Him Sparsh - 77 in Hindi Fiction Stories by Vrajesh Shashikant Dave books and stories PDF | हिम स्पर्श - 77

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हिम स्पर्श - 77

77

“नमस्ते। हमें आप अपना मित्र समझें। मैं याना और यह विक्टर।“

“नमस्ते। किन्तु...।” वफ़ाई ने प्रत्युत्तर दिया, किन्तु वह विस्मय से भरी थी।

“आप हम पर विश्वास कर सकते हो। हम आपको कोई...।”

विक्टर की बात सुनकर जीत ने कहा,”ठीक है मित्रों। किन्तु आप तो कहीं विदेश से आए लगते हो। यह हिन्दी?”

“हमने सीख ली। हम जर्मनी से है। यह बातें तो होती ही रहेगी। क्या हम इस हिम को तोडने में आप की सहायता कर सकते हैं?” याना ने कहा।

जीत ने उत्साह जताया,”वाह, यह तो बड़ी अच्छी बात कही आपने। वफ़ाई यह लोग...।” जीत ने वफ़ाई की तरफ देखा। वफ़ाई ने संकेतों से ही जीत को मौन रहने को कहा। जीत रुक गया।

“आपका धन्यवाद। किन्तु अब हमें इसे तोड़ने की आवश्यकता ही नहीं है।“ वफ़ाई ने बात टाल दी।

“अभी तो आप दोनों इस को तोड़ने के लिए पूरे प्रयास कर रहे थे। तो अब क्या हुआ?”

“कुछ नहीं। कुछ नहीं।“ वफ़ाई ने कोई उत्साह नहीं बताया।

“ठीक है, किन्तु यह तो बता दो कि इस हिम को तोड़ने से क्या मिलता? क्या इस हिम के पीछे कोई नया मार्ग है? अथवा कोई गुफा है? क्या है इस के पीछे?” याना ने जीत की तरफ देखा।

“मैं नहीं जानता। वफ़ाई जानती है यह सब।“ जीत ने वफ़ाई की तरफ संकेत किया।

“मैं कुछ नहीं जानती। ना ही मैं कुछ बताना चाहुंगी।“ वफ़ाई ने स्पष्ट कर दिया।

“कोई बात नहीं। आप दोनों को नहीं बताना हो तो ठीक है। हम दोनों स्वयं ही इसे तोड़कर देख लेते हैं।“ विक्टर ने अपने साधन हाथ में लिए और हिम काटने आगे बढ़ गया। याना भी साथ हो गई।

“आप लोग ऐसा नहीं कर सकते। आप इसे मत काटो। वहाँ...।” वफ़ाई ने रोकना चाहा किन्तु रोक नहीं पाई।

“जीत, इन लोगों को रोको।“ किन्तु जीत भी नहीं रोक पाया।

विक्टर और याना ने हिम तोड़ दिया। हिम के टूटते ही विक्टर, याना एवं जीत के सामने विस्मय का नया विश्व खुल गया। वफ़ाई उस विश्व से पहले से ही परिचित थी। उसे कोई विस्मय न हुआ। उल्टा वह क्रोधित हो गई।

“यह क्या कर दिया? मैंने रोका था ना आपको किन्तु आप नहीं रुके। और यह क्या? आपने सारी घटना को कैमरे में कैद कर लिया?”

तीनों में से किसी ने वफ़ाई की बात नहीं सुनी। तीनों सामने दिख रहे विश्व में खो गए थे।

“विक्टर, यह तो अदभूत है। लगता है यहाँ से कोई मार्ग कहीं जा रहा है।“

“याना, यह देखो। किसी नगर के प्रवेशद्वार जैसा लग रहा है। और प्रकृति का खेल भी कैसा कि उसने यह पूरा द्वार हिम से ढँक दिया। किसी को ध्यान में ही नहीं आएगा कि इससे आगे कोई मार्ग भी हो सकता है।“

“मुझे तो यह किसी परिकथा सा लगता है। यह रास्ता कहाँ जाता होगा? चलकर देखें?” जीत ने उत्साह व्यक्त किया।

“वफ़ाई, चलो आगे चलते हैं। तुम बताओ यह मार्ग कहाँ जाता है? इस मार्ग पर और क्या क्या विस्मय भरे पड़े है?” जीत ने वफ़ाई को भी आमंत्रित किया।

