6 june in Hindi Moral Stories by VIKAS BHANTI books and stories PDF | 6 जून

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6 जून

मणिका की नई नौकरी उसे नए जोश से भर रही थी | पर एक डर भी था अनजान शहर जाकर वहां नयी ज़िन्दगी शुरू करना | पति की मौत के बाद हुए खालीपन को मणिका ने अपने बेटे साहिल की ज़िम्मेदारियों से भर दिया था | एक होटल में रिसेप्शनिस्ट की 3000 की नौकरी से शुरुवात कर के आज 4 साल बाद मणिका को दिल्ली के करोलबाग़ में एक अच्छे होटल में मैनेजर की नौकरी मिल चुकी थी | इन 4 सालों में मणिका ने अपने बेटे को संभाला , ससुराल के ताने सुने और साथ ही साथ एमबीए भी पूरा किया | पर कासगंज जैसे शहर में जीने वाली मणिका के लिए दिल्ली वाकई एक बड़ा शहर था |


बेटे को माँ के पास छोड़कर मणिका दिल्ली आ गई | होटल में ही रहने का पूरा इन्तज़ाम था बस वो इंतज़ार कर रही थी की कब साहिल की पढाई का साल पूरा हो और वो उसे दिल्ली ले आये | आलिशान कमरा और चहल पहल वाला करोलबाग | कान में हेडफोन लगाए लड़के लडकियां उसे किसी दूर देश के प्राणी से ही लगा करते थे | ड्यूड कल्चर से कोसो दूर थी मणिका , फिर भी उसे ये सब देखना और उनकी बातें सुनना अच्छा लगता था | उस नए नवेले कमरे में रहते हुए 3 हफ्ते बीत चुके थे और अभी भी मणिका वहां खुद को एडजस्ट नहीं कर पा रही थी , रात का सन्नाटा तोड़ने के लिए मणिका टीवी चला कर सोया करती थी |

मोबाइल कि घडी 8 :23 बजा रही थी कि अचानक दरवाजे पर सुर में खट खट सी हुई | जैसे किसी का कोई खास सिग्नल हो | 3 बार बजने के बाद वो खट खट बंद सी हो गई | दरवाजे कि संध में से किसी कि परछाईं सी नज़र आ रही थी | कई बार कौन है का जवाब ना मिलने पर मणिका नें दरवाजे के छेद में से झांक कर देखा बाहर कोई भी नहीं था | मणिका के हाथ पांव फूल से गए और उसका शरीर पसीने पसीने हो गया | ऐसा लगा जैसे कोई पीछे ही खड़ा है और झटके से मणिका कि आँख खुल गई |

माथे पर से पसीना पोंछते हुए मणिका ने मोबाइल उठाया | वक़्त हुआ था आठ बज के तेईस मिनट और फिर अचानक वही खट खट दरवाजे पर सुनाई दी और उसी तरह 3 बार बज कर बंद हो गई | मणिका चुपचाप उठी और दरवाजे के छेद को परखने लगी | बाहर एक महिला वेटर थी | पसीना पोंछते हुए मणिका ने दरवाजा खोला | "क्या हुआ?", मणिका ने सवाल किया | "मैडम वो दूसरे ब्लॉक का ए.सी. फेल हो गया है " ,वेटर ने जवाब दिया | "पर तुमने ऐसे दरवाजा क्यों खटखटाया? " "कैसे मैडम ?" मणिका ने वो विशेष दस्तक वेटर को बजा के सुनाई | "नहीं मैडम मैंने तो डोरबेल बजाई थी दरवाजा तो खटखटाया ही नहीं |" ये सुनकर मणिका के होश से उड़ गए फिर संभलते हुए बोली ,"अच्छा वो मैकेनिक को फ़ोन कर दो कि ए.सी. को चेक कर ले | "

दरवाज़ा बंद करते ही मणिका ठंड से काम्पने सी लगी | रोंगटे खड़े हो रहे थे और कुछ समझ नहीं आ रहा था | पूरी रात उस अजीब सी जद्दोजहद में काटने के बाद सुबह मणिका अपनी नौकरी पर थी पर वो किसी को भी बता ना सकी कि उसके साथ रात में हुआ क्या | शायद उसके सहकर्मी उसे अंधविश्वासी समझते या फिर उसका मज़ाक उड़ाते | इन भावनाओं सी घिरी हुई मणिका ने चुप रहने ही उचित समझा |

