शेनेल लौट आएगी
प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 1
ऐमिलियो डोरा को मैं आज भी अपनी पत्नी ही मानता हूं। वह आज भी मेरे हृदय के इतने करीब है, मुझमें इतना समायी हुई है कि मैं उसकी महक को महसूस करता हूं। मुझे अब भी ऐसा लगता है कि जैसे वह मेरे सामने मेरे एकदम करीब मुझे स्पर्श करते हुए खड़ी है। मेरे गले में अपनी दोनों बांहों को डाले चेहरे को एकटक देखते हुए। और उसकी गर्म सांसों को मैं चेहरे पर महसूस करते हुए उसी में खोया जा रहा हूं। उसकी नजरों में मैं क्या हूं यह तो वहीं जाने। पता नहीं मैं उसे याद भी हूं या नहीं। वह मुझे कितनी शिद्दत से चाहती है, याद करती है.....या... पता नहीं। मेरे अब तक के जीवन में आई तमाम लड़कियों में एक वही है जिसकी मैंने पूरे रस्मों-रिवाज के साथ मांग भरी थी। गोल्डेन नाइट सेलिब्रेट की थी।
उसी मधुर क्षण में उसे उसके देश सेनेगल से मिलता-जुलता नाम दिया था ‘शेनेल’। तब उसने बड़े प्यार से मुझे होठों पर किस करते हुए कहा था ‘वॉओ, कितना प्यारा नाम है, बिल्कुल तुम्हारी तरह। मैं अपने पैरेंट्स, रिलेटिव्स, सारे फ्रेंड्स को बोलूंगी कि अब मुझे मेरे इसी प्यारे नाम से बुलाया करें।’ मैं उसे उसी क्षण से जब तक वह रही मेरे साथ उसे ऐमिलियो की जगह शेनेल ही बुलाता रहा। ऐमिलियो से जब मेरा संपर्क हुआ तब मैं काफी समय से अकेला ही था।
ई-मेल के जरिए उसने संपर्क किया था। उसकी सारी मेल जो सैकड़ों होंगी, मैंने आज भी सुरक्षित रखी हैं। उसकी याद आने पर उन्हें बार-बार पढ़ता हूं। उसकी यादों में डूबता जाता हूं। शुरुआती कुछ मेल के बाद ही वह बड़ी तेज़ी से मेरे करीब आने लगी थी। वह हर मेल में मुझसे मेरे बारे में सब कुछ जान लेने के प्रयास में रहती थी। ना जाने उसकी बातों, उसके व्यक्तित्व में कैसा जादू था कि मैं जल्दी ही उसे सब बताने भी लगा। ऐसी ही एक बड़ी डिटेल मेल में मैंने उसे लिखा डियर ऐमिलियो डोरा,
मुझे मेरे अधिकांश मित्र, परिचित एवं सारे रिश्तेदार आवारा-बदमाश लोफ़र कहते रहे हैं। अब इधर कुछ बरसों से उन्हीं में से कई रिश्तेदार, मित्र यह कहने लगे हैं कि मैं अब बहुत सुधर गया हूं। ऐसे सारे लोगों को मैं पहले भी मूर्खाधिराज कहता था आज भी कहता हूं। क्योंकि मैं पहले जो कुछ करता था वही सब आज भी करता हूं। हां फर्क़ सिर्फ इतना है कि अब यह सब पहले की अपेक्षा बहुत कम हो गया है। तो जिन कामों को करते हुए यदि मैं पहले बिगड़ा हुआ था, तो वही सब करते हुए आज सुधरा हुआ कैसे हो गया हूं? क्या यह बद-अच्छा बदनाम बुरा वाली बात है। मगर इस बिंदु पर मैं कहूंगा कि नहीं। जिन कामों को लेकर मुझे आवारा, बदमाश, लोफ़र कहा गया मेरी नजर में वह इस श्रेणी में आते ही नहीं। मेरी नज़र में वह सब एक अलग तरह की समाज-सेवा है।
कोई अगर किसी कमजोर को परेशान कर रहा हो तो उसे मार-तोड़ कर सही कर देना क्या गलत है? बदमाशी है,? देर रात तक बाहर रहना मेरी नज़र में आवारगी नहीं है। हां इस दौरान यदि मैं गैर कानूनी, गैर सामाजिक कार्य करूं तो आवारगी है। बहुत सी लड़कियों या औरतों के साथ संबंध रखना भी मैं गलत नहीं मानता। यदि यह मैं उन सब से जबरदस्ती, धोखे से, बहला-फुसला कर करूं तो निश्चित ही गलत है। लेकिन ऐसा मैं सपने में भी नहीं करता। हां यदि मैं चाहूं तो इन सारे लोगों को बदतमीज कह सकता हूं। गाली दे सकता हूं। लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहता। क्यों कि मैं ऐसे लोगों पर सिर्फ़ तरस खाता हूं। मेरी इस बात से तुम मुझे कोई संत महात्मा नहीं समझ लेना।
ऐमिलियो मेरी प्रकृति ही ऐसी है कि मैं जो करता-धरता हूं वह कभी छिपाता नहीं। साफ-साफ बोल देता हूं। मैं तुम्हें अपनी कुछ ऐसी बातें बताने जा रहा हूं जिन्हें मैं समझता हूं कि कोई जल्दी नहीं बताता। लेकिन मुझे इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती।
