Shakbu ki gustakhiya - 2 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | शकबू की गुस्ताखियां - 2

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शकबू की गुस्ताखियां - 2

शकबू की गुस्ताखियां

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 2

शकबू के गम को शाहीन ने कुछ ही दिनों में अपनी सेवा, हुस्न, प्यार से खत्म सा कर दिया। इसका अंदाजा मुझे शकबू के आने वाले फ़ोन से होता। वह शाजिया की बात तो कहने भर को करता और शाहीन के गुणगान से थकता ही नहीं। मैं मन ही मन कहता वाह रे हुस्न, आंखों पर पल में कैसे पर्दा डाल देता है। शाजिया जो पचास साल साथ रही उसको भुलाने में पचास दिन भी नहीं लगे।

मैं सोचता कि उस दिन शकबू मेरी बात मान जाता। कुछ महीने कहीं और रखता शाहीन को तो आज शाजिया भाभी भी जिंदा होतीं। मगर शकबू ने अपनी जिद में अपने खुशहाल हंसते-खेलते परिवार को खुद ही तबाह कर दिया। इस घटना ने मेरे मन में भी शकबू के लिए कहीं कुछ ऐसा पैदा कर दिया था जो कहीं से अच्छा नहीं था।

वही शकबू जिससे मेरा साथ पांचवी कक्षा में हुआ था। पढ़ने में वह बहुत तेज़़ था। फर्स्ट पोजीशन के लिए हमारे और उसके बीच जबरदस्त कॉम्पटीशन रहता था। दो चार नंबरों से ही दोनों आगे पीछे होते रहते थे। पढ़ाई के लिए तो कभी नहीं लेकिन शैतानियों के कारण शायद ही कोई हफ्ता ऐसा बीतता रहा हो जब हम दोनों को घर और स्कूल में मार ना पड़ती रही हो। हाई-स्कूल में पहुंचते-पहुंचते हमारी शैतानियां उम्र से कहीं आगे की होने लगीं। इंटर में थे तभी पाकिस्तान ने हमला कर दिया। भारत ने लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में उसको तहस-नहस कर दिया।

तब हम दोनों ने ठाना कि हम भी राजनीति करेंगे। नहीं बनना मुझे डॉक्टर-इंजीनियर। शकबू के घर वाले उसे इंजीनियर और मुझे मेरे घर वाले डॉक्टर बनाने पर तुले हुए थे। मगर हम अड़े रहे। नहीं बनना। हम दोनों के बीच राजनीति को लेकर बडी चर्चा होती। शकबू शास्त्री जी की बात दोहरता, कहता ‘कितना दम है इनकी बात में कि अगर लेनिनग्राड की जनता अपने देश के लिए भूखी रह कर लड़ सकती है तो भारत की जनता क्यों नहीं? और भारत की जनता अमेरिका के अपमानित पीएल 470 गेंहूं को खाने के बजाय मरना पसंद करेगी। फिर जय जवान जय किसान का नारा देते हुए कहा कि जमीन का एक टुकड़ा भी खेती से बचा नहीं रहना चाहिए। रेलवे लाइन के किनारे भी जमीन खाली ना रहे। और यही हुआ भी। हर जगह खेती हुई।’

बाद के दिनों में शकबू कहता ‘यार शास्त्री जी ने खाने-पीने के मामले में आत्म निर्भरता की जो राह पकड़ाई उसी का परिणाम है कि आज देश खाने के मामले में आत्मनिर्भर है। लाखों टन अनाज तो लापरवाही में सड़ जाता है।’ मैं कहता ‘लोग फिर भी भूखे मर रहे हैं।’ वह कहता ‘यह भ्रष्ट व्यवस्था का कमाल है। अगर शास्त्री जैसा कोई आदमी आज प्रधानमंत्री होता तो एक भी आदमी एक टाइम भूखा सो नहीं सकता था।’

उन्नीस सौ पैंसठ की वार के वक्त राजनीतिज्ञ बनने का जो जोश हम दोनों पर सवार हुआ था वह जल्दी ही कमजोर पड़ गया। इंटर के बाद हम दोनों की पढ़ाई उतनी अच्छी नहीं रही पहले जितनी हुआ करती थी। वजह यह रही कि अब हम दोनों बाल सुलभ शैतानियों से आगे बढ़ कर आवारगी-लोफरटी की तरफ क़दम बढ़ा चुके थे।

