कहानी में मुख्य भूमिका उत्तम नाम के व्यापारी की है, जो एक मेहनती और बुद्धिमान है, जो हमेशा खुद के लिए कुछ करने से पहले, दूसरे लोगों के बारे मे सोचता है। उत्तम अपने जीवन में मुश्किलों का सामना अपनी बुद्धिमत्ता से करता है। बुराई उसके आस पास हुमेशा उसका बुरा चाहती है, पर वह बुराई से दूर रहकर हमेशा अपनी मुश्किलों का हल निकलता है।
सायंकाल का समय है, आसमान मे हल्की लाली छाने लगी है, दिन डूबने से पहले सूरज अपनी दिन की कार्यप्रणाली को पूरा कर रात्रि की तैयारियों मे जुटा है, हल्की ह्वाएँ अपने सुर में गा रही हैं, मौसम का मिज़ाज भी बहुत सुहाना है।
कुछ व्यापारियों के साथ उत्तम तीव्र गति से एक शहर से दूसरे शहर की ओर बढ़ रहा है। पैदल सफ़र तय करते-करते सभी व्यापारियों की गति धीमी होने लगी है। व्यापारियों की दशा देखकर,
उत्तम- "थोड़ा विश्राम किया जाय''
"हाँ बहुत थक गये अब और नही चला जाता, मेरे तो हाथ पैरों ने जवाब देना शुरू कर दिया है''-दूसरे व्यापारी ने उत्तम से कहा!
उत्तम- ''ठीक है पास के एक ढाबे में तोड़ा विश्राम कर लेते हैं, फिर यात्रा प्रारंभ करेंगे।
इतना कहॅकर सब ढाबे की तरफ बढ़ने लगे।
ढाबे मे पहुँचकर सभी व्यापारियों ने जलपान किया और आराम फरमाने लगे।
कुछ ही देर में आसमान तारों से चमकने लगा, और सभी व्यापारियों ने अपना सफ़र तय करना शुरू किया।
चलते चलते रात बहुत हो चुकी थी।
उत्तम ने व्यापारियों से कहा- "रात काफ़ी हो गई है काफिले को यही पड़ाव डाल लेना चाहिए।''
उत्तम की बात मान कर व्यापारियों ने अपने टेंट लगा लिए और विश्राम करने लगे। रात्रि के कुछ पल बिता कर सभी व्यापारियों ने अपना मार्च शुरू किया। थोड़ी देर बाद शहर आ गया, सभी व्यापारी व्यापार स्थल मे पहुँचे और अपना कार्य करने लगे।
सभी लोग अपने काम मे इतना व्यस्त हैं कि समय का पता नही चला। व्यापार का कार्य पूरा कर सभी व्यापारी अपने घर पहुँचे। उत्तम को घर पा कर उसके माता पिता खुश हुये।
"इस बार तो बेटा तुम समय पर आ गये इससे ज़्यादा खुशी ये है की त्योहार के समय तुम हमारे साथ हो" - उत्तम के पिता बोले।
उत्तम- "पापा सारा सौदा त्यौहार की वजह से जल्दी-जल्दी हो गया।"
पन्नालाल- "चलो अच्छा है, ईश्वर की कृपा है।
बेटे उत्तम की रात दिन की मेहनत पर उनके पिता पन्नालाल बहुत खुश थे। उत्तम अपने काम और लगान से बहुत बड़ा व्यापारी बन गया। अब उसे व्यापार के लिए बाहर नही जाना होता है, उसने व्यापार के लिए कई सारे लोग नियुक्त किये। उत्तम का व्यापार अच्छा चलने लगा। कुछ समय बाद उत्तम की पत्नी उर्वशी ने पुत्र को जन्म दिया। पुत्र की प्राप्ति से से दोनों पति पत्नी और सभी लोग खुश थे।
