Manchaha - 3 in Hindi Fiction Stories by V Dhruva books and stories PDF | मनचाहा - 3

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मनचाहा - 3

(आगे की कहानी जानने के लिए मनचाहा और मनचाहा 2 पढ़ें)

बसस्टेंड पहुंच कर दिशा से हायहल्लो किया उतने में बस आ गईं। ईधर उधर की बातें करते करते मेरा ध्यान खिड़की से बाहर गया तो मैंने वहीं लड़की को कल वालीं हीं कार में जातें हुएं देखा।
१५ मीनट बाद हम कोलेज पहुंच गए। कोलेज लाइफ का एक अपना हीं मजा है सब कितना फ्री लगता है,कोई भी कपड़े पहने, किसी से भी बात करें।
- यहां पर तो हम एकदम ढिंचाक स्टाइल में रह सकते हैं क्यो दिशा?
- हा यार! बोरींग स्कूल ड्रेस से छुटकारा तों मिला।
आज तो वक्त से पहले पहुंच गए थे। थोड़ी देर में क्लास शुरू हो गई। तीन लेक्चर खत्म होने के बाद एक घंटे के लिए फ्री थें, हमारे biochemistry की लेब के मनोज सर छुट्टी पर थे। मैं और दिशा केंटीन चले गए। सुना है वहां के समोसे बहुत फेमस है। जब हम वहां गए तों सभी टेबल्स भरें हुऐ थे। मैं जगह ढूंढ रही थी तभी मेरी नज़र एक कौने में ख़ाली टेबल पर पड़ी। मैं और दिशा जट से वहां पहुंच के बैठ गए। हमने दो प्लेट समोसे और एक कोक मंगवाए।
- पाखि तुने अपने लिए कोलड्रिंक मंगवाया, मेरा तो मंगा।
- पगली वो तेरा ही है, मुजसे सोफ्ट ड्रींक नहीं पिया जाता, मैंने कभी चक्खा तक नहीं।
- ओह! सोरी, मुझे पता नहीं था।
- बेब्स दोस्ती में नो सोरी, नो थेंक्यु।
इतने में समोसे आ गए और वो लड़की भी अपने फ्रेंड्स के साथ आ गई। वो लड़का भी था जिसके साथ वो कार में थी। मैंने सबको देखा पर उनमें से कोई हमारी क्लास का नहीं लग रहा था। मैंने सुना सब उस लड़की को निशा कह के बात कर रहे थे।
मैंने दिशा से पूछा - क्या यहां बाहर के स्टुडेंट आ सकतें हैं?
दिशा- नहीं, क्यो? ऐसा क्यु पूछ रहीं हैं? बायफ्रेंड को बुलाने का इरादा है क्या?
- चल हट, मेरा कोई बायफ्रेंड नहीं है। होता तो क्या तेरे साथ बैठती?
- ये बात भी सही है। कोई नहीं कालेज खत्म होने तक कोई न कोई मिल ही जाएगा ?
- नहीं दिशा, शादी के बारे में मैंने पहले ही तय कर रक्खा है।
- लव-मैरिज??
- नहीं रे...
- शादी वहीं होगी जहां मेरे घरवाले कहेंगे।
-  सोच तों अच्छी है तेरी, पर मानले तुझे कोई पसंद आ गया तो?
- ऐसा होगा हीं नहीं। वैसे इरादों की पक्की हुं मैं।
- तु बता दिशा, तुझे कोई लड़का पसंद आया तो क्या करेगी?
- मम्मी पापा से कहुंगी और क्या। उन्होंने भी तो लव-मैरिज की है। सब उनको बताकर ही होगा। मेरे मम्मी-पापा आज के जमाने की सोच रखने वाले हैं। और एक बात बता,मुझ जैसी हट्टी कट्टी, पहलवान लड़की से कोन प्यार करेगा?
- ओये तु पहलवान हो तों क्या हुआ, दिल तो तेरा अच्छा है ना। भगवान ने तेरे लिए भी कोई न कोई बनाया हीं होगा, और अब जल्दी समोसे खत्म कर दूसरे लेक्चर का टाईम होने वाला है।
- हा यार! बातों बातों में पता हीं नहीं चला।
- मैंने एकबार फिर से उस ओर देखा जहां निशा बैंठी हुईं थीं। वे सब भी नीकल ही रहें थे। नीशा के साथ वाले लड़के ने बिल खाते में लिखने को कहा।
- दिशा ये लोग तो हर रोज यहां आते लगते हैं। केंटीन वाला भी उन्हें पहचानता है। बाहर के स्टूडेंट्स यहां कैसे आ सकतें हैं?
- तु चलना मेरी अम्मा, क्यो इसमें पड़ना हमें? खा पी कर चले जाते हैं और क्या।
फिर पुरा दिन लेक्चर्स में चला गया। मैं और दिशा कालेज से निकल रहें थे तब दो लडके हमारे पास आए। वह हमारी हीं क्लास के थे।
- हाय पाखि! मेरा नाम साकेत है और ये राजा। हम आपके क्लासमेट है। हमने आपकों कल बस में देखा था।
दिशा- हां, तों?
- कुछ नहीं, हम भी आपकी हीं की बस में आते हैं। हम राजनगर में रहते हैं।
दिशा- हां,तो?
दोनों लड़के एक-दूसरे के सामने देखने लगे की क्या बोले।
मुझे अंदर ही अंदर हंसी आ रही थी। फिर मैंने ही कहां,  जी मैंने भी आपको कल बस में देखा था।
दिशा दोनों को घूर रही थी। मैं अजनबी से जल्द बात नहीं कर पातीं। क्या बोलु सोच रहीं थीं, फिर दोनों को कल मिलते हैं कह के चल दिए बसस्टेंड की ओर। वहां पहुंचते ही बस आ गईं। हमारे साथ साकेत और राजा भी बस में चढ़ गए।
-दिशा एक बात बता, हमारी क्लास 42 स्टुडेंट्स है। उनमें हम को मिला के 14 लडकीयां है। उन सब को छोड़ ये हमारे साथ क्यो बात करने आए?
- क्या पता? कल पूछतीं हुं उनसे।
- जाने दो, कुछ नहीं पूछना।