कुछ रातों तक दहशत से सो न पाने के बाद शीरे धीरे स्थितियां सामान्य सी हो चली थीं | अपनी वार्षिक परीक्षाएं ख़त्म कर के साहिल भी अब मणिका के पास आ चुका था | एक शाम जब मणिका अपने कमरे में लौटी तो साहिल नें उसे बताया कि उसके दोस्त ने पहले दीवार पर कई चित्र बनाये और फिर जादू से गायब कर दिए | मणिका ने इसे अपने ६ साल के बेटे कि कल्पनाशीलता मानते हुए खारिज कर दिया पर हर रोज़ साहिल अपने उस अनजान दोस्त के किस्से सुनाने लगा | चिंतित माँ को वो दरवाज़े वाली घटना याद आ गई और कुछ दिनों में उसने अपने कमरे में सीसीटीवी कैमरा लगवा दिए | कैमरा लगवाने के एक हफ्ते तक मणिका को कुछ खास नज़र नहीं आया, पर एक दिन जब मणिका होटल के किचन का दौरा करके अपने चैम्बर में वापस लौटी तो देखा कि कमरे में पलंग कि स्थिति बदली हुई थी | छोटा सा साहिल पलंग को टस से मस भी नहीं कर सकता | वो तुरंत अपने कमरे कि ओर भागी पर वहां हर चीज़ जैसे कि तैसी थी | घुसते ही बेटे ने बताया कि उसका दोस्त आया था और उसने पलग को उड़ाने का जादू दिखाया | मणिका साहिल को उठाकर सीने से लगा कमरे से बाहर आ गई |

अब उसे विश्वास हो चला था कि ज़रूर कोई ताक़त ऐसी है जो उस कमरे में मौजूद है उसके और साहिल के अलावा | पर वो क्या था और क्यों था उसे समझ नहीं आ रहा था | उसने इंटरनेट पर होटल का पूरा इतिहास पता किया पर 30 साल पुराने उस होटल में ऐसा कुछ भी नहीं घटा था जिसपर शक किया जा सके | शाम होने को थी पर मणिका अपने कमरे में जाने को तैयार नहीं थी | तभी अचानक उसके केबिन का दरवाज़ा ठीक उसी अंदाज़ में खटका जैसे उसके कमरे में खटका था |

तीन बार हुई उस खट खट को सुन साहिल झट से कुर्सी पर से कूद पड़ा और उत्साहित स्वर में बोला ,"माँ देखो मेरा दोस्त आ गया |" घबराई हुई मणिका ने साहिल को उठा कर सीने से लगा लिया | कुछ रास्ता सूझते ना देख मणिका ने मुख्य दरवाजे पर से एक गार्ड को बुला लिया और गार्ड के साथ अपने कमरे में चलने का मन बनाने लगी | साहिल को गोद में उठाये मणिका ऐसे संभल कर चल रही थी जैसे कोई नट अपनी रस्सी पर चल रहा हो | "मैडम क्या हुआ? कुछ प्रॉब्लम है क्या? ", गार्ड ने मणिका से पूछा | "नहीं , नहीं तो ..... क्या प्रॉब्लम होगी सब सही है |"

इतना कहकर मणिका अपने बेटे के साथ अपने कमरे में पहुंच गई | वीभत्स सा सन्नाटा था वहां | ऐसा लग रहा मानो कोई कब्रिस्तान या मरघट | पर इन सबसे अनजान साहिल अपने में मगन था और माँ को इधर उधर की कई बातें बताये जा रहा था | "माँ सुन रही हो ना | वो जो दोस्त है न वो अपने अंकल से बहुत डरता है | जब भी उसके अंकल आते हैं वो बाथरूम में छुप जाता है |" मणिका कही और ही थी पर हलके कानो से उसने साहिल की बात सुनी तो पर मस्तिष्क में पहुँचने में चंद सेकंड लग गए | "क्या ? अंकल |" " हाँ इसीलिए वो 3 नॉक का सिग्नल दे के आता है | अगर उसके अंकल नहीं होते मैं दरवाज़ा खोल देता हूँ |"