किसी बात को अपने में जज्ब किए रहना, अपने में छिपाए रखना मुझे खुद पर भारी बोझ लादे हुए घूमने जैसा लगता है। ऐसे में मुझे घुटन महसूस होती है। यह मुझे अच्छा नहीं लगता। इसीलिए मैं तुम्हें बहुत सी ऐसी बातें बताने जा रहा हूं जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकती। ऐसा तुम्हारी जबरदस्त क्यूरिसिटी के कारण कर रहा हूं। क्यों कि पिछली मेल में मैंने मुश्किल से दो चार बातें ही अपने बारे में लिखी थीं। लेकिन तुम पीछे पड़ गई कि मैं और बताऊं।
शुरू में तुम्हारी कई मेल इसी लिए मैं नजरंदाज करता रहा। लेकिन तुमने तो मेल की झड़ी ही लगा दी। हर दिन दो-तीन मेल। और हर में पहले से ज़्यादा जोर कि मैं सब बताऊं। ऐमिलियो, आगे मैं तुम्हें ऐमिलियो ही लिखुंगा। हां तो मैं अपने बारे में बहुत सारी बातें तुम्हें बताने के लिए इसलिए भी तैयार हुआ क्यों कि पिछले कुछ महिनों में तुम्हारी कई बातें मुझे प्रभावित कर गईं।
जब से तुम अपना नकली चेहरा उतार कर सामने आई हो तो तुम्हारी बातों में मुझे सच्चाई बराबर दिख रही है। सच कहूं कि तुम्हारी तरह ना जाने कितनी लड़कियां रोज मेल करती हैं। पिछले कुछ सालों से रोज ही दो चार मेल इस तरह की आती रही हैं। अब भी आती हैं। जानती हो तुम्हारी तरह सभी मेल में सारी लड़कियां एक ही बात लिखती हैं। अब भी लिखती हैं। यह सभी अव्वल दर्जे की चार सौ बीस लड़कियां हैं। यदि तुम इन्हीं गुट की हो तो कम से कम इन सब को यह बता दो कि ये एक से बढ़ कर एक मूर्ख हैं।
इन्हें यह समझाओ कि जब मेल किया करें मुर्गा फंसाने के लिए, तो कम से कम बातें अलग-अलग लिखा करें। सब एक ही कहानी लिखती हैं। जैसे तुम लिखती थी कि तुम दक्षिण अफ्रीका के गृह युद्ध से ग्रस्त एक देश लाइबेरिया से हो। तुम्हारे पिता एक बड़ी कंपनी में बहुत ऊंचे ओहदे पर थे। इस गृह युद्ध में तुम्हारे मां-बाप दोनों ही की नृशंसतापूर्वक हत्या कर दी गई। तुम्हें मेरा परिचय, ई-मेल आईडी फेसबुक के जरिए मिली।
मेरी प्रोफाइल से तुमने मुझे भला आदमी समझा और अपनी बात शेयर करना चाहती हो। तुम्हारे पैरेंट्स ने करोड़ों डॉलर जो तुम्हारे लिए छोड़े हैं वह तुम लेना चाहती हो। कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए तुम्हें मेरी मदद चाहिए। इसके एवज में करोड़ों रुपए मुझे भी मिल जाएंगे। तुम इस समय डकार, सेनेगल में एक रिफ्यूजी कैंप में बड़ी दयनीय हालत में हो।
जानती हो ऐमिलियो इस तरह की मेल के बारे में मेरे तमाम दोस्त पहले ही बताते रहे थे कि इन फ्रॉडियों के चक्कर में फंस कर अपना एकाउंट नंबर ना दे देना। कहीं उनकी भावुक कर देने वाली कहानी में फंस कर मोटी रकम उनके एकाउंट में डाल मत देना। ऐमिलियो मेरे दोस्त मुझे यह एडवाइज विशेष रूप से ज़्यादा देते हैं, क्योंकि वह यही मानते हैं कि कोई भी लड़की मुझे आसानी से फंसा सकती है। मैं इस बारे में यही कहूंगा कि मेरे बारे में ऐसा सोचने वाले पूरी तरह गलत हैं। मेरे बारे में जब जानोगी, चौथाई भी जान लोगी तो तुम यही कहोगी कि बात तो इसके उलट है। बल्कि लड़कियां मेरी तरफ खिंची चली आती हैं।
वो ही मेरी तरफ अचानक ही दौड़ पड़ती हैं। तुम चाहो तो अपना ही उदाहरण ले लो। अपनी काल्पनिक दुख भरी कहानी लिख कर, अपने बदन की भड़कीली तस्वीरें भेज कर, मुझे फंसा कर ठगने की कोशिश में लगी थी। तुम भी बाकी लड़कियों की ही तरह ठगने की कोशिश कर रही थी। अपने को एक पॉस्टर के नियंत्रण में होना बताया। उनका नंबर वगैरह सब दिया। अपने चंगुल में फंसाने के लिए तुमने यह भी कहा कि रिश्तों के लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती कि मैं चालीस का हूं और तुम चौबीस की।