अब लखनऊ की गलियों, गंज, नदी किनारे घूमना-फिरना हमारी प्राथमिकता में शामिल हो गया था। मैं शुद्ध शाकाहारी परिवार से संबंध रखता था। लहसुन ,प्याज भी घर में वर्जित था। कायस्थ होने के बावजूद इस मामले में इतनी सख्ती थी कि लोगों को अजीब लगता। शकबू को भी। मुझे मांसाहार का स्वाद शकबू के ही जरिए मिला। शकबू के साथ ही पहली बार सिगरेट पीनी शुरू की। चारबाग में आज जहां ए. पी. सेन गर्ल्स कॉलेज है पहले वह जुबली गर्ल्स कॉलेज हुआ करता था। उसी के पीछे रेलवे लाइन है।

लाइन और कॉलेज दोनों के बीच नाले की तरह गहरी जगह थी। जहां घास, झाड़ियों का राज था। तब वहां सन्नाटा हुआ करता था। वहीं हमने और शकबू ने कई रिक्शे वालों के साथ मिलकर गांजा भी खूब पिया। असल में हम दोनों ही आक्रामक स्वभाव के थे। मगर मैं शकबू से उन्नीस पड़ता था। जब फर्स्ट ईयर में था तभी गर्मियों की छुट्टियों में शकबू और मैं अपने-अपने गांव गए थे छुट्टियां बिताने। छुट्टियां बिता कर जब हम दोनों वापस लखनऊ पहुंचे तो अपने साथ गांव के तमाम अनुभव, यादें बटोरे आए थे।

मिलते ही एक दूसरे को अपने-अपने अनुभव बताने लगे। मैंने उसे गांव में अपने बाग में ऑल्हा पाती जैसे खेल के खेलने। तालाब में नहाने। गुड़ बनते हुए देखने, पेड़ पर झूलने, कबड्डी खेलने आदि जैसे अनुभव बताए। गौर से मेरी बातें सुनने के बाद शकबू ने अपनी तमाम बातें बताईं। उसने जमींदोज टर्की के बनने से लेकर उसके लाजवाब स्वाद के बारे में भी खूब मजे से बताया। कि कैसे-कैसे उसके एक चचाजान ने पूरी बतख बनाई थी।

मगर इसके बाद जो बात बतायी वह बड़ी विस्फोटक थी। इतना विस्फोटक कि इसने हम दोनों को नए रास्ते पर ढकेल दिया। ऐसा रास्ता जो किसी लिहाज से सही नहीं कहा जाएगा। ऐसी घटना जिसने हम दोनों को अय्याशी और चोरी के लिए आगे बढ़ा दिया। शकबू ने बताया कि उसका खानदान बहुत बड़ा है। सभी इकट्ठा होते हैं तो संख्या चालीस से ऊपर निकल जाती है।

बहुत बड़ा हवेलीनुमा मकान होने के बावजूद जगह सिकुड़ सी जाती है। इस बार शकबू ने वहां अपने एक रिश्तेदार जोड़े को संयोगवश ही शारीरिक संबंधों को जीते चरम स्थिति में देख लिया था। उस जोड़े की कुछ महीने पहले ही शादी हुई थी। और जब शकबू ने उन्हें एक बार चरम क्षणों को जीते देख लिया तो उसका किशोर मन उसे बार-बार देखने को मचल उठा। जब तक वहां वह रहा हर क्षण इसी फिराक में रहा कि कैसे उन्हें उसी चरम हालत में फिर देखे। उसकी यह कोशिश कई बार सफल रही। शकबू ने इसके बाद शारीरिक संबंधों की जो तस्वीर पेश की उससे मैं रोमांचित हो उठा।

कुछ ही दिन बाद यह तय हुआ कि जैसे भी हो यह अनुभव लेना ही है। जब बात आगे बढ़ी तो पैसा आड़े आ गया। तब हम दोनों ने अपने-अपने घर से पैसों की चोरी की। एक व्यक्ति के माध्यम से टुड़िया गंज पहुंच गए। जिन औरतों से हम मिले वह हमसे उम्र में दुगुनी थीं। मगर उन्हें पैसा और हमें औरत का शरीर चाहिए था तो इन चीजों का कोई मतलब ही नहीं था। पहला अनुभव कुल मिला कर ठीक था। हम दोनों मित्र सफल रहे। यह कहूं कि इस सफलता में उन औरतों का हाथ ज़्यादा था। वह हमें अनाड़ी समझ ऐसा अनुभव देना चाहती थीं कि हम उनके आदी बन कर बार-बार उनके पास पैसा लेकर पहुंचे। और यह हुआ भी। मगर अनुभव मिलते ही शकबू दलाल से बोला हमें इतनी उम्र की नहीं हमें हमारी उम्र की चाहिए।

