रूम को देख रहा था। मैं अभी भी उसकी पीठ से लिपटी थी और उसके हाथों पर मेरे हाथ थे। तीन महीने पहले वह इस जगह को खाली कमरे के रूप में देख कर गया था। उसके मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे। मैं मैं ही करता रह गया था।

मैं काफी देर से उसकी पीठ से लगी खड़ी रही। हौले से उसने मुझे आगे की तरफ किया। मेरी आंखें अभी भी बंद थीं। वह बार बार यही कह रहा था – यकीन नहीं हो रहा है कि मैं अपने ही घर में हूं और तुम दुल्हन के वेश में मेरे सामने खड़ी हो।

वह काफी देर तक मेरा चेहरा चूमता रहा। मेरे अलग होने के बाद उसने ध्यान से एक बार फिर ड्राइंग रूम की एक एक शै को देखा था और मुझसे पूछता जा रहा था कि फलां फलां चीजें मैंने जुटाई कहां से और इनका ये इस्तेमाल मुझे सूझा कैसे। अमूमन हर चीज अपने नये अवतार में नजर आ रही थी। विनय की आंखों में हैरानी और तारीफ दोनों थे। इतनी देर में मैंने विनय से पहला सवाल पूछा – मैं हैरान हो रही हूं कि ये गैस के इतने सारे गुब्बारे तुम टैक्सी में तो नहीं ही लाये होवोगे।

विनय हंसा था – सही कह रही हो। गुब्बारे खरीदना आसान होता है लेकिन लाना इतना आसान नहीं था। काफी दूर एक गुब्बारे वाला तो मिल गया था लेकिन इस तरह से भरे हुए गुब्बारों की होम डिलीवरी के लिए उसे मनाना आसान नहीं था। वह लाता भी कैसे। आखिर मैंने उसे टैंपो का किराया दिया और वह टैंपो में ले कर आया और वाचमैन के पास डिलीवरी दे कर गया था। आखिर कुछ तो मेरा भी होना चाहिये न इस ख़्वाबगाह में। यह कहते हुए उसने एक बार फिर मुझे गले से लगा लिया था। मैं लाजवाब रह गयी थी। जानती थी विनय मुझे खुश करने के लिए कुछ भी कर सकता है।

  • विनय जब तक नहा कर आता, मैंने हाउस वार्मिंग की तैयारी कर ली थी। सिर्फ हाउस वार्मिंग ही नहीं, अपने दूसरे हनीमून की भी। मैंने कालीन पर ही एक सफेद चादर बिछा दी थी। चादर पर अलग अलग आकार के लाल रंग के दिल बने हुए थे। मैंने पूरी चादर पर गुलाब की कलियां बिखेर दी थीं। मैं मुस्कुरा रही थी। तभी विनय ने मुझे बाहों में घेरते हुए कहा – मैं बहुत इमोशनल हो रहा हूं। मेरे लिए आज की शाम दुनिया के नवें आश्चर्य से कम नहीं है कि मेरी एक दोस्त मेरे साथ हनीमून मना रही है और दुल्हन की तरह सज कर मेरे स्वागत के लिए खड़ी है। होता तो यही है न कि दुल्हन के लिए सुहाग की सेज सजाई जाती है और यहां ये काम दुल्हन ही कर रही है।

    मेरे पास इस बात की कोई जवाब नहीं था। मैं ये सब अपने दोस्त का मन रखने के लिए कर रही थी। तभी विनय ने एक और रहस्य खोला था – तुम्हें पता है काकुल, हम, यानी मैं और मेरी ब्याहता बीवी कभी हनीमून पर नहीं जा पाए थे।

    - अरे कमाल है, ऐसे कैसे?

    - कहानी छोटी सी है लेकिन उसकी कसक बहुत मारक है।

    - बताओ ना, मेरे इसरार करने पर विनय ने बताना शुरू किया – मैंने बताया था न कि हमारे घर के सारे फैसले मां की लेती है और उसमें इनकार की गुंजाइश नहीं के बराबर होती है। मेरी शादी का फैसला भी मां ने ही लिया था। और ये कैसे हो सकता था कि हम हनीमून पर कहां और कितने दिन के लिए जाएंगे, मैं तय कर पाता। हुकुम हुआ कि तुम दोनों हनीमून के लिए शिमला जाओगे। मां के फैसलों में एक अच्छी बात ये होती है कि वहां पैसों की कोई कमी नहीं होती है। अब किस्मत की मार कहो या कुछ और, हमारे जाने के एक दिन पहले ही मां बाथरूम में फिसल कर अपनी टांग तुड़वा बैठी। ऐसी हालत में सोच सकती हो कि हमारे हनीमून प्लान का क्या हुआ होगा।

    मुझे हंसी आ गयी। मैंने विनय को दिलासा दी - हम उस हनीमून को रिक्रिएट तो नहीं कर सकते लेकिन इतनी गारंटी जरूर दे सकते हैं कि इस हनीमून में कोई अड़चन नहीं आने देंगे और आपको शिकायत का कोई मौका नहीं देंगे।

  • सेलेब्रेशन की शुरुआत रेड वाइन से की जानी थी। ख्वाबगाह में पहला खाना मैं बना ही चुकी थी। विनय ने पूछा – बार कहां सजाया जाये?