“मैं ना तो कुछ कहूँगी और ना ही साथ चलूँगी। और आप तीनों को भी कहती हूँ कि इससे आगे मत जाना।“ वफ़ाई अभी भी विचलित थी।

“यदि आगे मार्ग है तो जाने में क्या...?” जीत ने कुछ कहना चाहा, वफ़ाई ने उसे रोक दिया।

“विक्टर, इस मार्ग पर निश्चय ही कोई रहस्य है जिसे यह लड़की छुपाए रखना चाहती है। तुम...।” ”मेरा नाम वफ़ाई है।“

“ठीक है वफ़ाई। किन्तु तुम किस बात को छुपाना चाहती हो? कुछ तो बताओ कि बात है क्या?”

“याना, मैं कुछ नहीं बता सकती, ना ही बताना चाहती हूँ। बस आप लोग आगे जाने का आग्रह ना करें। उचित होगा कि हम सब लोग यहीं से लौट जाएँ।“

“वफ़ाई, मान लेते हैं तुम्हारी बात। किन्तु जब यह गुफा और मार्ग सामने ही खुला पड़ा है तो इस मार्ग पर थोड़े दूर तक जाने में क्या आपत्ति है? मैं तो जाना चाहता हूँ। सात आठ मिनट में लौट आऊँगा।“

जीत ने गुफा के अंदर प्रवेश कर दिया। वफ़ाई उसे जाते हुए देखती रही। विक्टर और याना ने भी जीत को जाते हुए देखा, वफ़ाई के मुख पर बदलते भावों को भी देखा। वफ़ाई के मुख पर मिश्रित भाव थे। वह जैसे जीत को रोकना भी चाहती थी और नहीं भी। वफ़ाई बड़ी ही दुविधा में थी-

मैं तपस्विनी से जीत को मिलाना तो चाहती हूँ किन्तु यह दो परदेशी? यह दोनों नहीं आते तो जीत मैं तुम्हें स्वयं उससे मिलाने ही वाली थी। यदि यह दोनों ना आते तो हम अभी उस तपस्विनी के सानीध्य में ही होते।

और यदि यह दोनों नहीं आते तो? तो हिम टूटता नहीं। और यदि हिम नहीं टूटता तो? तो कभी भी उस से नहीं मिल पाते। यह हिम मेरी धारणा से अधिक कठोर निकला। जीत में इतनी शक्ति कहाँ थी कि वह हिम तोड़ पाता।

यह दोनों ना आते तो जीत को मैं तपस्विनी से कभी नहीं मिला पाती। जीत को यह अवसर दूसरी बार नहीं मिलने वाला। तो क्या इन दो परदेशीयों को लेकर मुझे अंदर जाना चाहिए?

वफ़ाई विचार मग्न थी तभी अंदर से कुछ ध्वनि आई। वफ़ाई की विचार यात्रा अटक गई। वह गुफा की अंदर दौड़ी, याना और विक्टर भी।

अंदर जीत हाँफ रहा था। उस की सांसें फूल रही थी। जीत के बिलकुल सामने एक बडा सा हिम का टुकड़ा गिर कर पड़ा था।

“यह तो हिम गिरने की ध्वनि ही थी। जीत, क्या यह टुकड़ा अभी अभी गिरा है?” विक्टर ने जीत का हाथ पकड़ लिया। जीत की आँखों में देखा। वह भयभीत थी। वहाँ शून्यता थी। वहाँ स्तब्धता थी। और जीत के अधरों पर था मौन। एक भयग्रस्त मौन।

भय से जीत के ह्रदय की गति तेज हो गई थी। विक्टर ने शीघ्रता से ओकसीजन की नली को जीत के नाक से जोड़ दिया। जीत ज़ोर से साँसे लेने लगा। विक्टर जीत के हाथ को घिसने लगा। किन्तु जीत का शरीर ठंडा पड रहा था। वफ़ाई भी विक्टर के साथ जुड़ गई। याना सब कुछ केमरे में कैद कर रही थी। याना ने देखा कि स्थिति गंभीर होती जा रही है। ऑक्सीज़न होते हुए भी सांसें मंद हो रही थी। याना ने एक स्थान पर केमरा रख दिया। वहाँ से वह सब कुछ अपने आप में कैद करता रहा।