दलाल को तो मानों मन की मुराद मिल गई। उसने मुर्गा फंसा जान कर फट से दाम दुगने कर दिए। कहा जितनी कम उम्र उतना ज़्यादा पैसा। इस बार इतनी कम उम्र की होगी कि आप दोनों जन्नत का मजा लेंगे। उसने ऐसा भड़काया कि हम दोनों बेताब हो उठे। दुगुना पेमेंट करने के लिए दुगुनी बड़ी चोरी की गई। मगर दलाल ने फिर ठगा। इस बार भी बीस बरस से ज़्यादा की औरतें थीं।

हम ठगे गए लेकिन कुछ कह नहीं सकते थे। जन्नत का मजा के नाम पर दुगुना पैसा झटक लिया गया। इतना ही नहीं उस दिन की शाम हम दोनों के लिए और खराब बीती। घर के दोनों चोर पकड़े गए। और खूब ठोंके गए। सख्त निगरानी शुरू हो गई। हां इतनी गनीमत जरूर रही कि घर वालों को यह पता नहीं चला कि हम दोनों ने यह पैसा वास्तव में कहां खर्च किया।

बाद के दिनों में जब गांधी जी के बारे में पढ़ा तो मैंने पाया कि शुद्ध वैष्णव परिवार के गांधी जी ने भी किशोरावस्था में मेरी तरह ही एक मुस्लिम दोस्त के साथ ही मांस भक्षण किया था। वेश्या गमन और घर में चोरी भी की। मगर उनमें नैतिक बल था। और गलती का अहसास होने पर उन्होंने पिता को सत्य बताकर माफी मांग ली थी। पिता इस गहरे सदमें को सह नहीं पाए और उनकी आंखों में आंसू आ गए थे। मगर मुझ में शकबू में इतना नैतिक बल नहीं था कि हम पश्चाताप करते और माफी मांगते।

जब मैंने यह पढ़ा था उस वक्त तक हम दोनों वकालत शुरू कर चुके थे। मैंने शकबू से कहा ‘यार जब-जब यह बात याद आती है तो मन पर बड़ा बोझ सा लगता है। अब तो हम लोग एक लाइन पर आ चुके हैं। मैं सोच रहा हूं कि फादर को बता कर माफी मांग लूँ । रिलैक्स हो जाएंगे।’

मेरी बात सुनते ही शकबू भड़क उठा, बोला, ‘अबे लाला तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? देखो ना तुम गांधी हो। ना मैं । ना तुम्हारे बाप गांधी के बाप जैसे बाबा गांधी है, ना मेरे। बताने पर इस उम्र में ऊपर लठ्ठ भले ना चलें। लेकिन जलालत से बच नहीं पाएंगे। और गांधी जी ने माफी जरूर मांग ली थी। लेकिन बड़े होने पर जब ब्रिटेन और अफ्रीका गए तब भी वेश्याओं के पास अपने दोस्त के साथ गए। यह भी ध्यान रख कि मैं किसी भी अन्य के आदर्श पर चलने का कायल नहीं हूं। क्यों कि मेरा विश्वास है कि ऐसा आदमी पिछलग्गू के सिवा और कुछ नहीं बन पाता।’ ऐसी विकट सोच वाले मेरे मित्र शकबू और मेरी शादी कुछ दिनों के अंतर पर हुई। मेरी पहले।