कुछ समय उत्तम एक बड़े व्यापारी के रूप में जाना जाने लगा। उदार स्वभाव होने के कारण उसने अपना कारोबार का संचालन अपने सगे सम्बंधियों को शौपा। पैसों की माया देखकर उसके कुछ सखे सम्बन्धियों ने उसके साथ धोखा कर उत्तम के कारोबार को हाथिया लिया। बेटे की मेहनत की पूँजी इस तरह लूटता देख पन्नालाल को अचानक दिल का दौरा आया और उनका देहान्त हो गया। पिता की मौत से उत्तम पूरी तरह से टूट गया था। इधर घर की स्थिति बहुत दयनीय होने लगी थी, मजबूरी मे आ कर उत्तम को अपना घर बेचना पड़ा। बूढ़ी माँ, पत्नी अपने नन्हे १ वर्षीय बालक को लेकर उत्तम शहर की ओर निकला। "हे भगवान मैं तेरी हर परीक्षा देने के लिये तैयार हूँ, पर मेरे परिवार की ये दशा मुझसे देखी नही जाती।'' मन ही मन सोचता हुआ उत्तम आगे बढ़ा। तभी रास्ते में एक व्यापारियों का काफिला मिला, जिसमें एक बड़ा व्यापारी जो उत्तम के साथ कभी शहर शहर जाकर व्यापार किया करता था। उत्तम को देखकर व्यापारी को बड़ा आश्चर्य हुआ और कहने लगा- "ये क्या हाल बनाया है आपने, इतनी धूप मे ये बच्चे को कहाँ घुमा रहे हो?"
उत्तम- "मेरे सगे सम्बंधियों की वजह से मुझे आज अपने परिवार के साथ दर-दर घूमना पड़ रहा है।''
उत्तम ने सारी व्यथा उस व्यापारी को सुनाई, उत्तम की बात सुनकर व्यापारी को बहुत दुख हुआ। उसने उत्तम को अपने काफिले मे शामिल होकर फिर से कार्य करने की सलाह दी, किंतु उत्तम ने व्यापार वाला काम फिर से करने के लिए मना कर दिया।
उत्तम- ''वर्षो की मेहनत से जमा किया धन एक पल में मुझसे दूर हो गया है, मेरा उस काम में मन नही है।
व्यापारी- ''और दूसरा कौन सा कार्य है जो आप करोगे, व्यापार के कार्य मे तो आपको महारथ हासिल है। जो हुआ उसे भूल जाओ, एक नये सिरे से अपना कार्य शुरू करो।
उत्तम- ''कार्य तो में नये सिरे से शुरू करूँगा पर व्यापार का नही इसके लिए आपको मुझे कुछ मदत करनी होगी।
व्यापारी- ''ठीक मैं आपके साथ हूँ, पर आप कौन सा व्यवसाय करने वाले हो?
उत्तम- ''मैं सूती ग्रामोद्योग का कार्य शुरू करने वाला हूँ, बस आपके सहयोग की ज़रूरत है।
व्यापारी उत्तम की बात सुनकर खुश हुआ और उसकी मदत लिए सहमत हो गया। उत्तम को व्यापारी ने उधार के रूप मे कुछ राशि देकर चला गया।
फिर क्या था उत्तम ने पास के ही गाँव से एक छोटे अनुपात में कपास खरीदना शुरू किया, पहले तो उत्तम ने रज़ाई और अन्य वस्तुएँ घर पर अपने परिवार की मदत से ही तैयार करता फिर बाज़ार मे उसे बेच आता। ये सब उत्तम ने एक वर्ष तक किया। कुछ समय बाद गाँव मे किसानों की एक प्रदर्शनी में उसने अपनी एक छोटी से दुकान लगाई। जिसमे उसे बहुत मुनाफ़ा हुआ और प्रदर्शनी समिति ने उत्तम को उसके कार्य के लिए सम्मानित किया। और उत्तम को ग्रामीण बैंक से कुछ राशि ईनाम के रूप में प्रदान की। उत्तम बहुत खुश हुआ और उसने मन ही मन सोचा ''अब थोड़ा पैसे भी आ गये हैं, कारोबार को थोड़ा बढ़ाया जाय।