सवा पांच फीट की गेंहुए रंग की तुम मेरे साथ जीवन बिताने को तैयार हो। मैं जिस जगह चाहूं वहां तुम्हें लेकर चल सकता हूं। भावनाओं को ब्वॉयलिंग प्वाइंट तक पहुंचाने के लिए तुमने यह भी लिखा कि अब तक तुम्हारा कई लोग शारीरिक शोषण कर चुके हैं। पॉस्टर भी अन्य कई लड़कियों के साथ-साथ तुम्हारा भी आए दिन बर्बरतापूर्वक शारीरिक शोषण कर रहा है। सच बताऊं कि तुम्हारी बातें कई बार यकीन कर लेने को विवश कर देतीं हैं। लेकिन तुम सारी लड़कियों की एक सी कहानी ने क्यों कि पोल खोल रखी है तो यकीन करने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
हां तुम्हारे और बाकी लड़कियों में एक फ़र्क था कि तुम पैसे ऐंठने के अलावा यह भी देख रही हो कि कोई ऐसा भी मित्र मिले जिससे कुछ और भी बातें हो सकें।
यही वजह है कि हम-तुम यहां तक बढ़ सके। नहीं तो बाकी लड़कियों का हाल यह है कि पहले अपनी कहानी शॅार्ट में भेजती हैं। परिचय भी नहीं है लेकिन माय डियर, डियरेस्ट, माय लव से शुरू करती हैं। यदि रिप्लाई में हाय भी लिख दो तो दिन बीतने से पहले विस्तृत स्टोरी दो-तीन या फिर चार फोटो के साथ आ जाती है। लोगों को फंसाने के लिए काफी बोल्ड फोटोज भेजी जाती हैं। साथ ही डिटेल स्टोरी, वर्क, हॉवी, लाइक्स आदि के बारे में पूछा जाता है।
जानती हो ऐमिलियो मैंने जैसे तुम्हें जवाब दिया था वैसे ही बाकियों को भी दिया था। हाय माई डियर, हाय माई लव। और जब मुझसे डिटेल मांगी गई तो इतना ही लिखा कि मैं एक राइटर हूं। लिखना, पढ़ना, घूमना, मेरा शौक है। सेक्स मेरा फेवरेट गेम है। मैं इस गेम को बहुत पसंद करता हूं। और यह भी लिखा कि मैं तुम्हारे साथ सेक्स करना चाहता हूं। तुम अपनी फुली नेकेड फोटो भेजो। मैं तुम्हारे बूब्स,थाई एस्ट्रा-एस्ट्रा देखना चाहता हूं। बस ऐमिलियो मेरे यह लिखते ही लड़की गायब हो जाती। फिर दुबारा उसकी कोई मेल नहीं आती।
मैंने तुम्हें भी यही सब लिखा लेकिन तुम भागी नहीं। तुमने बड़ा बैलेंस्ड जवाब दिया कि अभी हमारी फ्रैंडशिप उस लेवल की नहीं है कि तुम अपनी नेकेड फोटो भेज सको। इसके बाद हमारी-तुम्हारी मेल्स लंबी होती गईं। और बातें खुलती गईं । फिर जल्दी ही तुम्हें जब लगा कि सच्चाई मुझे मालूम है तब तुम मुखौटा उतार कर असली रूप में सामने आई।
मुझे यकीन तब भी नहीं था। इसलिए मैंने कई तरह से तुम्हें चेक किया। और तुम हर बार पास होती गई। तब मैंने भी तुम्हें अपनी हक़ीक़त बताई कि मैं इंडियन रेलवे की गुड्स ट्रेन में गार्ड हूं। अनमैरिड हूं। बाकी जो शौक पहले लिखे थे वही हैं। इस बार भी मैंने तुमसे मन चाही फोटो मांगी लेकिन तुमने नहीं भेजी। बाद में बहुत कहने पर तुमने जैसी मैंने मांगी थी वैसी ही नेकेड फोटो भेजी। अब तुम चाहती हो कि मैं तुम्हें यह कैसे विश्वास दिला सकता हूं कि मैं वाकई तुम्हें चाहता हूं। तुमसे वाकई मित्रता चाहता हूं।
तुम बार-बार मुझसे यह कह रही हो कि मैं चालीस का होकर अपने से आधी उम्र की तुम्हें कैसे लव कर सकता हूं? मैं अब तक सिंगिल ही क्यों हूं? अपने अब तक के जीवन कीे तमाम न भुलाई जा सकने वाली बातें तुमसे शेयर करूं। जिससे तुम यह निष्कर्ष निकाल सको कि मैं तुम्हारे लिए कुछ करने की हिम्मत रखता हूं। तुम्हें लेकर मैं ज़िंदगी के बहुत से क़दम साथ चल सकता हूं।
ऐमिलियो जब तुमने अन्य लड़कियों की तरह यह लिखा था कि हमारे रिश्तों के बीच कोई बाधा नहीं आएगी तो मैं अपनी हंसी रोक नहीं पाया था। लेकिन तुम्हारी बातों से लगता है वाकई तुम्हारे साथ एक खास रिश्ता या ये कहें लिवइन में मुझे कोई अड़चन नहीं आएगी। मैं तुम्हें साथ लेकर अपने देश में बहुत सी जगह घूमने चल सकता हूं।