"और उसके अंकल कहाँ हैं?" ........"माँ वो अभी यहाँ नहीं है |" ........."तो कहाँ है?".......... "पता क्या? पर दोस्त बता रहा था कि स्टोर में रहते हैं वो |" मणिका की सांसे फूल गई | पर फिर भी पूरी हिम्मत जुटा कर मणिका ने स्टोर का दरवाज़ा खोला | कमरे का बल्ब जलाते ही उसके होश फाख्ता हो गए | दीवारों पर पेंट छूटने की वजह से कई आकृतियाँ बन गई थीं और ये आकृतियाँ इतनी स्पष्ट थीं कि लगता था किसी चित्रकार की मेहनत का अज़ीम नमूना हो | इन आकृतियों में एक कुत्ता जो कि जर्मन शेफर्ड लगता था , एक मुड़े मूठ कि लाठी , एक बाल्टी , एक जला हुआ चेहरा और एक टोपी लगाये शख्स कि तस्वीरें थीं | मानो कोई कहानी कहना चाहतीं हों | "कुत्ता, लाठी, बाल्टी ,जला चेहरा और टोपी वाला इंसान | क्या हों सकता है इन संकेतों का मतलब ? क्या कोई घटना जो यहाँ घटी हों |" मणिका खुद से ही बात किये जा रही थीं |

तभी उसका ध्यान साहिल पर गया और वो पूछ बैठी ,"बेटा तेरा ये दोस्त दिखता कैसा है? " " माँ वो ना बड़े बड़े बाल रखता है और सिर पर एक गोल टोपी लगाता है जिसमे किनारे पर झल्लर होती है | उसकी शर्ट में बटन के पास बहुत डिज़ाइन होती है और ऊपर से आधा खुला सा कोट पहनता है | उसके जूते ना बड़े बड़े हैं और घुटनो के नीचे तक आते हैं और अपनी पैंट वो इसी में दबा कर पहनता है | " साहिल ने जो कुछ बताया उससे मणिका के दिमाग में एक तस्वीर सी उभरी | उसने साहिल के व्याख्यान के अनुसार इंटरनेट पर खंगाला तो पता चला कि सन 1800 के आस पास ऐसे कपडे अंग्रेज अपने बच्चों को पहनाते थे |

अब मणिका के दिमाग में ये तो स्पष्ट था कि यहाँ होने वाली घटना का सम्बन्ध इन 10 -20 या 50 सालों से नहीं है ये कम से कम 100 -200 साल पुरानी घटना है | पर इसके बारे में कोई कुछ बताता क्यों नहीं | अगर ऐसी घटना मेरे साथ घटी है तो मुझसे पहले के मैनेजरों के साथ भी घटी होगी | यही सब सोचते सोचते मणिका कि आँख लग गई | साहिल बहुत पहले ही सो चुका था |

रात के 3 बजे जब मणिका कि आँख खुली उसे ऐसा लगा कि वो अपने कमरे में नहीं बल्कि किसी और कमरे में है और उसकी डिजिटल घडी कि जगह घंटे वाली बड़ी सी घडी लटक रही थीं | बगल के तिपाई पर एक कैलेंडर रखा था जिस पर तारीख थी 6 जून 1834 | कमरे में कोने में वही गोल हैट रखी थी जो स्टोर रूम कि दीवार पर बने आदमी के सिर पर थी और दीवार पर एक शिकारी कि तस्वीर थी जो हाथ में बाघ कि खाल लिए खड़ा था | सामने एक व्हील चेयर पड़ी थी और उसके बगल में एक अख़बार पड़ा था |

मणिका ने पलंग से उतरकर वो अख़बार हाथ में ले लिया | ऊपर बड़े अक्षरों में लिखा था 'इंडिया गैज़ेट'| और तारीख पड़ी थी 6 जून 1834 | उस पेपर में से कुछ कटिंग काटी गई थी | शायद कोई महत्वपूर्ण खबर | वहीं कोने में एक कुत्ते के खाने का बर्तन रखा था और खिड़कियाँ बड़ी और आलिशान पर्दों से ढकी हुई थी | देखने में किसी बड़े आदमी का कमरा महसूस होता था |