अगले दिन अपने बेटे के साथ वह शहर गया उसने छोटे उद्योग के लिए कुछ मशीनें खरीदी और गाँव में एक छोटा सा उद्योग लगाया। शुरूवात में उत्तम को बहुत कठिनायों का सामना करना पड़ा। उद्योग में कार्य करने के लिये उत्तम ने गाँव के कुछ लोगों को नियुक्त किया। उत्तम के कारोबार को यूँ बढता देख, उत्तम लोगों की आखों मे चुभने लगा। गाँव के कुछ गन्दी मानसिकता वाले लोगों ने गाँव के भोले भाले लोगों को उत्तम के खिलाप भड़काना शुरू कर दिया कि,
''उत्तम आप लोगों से सस्ते दामो में कपास और भेड़ की ऊन खरीदता है, और वह खुद उसे ऊँचे दामों में बेच कर अच्छा मुनाफ़ा कमाता है।''
फिर क्या था उत्तम को गाँव वालों ने कपास और भेड़ की ऊन देना बन्द कर दिया। कच्चा माल नही मिलने से उत्तम को भारी नुकसान उठाना पड़ा। मन ही मन उत्तम बहुत दुखी हुआ और सोचने लगा, ''ये सब अचानक कैसे हुआ? सब ठीक चल रहा था और गाँव वालों ने अचानक अपना फैसला बदल क्यों दिया। इसके पीछे कुछ तो साजिश है।"
आख़िर में उत्तम ने सोच समझ कर एक फ़ैसला लिया, उसने सारे कच्चे माल के व्यापारियों की बैठक अपने घर में बुलाई और सभी को गाँव से कच्चा माल खरीदने से मना कर दिया। इधर पूरे गाँव मे अपने उद्योग को बेचने की झूठी अपवाह फैला दी। अब क्या था गाँव वालों की परेशानी और बढ़ने लगी। अन्त में गाँव वाले निराश होकर उत्तम के पास आये और अपने किये पर शर्मिंदा होकर माफी माँगने लगे।
''हमें माफ़ कर दो, हम से बहुत भूल हुई है। कुछ लोगों के बहकावे में आकर हम सभी ने अपना और आपका बहुत नुकसान किया है, उद्योग को बेचकर आप हमें और सज़ा मत दिजिये। हम कच्चा माल अब से आपके उद्योग में देंगें।"
उत्तम- ''ये उद्योग हम सब की गुजर बसर का साधन है, इसी उद्देश्य से मैने गाँव में ये उद्योग लगाया है। मुझे उद्योग नहीं बेचना पर इसके लिये आगे क्या भरोसा की आप लोग उद्योग को लिये कच्चा माल दोगे।''
उत्तम की बात सुनकर गाँव के मुखिया ने उत्तम को भरोषा दिलाया कि आगे भी उद्योग को बराबर कच्चा माल मिलता रहेगा।
उत्तम गाँव वालों का स्वभाव जनता था, वह किसी का ग़लत नही सोचता इसलिय उसने ये युक्ति बनाई थी। गाँव वालों ने कच्चा माल देना शुरू किया, उत्तम का कारोबार धीरे धीरे उच्चाइयों को छूने लगा। उत्तम ने व्यापारी से लिया ऋण ब्याज के साथ चुकता कर दिया।
“बुरा व्यक्ति लाख कोशिश कर ले,
पर नेकी पर चलने वाले व्यक्ति के सामने,
हमेशा अपना सर झुकाता है।’’
अपनी मेहनत और लगन से उत्तम ने अपना वही नाम वह सौहरत फिर से हासिल कर ली। अपनी बुद्धिमत्ता और लगन से उसने हर कठिनाइयों का सामना कर जीवन में सफला हुआ।
© धीरेन्द्र सिंह बिष्ट