मेरा परिवार कोई बाधा नहीं बनेगा। क्योंकि परिवार से मेरा कोई खास रिश्ता रहा ही कहां है? हुआ यह कि मेरी लापरवाही भरी ज़िंदगी ने मेरे और परिवार के बीच रिश्तों की डोर बहुत पहले ही कमजोर कर दी। क्यों कि मेरे छोटे भाइयों की नौकरी पहले लग गई तो शादी का जोर पड़ने लगा। मैं अपनी आवारगी में मस्त था। गार्जियन का यह दबाव मैं ज़्यादा दिन नहीं झेल पाया कि मैं कुछ करूं जिससे मेरी शादी हो, फिर छोटों का नंबर आए।
मैंने गुस्से में कह दिया कि मुझे जब जो करना होगा तब करूंगा। छोटों की शादी कर दो। आखिर यही हुआ। सारे छोटे भाई-बहनों की शादी हो गई। मैं तब भी मस्त-घूमता रहा। मुझे लगा कि शादी-वादी करके बंध कर रहना मेरे जैसे लोगों के लिए संभव नहीं है। इस बीच मैं भाइयों से ज़्यादा कमाता था और वैसे ही उड़ा भी देता था। ऐमिलियो मैं कई-कई महिने घर से गायब रहता था। बाद में तो हालत यह हो गई कि घर वालों ने यह भी पूछना बंद कर दिया कि कब आओगे? कहां हो?। सब अपने-अपने परिवार में व्यस्त हो गए। मैं और ज़्यादा मस्त हो गया कि बढ़िया है, बेवजह की पूछताछ से मुक्ति मिली।
ऐमिलियो हमारे देश, समाज में जीवन में किस्मत का रोल बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मैं अब भी आश्चर्य में पड़ जाता हूं, जब अपनी हालत देखता हूं। कि आखिर मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कब और कैसे पूरी हो गई। मैंने आर्टिस्टों के लिए ऑर्ट्स कॉलेज में मॉडलिंग भी की है। रेलवे में गार्ड बनने से पहले मुंबई के एक बड़े प्रतिष्ठित होटल में सिक्योरिटी इंचार्ज रहा। इसके बाद गोवा के एक खूबसूरत बीच पर दो लोगों के साथ मिलकर रेस्टोरेंट भी चलाया।
इन्हीं में एक बंदा ऐसा था जो शेयर मार्केट का माहिर खिलाड़ी था लेकिन जबरदस्त शराबी भी था। उसी के चक्कर में जोरदार ढंग से कमाई कर रहा रेस्टोरेंट रातोंरात छोड़कर भागना पड़ा। नहीं तो स्थानीय गुंडों द्वारा मार ही दिया जाता। तुम बार-बार पूछती हो कि सरकारी नौकरी से पहले मैंने क्या किया? तो यही कहूंगा कि मैंने बहुत कुछ किया। इतना कुछ कि सब कुछ एक समय में ही याद कर पाना, लिख पाना संभव नहीं है।
अभी जो याद आ रहा है वह बता रहा हूं। इस नौकरी से पहले जहां मैंने सबसे ज़्यादा कमाई की वह क्षेत्र है दलाली का। मैं यहां की राजधानी दिल्ली में अपने ही जैसे एक मित्र के साथ वहीं के एक प्रॉपर्टी डीलर के साथ लग गया। किस्मत ने साथ दिया और कुछ ही महीनों में मैंने मोटी रकम कमा ली। इतनी कि दिल्ली ही के पास गौतम बुद्ध नगर में एक ठीक-ठाक मकान खरीद लिया। थ्री बी. एच. के. का यह मकान आठ बरसों से भी ज़्यादा समय तक मेरे कई दोस्तों का भी समय-समय पर ठिकाना बना रहा। तीन-चार साल पहले तक यहां हर छुट्टी में पार्टी-सार्टी अय्याशी होती रहती थी। रेव पार्टी भी कह सकती हो। बस एक चीज जो यहां नहीं होती थी वह थी ड्रग्स।
नशे के नाम पर शराब, सिगरेट तक सीमित था। सेक्स भी जम के था। मगर प्रॉपर्टी डीलिंग के धंधे से अचानक ही कदम खींचने पड़े। इसके साथ ही यह पार्टी भी खत्म हो गई। इस धंधे से निकलने के बाद मैं कई महीने बेकार रहा। पैसे तेज़़ी से खत्म हो रहे थे। इस बीच स्थिति यह आयी कि बाइक रखी और अपनी एस. यू. वी. बेच दी।
प्रॉपर्टी डीलिंग में इस एस.यू.वी. ने बड़ा साथ दिया था। इसको बेचने से मिले पैसे से कई महीने खूब मजे किए। पहाड़ों पर घूमने निकल गया। रोहतांग दर्रा, लेह लद्दाख तक गया। फिर लौटा तो फॉरेस्ट सफारी पर निकल गया। वहां से लौटा तो एक मित्र के साथ पड़ोसी देश नेपाल गया। वहां की राजधानी काठमांडू में महीने भर घूमता रहा। वही काठमांडू जो कुछ साल पहले अप्रैल में भूकंप से तबाह हो गया था।