घर आके पता चला की हमें शादी के लिए जाना है। एक तो कालेज से थके-हारे घर आईं और अब ये शादी। मैंने भाभी को मना कर दिया। भाभी ने कहा कि अभी तों 6:00 बजे हैं, हमें शादी अटेंड करने 7:30 बजे जाना है। तब तक तुम फ्रेश हो जाओगी। जाना तों नहीं चाहती थी फिर भी हां कह दिया।
उपर कमरे में आ कर पहले तो नहाने चली गई। नहाने के बाद निंद आने लगी, मैं टी-शर्ट और ट्राउजर पहनें हीं सो गईं।
सात बजे मिता भाभी ने आवाज़ लगाई तैयार होने के लिए तब जाके आंख खुली।
थोड़ी निंद से ही थकान मिट गाई। वोडरोब खोलकर सामने खड़ी रही, समझ नहीं आ रहा था क्या पहनूं। फिर एक ड्रेस पे नज़र टीकी, ओफव्हाईट ड्रेस में गोल्डन बोर्डर और लाल दुपट्टा। चार महीने पहले फरवरी में घरवालों ने बर्थडे गिफ्ट दिया था, साथ में गोल्डन जुमके भी थे। आज पहनने का मौका मिला। जल्दी से तैयार हुई, हल्का सा मेकअप और रेड लिपस्टिक लगाकर नीचे आई।
सेतु भाभी- हाय मैं मरजावा! क्या गजब ढा रही हैं तु, कहीं किसी की नजर न लगे। इधर आ काला टीका लगा दूं।
- क्या भाभी इतनी भी अच्छी नहीं लगती, झूठ मत बोलो।
मिता भाभी- क्या झूठ पाखि, सही तो कह रहीं हैं सेतु भाभी।
इतने में दोनों भाई भी आ गए।
कवि भैया- पाखि सच हीं कह रही  है, ठीक-ठाक हीं लगती है यह। खालि पिली  चने के झाड़ पर मत चढ़ाओ।
रवि भैया- काहे बेचारी को परेशान कर रहे हो कवि? लाखों में एक हैं मेरी बहना।
- सिर्फ लाखों में भैया????
रवि भैया- अरे नहीं, करोड़ों-अरबो में एक हैं तूं।
कवि भैया- हा, इसके जैसा और कोई नंग हों भी नहीं सकता ?
चन्टू-बन्टू- अरे जल्दी चलो सब लोग। बुआ की तारीफ करते रहोगे तो वहां शादी भी खत्म हो जायेगी और हमें भूख भी लगी है। खाना खतम हो गया तो? हमें भूखे पेट हीं घर आना पड़ेगा।
उनकी बात पर सब ठहाके लगाते बाहर निकले शादी अटेंड करने के लिए।

कहानी के अगले भाग की थोड़ी प्रतीक्षा करें। आपको मेरी यह कहानी का भाग पसंद आएं तो आप अपनी अमूल्य समीक्षाएं और रेटिंग्स जरूर दें  ?