Mother's tear in Hindi Moral Stories by shekhar kharadi Idriya books and stories PDF | माँ के आंसू

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माँ के आंसू

कहते है की , माँ हमारा पहला प्यार होती है, हम उसके रक्त, मज्जा, मांस, अस्थियों, भावनाओं और आत्मा के अहम हिस्से है । जीवन का सबसे पहला स्पर्श माँ का होता, पहला दुलार माँ का, पहला चुंबन माँ का, पहला आलिंगन माँ का, पहली गोद माँ की जो एक अजनबी दुनिया में आंख खोलने के बाद सुरक्षा, कोमलता, ममता और बेपनाह आत्मीयता के अहसान से भर देता है । हमें पहली भाषा माँ सिखाती है । पहला वो अनमोल शब्द हम बोलते है वह होता हैं माँ !  कहते  है कि ईश्वर हर जगह मौजुद नही रह सकता, तो उसने हर घर में अपने जैसी एक माँ भेज दी । माँ की गोद से उतर जाने के बाद जीवन भर हम माँ की तलाश ही तो करते है  बहनों में, प्रेमिका में, पत्नी में, बेटियों में,  मित्रो में, कल्पनाओं में बनी स्त्री - छवियों में एक आधी-अधूरी, टुकड़ों में बंटी असमाप्त तलाश जो कभी पूरी नही होती । पूरी हो भी कैसे माँ के जैसा इस दुनिया में अमूल्य तोहफा दूसरा कोई हो भी नही सकता, क्योंकि वो साक्षात ममता की मूर्ति है, वो स्नेह का सागर है, जिसके सामने आपकी लाखों-करोडों की दौलत भी क्षण भर में फीकी पड़ जाएगी ।

सूना है की दुनिया की सबसे डिफिक्ट जाॅब माँ की होती है, जो बिना छूट्टी लिये बगैर नोन स्टॉप हार्ड वर्क सिर्फ अपने बच्चों के लिये करती है । संपूर्ण खंत और मेहनत से परवरिश करती है । अपनी पूरी लाईफ बेझिझक होकर बच्चों को संवारने न्योछावर कर देती है । वो भी बिना सेलेरी , पेन्शन लिये बगैर अपना मातृत्व का फर्ज निस्वार्थ निभाती है । चाहे बच्चे कितने भी बड़े क्यूँ न हो जाये, लेकिन माँ नजरों में वो बच्चे ही रहते है । क्योंकि माँ वाकई में महान और अद्भुत है जिसकी तुलना किसीसे करना नामुमकिन के बराबर है ।

लेकिन आज वक़्त और हालात के सामने माँ की परिभाषा
साफतौर पर बदलने लगी है । क्योंकि बेटा अब पत्नी का बन चुका है । लेकिन यह कैसे भूल जाता है कि माँ ने उम्र के उस पड़ाव पर अपनी इच्छाओं को मारा है । वह माँ आज उम्र के इस पड़ाव पर वृद्धा आश्रम में पड़ी है । जैसे वो काम करने असमर्थ हो गई तो अपने पर बोझ समझ लिया, हम कैसे भूल जाते है कि जिसने अपने गर्भ में नव माह तक धारण किया, फिर विकट स्थिति में लालन-पालन किया वो आज निकम्मा बूढिया हो गई । जिसके बिना हमारा अस्तित्व इस धरा पर कभी संभव नही था ।

यह कहानी रमा और अपने पारिवारिक जीवन में संघर्ष की और इर्द-गिर्द घुमती है । जिसमें रमा ने कठिन हालातों के आगे हारे बिना जिम्मेदारी हक़ बखूबी निभाती है । लेकिन वक़्त की चोटने उसके ह्रदय पर गहरा प्रहार किया की  सब कुछ तबाह हो गया, और अपने बेटे ने भी मुँह मोड़ लिया, पत्नी के बहकावे में आकर,  जैसे माँ जैसा अनमोल रिश्ता नजरअंदाज कर देता ।  अब इसी तरह आगे कहानी नीचे प्रस्तुत है ।

रमा पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा था । क्योंकि उसके पति का अचानक गंभीर बिमारी से देहांत हो गया था । एक तरफ दुःख के आंसू सूखे ही नही थे, वहाँ दूसरी तरफ जिम्मेदारी का बोझ आ पड़ा था । जो नन्हें से दो बेटा, बेटी का संपूर्ण लालन, पालन करना था । और वक्त कि चोट से उभरकर मरहम भी आने वाले भविष्य पर लगाना था । जो रमा के लिये कठिन से कठिन चुनौती पुर्ण कार्य था ।