    - मेरे ख्याल से तो बाल्कनी में ही ठीक रहेगा।

    विनय ने बाल्कनी के हिसाब से तैयारी शुरू कर दी।

    विनय सिल्क के नीले कुरते और सिल्क की ही लुंगी में एकदम तरोताजा लग रहा था। मैंने आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लिया था और उसके चेहरे पर अपने लिपस्टिक से रंगे होंठों से कई चुंबन जड़ दिये थे।

    विनय ने तभी मुझसे पूछा था – नहाओगी क्या?

    मुझे भी लग रहा था कि एक बार और नहा लेना चाहिए। इस भारी मेकअप में और लाल साड़ी में बैठ कर वाइन पीने का मजा नहीं आएगा। तभी विनय ने एक शॅापिंग बैग मेरी तरफ बढ़ाया था - ये तुम्हारे लिए आज की ड्रेस है। नहा कर चेंज कर लेना।

    बैग में एक कीमती ट्रांसपेरेंट गाउन था। साथ में एक बॉक्स में सोने की चेन, अंगूठी और हाथों के लिए बेहद खूबसूरत कड़े।

    मैं जब तक नहा कर आती, विनय बाल्कनी में बार सजा चुका था। ख़्वाबगाह में धीमा धीमा संगीत बज रहा था। चारों कोनों में जल रही बड़ी बड़ी मोमबत्तियों की रौशनी थी।

  • उस रात हम देर तक उस गुनगुने अंधेरे में वाइन पीते रहे थे और याद करते रहे थे कि इस खूबसूरत दिन के लिए हमें कितना इंतजार करना पड़ा था। इस इंतजार का फायदा ही हुआ था कि इन पलों को सेलिब्रेट करने के लिए ये खूबसूरत ख़्वाबगाह हमारी जिंदगी में एक खूबसूरत उपहार की तरह आ गया था। हवा के झोंकों में बांसुरी बीच बीच में बज कर माहौल को बेहद रोमांटिक बना रही थी।

    इस ख़्वाबगाह में अपनी पहली रात का एक एक पल पूरी तरह से निचोड़ कर जी रहे थे। इस रोमांटिक माहौल में हम एक नया जीवन जी रहे थे। एक दूसरे को छेड़ रहे थे, मजेदार खेल रहे थे, और पुरानी बातें याद कर करके जोर जोर से हंस रहे थे। भरपूर समय था हमारे पास और उससे भी खूबसूरत माहौल।

    इस पूरे अरसे में मैं अपने सबसे कम्फर्टेबल पोस्चर में यानी उसकी गोद में लेटी रही थी और वह मेरे गीले बालों में उंगलियां फिराता रहा था। मैं उसकी छाती पर हमेशा की तरह उंगलियां फिरा रही थी और चूंटियां काट रही थी। हम दोनों बेहद रोमांटिक पलों में जी रहे थे। हम दोनों को ही ये विश्वास नहीं हो रहा था कि सचमुच ये पल हमारे हिस्से में आये थे।

  • उस रात हम दोनों ने पहली मुलाकात के एक बरस और आठ महीने और सात दिन बाद पहली बार सैक्स किया था और पूरी तरह से अपने आपको एक दूसरे के हवाले कर दिया था। पता नहीं रात के कितने बजे थे, लेकिन वक्त दोनों के लिए थम सा गया था।

    मैं याद कर रही थी कि कितनी बार ये मौका हमारे हाथ में आते आते रह गया था। कुछ मामलों में विनय बेहद डरपोक था। दोस्त के फ्लैट में भी पहले वह चेक करता कि कहीं सीसीटीवी तो नहीं लगा हुआ है। इस बात की तसल्ली हो भी जाती, दूसरी मुसीबत डोर बैल की थी जो ऐन मौके पर बज जाती और हम दोनों डर जाते। यह भी डर रहता कि कहीं किसी और के पास इस घर की चाबी न हो। होटल में कमरा ले कर मुझे ले जाने में विनय की जान निकलती थी। हम दोनों ही उस समय कम उम्र के थे और पकड़े जाने का रिस्क नहीं ले सकते थे। एक और बात थी कि विनय को कैमिस्ट की दुकान से कंडोम खरीदने में बहुत हिचक होती। इन सारी चीजों की वजह से हमारा फिजिकल रिलेशन टलता आ रहा था।

