Aisa pyar kaha - 3 in Hindi Love Stories by Uma Vaishnav books and stories PDF | ऎसा प्यार कहाँ - भाग - 3

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ऎसा प्यार कहाँ - भाग - 3

भाग.. 3


अब तक आपने पढ़ा नील और प्रज्ञा के बीच खट्टी - मीठी बातें होती हैं और धीरे धीरे उनके बीच बातें होने लगती है, प्रज्ञा को भी नील की बातें अच्छी लगने लगती हैं लेकिन दूसरी तरफ वो ये भी सोचती है कि ये ठीक नहीं....... बात करू या नहीं.... बस इन्ही उलझनों के बीच फसी प्रज्ञा.... आए आगे की कहानी पढ़े... 

प्रज्ञा पूरे दिन नील के बारे में सोचती है, आखिरकार वो फैसला कर लेती है कि वो नील से बात करेगी। कुछ देर सोचने के बाद वो दुबारा नेट ओपन करती हैं, तभी उसे नील के msg मिलते हैं.... 
नील... Hiiii
प्रज्ञा..... Hello 
नील....... और.. बताए क्या हाल हैं..... क्या कर रही हो। 
प्रज्ञा......... I am fine..... कुछ नही... बस यूही... 
नील...... वैसे आपने अभी तक अपने बारे में कुछ बताया नहीं....... ?
प्रज्ञा..... बताना क्या है..... हमारी प्रोफ़ाइल में सब लिखा हैं...... और क्या जनना है 
नील........ आप हमेशा ऎसे ही उखड़ी -उखड़ी रहती हो। 
या कभी खुश होती है.... 
प्रज्ञा..... मैं खुश ही हूँ....... 
नील.... नहीं हो.... 
प्रज्ञा.......क्या मतलब 
नील..... कुछ नहीं...... अच्छा ये बताए आपकी हॉबी क्या है 
प्रज्ञा..... Dance 
नील... Wow.. Great ? ?... तो आपका कोई डांस देखने को मिलेगा हम... 
प्रज्ञा.... नहीं 
नील.. क्यू?? 
प्रज्ञा..... ऎसे ही..... 
नील..... अच्छा जी ?... जैसे आप की मर्जी 
प्रज्ञा...... Good 

इस तरह प्रज्ञा और नील के बीच रोज बातें होती रही.... और धीरे - धीरे उनके बीच दोस्तो गहरी होती गई। अब तो प्रज्ञा देर तक नील से बाते करती। उससे बात करते - करते दिन कैसे निकल जाता पता भी नही चलता। सुबह से लेकर शाम का खाना तक दोनों एक - दूसरे से डिस्कस करते थे। अब तो ये उनका रोज का काम हो गया। कुछ ही महीनों में जैसे सदियों की पहचान हो ऐसा लगने लगा। प्रज्ञा नील को अपनी हर बात बताती और नील भी प्रज्ञा को सब कुछ बताता। 
जब कभी भी प्रज्ञा उदास होती तो नील उसे तरह - तरह के जोक सुना - सुना के मनाता। और कभी जब नील उदास होता तो प्रज्ञा उसे, उसी के जोकस को उल्टा - सीधा करके सुनाती....... तो नील हँस पड़ता। 

इसतरह रोज बातें होती। एक दिन पूरे दिन नील का कोई msg नहीं आया। नील से बात न हो पाने के कारण प्रज्ञा बहुत परेशान हो गई। उसका कही मन नहीं लग रहा था। प्रज्ञा के मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। वो सोच रही थी.... कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं हुई...... नील ठीक तो है, दोनों को बातें करते  कई महीने हो गए थे परंतु उन दोनों ने कभी फ़ोन पर बात नहीं की, और नहीं एक - दूसरे से नंबर मांगे। किंतु प्रज्ञा को क्या पता था कि एक दिन इस तरह उसके नंबर की जरूर पड़ जाएगी। एक पल तो प्रज्ञा को लगा.... कहीं नील उसके जज्बातों से खेल तो नहीं रहा था........ फिर सोचती... नहीं.. नहीं.. ऎसा नहीं हो सकता.... नील ऎसा नहीं है..... जरूर कोई प्रॉब्लम हुई होगी.... वरना नील कभी ऎसा नहीं करता..... इस तरह सोचते - सोचते प्रज्ञा की आखों में आंसू आ जाते हैं.... 

कहानी जारी रहेगी........ ❤️❤️

प्रिय पाठकों, 
         नमस्कार ?.... आप को इंतजार करवाने के लिए क्षमा चाहती हूँ, पिछले कुछ दिनों से बहुत व्यस्त होने के कारण कहानी के इस भाग को प्रकाशित करने में देरी हो गई। कहानी का अगला और अंतिम भाग अगले सप्ताह में आपके समक्ष होगा। तब तक के लिए अलविदा। 
धन्यवाद ? ? 

Uma vaishnav 
मौलिक और स्वरचित