मेरी शादी पर वह बोला था ‘लाला तू जीवन की सबसे बड़ी पढ़ाई में तो बाजी मार ले गया।’ जब उसकी शादी हो गई तो बोला ‘लाला प्रोडक्शन चालू करने में बाजी मैं मारूंगा।’ हम दोनों की खुराफात इस हद तक थी कि हमारी पत्नियां सुनकर दांतों तले ऊंगलियां दबा लेतीं। बोलतीं आप लोगों को शर्म नहीं आती क्या? और हम दोनों का जवाब होता कि हम शर्म से परे वाले मर्द हैं। शादी में जो विशेष गिफ्ट उसने और फिर जवाब में हमने दिया था यह कहते हुए कि इसे सुहागरात की शेज़ पर पत्नी के ही सामने खोलना। इसके लिए बाकायदा हम दोनों ने एक दूसरे से वादा करवाया था। उस बारे में बच्चों के बड़े होने के बाद भी जब कभी बात उठती तो शाजिया-सुगंधा दोनों ही कहतीं ‘आप लोगों की बेशर्मी तो आज के जवानों की भी नाक काटती है।’

शकबू ने शादी के तीन महीने बाद ही हाईकोर्ट में एक बड़ा पेचीदा मुकदमा जीत लिया। हम दोनों जब भी कोर्ट में कोई मुकदमा जीतते थे तो उस दिन होटल में दूसरे को डिनर जरूर देते। उस दिन भी यही हुआ था। डिनर करके बाहर निकले, कार में बैठे। कार शकबू ने स्टार्ट की, बोला ‘लाला शादी के मामले में तो तुम मुझे पीछे छोड़ गए थे। लेकिन मैंने कहा था ना कि प्रोडक्शन के मामले में पिछाड़ दूंगा। शाजिया प्रेग्नेंट हो गई है। खुशखबरी मैं सोच रहा था कि ना दूं। आते-जाते शाजिया का उभरा पेट देख कर तुम खुद मुझसे पूछो। लेकिन यार क्या बताऊं तुमसे कुछ छिपा नहीं पाता।’

मैंने उसकी बात सुन कर उसे बधाई दी। फिर कहा ‘शकबू बड़ा अजीब संयोग है। यही मैं सोच रहा था कि जब तुम सुगंधा का चेंज़ बॉडी शेप देखोगे, पूछोगे तब बताऊंगा। तुम्हें सरप्राइज दूंगा।’ मेरी बात सुनते ही शकबू ने गाड़ी बंद कर दी। मुझे बांहों में भरते हुए बोला ‘क्या बे तू फिर आगे निकल गया। यार बड़ा छुपा रुस्तम है तू।’ फिर शकबू ने मुझे ढेर सारी बधाई देते हुए कहा। लाला कितने दिन आगे निकल गया है तू।

मैंने कहा ‘सुगंधा की प्रेग्नेंसी दो महीने की हो गई है।’ अब तक गाड़ी को स्टार्ट कर आगे बढ़ाते हुए शकबू बोला ‘हूं.... अगर प्रीमैच्योर बेबी हो जाए तभी मैं जीत सकता हूं।’ इस पर मैंने उसे झिड़कते हुए कहा ‘क्या यार तुम भी बेमतलब की हार-जीत के चक्कर में मां-बच्चे की जान जोखिम में डालने पर तुले हो।’ अपनी गलती का अहसास होते ही शकबू बोला ‘अरे यार मैं मजाक कर रहा था।’ मैंने कहा ‘मित्रवर मजाक की सीमा में सब कुछ नहीं आता।’

‘सही कह रहे हो लाला। ऐसे ही मित्रता में धोखेबाजी भी अच्छी नहीं। तुमने भी अच्छा नहीं किया।’ मैंने उसके साथ धोखा किया यह सुनते ही मैं सकपका गया। क्षण-भर चुप हो उसे देखने के बाद मैंने कहा ‘क्या शकबू मैं तुम्हें धोखा दूंगा। धोखा देना छोड़ो मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता। अनजाने में कुछ हुआ हो तो नहीं कह सकता। उसे धोखा भी नहीं कह सकते। बताओ तुम मन में क्या छिपाए बैठेे हो?’ शकबू बड़ा गंभीर हो कर बोला ‘लाला तुमको लगता है कि मैं मन में कुछ छिपा कर बैठ सकता हूं। तुमने धोखा यह दिया कि मैंने जो गिफ्ट दिया था यदि तुम उसका सम्मान करते तो प्रोडक्शन में मुझसे आगे कैसे निकलते?’