मेरा वह दोस्त वहीं नेपाल का रहने वाला है। उसका परिवार वहां बड़ा बिज़नेसमैन है। मेरा दोस्त कुछ-कुछ मेरी ही तबियत का है। काम-धाम मेहनत से करता है। जेब में मोटी रकम इकट्ठा होते ही मौज-मस्ती में तब तक लगा रहता है जब तक कि सारा पैसा फुर्र नहीं हो जाता। वह और मैं जब तक रहे नेपाल में दोनों ने मिलकर घूमने-फिरने, लड़कियों के साथ अय्याशी, खाने-पीने, होटल-बाजी में खूब पैसा और समय खर्च किया।
जब हम दोनों का पैसा खत्म हो गया तो वह वहीं रुक गया और मैं यहां अपने देश लौट आया। ऐमिलियो तुम यदि मेरी इन बातों से यह सोच रही हो कि मेरा सारा पैसा और समय मौज-मस्ती में ही खर्च होता है और बीतता है, तो काफी हद तक सही हो। और यह भी बता दूं कि यह सब रेलवे में नौकरी में आने के वर्ष भर पहले तक रहा।
मैं नहीं जानता कि तुम्हारी यह बातें कितनी सच हैं कि तुम इंडिया मेरे साथ समय बिताने आओगी। मेरे साथ कोई भी संबंध साफ-साफ कहूं कि सेक्स संबंध में भी तुम्हें खुशी होगी। भारत मेरे साथ ऐसे ही संबंधों के साथ घूमना चाहोगी। कुछ समय ऐसे संबंधों के साथ जीते हुए तुम्हें यदि यह लगता है कि तुम मेरे साथ लाइफ पार्टनर बनकर रह सकती हो तो फिर इंडिया में ही रहोगी। मेरे साथ रहोगी। यहीं की नागरिकता ले लोगी। मेरे साथ ही जीवन बिताओगी।
मैं तुम्हें स्पष्ट बताऊं कि मैं तुम्हारी इन बातों विशेष रूप से इंडिया में रहने की बात पर पूरा यकीन नहीं कर पा रहा हूं। और जहां तक मेरे मन की बात है तो मैं भी वाकई तुम्हारे साथ जीना चाहता हूं। लेकिन हम दोनों कितना ईमानदार हैं अपनी बातों में यह तो तभी पता चल पाएगा जब तुम इंडिया आओगी। मेरे साथ रहोगी।
हां, इसके पहले बातों के जरिए हम दोनों जो विश्वास आपस में कायम कर सकते हैं, उसी क्रम में तुम्हें बता रहा हूं, कि रेलवे ज्वाइन करने से पहले मैं एक बार सख्त बीमार पड़ गया।
लापरवाह स्वभाव के कारण बीमारी ने गंभीर रूप धारण कर लिया। मैं गौतमबुद्ध नगर के अपने मकान में अकेले पड़ा था। संयोग से पैसे भी सब खत्म हो गए थे। मैं इतना वीक हो गया था कि ज़्यादा चल-फिर नहीं सकता था। घर में माता-पिता गुजर चुके थे। भाइयों से बरसों से कोई रिश्ता-नाता नहीं था। जो दोस्त थे वह भी अब तक ज़्यादातर सेटल हो चुके थे। अब किसी के पास मेरे लिए ना तो समय था और ना उधार देने के लिए पैसा। दवा की कौन कहे खाने के लिए भी लाले पड़ने लगे।
जितने दोस्तों को फ़ोन करता सब कोई ना कोई बहाना बना कर निकल देते। हालत यह हुई कि दोस्तों ने फ़ोन उठाना ही बंद कर दिया। सही कहूं ऐमिलियो तब मैंने समझा कि ये सब मेरे दोस्त हैं ही नहीं। ये सब पैसे के, मौज-मस्ती के साथी थे। अब ये सब मेरे पास है नहीं तो कोई क्यों आएगा? तभी मैंने यह समझा कि इसमें गलती तो मेरी ही है।
वास्तव में मैंने कोई दोस्त जीवन में बनाए ही कहां? मेरा मन तब खीझ उठा कि मेरे जैसा आदमी दोस्त कहां बना सकता है। जो अपने को अपने परिवार से जोड़ कर ना रख सके वह क्या दोस्त बनाएगा? तभी मैंने यह तय कर लिया कि यदि जांडिस से जीत गया तो अपनी लाइफ स्टाइल बदलूंगा। अपने को यूं कटी पतंग की तरह आसमान में पत्ताते हुए कहीं भी गिर कर नष्ट हो जाने के लिए नहीं छोड़ दूंगा।
उस समय खाने की कमी और दवा जो कई दिन से बंद थी उसके चलते मेरी तबियत एकदम बिगड़ गई। मेरे सामने अचानक ही बाइक बेचने का ख़याल आया। लेकिन यह तुरंत नहीं हो सकता था। मुझे तुरंत पैसे चाहिए थे। हैरान-परेशान मैंने चेन, अंगूठी, घड़ी निकाली कि मार्केट में बेच दूं।
