Dastane Ashq - 19 in Hindi Classic Stories by SABIRKHAN books and stories PDF | दास्तान-ए-अश्क - 19

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दास्तान-ए-अश्क - 19

एक ऐसा एहसास था!
मानो उसके जिस्म पर बिच्छू रेग रहे हो..!
क्या आज तक वह जूठन  खाती रही?!
जैसे किसी बदचलन औरत से कोई मर्द संबंध नहीं रखना चाहता और उसे अपनी बीवी बनाने से हिचकिचाता है !
"क्या ऐसे ही अगर किसी मर्द का चाल चलन खराब हो तो औरत को यह हक नहीं कि वह उसे छोड़ सके..?"
पश्चिम देशो में शादी करना और तलाक देना बहुत सरल है ,लेकिन हम जिस समाज में रहते हैं वहां शादी को आज भी सात जन्मों का बंधन माना जाता है!शादी करना और उसे निभाना चाहे मन से या बेमन से जरूरी होता है , और उसके दादाजी ने तो साफ कह दिया था कि वह जुबान वाले लोग हैं ! थूंक कर नहीं चाटते !!
क्या अब उसे सारी जिंदगी इसी गलीज  एहसास के साथ काटनी होगी ?
उसकी तकदीर ने आज उसे कहां से कहां लाकर खड़ा कर दिया ..! जहां सिवाय अंधेरे के उसे और कुछ भी नजर नहीं आ रहा था ..!
क्या करें कहां जाएं ..! या  सारी जिंदगी ऐसे आदमी के साथ गुजारे जिस की नजरों में उसका कोई अस्तित्व ही नहीं था..!
या फिर वह खुद को ही खत्म कर ले..?
नहीं वो ऐसा कैसे सोच सकती है..! उसके अंदर जो अंकुर पनप रहा है उसे कैसे खत्म कर दे ? कैसे अपने ही हाथों से अपने बच्चे का कत्ल कर दे ? नहीं वह ऐसा नहीं करेगी..!! वह भावुक जरूर है पर बुजदिल नहीं..! अपने जीवन की सब कठिनाइयों से जूझ कर भी वह जिंदा रहेगी अपने बच्चे को जन्म देगी..! और उसके जरिए अपने सपनों को पूरा करेगी..! उसे बेहतरीन परवरिश देगी..!और एक अच्छा चरित्र वान इंसान बनाएगी..! उसे कभी भी खुद की तरह मजबूर नहीं होने देगी..!
दोस्तों मां बाप बच्चों की असली ताकत होते हैं ..! एक स्वस्थ  समाज का निर्माण एक स्वस्थ परिवार से होता है..! 
जहां पर एक मां बाप (अगर लड़का हो तो )  समाज में किस तरह रहना है! औरतों की कैसे इज्जत करनी है! अपराधिक मानसिकता से कैसे दूर रहना है ये  सिखाते हैं !
अगर एक लड़की है तो उसे आत्मनिर्भर बनाना..!
पुरुष प्रधान समाज में सर उठा कर जीना.. समाज में मर्यादित ढंग से रहना सिखाते हैं..!अगर मां-बाप अपनी परवरिश सही रखें तो समाज में बलात्कार हिंसा चोरी चकारी जैसे बहुत से क्राइम कम हो सकते हैं..!
जहां पर बच्चों को सही फैसला लेने में मां-बाप की सपोर्ट की जरूरत होती है !मेरे हिसाब से मां-बाप को समाज के डर से अपने बच्चों की जिंदगी उनके सपनों और अरमानों की बलि नहीं देनी चाहिए !
उनके साथ एक मजबूत आधार स्तंभ की तरह खड़ा रहना चाहिए !
खासकर लड़कियों के साथ उन्हें जन्म देकर शादी करके एक भार की तरह उतारने की मानसिकता खत्म करनी होगी! तभी "अश्कों की दास्तान"  खत्म होंगी!
  दिन और रात अपनी मर्यादा में बंधे अनवरत  झरने की तरह बह रहे थे !
हर नया दिन एक नई आस लेकर आता! वह भी जैसे दिन गिन रही थी..!
उस नन्हें जीव को इस दुनिया में आने के सास ससुरजी जेठानी सब उसका ख्याल रखते हैं ! लेकिन उसका पति अपनी ही धुन में मस्त था ! वह दिखाती तो ऐसे जैसे उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा, पर उसके भीतर की औरत ना जाने क्यों मन में एक कसक रखते दबाव मे थी जैसे बार बार उनसे बात करना जैसे खुद को अपमानित करना था !
