Manchaha - 2 in Hindi Fiction Stories by V Dhruva books and stories PDF | मनचाहा - 2

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मनचाहा - 2

शाम के 5:30 बज चुके थे। वैसे कोलेज मेरे घर से आधा घंटा ही दुर है। जेसे जेसे स्टोप आते गए वेसे वेसे बस की भीड़ भी कम होती गई और हमें बैठने की जगह मिल गई। मैं और दिशा एक सीट पर बैठ गए। बातों बातों में पता चला वो मेरी सोसायटी से तीन सोसायटी आगे एक महिना पहले ही रहने आई है। दोनो में काफी बातें हुई और एक-दूसरे के मोबाइल नंबर भी एक्सचेंज कीए। वेसे में किसी से जल्दी घुल-मिल नहीं जाती परन्तु दिशा का नेचर मुझे अच्छा लगा। हमारा बस स्टोप आ गया, हम दोनो साथ ही उतर गए।
-दिशा कल हम साथ ही कोलेज के लिए चले अगर तुम्हें एतराज न होतो?
-अरे.. मैं भी यही कहने वालीं थीं।
-तो फिर हम सुबह 9:30 बजे मिलते हैं।
-done ?
पहले दिशा का घर आया फिर मेरा।

सेतुभाभी(बड़ी भाभी)- आ गई पाखि, कैसा रहा आज तुम्हारा पहला दिन कोलेज में?
-जी बहुत अच्छा, और बस का सफर तो पुछो ही मत।
-क्यो क्या हुआ?
-अरे एक दम एडवेंचर टाइप सफ़र रहा।?
फिर भाभी को पुरे दिन का विवरण बताया।
-चल हाथ मुंह धोकर आजा, मैंने अभी अभी चाय बनाई है।
-जी भाभी
और मैं ऊपर अपने कमरे में चली गई।
आज पता चला कि बस का सफ़र भी थकान वाल होता है बापरे बाप।
मैं जब नीचे आई तो दोनों भैया भी आ गए थें। उनको भी आज के दिन के बारे में बताया।
बड़े भैया- बस में थोड़ा संभल कर जाना, तुम्हें मेंने कहा था अपनी स्कुटी ले जाने को पर तुम्हें तो बस का मज़ा लेना है।
भैया बस से तो इसलिए जाना चाहती हुं क्योंकि रोज़ तरह-तरह के लोग मिलते हैं। सब को जानने का मौका भी मिलता हैं।
कवि भैया- ये सही कह रही हो तुम।
मैने कहा -हम कभी गलत कहते हैं क्या?
अंदर से मेरे दोनों नटखट भतीजे आए और मुझे अपने रूम में धकेल ने लगे।
अरे चन्टु-बन्टु कहां ले जा रहे हो, में गिर जाऊंगी।
बुआ जल्दी चलो टीवी पर अपना वाला सोंग आ रहा है।
हम तीनों का फेवरेट सोंग था बादशाह का 'डीजे वाले बाबु मेरा गाना चला दें... 'फिर जम कर डांस हुआं की पुछो मत।
मिताभाभी(छोटी भाभी) ने रात के खाने के लिए आवाज लगाई, हम है कि अनसुना करके मस्ती करते रहे। मेरे लिए मेरे भतीजे मेरी जान है। जब मस्ती से दोनों का मन भरा तभी खना खाने गए।

क्या बात है भाभी आज तो सब हमारी पसंद का खाना है। भरवां भिंडी, पनीर टिक्का, चावल, दाल तड़का और ये मुंगदाल का हलवा यह सब देखकर तो मुंह में पानी आ गया। ?
आज तेरा कालेज का पहला दिन था इसलिए, पर हा रोज़ नहीं बनेगा नहीं तो तेरे दोनों भैया भुखे रहेंगे।
रवि भैया को भींडी नहीं पसंद और कवि भैया को पनीर नहीं पसंद।
खाना खाने के बाद इधर उधर की बातें करके सब सोने चले गए। हमारे घर में बरसों से जल्दी सोने का नियम है। हम 9:30-10 बजे तक सो जाते हैं।
मैं भी कमरे में आ गई। फ्रेश होकर नाईट ड्रेस पहना और बिस्तर पर लेटते ही उस लड़की का ख्याल आया जो कोलेज में मेरे बाजू में बैठी थी। उसका नाम भी नहीं पता चला। कोई बात नहीं कल पता कर लेंगे। इष्टदेव को याद करके मैं भी सो गईं।

अगली सुबह

कराग्रे वस्ते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती, कर मुले तु गोविंद: प्रभाते कर दर्शनम।
इसी श्लोक से मेरी सुबह होती है। 7:00 बजे का अलार्म लगाके सोई थी वरना 8:30 से पहले आंखें नहीं खुलती। क्योंकि स्कूल टाइम दोपहर का था तो जल्दी उठ नहीं पाती। जबकि कोलेज 10:00 बजे शुरू हो जाता है। जल्दी उठना कितना बोरींग होता है, पर अब तो उठना हीं पड़ेगा।
नहा धो कर तैयार हो गई, अपना बेग लेकर नीचे आ गई। भाभी ने नाश्ता रेडी ही रखा था। नाश्ता करते करते मोबाइल में WhatsApp चेक कर रहीं थीं कि तभी कवि भैया ने सिर के पीछे टपली मारी और नाश्ता ढ़ंग से करने को बोलें।
- भैया आपको कितनी बार कहा सिर पर मत मारो मुझे पसंद नहीं है, मिताभाभी इनको समझा दो नहीं तो यहीं तलवारें खिंच जाएगी।
कवि भैया हमेशा ही मुझे चिढ़ाते रहते हैं। वो थोड़े मस्तीखोर टाइप के आदमी हैं, बिना मस्ती उनको खाना हजम नहीं होता।
सेतुभाभी- अरे पाखि जल्दी नाश्ता करले कहीं बस ना छूटे तुम्हारी।
वही तो कर रहीं हुं पर ये कविभाई को कहो ना।
कवि भैया- मैं भी वही कह रहा हूं, मोबाइल से अपना सर निकाल और खाना खाले।
इतने में दिशा का फोन आया। 9:15 बज चुके थें, वो जल्दी बसस्टेंड पहुंच गई थी। मैंने बस दस मिनट में पहुंचने को कह के जल्दी नाश्ता खतम करके नीकल गई। बसस्टेंड मुश्किल से पांच या सात मिनट दूर हे हमारे घर से।

अगले भाग की थोड़ी प्रतीक्षा करें।लेखक के तौर पर यह मेरी दुसरी कहानी है। अगर आपको इसमें तृटी नज़र आए तो जरूर बताएं। जिससे मैं अपनी लिखावट इमप्रृव कर सकु। अगर आपको मेरी कहानी पसंद आए तो कमेंट में जरूर बताएं और अपनी रेटिंग्स भी ज़रूर दे।?