तैयार होकर निकलना चाहा तो निकल ही ना सका। चक्कर आते रहे। बेड पर ही पड़ा रह गया। तब मुझे लगा कि अब मेरा बचना संभव नहीं। मोबाइल में नाम चेक नहीं कर पा रहा था। फिर उस समय परिवार की याद आई, मन भाइयों को फ़ोन करने को हुआ। जिनसे मैं कई साल से कभी मिला ही नहीं था। फ़ोन पर बात भी नहीं की थी। मेरे पास भाइयों से बात करने के लिए कोई कॉन्टेक्ट नंबर ही नहीं था।
मौत करीब देख कर उस दिन मैं टूटने लगा। मैं आखिरी कोशिश करते हुए फिर किसी दोस्त को फोन करने की कोशिश करने लगा। लेकिन नॉन पेमेंट के कारण मोबाइल की सर्विस बंद हो चुकी थी। मुझे लगा कि जैसे मेरे खिलाफ साजिश हो रही है। मुझे हर तरफ से मारने का प्रयास हो रहा है। और तब मैंने मन ही में निश्चय किया कि इतनी आसानी से खुद को मरने नहीं दूंगा। मैं पूरी ताकत लगाकर बेड से फिर उठा कि किसी तरह घर से बाहर सड़क पर निकलूं। जेब में अंगूठी, चेन, रख ली थी।
मगर दस-बारह क़दम भी ना चल पाया और जमीन पर गिर पड़ा। मैं अर्ध-बेहोशी की हालत में पड़ा था। इसे तुम मेरा भाग्य कह सकती हो या फिर संयोग कि आधे घंटे बाद ही मेरी एक परिचित आई, जिससे करीब दो वर्ष से बात तक नहीं हुई थी। वह मेरे ही एक मित्र के साथ लिवइन में दिल्ली में रहती थी। अचानक ब्रेकअप हुआ और वह सड़क पर आ गई। नौकरी उसकी कुछ महीने पहले ही गई थी। वह मुझसे मदद मांगने आई थी लेकिन हुआ उल्टा कि उसे मेरी ही मदद करनी पड़ी।
ऐमिलियो उसी ने किसी तरह डॉक्टर वगैरह बुलाया। कुछ दवा खाना-पीना मिलने के बाद मैं बोलने लायक हुआ, तब दोनों ने एक दूसरे की समस्या समझी। समय की यह ज़रूरत थी कि दोनों एक दूसरे की मदद करें। मजबूरी ने हम दोनों को एक कर दिया। उस मित्र शिरीन की मदद से घर का कई सामान बेचा। तब कहीं जाकर खाना-पीना और मेरी दवा हो सकी। मुझे ठीक होने में महीना भर लग गया। शिरीन पैसे से पूरी तरह खाली थी। लिवइन में ठगी का शिकार हुई थी। उसने जी जान से मेरी सेवा कर मुझे ठीक कर दिया था।
देखते-देखते हमारे उसके रिश्ते लिवइन में बदल गए। शिरीन मेरे ठीक होते ही जी जान से नौकरी ढूढ़ने में लग गई। उसी के कहने पर मैंने भी कुछ जगह एप्लाई किया। शिरीन के आने से एक बात यह हुई थी, कि उसने मुझ पर बराबर दबाव बनाया कि मैं अपनी लाइफ पर ध्यान दूं, खानाबदोशी छोड़ दूं। शिरीन की जल्दी ही नौकरी लग गई। उसने घर का, मेरा सारा खर्च उठाना शुरू कर दिया। इधर मैं भी इधर-उधर से अपने भर का जल्दी ही कमाने लगा।
इस बीच जब कभी ज़्यादा कमाई हो जाती तो शिरीन को खर्च करने के लिए मना कर देता। देखते-देखते दो-ढाई साल निकल गए। इस दौरान मैंने फिर से नई बाइक खरीद ली। इसी बीच एक दिन रेलवे में नौकरी का एप्वाइंटमेंट लेटर मिला। यह फॉर्म मैंने कब भरा था। कब इक्जाम दिया था मुझे कुछ याद नहीं था। ये मेरे लिए अंधे के हाथ बटेर लगने जैसा था। मैं ट्रेनिंग वगैरह करके गॉर्ड बन गया।
मगर ऐमिलियो अगर ज़िंदगी इतनी ही आसान होती तो दुनिया में सभी खुश ना होते। हम भी, तुम भी। यह जो हम दोनों परिचित हुए आपस में तो यह भी तो परेशानियों के कारण ही हुए। तुम पैसों की अपनी अधिक ज़रूरत के लिए यह जो जाल फैलाती हो यह आखिर क्यों फैलाती?, अगर तुम खुश होती। तो मेरे साथ अब नई समस्या शुरू हो गई।
हमारे शिरीन के बीच मनमुटाव शुरू हो गया। वजह नई नौकरी में शिरीन का एक साथी था। उसकी नजदीकी शिरीन से बढ़ती जा रही थी। शिरीन को भी मैं उसकी तरफ बढ़ते हुए पा रहा था। इसी के चलते हमारे बीच झगड़ा शुरू हो गया। फिर हम एक छत के नीचे रहने में असमर्थ हो गए। आखिर एक दिन शिरीन अपने उसी साथी के साथ चली गई। फिर जल्दी ही उससे शादी कर ली।