उसकी बात समझते ही मैं जोर से हंस पड़ा था। मैंने कहा ‘शकबू तुम भी कमाल करते हो। कहां की बात कहां जोड़ते हो। ऐसे तो तुमने भी धोखा दिया। तुम भी अगर मेरे गिफ्ट का सम्मान करते तो प्रोडक्शन इतनी जल्दी कहां शुरू होता। मैंने कम से कम छः महीने के लिए सामान दिया था। तुमने जो दिया था उसका दुगुना करके।’ मेरी बात पर शकबू बोला 'लाला तू छोड़ता नहीं है। मजाक में भी नहीं बख्शता।’

शकबू की जिंदादिली, उसके खिलवाड़ के किस्से इतने हैं, इस तरह के हैं कि कई किताबें लिखी जा सकती हैं। एक बार लंच टाइम में कोर्ट के बाहर हम दोनों ने चाय पीकर सिगरेट जलाई और पीते हुए चैंबर की ओर चल दिए। तभी पेन, पॉकेट डायरी आदि बेचने वाला एक लड़का सामने आ गया। उसनेे हाथ में प्लास्टिक के रैपर में स्केच पेन का पूरा सेट लिया हुआ था। जिसमें बारह कलर थे। अमूमन हम लोग उससे काला, नीला, लाल डॉट पेन लेते थे। स्केच पेन हमारे मतलब का नहीं था। लेकिन शकबू ने सिगरेट का कश खींचते हुए अचानक ही उस लड़के से स्केच पेन का पूरा पैकेट खरीद लिया।

मेरी समझ में नहीं आया कि ये क्या करेगा। मगर उसके चेहरे पर मैंने शरारत की कुछ रेखाएं पढ़ ली थीं, आखिर बचपन से देख रहा था उसे। लड़के के जाने के बाद मैंने उससे पूछा ‘ये स्केच पेन क्या करोगे? ’उसने रहस्य भरी मुस्कान के साथ एक कश फिर लिया। बोला ‘लाला बॉडी पेंटिंग करूंगा।’ पेंटिंग के बारे में मुझे ना के बराबर जानकारी थी। कुरेदने पर शकबू बोला ‘किसी के शरीर पर पेंटिंग करूंगा।’ मैंने पूछा ‘किसकी।’ तो वह बोला ‘ये हसीन काम किसी हसीना के शरीर पर ही करूंगा।’ ‘हसीना कहां से लाओगे?’ शकबू हंसते हुए बोला ‘लाना कहां है। घर पर ही है। शाजिया हसीन नहीं है क्या?’ मैंने बात खत्म करते हुए कहा ‘तुम्हारी सनक का भी जवाब नहीं। अरे पत्नी है रखैल नहीं।’ वह बोला ‘लाला तुम भी कमाल करते हो। अकेले दुनिया भर का मजा लेते रहोगे। अरे बीवियों को भी मजा लेने का हक़ है।’

अगले दो दिन छुट्टी पड़ गई। इस बीच मैंने एक केस के सिलसिले में रात करीब नौ-दस बजे के बीच फ़ोन किया। शकबू बड़े मजाकिया मूड में लग रहा था। बोला ‘यार लाला बहुत जरूरी काम में लगा हूं। डिस्टर्ब ना करो।’ इतना कहते ही फ़ोन रख दिया। तब मोबाइल जैसी कोई चीज थी नहीं। लैंडलाइन ही सब कुछ था।

मैंने फिर डायल किया। उसके बोलने पर कहा ‘दो मिनट सुनो, ऐसा क्या जरूरी काम कर रहे हो?’ फिर वह इठलाता हुआ बोला ‘लाला वकालत के पेशे का बोझ उतार रहा हूं। तरोताजा बना रहा हूं खुद को। अपने पेंटिंग हुनर को आजमा रहा हूं, शाजिया मदद कर रही है। बीच में शैतान क्यों बना हुआ है?’ यह सुनते ही मैं समझ गया कि खुराफाती क्या कर रहा है। मैं कुछ कहूं उसके पहले ही फिर फोन काट दिया। और रिसीवर भी हटा दिया। उसकी हरकत पर मुझे बड़ी खीझ हुई।

