The Author DHIRENDRA BISHT DHiR Follow Current Read फाउन्टेन पैन By DHIRENDRA BISHT DHiR Hindi Motivational Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books સુધા મૂર્તિ (મનની વાત) માંથી ભારતભરની બધી જ ભાષાઓમાં સંસ્કૃતના એક બહુ જ वाज्यनु लाषांतर थ... નિતુ - પ્રકરણ 63 નિતુ : ૬૩ (આડંબર)નિતુની નજર સામે વિદ્યાની અશ્રુ ભરેલી આંખો... જીવન પ્રેરક વાતો - ભાગ 09 - 10 શિક્ષકનું મહત્ત્વ: ભારતીય સંસ્કૃતિમાં શિક્ષકની ભૂમિકા - 09 ... પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 35 મમ્મી -પપ્પાસુરત :"આ કેવિન છે ને અમદાવાદ જઈને બદલાઈ ગયો હોય... ભાગવત રહસ્ય - 146 ભાગવત રહસ્ય-૧૪૬ અજામિલ નામનો એક બ્રાહ્મણ કાન્યકુબ્જ દેશમાં... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share फाउन्टेन पैन (23) 607 4.4k 8 कहानी का सारांश (इस कहानी में मुख्य भूमिका एक पाँचवी कक्षा में पढ़ने वाले बालक की है। जो फाउन्टेन पैन पाने के लिए बहुत उत्सुक रहता है, दूसरी भूमिक उसके उसके पिता की है, पुत्र के मन की लालशा पूरी करने के लिये पिता ने पुत्र के मन में एक उमंग जगाई।) एक दिन मै अपनी कक्षा में सहपाठियों को फाउन्टेन पैन से लिखता देख, मेरे मन में भी फाउन्टेन पैन पाने की लालशा जगी। तभी मै अपने सहपाठियों के पास गया और बोला ” आपकी फाउन्टेन पैन बहुत सुन्दर है, क्या आप लोग मुझे इस फाउन्टेन पैन से लिखने दोगे? उन्होंने इंकार कर दिया। सहपाठियों की बात सुनकर मै मन ही मन बहुत दुःखी हुआ और रास्ते भर फाउन्टेन पैन के बारे में सोचता रहा। आँखो में बार बार फाउन्टेन पैन ही चमक रही थी। घर आया और माँ से फाउन्टेन पैन के बारे में जिक्र किया। फाउन्टेन पैन उस जमाने के अनुसार बहुत महँगा था किन्तु माँ ने मेरा मन रखने के लिए हाँ बोल दिया। शाम हुई पिता जी खेतों से घर आये। संध्या पूजा के बाद माँ ने पिता जी को मेरी नयी माँग, फाउन्टेन पैन के बारे में बताया। पिता ने माँ की बात सुनी और विनम्र भाव से बोले “फाउन्टेन पेन बहुत क़ीमती है”।माँ ने जवाब दिया “पर बेटे से बढ़के थोड़ी है।” माँ की बात सुनकर पिता जी बोले आपकी बात सही है, पर अभी उसकी कोई भी माँग पूरा करने का उचित समय नहीं है।“यदि मै उसे अभी फाउन्टेन पैन ला के दूँ तो उसे उसकी अहमियत पता नहीं लगेगी। उसकी माँग बढ़ती जायेगी और वह पढ़ाई में मन नहीं लगा पायेगा। जब तक वह कोई अच्छी उपलब्धि हासिल नहीं कर लेता। अभी उसकी फाउन्टेन पैन पाने की कोई माँग पूरी नहीं होगी। पिता जी का कहना भी समय के अनुसार उचित था पर तब मै इस बात को समझने में असमर्थ था। अगले दिन प्रातःकाल पिता जी ने फाउन्टेन पैन की माँग पूरी करने से साफ मना कर दिया। यह सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा। मै उदास मन से स्कूल गया। घर लौटते समय मन ही मन पैन पाने की लालशा के बारे में सोचता रहा। जैसे ही मै घर पहुँचा। माँ ने हाथ पैर धुलवाये और खाना खाने को बैठाया, किन्तु मैने खाना खाने से इंकार कर दिया। शाम को माँ ने पिता जी को बताया कि आज सुबह से मैने कुछ नहीं खाया। माता पिता जी का लाड़ला तो था ही पर पिता जी ज्यादा लाड़ नहीं दिखाते थे। वो मन ही मन घबराते थे कही मै बिगड़ ना जाऊँ। अगले दिन माँ ने मुझे स्कूल के लिए तैयार किया, तभी पिता जी आये और मेरा हालचाल पूछने लगे किन्तु मै खामोश रहा। वो समझ गये कि मैने मन में फाउन्टेन पैन पाने की हठ बना ली है। यह सब देख कर पिता जी शान्त रहे और अचानक बोल पड़े “फाउन्टेन पैन की माँग तो आपकी पूरी होगी, पर मेरी भी एक शर्त है। पिता जी की बात सुनकर मै मन ही मन ख़ुशी से झूम उठा। मेरे मन में फाउन्टेन पैन पाने की लालशा थी तो मै हर शर्त पूरा करने के लिये उत्सुक था। पिता जी बोले ” यदि इस बार तुम कक्षा अच्छे अंको से परीक्षा उत्तीर्ण करोगे तो मै आपकी फाउन्टेन पैन की माँग पूरी करूँगा। पिता जी की बात सुनकर पहले तो चुप रहा फिर अचानक बोला पड़ा, “मुझे मंजूर है।” फिर क्या था, पिता जी ने मेरे अन्दर फाउन्टेन पैन पाने के लिए एक नयी उमंग जगा दी। फाउन्टेन पैन की लालशा के कारण मैने खेलना भी कम कर दिया। स्कूल से आता बस पढ़ाई में करने बैठता। मेरे अन्दर इस बदलाव को देख कर पिता जी मन ही मन मुस्कुराते थे। धीरे धीरे परीक्षा समीप आ गई। मै परीक्षा के लिए परिपूर्ण था। फिर भी एक डर मन को अन्दर ही अन्दर शता रहा था। परीक्षा पूर्ण हुई। सभी सहपाठियों के अभिभावको को विद्यालय में बुलाया गया। मै और पिता जी स्कूल पहुँचे। सबके सम्मुख प्रधानाध्यापक ने मुझे सराहा मै कक्षा में अच्छे अंको से उत्तीर्ण हुआ था। पिता जी बहुत खुश हुये। घर लौटते समय सर्वप्रथम पिता जी ने मुझे फाउन्टेन पैन दिलाया। फाउन्टेन पैन पाकर मै ख़ुशी से फुला ना समा सका। पहली बार इतना खुश था कि मानो मैने अपने जीवन की अमूल्य वस्तु प्राप्त कर ली। पर वह फाउन्टेन पैन पाना मेरे लिये बहुत बड़ी उपलब्धि थी। “उपलब्धियां चाहे कितनी छोटी या फिर बड़ी ही क्यों ना हो,इंसान का हौसला जरूर बुलन्द करती हैं।”फाउन्टेन पैन पाने की यही उत्सुकता आगे जाकर मेरी सफलता बनी।© धीरेन्द्र सिंह बिष्ट Download Our App