आज उसे अखबार वाले अशवनी भैया की एक बात याद आ रही थी , कि कभी कभी हम मजबूर हो जाते हैं ..! सिवाय अंधकार के हमें कुछ नहीं दिखाई देता !
ऐसे समय हमें खुद को समय और हालात के हवाले कर देना चाहिए क्योंकि जब हमें खुद रस्ता नहीं मिलता तो खुदा हमें खुद रास्ता दिखाते हैं !
उसने भी आज खुद को वक्त और हालात के हवाले कर दिया ..!और उस दिन का इंतजार करने लगी थी !
जब अपना अंश दुनिया में आएगा..!
और एक मसीहा बनकर उसके जिंदगी के दुखों का अंत करेगा..!
आज उसकी गोद भराई थी..! 
नवां महीना चल रहा था!
मायके से उसकी मां भाई और बुआ आने वाले थे..!
सासुजी उसके साथ कमरे में आकर उसे तैयार होने को कहती है..!
बताती है कि बाबू पहला डिलेवरी औरत के मायके में होती है ,तो तू वहां जाने की तैयारी भी कर लेना..!
आज ही तुझे तेरी मां के साथ वहां भेज दूंगी ..!
"नहीं मां मुझे वहां नहीं जाना..!!
क्या आप मेरी मां नहीं हो..?
"पर बेटी तू वहां क्यों नहीं जाना चाहती..?" 
अब वो सास को कैसे बताए कि वहां जाने को उसका मन क्यों नहीं मानता..? 
जिस मां ने उसे अपने कलेजे से अलग कर एक ऐसी आग में जलने के लिए छोड़ दिया , उसके पास जाने से भी उसे डर लगता था! 
सिर्फ उसके शरीर की बनावट के कारण उसे सारी उम्र बोझ समझा !
लडके की चालचलगन देखे बिना उसकी शादी कर दी!
जैसे किसी कर्ज से मुक्ति पा ली हो !
वो वहां जाकर अपना बच्चा क्यों पैदा करें..? 
सास से क्या कहती ..?
उसने सिर्फ इतना ही कहा कि 'माँ वहां पापा जी की तबीयत ठीक नहीं रहती! और भाई बहन अभी छोटे हैं !
जबकी यहां आप सब हो मुझे प्लीज यहीं रहने दो ! 
इससे पहले कि सासु मां कुछ बोलती जेठानी अंदर आकर कहती है !
"सुनो हमने ठेका नहीं ले रखा तुम्हारे तीमारदारी करने का..!  अगर वहां तेरे पापा बीमार रहते हैं तो यहां कौन सा सब तंदुरुस्त हैं ..?
मम्मी तो कुछ काम करती नहीं..!और मुझ अकेले से नहीं होगा  भाई तुम अपने मायके जाकर ही बच्चा पैदा करो..!
अगर यहां तुझे और तेरे बच्चे को कुछ हो गया तो सभी कहेंगे..
"बांझ औरत का साया था , तभी ऐसा हुआ..!! तुम अपने मायके ही चली जाओ..! जो अच्छा बुरा होगा वही होगा..! उसके अंदर की मां तड़प उठी..!
" दीदी कैसी बातें करते हो आप..? 
जो अभी इस दुनिया में आया ही नहीं उसके बारे में क्यों बुरा बोलती हो ..? 
मां आप देखो दीदी कैसी बातें कर रही है..?"
पर उसकी सास कुछ नहीं बोलती..!
"बहु तू अपने मायके चली जा..!
इतना कहकर चुपचाप बाहर चली जाती है!
  कहते हैं माइका मां-बाप के बिना और ससुराल पति के बिना अधूरा होता है!
पर उसके तो सब थे! फिर भी उसका जीवन इतना अधूरा क्यों उसकी समझ मे नही आ रहा था..!  
क्यों वह सब पर एक अनचाहा बोझ थी..? क्यों सब उसके वजूद को नकार रहे थे..?
उसकी जिंदगी तबाह करने मे उसने कोई कसर नही छोडी..! 
खून के आंसू उसने रूलाया है! 
जानने के लिए पढे..  "दास्तान-ए-अश्क"