अचानक सब कुछ धीरे धीरे गायब सा होने लगा | व्हील चेयर आराम कुर्सी में बदल गई , बड़ी सी खिड़कियाँ छोटी हों गई और कमरा फिर उसी पुराने लब्बोलुआब में नज़र आने लगा | एक चीज़ नहीं बदली थी वो थी उस शिकारी की तस्वीर | फ्रेम में से तस्वीर निकाल कर मणिका ने स्कैन कर कंप्यूटर पर डाली और जैसे ही गूगल को सर्च किया उसने एक नाम दिया विलियम फैरली |

अचानक मणिका को लगा जैसे हवा का एक साया उसके हाथो पर से गुज़र गया और कानों के पास जैसे किसी ने धीरे से फुसफुसाया "मणिका" | उस दहशत से भरी आवाज़ से मणिका उठ कर खड़ी हो गई | ऐसा लगा मानो मणिका ने उन घटनाओं कि कोई नब्ज़ पकड़ ली हो |

गले में लटके दुर्गा माँ के लॉकेट को हाथ में लेकर मणिका ईश्वर से प्रार्थना करे जा रही थी | उसे चिंता थी तो बस साहिल की | कमरे की सारी लाइटों को जलाकर मणिका अपने बेटे के सिरहाने बैठ गई | वो धीरे धीरे साहिल के सिर पर हाथ फेर रही थी | अचानक सोते हुए छोटे से साहिल नें मणिका की बांह को मज़बूत पकड़ के साथ जकड सा लिया | साहिल की ताकत को जानती थी मणिका पर ये पकड़ साहिल की नहीं थी | जब झटके से उसने हाथ को झटका तो साहिल उठ बैठा और घबराया हुआ सा माँ से दूर हट गया | उसके हाथों की पकड़ नें मणिका के हाथ में गहरा निशान छापा था | पर ये निशान अपनी अलग कहानी बयां कर रहा था क्यों की इस निशान में 6 उंगलिओं के निशान थे और साहिल के हाथ में सामान्य की तरह 5 ही उँगलियाँ थीं |

डर से घबराई हुई मणिका नें तुरंत अपना कमरा बदलने का निर्णय लिया और दूसरे ब्लॉक में मौजूद एक कमरे में आ गई | पर मणिका को कुछ समझ नहीं आ रहा था | उसने तुरंत रिसेप्शन पर फ़ोन किया और पिछले 10 सालों का स्टाफ रजिस्टर मंगवाया | उस रजिस्टर में से मणिका पिछले मैनेजरों के कार्यकाल को जांचने लगी | 2004 से 2010 तक एक ही मैनेजर चेतन वर्मा और उसके बाद 2010 से 2014 तक 12 मैनेजर बदल चुके थे और चेतन वर्मा के काम की आखिरी तारिख थीं 6 जून 2010 |

अचानक मणिका का माथा ठनका और उसे अपने दिवास्वप्न की तारिख याद आई ,'6 जून 1834' | "ज़रूर इस तारीख का कोई गहरा सम्बन्ध है और ये विलियम फैरली कौन है ? इंडिया गैज़ेट, विलियम फैरली और 6 जून | " मणिका खुद में बुदबुदा रही थीं | अचानक उसे याद आया की उस व्हील चेयर पर पड़े अख़बार में से कुछ कटिंग निकाली गई थी |

उसने तुरंत अपने लैपटॉप पर इंडिया गैज़ेट का 6 जून 1834 का एडिशन तलाशा और मुख्य पृष्ठ की उस खबर को खंगालने लगी जिसे उस अख़बार में से काट कर निकाला गया था | खबर का शीर्षक था 'कोलोनाइज़ेशन अ बिग कर्स ऑफ़ इंडिया '| मणिका ध्यान से उस खबर को पढ़ने लगी | उस खबर में ३ भारतीय क्रांतिकारिओं का ज़िक्र था जो पहले किसी रियासत के मालिक थे पर अंग्रेजों की औपनिवेशक नीतिओं के चलते उनके राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी में जा चुके थे | लेखक नें उसमें इन 3 व्यक्तिओं को और बाकि अंग्रेजों की तरह बलवाई और आतंकी नहीं बल्कि क्रन्तिकारी कह कर सम्बोधित किया था और अंग्रेज अधिकारियों की दमनकारी नीतिओं के खिलाफ ज़ोरदार ढंग से आवाज़ उठाई गई थी | लेख के आखिर में लेखक का नाम लिखा था , विलियम फैरली |