बाद में उसके दो बच्चे हुए। ऐमिलियो शिरीन जब मुझे छोड़कर गई तब भी उसे मैं बहुत चाहता था। मैं नहीं चाहता था कि वो छोड़कर जाए। लेकिन क्यों कि वह शादी करके पारंपरिक दंपत्ति की तरह जीवन बिताना चाहती थी और उसको इसके लिए अपना वह साथी मुझसे ज़्यादा उपयुक्त लगा तो वह चली गई। उसके प्रेम में मैं अनफिट था। उसके इस डिसीजन से मुझे काफी शॉक लगा। मैं अपनी गॉर्ड की नौकरी से भी ऊब रहा था। कहने को तो ड्यूटी आठ घंटे की है लेकिन अमूमन यह बारह घंटे की हो ही जाती है।
ऐमिलियो यह बड़ी ऊबाऊ नौकरी है। सोचो एक गुड्स ट्रेन। जिसमें सौ से ऊपर डिब्बे। ड्राइवर और गॉर्ड के बीच सैकड़ों मीटर की दूरी। गॉर्ड का छोटा सा डिब्बा। उसी में मैं अकेला। गर्मियों के दिन में हालत खराब हो जाती है। और कड़ाके की ठंड में भी। कई बार जब रात के अंधेरे में किसी वजह से ट्रेन वियावान जंगल में खड़ी हो जाती है तो हालत और खराब हो जाती है। तब मैं जरूरत भर को ही केबिन से बाहर निकलता हूं। अपनी लंबी टार्च लेकर इंजन की तरफ देखता हूं। यदि ड्राइवर मेरी तरफ आ रहा है तो मैं भी उधर ही चल देता हूं।
हम दोनों बीच रास्ते में मिलते हैं। जो भी स्थिति रहती है उस पर बात करके वापस अपने डिब्बे में। बड़ी कठिन इस ड्यूटी ने शुरू के दिनों में मुझे बड़ा परेशान किया। मन किया कि छोड़ दूं नौकरी। लेकिन जांडिस के समय जो क्रिटिकल पोजीशन मेरी हुई थी उसकी याद आते ही मैं कांप उठता। और नौकरी छोड़ने की बात से ही तौबा कर लेता। सोचता उस बार तो संयोग से शिरीन आ गई। पूरे मन से मेरी केयर की। एक तरह से मेरी जान उसी ने बचाई। इसीलिए मैं उससे इमोशनली बहुत अटैच हो गया था। यही कारण था उससे ब्रेकअप पर मुझे बहुत दुख हुआ था। जब कि उसके पहले मुझे किसी भी औरत से अलग होने पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था।
यह रीपिटीशन ही लग रहा है मगर फिर भी कह रहा हूं कि तुम अपने बारे में इधर बीच कुछ ऐसी-ऐसी बातें मेल में ज़्यादा बता रही हो और साथ ही एक तरह से मुझ पर प्रेशर ज़्यादा डाल रही हो कि मैं भी लाइफ की हर उस घटना को जो अब भी मुझे याद है वह तुम्हें ज़्यादा से ज़्यादा बताऊं। जिससे तुम मेरे पास आने से पहले मुझे अच्छी तरह से समझ लो। पिछली मेल में तुमने बताया कि इधर बीच एक पूजा स्थान के पुजारी ने जहां तुम आजकल हो डकार, सेनेगल में, तुम्हारा कई बार शोषण किया है। इसके पहले जब तुम मात्र तेरह-चौदह की थी तभी तुम्हारे एक रिश्तेदार ने तुम्हारा सेक्सुअल हैरेसमेंट किया था।
तुम मुझे यह बताने के साथ ही ज़ोर देकर पूछ रही हो, कि मैंने अपने अब तक के जीवन में कितनी लड़कियों का सेक्सुअल हैरेसमेंट किया? सच कहूं मुझे तुम्हारे इस बचपने पर हंसी आ रही है। किसी भी देश में ऐसा करना निश्चित ही अपराध होगा। अपराधी को सजा दी जाएगी। तो फिर कोई कैसे लिखकर किसी के भी सामने यह स्वीकार कर लेगा कि उसने जीवन में कभी ऐसा किया।
जहां तक बात मेरे देश की है तो यही कहूंगा कि अन्य देशों की तरह हमारे देश में भी बचपन में ही लड़कियों के सेक्सुअल हैरेसमेंट की घटनाएं सामने आती हैं। लड़के भी अकसर शिकार हो ही जाते हैं। औरतों द्वारा भी शोषण की घटनाएं सामने आती हैं। तुम यह पढ़ कर चौंक जाओगी कि मैं स्वयं चौदह की उम्र में एक महिला द्वारा सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार हुआ था। यह बात मैं आज पहली बार किसी से शेयर कर रहा हूं। मेरा शोषण तो मेरे ही घर में, मेरे ही किराएदार की मिसेज ने किया था। पूरे एक साल तक। जबकि उसके तीन बच्चे थे।
मकान छोड़ने के बाद भी वह मुझसे संपर्क बनाए रखने की कोशिश करती रही। तुम्हारे मन में यह क्योश्चन आ रहा होगा कि मैंने अपने पैरेंट्स से शिकायत क्यों नहीं की? तो ऐमिलियो सच यह है कि मेरे लिए यह एक अनोखा अनुभव था। जो अनायास ही मेरे हाथ लग गया था। बिना प्रयास ही वह मिल गया जिसे सोचा ही नहीं था। मुझे आश्चर्य-मिश्रित मजा आ रहा था। तो मैं शिकायत क्यों करता?