दो दिन बाद कोर्ट में मिलते ही मैंने मुद्दा उठाया तो पहले तो वह ठठा कर हंसा। फिर बोला ‘शाम को बताऊंगा।’ शाम को कोर्ट के बाद हम दोनों एक होटल में बैठे। वहां कोर्ट का एक मुलाजिम भी आने वाला था। कुछ सरकारी कागज की कॉपी लेनी थी उससे। इसके लिए एक बड़ी रकम उसे देनी थी। उसका कहना था कि रकम कई जगह बंटेगी। हम दोनों उस का इंतजार करते हुए चाय पकौड़ी का भी मजा ले रहे थे। इस महीने उम्मीद से कहीं ज़्यादा हम दोनों सफल हो रहे थे। तभी मैंने फिर पूछा ‘कौन सा काम कर रहे थे जो बात नहीं की छुट्टी में।’

पेंटिंग की बात उठाई तो उसने जो बताया उससे हंसी रुक ही नहीं रही थी। आश्चर्य अलग हो रहा था कि शकबू और इसकी बीवी वाकई कमाल के हैं। शकबू ने एकदम खुले शब्दों में बताया कि उस दिन सारे स्केच पेन शाजिया के बदन पर खर्च कर दिए। शरीर के अंग-अंग पर उसने पेंटिंग की थी। क्या-क्या डिजाइन बनाई सब बताया। मैं दंग रह गया उसकी इस हरकत से। और आश्चर्य में भी पड़ गया कि शाजिया भी इसके चक्कर में पड़ गई। बाद के दिनों में मालूम हुआ कि शकबू ने उसे मजबूर कर दिया था।

आज जब सुनता हूं दुनिया में बॉडी पेंटिंग के बारे में तो मन ही मन कहता हूं मेरा शकबू तो दशकों पहले यह करता रहा है। वह भी अपनी बीवी के बदन पर। आज लोग नया क्या कर रहे हैं? हमारी शकबू की दोस्ती पर निश्चित ही एक शानदार फ़िल्म बन सकती है। जो सुपरहिट हो सकती। एक बार कार लेने की बात आई। उस समय देश में कार के नाम पर केवल एम्बेसडर, और फिएट ही आती थीं।

फिर वह दौर शुरू हुआ जब भारत में मारूति कार की शुरुआत हुई। और इसके साथ ही भारत में कारों की दुनिया ही बदल गई। मारूति-800 बाज़ार में आई। हम दोनों मित्रों ने यह कार ली। मगर जो कलर शकबू को चाहिए था वह ऐन टाइम पर नहीं आया। मैंने अपनी कार भी उस दिन नहीं ली। जब आया मनपसंद कलर तो हम दोनों ने एक साथ ली। हालांकि घर के लोगों ने उत्साह के चलते थोड़ा मुंह जरूर फुलाया था।

इस बात का अंदाजा ना जाने कैसे शकबू को हो गया। उसने हमसे कहा ‘लाला तुम्हारे चक्कर में हम गुनाह कर बैठे। इसके लिए तुम्हारे घर वालों से माफी मांगनी पड़ेगी। कल जुमा है, नमाज के समय अल्लाह-त-आला से दुआ करूंगा कि मुझे इस गुनाह के लिए माफ करें। और मेरे यार लाला को इस बात की तौफीक अता फरमाएं कि वह ना कोई गुनाह करे और ना ही मुझसे करवाए।’ मैं परेशान हो गया कि कौन सा गुनाह हो गया मुझसे। बार-बार पूछने पर भी नहीं बताया। चेहरा ऐसा गंभीर बनाए रहा कि मेरी परेशानी बढ़ती गई। अगले दिन घर पर आया, यह कह कर माफी मांगी कि उसकी वजह से आप लोगों की कार आने की खुशी मनाने का समय आगे खिसक गया। उसने यह कह कर पल भर को मुझे बड़ा भावुक बना दिया।

असल में शकबू एक ऐसा व्यक्ति था जो ऊपरी तौर पर बड़ा लापरवाह, मस्तमौला दिखता। लेकिन वह वास्तव में था इसका एकदम उलटा। एक अध्ययनशील और हर विषय पर विश्लेषण करने वाला व्यक्ति था। किसी चीज को एकदम स्वीकार करने को वो कतई तैयार नहीं होता था। किसी बहस यहां तक कि कोर्ट में विपक्षी वकील से बहस के दौरान भी कोई बात सामने आ जाती तो वह उसकी तह तक पहुंचने के लिए मुकदमा समाप्त हो जाने के बाद भी लगा रहता।