  • अपने ख़्वाबगाह में सुखद यात्राएं करने के बाद हम वहीं कार्पेट पर ही लेट गये थे। इस मिलन में अपूर्व सुख था। अपने प्रिय के प्रति समर्पण का सुख। एक ऐसा सुख जिसके लिए हमने इतने लंबे अरसे तक इंतजार किया था। हम वाइन के, इस ख़्वाबगाह में मनाये गये अपने हनीमून के नशे में कब सोये थे, हमें पता ही नहीं चला था। हम देर तक सोते रहे थे।

  • अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो विनय जाग चुका था। उसका एक हाथ मेरे कंधे पर था। मुझे पता ही नहीं चला था कि कब रात में उसने उठ कर मेरे बदन पर चादर ओढ़ा दी थी।

    मैं फिर से उसकी बांहों में सो गयी थी। विनय के जगाने पर ही मैं उठी थी। वह चाय बना कर लाया था। मैं बेहद खुश थी। रात की खुमारी अभी बाकी थी और मैं अभी भी उठने के मूड में नहीं थी। जब विनय ने बताया कि सुबह के ग्यारह बज चुके हैं तो मैं चौंकी थी। विनय को जाना भी तो होगा। पूछा था मैंने – प्रियतम, नाश्ते में क्या लोगे। तुम्हें जाना भी तो होगा।

    उसने मुझे एक बार फिर बाहों में भरते हुए मेरे तन पर लव बाइट्स बनाते हुए कहा था – जानेमन, जाने का दिल नहीं कर रहा है, इस खूबसूरत ख़्वाबगाह को और ख्वाबगाह में तुम्हें छोड़ कर।

    - तो ठीक हैं, मैं खिलखिलायी थी - ठीक है, हम भी आपको जाने नहीं देंगे। आप जब तक यहां रहना चाहें और ये सुख भोगना चाहें, आपका स्वागत है।

    - तो चलो, हम आपका न्योता स्वीकार कर लेते हैं और कहीं नहीं जाते। जब तक आप हमें धक्के दे कर नहीं निकालेंगी, हम नहीं जायेंगे।

    - जहे नसीब। आप यहां अनंत काल तक, नहीं नहीं, अगले पांच दिन तक टिक सकते हैं और बाद में भी आते जाते रह सकते हैं।

    - अगर इजाज़त हो तो हम इस खुश करने वाले न्यौते के जवाब में कुछ कहना चाहते हैं।

    - इजाज़त है।

    - हम आपको बताना चाहेंगे कि हम पांच दिन तक आपके मेहमान बने रहेंगे और आपको खूब सेवा का मौका देंगे। इस बीच हम दोनों ही इस ख़्वाबगाह से बाहर नहीं जायेंगे, मनमाफिक तरीके से रहेंगे और जब भी दोनों में से किसी का भी मन करेगा, सुख के सागर में गोते लगायेंगे।

    मैं खुशी के मारे चीख पड़ी थी - सच, यू आर ग्रेट हनी बनी। खुश कर दित्ता। लेकिन ये सब किया कैसे?

    - बहुत आसानी से। जिस तरह से तुम्हारे प्रिय पतिदेव एक हफ्ते के लिए सिंगापूर गये हुए हैं और तुम इधर मेरी बांहों में हो, उसी तरह से मेरी प्रिय पत्नी जी के पतिदेव भी एक हफ्ते के लिए कल शाम सिंगापूर के लिए निकल गये हैं और इधर आपकी बांहों में लेटे जन्नत की सैर कर रहे हैं।

    मैं बहुत खुश हो गयी थी। ये मेरी एक अधूरी फैंटसी थी कि हम अपने हनीमून के पूरे अरसे में न तो पूरे कपड़े पहनें और न ही कमरे से बाहर ही निकलें। मुकुल के साथ हनीमून में न सही, विनय के साथ मेरी से अधूरी हसरत पूरी होने जा रही थी। ऊपर वाला भी क्या खेल खेलता है। कौन सा सुख कहां से हम पाना चाहते हैं और कहीं और से पाते हैं। कितनी बार होता है कि हम किसी दरवाजे के बाहर खड़े हो कर खटखटाते रह जाते हैं और भीतर खबर नहीं होती और कहीं और कोई बंद दरवाजों के पीछे हमारी राह देख रहा होता है और हमें खबर नहीं होती।

    ***