कुछ महिनों के बाद तो मैं ही अक्सर उससे खुद बोलता सेक्स के लिए। तो वह प्यार से दांत दबा कर मेरे गाल को नोच लेती। कभी हल्के से काट लेती। वह उम्र में मुझसे करीब बीस साल बड़ी थी। ऐमिलियो जैसा कि तुमने बताया कि फर्स्ट रेप के बाद जब तुम सदमे से उबर गई साल भर में, तो इसके बाद सेक्स के अनुभव के लिए तुम्हारे मन में अक्सर किसी पार्टनर की इच्छा होने लगी थी।
मैं अपने बारे में यह कहूंगा कि उस औरत ने जब पहला अटेम्ट किया तो उसे मैं शोषण मान सकता हूं। उस समय मैं ऐसी स्थिति से गुजर रहा था जो मुझे एक अनजान दुनिया से गुजरने वाला अनुभव दे रहा था। हां पहली बार के बाद उसने जितनी बार किया उसे मैं शोषण नहीं मानता, क्योंकि उसमें मेरी भी सहमति रहती थी। मैं भी उतना ही मजा लूटता था जितना वो।
ऐमिलियो मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि तुम मेरी बातों से कैसे यह सुनिश्चित कर लोगी कि तुम मेरे पास आने पर जो कुछ जैसा चाहती हो वह तुम्हें मिल जाएगा ,इसका तुम सही-सही अंदाजा लगा लोगी। मेरी बातें कितनी सच हैं यह तुम किस तरह चेक कर पाओगी? लेकिन यह समस्या क्यों कि मेरी नहीं है, इसलिए मैं इस पर और कुछ कहने के बजाय इसे तुम पर छोड़ता हूं।
नौकरी में ड्यूटी के दौरान अब तक हुई किसी ना भूलने वाली घटना को लिखने को भी तुमने कहा। तो ऐसी ही एक घटना बता रहा हूं। जो मुझे अपने डिब्बे में जाते ही याद आ जाती है। हालांकि नौकरी में रहते हुए इसे डिस्क्लोज़ करना अपने हाथों जानते-बूझते हुए अपनी नौकरी को खतरे में डालने जैसा है। लेकिन चलो ठीक है, तुम्हारे आग्रह के सामने यह खतरा भी उठा ही लेता हूं। सच बताऊं कि पता नहीं क्यों तुम्हारी बातें टाल नहीं पा रहा हूं। हालांकि मैं अब भी यह नहीं समझ पा रहा हूं कि अपनी यह बातें, जो इतनी मेहनत से इतना समय खर्च कर, मैं तुम्हें बता रहा हूं इनकी तुम्हारी नजरों में कितनी अहमियत होगी।
खैर यह बात उस समय कि है जब नौकरी में आए मुझे कई बरस हो गए थे। शिरीन से ब्रेकअप हो चुका था। मैं जीवन में बड़ा अकेलापन महसूस कर रहा था। गॉर्ड के डिब्बे में तो यह एकदम सिर पकड़ लेता है। स्थिति बड़ी बिगड़ती जा रही थी। मुझे लगा कि मैं कहीं डिप्रेशन में ना चला जाऊं। कोई दोस्त वगैरह तो मेरे रह नहीं गए थे। जिनसे मैं अपनी समस्या शेयर करता। गॉर्डों, ड्राइवरों के लिए जिस जगह उनकी ड्यूटी खत्म होती है वहीं विभाग ने उनके रुकने के लिए रिटायरिंग रूम बना रखे हैं। मैं भी इनमें रुकता ही हूं।
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