अब रमा अक्सर पड़ोसी के मकानों में जाकर बर्तन, झाडू पोंछा एंव सफाई करके, अपने परिवार का निर्वाह करतीं थीं। जो कुछ मिलता वो पहले अपने बच्चों को खिला देती, फिर जो कुछ आधा रूखा, सूखा खाने को बचा हो वो खाकर सो जाती, कभी-कभी भूखे पेट भी गुजारा हो जाता था । जैसे कई बार पानी पीकर भी भीतर में छटपटाती भूख को मार देती थी । जो ममता का उत्तम स्नेह बच्चों के प्रति साफ छलकता था ।

वक्त साथ रमा को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, क्योंकि जरूरत दिनप्रति दिन बढती जाती थी । इसलिए अब वो रात दिन कड़ी मेहनत करने लगी, हालात चाहे कैसे भी हो, लेकिन उसने डटकर सामना करने का सिख लिया था । ताकि अपने बच्चों को बेहतर जिंदगी दे सकें । आने वाले वक्त के लिये ।

अब वक्त जैसे-जैसे गुजरता गया वैसे ही बेटा हेमंत पढ़, लिखकर एक काबिल इंसान बन गया था । और कुछ रुपये भी कमाने लगा था । दूसरी तरफ माँ को चिंता होना स्वाभाविक था । तभी माँ ने मौका देखकर हेमत से कहा  " बेटा मैं अब तरह-तरह के काम करके थक गई हूँ , इसलिए मैंने सोच समझ के एक फैसला लिया है की ' जब तक मैं जिंदा हूँ तब तक तुम्हारा सकुशल ब्याह योग्य कन्या के साथ करवा दूँ , ताकि कुछ बोझ मुझ पर से कम हो जाये । "

ये सूनकर हेमंत बोला " माँ तुम्हारी जैसी भी इच्छा हो, वो मुझे सहज स्वीकार है । बस तुम अपने बिरादरी की अच्छी लड़की ढूँढ लो, फिर में उसी से ब्याह करने सदा तत्पर हूँ । "

 ऐसा प्रत्युत्तर सूनकर माँ बहोत प्रसन्न थी । क्योंकि बेटे ने ब्याह का प्रस्ताव बेझझिक होकर स्वीकार कर लिया था । इसलिए माँ ने एक फैसला लिया की ब्याह करने के लिये रुपयों की भी जरूरत होगी, क्योंकि माँ के पास पन्द्रह हजार के आसपास कुछ जमा पूंजी थीं । इसलिए माँ ने अपने बेटे की खुशियों के लिये मकान गिरवी रखकर बैंक से लोन लिया, कुछ सेठजी के पास ब्याज पर रुपये उधार लिये । ताकि ब्याह में किसी प्रकार का विध्न या संकट उत्पन्न न हो ।

एक दिन शुभ मुहर्त में हेमंत का ब्याह स्वाति के साथ धूमधाम से करवा दिया , इसलिए अब माँ सोचती थी की थोडा मातृत्व का ऋण सिर से कम हो जाएगा । और नई बहू घर गृहस्थी की देखभाल भी अच्छी तरह रखेगी, लेकिन वैसा हुआ नही नई बहू खुलकर बूरे, भले ताने कसकर सूनाने लगी, लेकिन बेटा अपनी आंखों के सामने माँ का अपमान चुपचाप सूनता और देखता रहा, लेकिन अपनी पाषण जैसी जूबान से एक शब्द भी निकाल नही पाया । जैसे अपनी पत्नी की कठपुतली बन गया हो, वैसा जड़ बनकर बैठा रहा था ।

एकबार बहू ने सभी मर्यादा की सीमा लाद

बहू ने जोश में आकर कहा " ये निकम्मा बुढिया घर में बैठकर मुफ्त की रोटियाँ तोड़ती है ना तो   गृहस्थी हाथ बढ़ाती है , ना तो कुछ कामकाज करके रुपये लाती हैं । "

माँ ऐसा अपमान सूनकर बोली " बहू इतने कड़वे शब्द तेरे मुँह से अच्छे नही लगते । "

