Ghar ki deeware dhadakti he apno se in Hindi Motivational Stories by Ajay Kumar Awasthi books and stories PDF | घर की दीवारें धड़कती हैं अपनो से

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घर की दीवारें धड़कती हैं अपनो से

घर की दीवारें धड़कती हैं अपनो से


      मेरे एक मित्र पेशे से इंजीनियर है. उन्होंने हाल ही में अपने लिए एक मकान बनवाया, उसकी सजावट पर उन्होंने बहुत ज्यादा ध्यान दिया था. उस पर खर्च भी अच्छा खासा किया था. वे जरुरत से ज्यादा सफाई पसंद और साज सज्जा के शौकीन हैं ,इस कारण घर के भीतर बाहर जरा भी कोई गंदगी करता है,रखे हुए सामान बिगाड़ता है या खराब करता है तो ये सब उन्हें बर्दाश्त नहीं होता है . ऐसा होने पर वे अपनी पत्नी – बच्चों को भी नहीं छोड़ते हैं ,वे उन पर भी बरस पड़ते है . इन दिनों अपने नवनिर्मित मकान से उन्हें कुछ ज्यादा ही मोह हो गया था . उसे बनाते बनाते वे बड़े कर्ज में भी डूब गए थे,,,
     
    एक दिन उनकी छोटी बिटिया ने उनके बेडरूम की सुन्दर चिकनी दीवारों में पेन्सिल से काली – पीली, आडी - तिरछी लकीरें खींच दी . महंगे पेंट से पुते दीवार बिटिया कि हरकत से किसी गांव देहात की पाठशाला के कमरों की तरह लगने लगी थी. आफिस से आने पर जब उन्होंने अपने कमरे का हाल देखा तो मानो आसमान टूट पड़ा . नौकर नौकरानियो से लेकर पत्नी बच्चों तक कि परेड हो गयी . अपनी ख़राब हो गयी दीवार को देख देख कर वे बहुत अफसोस करने लगे, वे घर आये मित्र और परिजनों को वो सब दिखा दिखा कर अपनी पत्नी और बच्चों कि लापरवाहियो की शिकायत करते,उन्हें कोसते . सबके सामने अपनी पत्नी को भला बुरा कहने से नहीं चूकते . इन सबके कारण काफी दिनों तक घर का वातावरण ख़राब रहा .

       फिर कुछ ऐसा हुआ कि उनकी पत्नी को कुछ दिनों के लिए मायके जाना पड़ गया . वहां जाने के बाद उन्हें कुछ दिन और रुकना पड़ गया. इधर मेरे मित्र महाशय को काफी दिनों तक अकेले रहना पड़ गया और संयोगवश ऐसा उनके साथ पहली बार हुआ था ,जब उनका परिवार उनसे काफी दिनों के लिए दूर था . अब उन्हें पत्नी और बच्चो कि याद सताने लगी पर अगले कुछ दिनों तक उनका आना संभव नहीं था .
  
     एक शाम मै उनके पास बैठा था तो वे बहुत भावुक हो गए , उनकी आँखों में आंसू थे और वे अपने उसी कमरे की महंगी पेंटिंग – पुताई के बीच अपनी प्यारी बिटिया की उकेरी गयी आडी – तिरछी लाइनों को देखकर और उन ख़राब हुई दीवारों में हाथ फेरकर उसकी शैतानियों को उसकी हरकतों को याद करने लगे . आज अपनी नन्ही बिटिया के हाथों दीवाल पर बनाये गए माडर्न आर्ट उन्हें बहुत प्रिय लग रहे थे . कुछ दिन पहले अपनी इसी बिटिया की नादानी पर उन्होंने घर पर कोहराम मचा दिया था . आज उसका मचलना कमरे में चीखना, चिल्लाना , सामान बिखेरना और तोडना फोड़ना ये सब याद कर वे अपनी बच्ची के लिए रोने लगे . उन्हें इस भावुक अंदाज में देख कर लगा कि जब वे इनके पास थे तो ईट पत्थर से बने उस मकान के मोह के कारण उन्हें उनके अपनों के महत्व का अहसास नहीं था . आज कुछ दिनों की उनकी अनुपस्थिति से ही उनका कीमती मकान और उनके कीमती सामान उन्हें सन्नाटा ,अकेलापन और यादों के कांटे चुभा रहे  थे  . जिस मकान की साज –सम्हाल के लिए वे अपनों पर चढ़ बैठते थे उन्ही अपनों के वहां न होने से उन्हें बहुत तकलीफ हो रही थी . 
     
      कुछ दिनों में उनका परिवार लौट आया, पर अब वे अपने मकान के बेजान सामानों के टूटने फूटने और बच्चों के द्वारा बिगाड़ दिए जाने से क्रोध के सातवे आसमान पर नहीं होते . ऐसा होने पर अब वे स्वयं को समझा लेते हैं कि अपनों का साथ हो ,प्यार, स्नेह और दुलार हो तो ही घर की दीवारें धडकती हैं और उनसे ही उसकी सुन्दरता है . 

    लाख महंगा आशियाना हो पर ,जहाँ अपनापन और अपने न  हों तो वो किस काम का ? पंछी भी घोसला बनाते हैं तो अपनों के लिए और अपने चूजों को ऊँची उड़ान देने तक ही उस घोसले से उन्हें प्यार होता है . 
    वस्तुतः घर अपनों के लिए बनाया जाता है अपने लिए नहीं ,,, कल के स्वर्णिम सुख की आस में वर्तमान में तकलीफ ओर तनाव क्यो पाले,,, बेहद अनिश्चित है जीवन,,,उसे आज जो जी लिया वही 16 आने ,,,सो तनाव और दबाव बिल्कुल न ले,,,यही जानलेवा है,,,,