अब कुछ चीज़ें तो मणिका के दिमाग में स्पष्ट हो रहीं थीं | पर फिर भी कुछ सवालों के जवाब अभी भी अनसुलझे थे | मणिका नें इंटरनेट पर विलियम के बारे में जानने की भरपूर कोशिश की पर उसे उस विलियम फैरली के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली जो इंडिया गैज़ेट में पत्रकार था | ऐसा लगता था मानो उसकी हर एक जानकारी छुपा दी गई हो ताकि कोई कभी भी जान न सके की उसके साथ हुआ क्या था |

रात मणिका के लिए बड़ी लम्बी होती जा रहीं थी, जिन आँखों में डर और उत्सुकता का बवंडर घूम रहा हो उसमें नींद कहाँ आ सकती थी | रात किसी प्रकार काटने के बाद मणिका सुबह अपने ऑफिस में थी | साहिल को भी वो साथ ही ले आई थी | उसका ध्यान अभी भी विलियम के ऊपर ही था | उसने फिर से स्टाफ रजिस्टर को खंगालना शुरू किया | हर मैनेजर 3 -4 महीनों में नौकरी छोड़ के चला गया था | उसने उनमें से कई को फ़ोन करने की कोशिश की पर असफलता ही हाथ लगी | इतने पुराने कांटेक्ट नंबर अब तक बदल चुके थे |

उसने आखिर में होटल के 12वे

मैनेजर मतलब उससे ठीक पहले के मैनेजर विजय दत्ता को फ़ोन लगाया और उधर से आवाज़ आई "हेलो, मैं विजय बोल रहा हूँ , आप कौन ?" मणिका कुर्सी पर से उछल सी पड़ी | सामान्य सा परिचय देने के बाद मणिका नें विषय पर बात शुरू की | शुरुआत में कुछ हिचकिचाहट के बाद विजय ने बताया कि उसने भी उन असामान्य घटनाओं का अनुभव किया था पर होटल के मालिक ने होटल की रेपुटेशन न बिगड़ने देने के एवज में उसे एक लाख रुपये दिए थे और उसने अपना मुंह बंद रखा | आखिर इतने बड़े होटल में भूत होने की बात अगर मार्किट में जाती तो शायद होटल पर ताला लगाना पड़ता |

जैसे ही मणिका बात कर के फारिग हुई तभी गेस्ट रजिस्टर में से एक पुराना रजिस्टर ज़मीन पर आ गिरा , जैसे कोई चाहता था कि मणिका उसे देखे | उसने रजिस्टर को उठाया | रजिस्टर 2010 की दूसरी तिमाही का था | उसने उन सैकड़ों नामों को खंगालना शुरू किया | उसे पता ही नहीं था की वो ढूंढ क्या रहीं है | और उसे वो मिला जो उसे देखना ज़रूरी था |

11 मई 2010 की तारिख को होटल में ठहरा ट्यूडर कोई खास वजह नहीं था मणिका के लिए अगर उसके नाम के आगे फैरली न जुड़ा होता | "11 मई को ट्यूडर फैरली इस होटल में ठहरना और 6 जून को होटल के मैनेजर का नौकरी छोड़ के जाना इन बातों का ज़रूर कोई गहरा सम्बन्ध है | फिर उसके बाद ये सब घटनाएं | मुझे ट्यूडर से बात करनी ही होगी | " खुद में ही बोलती हुई मणिका ने अपने ऑफिस के फ़ोन से चेल्म्सफोर्ड में रहने वाले ट्यूडर को फ़ोन लगा दिया |

फ़ोन ट्यूडर नें आंसरिंग मशीन पर रखा था | मणिका ने इतना ही कहा कि "ट्यूडर आई वांट टू नो अबाउट विलियम फैरली | प्लीज कॉल मी बैक |" और २ मिनट के बाद ही उसके फ़ोन पर ट्यूडर का कॉल था | ट्यूडर ने उसे बताया कि वो अगले हफ्ते ही भारत आ रहा है और वो उससे मिलेगा |