तभी ज्यादा क्रोध में आकर बहू बोली " बुढिया चूप हो जा नही तो घर से तुरन्त निकाल दूँगी ? "

बस यही सूनना बाकी था कहकर माँ रोने लगी, जैसे आंखों से आंसू का सैलाब बहनें लगा हो वैसे दर्द ह्रदय से पिघल रहा था । क्योंकि बहू के इतने तीखे प्रहार से माँ का मन बहोत व्यथित हुआ था । जिसका अंदाज लगा पाना भी व्यर्थ है , क्योंकि अपना बेटा भी अपनी माँ की इतनी पीडा़ देखकर भी समझ नही पाया, वो सिर्फ अपनी पत्नी के मोहपाश में जकड़ा हुआ या प्रेम के वशीभूत में इतना अंधा हो गया की अपनी जन्म दाता जननी की बरसों की कठिन तपस्या भी देख नही पाया । बस पत्नी का जी हजूरी करता रहा ।

दूसरी तरफ माँ सोचती है की शायद मेरे लालन-पालन में कुछ कमी रह गई होगी तभी तो अपने बेटे ने मुझे इस तरह रुठकर ठुकरा दिया,  लेकिन मेरी भी कुछ गलती है तभी तो ऐसी शैतान जैसी बहू मिली,  जिसे में परखने में असमर्थ प्रतीत हुई । लेकिन अपना खून भी इतनी जल्दी बदल जाएगा वो मुझे जरा भी यकीन नही होता ।

" माँ तुम इतनी दुःखी मत हो , नही तो मुझे रोना आ जाएगा, ऐसा बेटी सीमा माँ को सांत्वना देते कहती है । "
लेकिन माँ के आंखों में अब भी आंसू छलकते है । जो बारबार अपनों से सवाल पूछते हो , वैसा दृश्य वहां बना था ।


अंत में माँ के लिये कुछ पंक्तियाँ...

माँ... ममता की निरंतर वर्षों है
माँ... प्रेम का बहता झरना है
माँ... स्नेह का गहरा सागर है
माँ... अमृत का मीठा शहद है
माँ... कड़वाहट में मधुर शक्कर है
माँ... पीडा़ में रस का गन्ना है

क्योंकि माँ.. माँ होती है निस्वार्थ भाव में , निरंतर ह्रदय में, निर्मल स्त्रोत  में

माँ... करुणा की परम मूर्ति है
माँ... वात्सल्य की अहम पूर्ति है
माँ... संस्कारों की अमुल्य भंडार है
माँ... चूल्हो में नित्य पूजा है
माँ... रोटी में बेहद स्वाद है
माँ... डांट में धीमी थपकी है

क्योंकि माँ.. माँ होती है निस्वार्थ भाव में , निरंतर ह्रदय में, निर्मल स्त्रोत में

माँ... धूप में शीतल छांव है
माँ... बरसती बारिस में छाता है
माँ... कड़कड़ाती ठंड में कंबल है
माँ... पुष्पों में अत्यंत सुगंध है
माँ... दर्द में कोमल उपचार है
माँ... भूख, प्यास में तृप्ति का एहसास है

क्योंकि माँ.. माँ होती है निस्वार्थ भाव में, निरंतर ह्रदय में , निर्मल स्त्रोत में

माँ... संसार का उत्तम तोहफा़ है
माँ... मुक्ति का परम मार्ग है
माँ... की चरणों में हर धाम है
माँ... के प्रत्येक शब्दों में दुआ है
माँ... के बिना सब नश्वर है

क्योंकि माँ.. माँ होती है निस्वार्थ भाव में , निरंतर ह्रदय में,
निर्मल स्त्रोत में


माँ एक सुखद अनुभूति है, माँ स्नेह का गहरा सागर है । वह एक शीतल आवरण है जो हमारे दुःख, तकलीफ की तपिश को ढंक देती है । उसका होना हमें जीवन के हर क्षेत्र में साहस और बल मिलता रहता है । सच में शब्दों से परे है माँ की उत्तम परिभाषा, माँ  शब्द के अर्थ को उपमाओ अथवा शब्दों की मर्यादित सीमा में बांधना सरल नही है क्योंकि इस शब्द में ही समस्त ब्रह्मांड, सृष्टि की उपत्ति का रहस्य छूपा है ।


 -------- शेखर खराडीं ईड़रिया