एक बार फुर्सत के क्षणों में ही मुझसे हल्की-फुल्की बहस चल रही थी। मैंने कह दिया कि ‘देखो इस्लाम तो चौदह सौ साल पहले आया। उसके पहले सारे मुसलमान खासतौर से दक्षिण एशिया के वह सब हिंदू थे। बाद में जो मुसलमान बने उनमें नाम मात्र का प्रतिशत छोड़ दें तो बाकी सब तलवार के जोर पर बने। तू भी अपनी पूर्व की पुश्तों का पता कर हिंदू ना निकले तो कहना।’

वह मानने को तैयार ना हुआ। लेकिन तुरंत कोई जवाब उसके पास नहीं था। तो भी वह बोला ‘लाला तेरी बात में दम है। ऐसी बात कही है कि मुझे अब अपनी पुश्तों के बारे में खोजबीन करनी ही पड़ेगी। आखिर पता तो चले कि हमारी जड़ है कहां?’ मैंने समझा कि शकबू ने ऐसे ही कह दिया है। लेकिन मैं गलत था। शकबू जी जान से ढूढ़ने लगा अपनी जड़। इसमें छः साल का समय लगा दिया। मैं बार-बार कहता ‘यार क्यों इस निरर्थक काम में पैसा, समय बरबाद कर रहे हो।’ इस चक्कर में वह कई बार देश के विभिन्न राज्यों के चक्कर लगा आया था। एक बार तो नोबेल प्राइज विनर राइटर वी.एस. नायपॉल का नाम लेते हुए कहा कि ‘जब वह अपनी जड़ें ढूढ़ने दूर देश से यहां आ सकते हैं तो मैं कम से कम अपने देश में ही ढूंढ़ रहा हूं।’ शकबू की छः साल की मेहनत रंग लाई।

उसने खानदान का छः पीढी पहले तक का पूरा इतिहास ढूंढ़ लिया। इस सिजरे के हिसाब से उसकी छहवीं पीढ़ी आज के पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की रहने वाली थी। उसका खानदान सामंती खानदान था। छहवीं पीढ़ी के मुखिया ठाकुर बलभद्र सिंह थे। उनसे छोटे पांच और भाई थे। बलभद्र सिंह वहीं एक राजा के यहां फौज में बड़े ओहदे पर थे। बाकी भाइयों के पास दो-दो, चार-चार गांवों की जमींदारी थी।

अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ अठारह सौ सत्तावन की बगावत में राजा ने भी हिस्सा लिया। जब स्वतंत्रता सेनानियों की हार हुई तो अंग्रेजों ने ढूंढ़-ढूंढ़ कर उनका कत्लेआम शुरू किया। राजा और बलभद्र सिंह सहित परिवार के भी अधिकांश लोगों का अंग्रेजों ने कत्ल कर दिया। परिवार के कुछ सदस्य छोटे भाई वीरभद्र के साथ बच निकलने में कामयाब रहे। काफी समय तक वह किसी पर्वतीय क्षेत्र में छिपे रहे। वहीं पास में कटास राज शिव मंदिर है। जो ईसा से करीब तीन सौ वर्ष पूर्व का माना जाता है।

कई बार वीरभद्र इस मंदिर में छिप कर अंग्रेजों से खुद को बचा पाए थे। इस पवित्र मंदिर के सरोवर का जल तब कई दिन उनके परिवार का जीवन बन गया था। कहते हैं यह सरोवर भगवान शिव के आंसू से बना है। माता सती के शरीर त्याग से भगवान शिव के आंखों से दो बूंद आंसू टपके थे। एक बूंद यहां कटास राज में गिरी। दूसरी राजस्थान के पुष्कर में। जो तीर्थराज पुष्कर बना।

शकबू ने बताया यही वीरभद्र सिंह बचते-बचते परेशान हो गए तो वहां से किसी तरह निकल कर बंगाल पहुंच गए। इस बीच बीतते समय के साथ अंग्रेजों की खोजबीन कम हुई। तो वहीं बंगाल में किसी छोटी-सी स्टेट में नौकरी कर ली। अंग्रेजों की पिट्ठू उस स्टेट में वह अपने को छिपाए रखने में सफल रहे। समय बीतता रहा। हालात फिर बदले, परिवार यहां से फिर भाग कर आज के पाकिस्तान के सिंध प्रांत पहुंच गया। फिर वहीं बस गया। मगर इस परिवार के लिए एक जगह रुकना जैसे अभिशाप बन गया था।

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