मणिका को बेसब्री से उस हफ्ते के बीतने का इंतज़ार था | पर उन सब होने वाली घटनाओं के बीच वो खुद को साहिल से दूर सा करती जा रही थी | अगले दिन सुबह उठी तो साहिल सिरहाने बैठा माँ के सिर पर हाथ फेर रहा था जब माँ ने पूछा तो उसने जवाब दिया कि वो टोपी वाले अंकल आये थे और आपके लिए कुछ छोड़ के गए हैं | जब मणिका ने पलंग के सिरहाने देखा तो एक गुलाब का फूल और एक छोटा सा कागज रखा था | मणिका ने खोल के देखा उसमें थैंक्स लिखा हुआ था |

ये देख कर मणिका के चहरे पर एक मुस्कराहट सी आई और उसे विश्वास हो गया कि उसका एक हफ्ता शांतिपूर्वक बीतेगा और वास्तव में हुआ भी वही | वो तो इंतज़ार कर रही थी उस दिन का जब ट्यूडर आकर उससे मिलेगा और उसे पता चलेगा कि इन सब बातों के पीछे राज़ क्या है |

इंटरनेट पर विलियम और फैरली नाम को कई बार ढूंढने के बाद अचानक उसका ध्यान स्टोर रूम के उन चित्रों पर गया और तुरंत उसके कदम स्टोर रूम कि तरफ बढ़ चले थे | स्टोर का दरवाज़ा खोलने के बाद मणिका हैरान थी क्योंकि दीवार पर कोई चित्र ही नहीं था | स्टोर में रखी वो अलमारी अजीब सी आवाज़ के साथ खुद ही खुल पड़ी और मणिका के हाथ लगी एक पुरानी सी डायरी | जब मणिका ने डायरी के पन्ने पलटे तो समझ गई कि थैंक्स का सन्देश लिख कर देने वाला कोई और नहीं बल्कि विलियम ही है |

मणिका उत्सुकता से डायरी को लेकर पलंग पर बैठ गई और उसके एक एक पेज को बड़े ध्यान से पढ़ने लगी | उसकी आँखों के आगे विलियम की फिल्म सी चलने लगी | विलियम अंग्रेज पिता और अमेरिकन माँ का सबसे छोटा बेटा था | बचपन में पिता के चल बसने के बाद माँ नें विलियम को पाल पोसकर बड़ा किया था और अमेरिकन इतिहास की बहुत गहरी पैठ थी विलियम के मन में | जिस प्रकार अमेरिका में अग्रेजी शासन को स्वीकार नहीं किया गया था उसी प्रकार वो चाहता था कि इंग्लैंड के उपनिवेश हर देश से ख़त्म हो और इसके लिए उसका जरिया था कलम |

भारत में आकर उसने इंडिया गैज़ेट नाम का एक अख़बार निकाला और अंग्रेजी हुकूमत की तानाशाही का पुरज़ोर विरोध पूरी दुनिया में दर्ज़ कराता रहा | 6 जून 1834 को उसने एक ऐसा लेख लिखा जिसने पूरी दुनिया में ईस्ट इंडिया कंपनी की बहुत थू थू कराई और अंग्रेज शासन ने 6 जून 1834 के बाद इंडिया गैज़ेट पर प्रतिबन्ध लगा दिया |

इस बात के बाद विलियम की डायरी खामोश थी | राज़ का वो 6 जून खुद में कुछ समेटे हुए था जिसके बाद डायरी नें भी अपना मुंह बंद सा कर लिया था | अब बस ट्यूडर ही उसके सवालों का जवाब दे सकता था | पर एक बात तो साफ़ थी कि विलियम को ज़रूर अंग्रेज सरकार के खिलाफ लिखने का हर्जाना भुगतना पड़ा होगा और शायद इसीलिए उसका नाम ही इतिहास से गायब सा है क्योंकि शायद वो नहीं चाहते होंगे की कोई जाने भी कि विलियम नाम का कोई पत्रकार भी था |

