The Author Devesh Mishra Follow Current Read अधूरी मोहब्बत By Devesh Mishra Hindi Love Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books अनुबंध बंधनाचे. - भाग 24 अनुबंध बंधनाचे.....( भाग २४ )आज रविवार असल्यामुळे प्रेम थोडा... क्रीपि फाईलज - खरी दृष्य भीतीची ... - सीजन 1 - भाग 6 ह्या कथेत लेखकाने गरज असल्याने भूत,प्रेत, अंधश्रद्धा दाखवली... नियती - भाग 39 भाग 39जॅक म्हणाला..."नको... तिघेही आले म्हणजे मी त्यांच्यासो... नाणारचा टॉवर नाणारचा टाॅवर १९६० त... कर्म - गीतारहस्य - 3 "कर्म ". गीता रहस्य.ज्ञानानें आणि श्रद्धेनें, पण त्यांतल्या... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share अधूरी मोहब्बत (15) 2.4k 22.4k 5 अभी शाम के तीन बजे थे।मै अपने कुछ मित्रो के साथ अपनी गली मे खडा था।सामने से एक लडकी आती है।उसके एक हाथ मे कुछ कागज ओर कानंधे पर भारी सा वस्ता सावला सा रंग आँखे बडी बडी नशीली छरछरा बदन उसकी निगाहे मेरी तरफ थी जोकी मुझे चुपके से घूर रही थी मेरे पास से गुजरी हालाकी मेरी गली की थी।तभी मेरे कन्धे पर मेरे एक मित्र ने हाथ रखा और कहा भाई आप तो छुपे रूसतम निकले हम सबसे भी छुपाया पागल है तू तभी आवाज लगती है देव कहाँ हो ऊपर आना ये मेरी दादी थी ।मै अपनी दादा दादी के साथ ओर अपने एक भाई के साथ मुरादाबाद के एकबडे से मौहल्ले मे किराये के मकान मे रहता हू।मेरे कमरे मे घूसते ही दादा जी मुझ पर गुस्सा होकर बोले मैने कितनी बार आपसे इन लडको के साथ बात करने ओर घूमने के लिये मना करा है फिर भी मेरी बात क्यू नही मानते हो मै उनकी बात सुनकर बिना कुछ बोले छत पर निकल गया दरासल मेरे साथ के ये सारे लडके अनपढ थे जो कि कारखानो मे काम करते थे लेकिन ये सब मुझसे बहुत प्यार करते थे ओर हर वक्त मेरे लिये तैयार रहते थे इसीलिये अक्सर मेरी डाट पढती थी।अभी छत पर खडा ही हुआ था मेरी नजर सामने छत पर खडी लडकी पर पडी जिससे अभी कुछ देर पहले ही तो मुलाकात हुई थी शायद उसकी आँखे कुछ तलाश कर रही थी.जैसे ही मैने उसकी तरफ देखा ओर उसने मेरी तरफ देखा वो छत से नीचे ऊतर कर चली गयी.ओर मेरे दिल मे एक अजीब सी हलचल होने लगी.इससे पहले भी कई मरतवा मै उसके पास से गुजरा लेकिन ऐसा मेरे साथ कभी नही हुआ .अभी रात के 2.00 बजे थे मै बार बार क्यू उसके बारे मे सोच रहा था .सोचते सोचते पता नही कब आँख लग गयी पता ही नही चला।अब मेरे दिल मे उसे ओर उसका नाम जानने कि जिज्ञाशा पैदा हुयी सुवह होते ही मै फिर से गली मे खडा हो गया ओर उसका इन्तजार करने लगा.तभी वो अपने घर से बाहर आती है और मेरी तरभ देखकर चल देती है शायद वो अपनी हलवाई की दुकान पर जा रही थी क्योकी उसके पिता वहाँ के जाने माने प्रसिद्ध हलवाई थे . ना चाहते हुये भी मेरे कदम उसके पीछे पीछे चलने लगे थे ऐसा लगता था कि कुछ कहना था उन आँखो को मुझसे अभी कुछ ही दूर मै उसके पीछे चला था अचानक उसने पीछे मुडकर मुझे देखा और वह मेरी तरफ थोडा मुस्कराकर कुछ धीरे धीरे चलने लगी लेकिन मै डर की वजह से चुपचाप वैसे ही चल रहा था.वो अपनी दुकान पर चढती है उसके पिता उसे देखकर बहुत प्यार से कहा सिया बेटा आपकी मनपसन्द ताजी ताजी जलेबी तैयार हैऔर पापा जी मेरा दही वो कहाँ है मै तो भूल ही गया था ये लो ओर वापस अपने घर की तरभ चल दी।। दोस्तो मेरी इस कहानी का पहला अंक आपको कैसा लगा बताना ना भूले। Download Our App