याना गुफा के बाहर दौड़ गई। अपने सामान में कुछ ढूँढने लगी। किन्तु जिस वस्तु की खोज थी वह उसे नहीं मिल रहा था। वह पूरा समान उठाकर अंदर चली आई।

“विक्टर, तुम दवाइयाँ ढूंढो, मुझे मिल नहीं रही है। तब तक मैं और वफ़ाई जीत को संभालते हैं।“

याना भी वफ़ाई के साथ जुड़ गई। विक्टर ने कुछ गोलियां ढूंढ निकाली।

“वफ़ाई, किसी भी तरह से यह गोली जीत को खिला दो। जल्दी करो।“

“किन्तु गोली खाने के लिए यहाँ पानी ही नहीं है। चारों तरफ हिम ही हिम है। यह कैसे...?”

याना ने कहा,”इस गोली को पानी की अवश्यकता ही नहीं। तुम जीत का मुंह खोलो मैं गोली अंदर डाल देती हूँ। गोली अंदर जाते ही स्वयं पिघलने लगेगी। मुंह खोलो जीत का, वफ़ाई, थोड़ा अधिक, हाँ ठीक है।“ वफ़ाई के प्रयासों से जीत का मुंह थोड़ा खुला और याना ने गोली अंदर डाल दी।

अंदर जाते ही गोली असर दिखने लगी। पिघलने लगी।

“क्या इस गोली से जीत ठीक हो जाएगा?” वफ़ाई ने चिंता व्यक्त की।

“अभी भी जीत का मुंह खुला है। याना, वफ़ाई, कैसे भी कर के जीत का मुंह पूरा बंध कर दो।“

विक्टर भी याना और वफ़ाई के साथ जीत के मुंह को बंध करने में लग गया। जीत की सांसें अभी भी तेज चल रही थी। ऑक्सीज़न की नली नाक पर ही थी। मुंह में गोली भी थी किन्तु मुंह खुला रहने के कारण हिम की ठंडी हवा मुंह के मार्ग से शरीर के अंदर घुस रही थी जिसके कारण गोली की असर नहीं हो रही थी।

तीनों ने खूब प्रयास किए पर जीत का मुंह बंध ही नहीं हो रहा था। जीत का शरीर ठंडा पड रहा था। ह्रदय की गति भी मंद पड रही थी। साँसे तेज हो रही थी। आँखें अभी भी भय से ग्रस्त खुली ही थी। और जीत यह सब बातों से अलिप्त था। उसे ज्ञात ही नहीं था कि उसे क्या हो रहा था? उसके साथ यह तीन लोग क्या कर रहे थे? वह स्थिर सा, निस्तेज सा, निर्लेप सा था। और अब वह धीरे धीरे निर्जीव सा होता जा रहा था। तीनों के तमाम प्रयास विफल होते जा रहे थे। जीत का शरीर कोई प्रतिभाव नहीं दे रहा था। याना ने जीत की नस को जांचा।

“विक्टर, वफ़ाई। जीत के नसों की गति मंद होती जा रही है, अत्यंत मंद हो गई है। किन्तु अभी भी कुछ किया जाय तो...।”

“तो? तो का क्या अर्थ है याना?” वफ़ाई विचलित हो गई।

“वफ़ाई धैर्य रखो। हम प्रयास कर ही रहे हैं ना। याना एक काम कर सकते हैं। जीत को उठा कर इस गुफा से बाहर निकालते हैं।“

विक्टर जीत की तरफ बढ़ा।

“इससे क्या होगा?”

“वफ़ाई, इस गुफा का तापमान गुफा से बाहर वाले स्थान से कहीं नीचा है। चार से पाँच डिग्री नीचा होगा। याना, तुम उसके हाथ पकड़ो, मैं उसे कंधे पर उठा लेता हूँ।“

“विक्टर, याना, कुछ भी हो जाय किन्तु जीत को कुछ नहीं होना चाहिए।“ वफ़ाई भी विक्टर तथा याना का साथ देने लगी।

किसी भी तरह विक्टर ने जीत को कंधे पर उठा लिया और दो तीन कदम चला ही था कि किसी की ध्वनि ने उसे रोक दिया।

“उसे वहीं छोड़ दो। डरने की कोई आवश्यकता नहीं है।“

सभी उस नई ध्वनि की दिशा में मूड गए। सामने एक स्त्री खड़ी थी। उसके मुख पर दिव्य शांति थी।