ये सब सोचते सोचते मणिका ने नज़र उठा कर देखा तो सामने वही घंटे वाली घडी मौजूद थी और कमरा 2014 से 1834 में पहुँच चुका था | अचानक वही टोपी वाला शख्स अपनी व्हील चेयर पर दरवाज़े की ओर बढ़ा और उसने दरवाज़ा खोल कर उस आगंतुक का स्वागत किया | मणिका को ऐसा लग रहा था जैसे सामने कोई मूक फिल्म चल रही हो | दिख तो सब रहा था पर आवाज़ गायब थी | आने वाला शायद विलियम का कोई गहरा दोस्त था और उसके हाथ में अख़बार की एक प्रति थी | आगंतुक पहले आकर कुर्सी पर बैठा और कैंची से उस अख़बार में से एक खबर को काट कर निकाला और जेब से लाइटर निकाल कर उसे आग लगा दी | अचानक भीतर के कमरे से एक जर्मन शेफर्ड कुत्ता दौड़ता हुआ आया और उस आगंतुक के ऊपर भौंकने लगा | आगंतुक ने कुत्ते के सामने कुछ गोलियां सी फेंकी जिन्हे खाकर कुत्ता ज़मीन पर निश्चल सा पड़ गया | अब विलियम ने गुस्से में आकर अपने मुड़े मूठ की लाठी से उस आगंतुक पर प्रहार करना चाहा पर पास में पड़ी लोहे की बाल्टी से उस आगंतुक नें विलियम के सिर पर वो चोट मारी कि शायद उसकी वहीँ मौत हो गई | जाते जाते आगंतुक नें उसके पूरे घर में मिटटी का तेल छिड़क कर आग लगा दी जिसमें भीतर के कमरे में सोया हुआ विलियम का भतीजा भी जल कर राख हो गया |

अब मणिका कि समझ में सारी बातें आ रही थी पर एक बात अभी भी उसके दिमाग के तराज़ू को हिला रही थी और वो ये कि इंडिया गैज़ेट कोलकाता से निकलता था तो दिल्ली के इस होटल का उससे क्या सम्बन्ध है और ये बात ट्यूडर से मिलने पर ही साफ़ हो सकती थी |

कुछ ही समय में वो दिन आ गया था जब ट्यूडर उसके सामने था | उसने ट्यूडर को सारी बातें विस्तार पूर्वक बताई और जैसे जैसे मणिका ट्यूडर को सब कुछ बताती जा रही थी ट्यूडर कि आँखों कि चमक बढ़ती जा रही थी | मणिका नें जैसे ही अपनी बात ख़त्म कर के वो डायरी दिखाई ट्यूडर कुर्सी पर से उछल पड़ा | "यही तो है उन सारी घटनाओं कि वजह |", ट्यूडर डायरी हाथ में लेते हुए बोला |"क्या मतलब ?" मणिका ने सवाल किया | ............."विलियम फैरली मेरे परदादा थे और जैसा कि आप जानती हो कि विलियम अंग्रेज सरकार के बेहद खिलाफ थे इसीलिए उनके साथ अधिकारियों नें वो सुलूक किया जिससे उनका नामो निशान ही नहीं रहा | मेरे पिता नें मेरे 21वें जन्मदिन पर मुझे ये डायरी दी थी और ये डायरी पढ़कर मुझे उनके बारे में पता चला | विलियम बचपन से मेरे सपनो में आते थे और मुझसे कहते थे कि वो चाहते हैं कि दुनिया उनके बारे में जाने और उनकी तमाम ताकत शायद इस डायरी में ही थी और जब 2010 में मैं एक डॉक्यूमेंट्री बनाने इंडिया आया तब ये डायरी इस होटल में छूट गई और शायद मैनेजर इसे अपने कमरे में ले आया और सारी कहानियां शुरू हो गई | सबसे अच्छी बात तो ये है कि आप वो भी जानती हो जो इस डायरी में भी नहीं है अब मैं विलियम की कहानी को फिल्म का रूप ज़रूर दे पाऊंगा |"

मणिका के चेहरे पर एक मुस्कान थी | ट्यूडर से मिलकर वो जब अपने कमरे में पहुंची तो पाया कि विलियम की वो शिकारी के भेस वाली तस्वीर भी वहां से नदारद थी बस उसके सिरहाने एक और नोट था जिसमें लिखा था 'गॉड ब्लेस्स यू |' आज मणिका का वो कमरा शांत था और साथ ही मणिका का ह्रदय भी | मणिका नें साहिल को गोद में उठाया और करोलबाग़ दिखाने निकल पड़ी |