Hawao se aage - 13 in Hindi Fiction Stories by Rajani Morwal books and stories PDF | हवाओं से आगे - 13

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हवाओं से आगे - 13

हवाओं से आगे

(कहानी-संग्रह)

रजनी मोरवाल

***

पीली तितलियाँ

(भाग 1)

“तुमको हम दिल में बसा लेंगे तुम आओ तो सही,

सारी दुनिया से छुपा लेंगे तुम आओ तो सही,

एक वादा करो कि हमसे ना बिछड़ोगे कभी,

नाज़ हम सारे उठा लेंगे तुम आओ तो सही...”

गजल ख़त्म होते ही एक वज़नदार आवाज़ उभरी थी “फरमाइशी/कार्यक्रम में ये गज़ल लिखी थी ‘मुमताज़ राशिद’ ने और जिसे गाया था चित्रा जी ने ।“ उस रोज़ जगजीत सिंह व चित्रा सिंह स्पेशल कार्यक्रम चल रहा था, तभी विपिन ने पीछे से उसके कंधे को छुआ था ।

“क्या हुआ ? इतनी मगन होकर क्या सुन रही हो ?”

“यह गज़ल... कितनी मीनींगफुल है न ?”

“अरे ख़त्म हो गई ।”

“कहो तो फिर बजवा दूं ?” सुमी ने मज़ाक में कहा था किन्तु उसकी पलकों पर चित्रा सिंह की जादुई आवाज़ से छिटककर कुछ नमी समा ही गयी थी ।

“ओहो... लो देखो यह गज़ल तो वाक़ई रीपीट हो गई सुमी ! तुम्हारी जुबान पर सरस्वती बैठी थी उस वक़्त जब तुमने इस गाने को दुबारा सुनवाने के बारे में कहा था, या ये एंकर तुम्हारी पहचान में तो नहीं कोई ?”

“अरे वाह... गज़ब इत्तेफ़ाक है !” वे दोनों बैठकर रेडियो की तरफ देखते रहे थे । कानों में मिश्री-सी घुली जा रही एक नाज़ुक स्वर लहरी कर्पूर की तरह भीनी-भीनी ख़ुशबू समेटे पूरे कमरे को सुगन्धित कर गई थी । “राह तारीक है और दूर है मंज़िल लेकिन, दर्द की शम्मे जला लेंगे तुम आओ तो सही” वातवरण भीगा-भीगा-सा हो उठा था और सुमी के हृदय में भयंकर खलबली थी ।

अगले गाने की फरमाइश के बीच में रेडियो में गंभीर आवाज़ गूंजने लगी थी- “शाम ढलने को हे, सूरज के डूबने से पूर्व चाँद अपने होने की आहटों को किरणों के दुपट्टे से लिपटाकर आसमान में बिखेरने को आतुर हुआ जा रहा हे, मगर इश्क़ की आँखों में ख़्वाबों की कोई और ही दुनिया बसी हुई हे । तो लीजिये अपनी फरमाइश की गजल सुनें जिसे लिखा हे ‘सुदर्शन फ़ाक़िर’ और ‘ख़्वाजा हैदर अली आतिश’ ने और जिसे गाया हे, जगजीत सिंह व चित्रा सिंह ने-

“इश्क़ में गैरत ए’ जज़्बात ने रोने ना दिया,

वरना क्या बात थी किस बात ने रोने ना दिया ।

यार को मैंने, मुझे यार ने सोने ना दिया,

रात भर ताला-ए-बेदार ने सोने ना दिया ।

आप कहते थे के रोने से ना बदलेंगे नसीब,

उम्र भर आपकी इस बात ने रोने ना दिया ।”

कार्यक्रम कबका खत्म हो चुका था किन्तु सुमि थी की किसी और ही दुनिया में खो चुकी थी,

“तुम है को हे क्यों कहते हो ?”

“अच्छा... मुझे तो नहीं लगता हे ।”

“देखो ! फिर तुमने हे कहा” और वे दोनों ज़ोर से हँस पड़ते थे ।

सुमि मन ही मन सोचने लगी, अगर यह वही है तो इसकी है को हे बोलने की आदत में सुधार नहीं हुआ अब तक ।

बरसों पूर्व ऐसे ही किसी शाम को उसने अपनी भूरी पेंट के ऊपर जांघ वाले हिस्से पर नाखून से खरोंचकर पूछा था- “डू यू लव मी ?”

“कच्च...” सुमि तब अपनी पढ़ाई में गले तक डूबी थी । दसवीं के बोर्ड एक्जाम सिर पर थे और इस पागल को ये क्या शहरी बीमारी लगी है, उसने इस बार सुमि की हथेली पकड़कर अंगुली से हौले से वही तीन शब्द उकेरे थे ।

“तुम पगला गए हो ? कल तुम्हारा मैथ्स का पेपर है और तुम्हें ये बकवास सूझ रहा है, जाओ निकलो यहाँ से” और वह वाक़ई वहाँ से निकल गया था और तो और फ़ेल भी होकर बैठ गया था । बाद में सुना था कि वह कोई और विषय पढ़ना चाह रहा है अब जिसके लिए उसके परिवार वाले किसी दूसरे शहर में शिफ्ट हो गए थे । मसला ख़त्म हो चुका था पर हथेली पर उकेरे वे तीन शब्द सुमि की हथेलियों में जज़्ब होकर रह गए थे जिन्हें ताउम्र वह न मिटा पाई । एकाकीपन में गाहे-बगाहे उसकी हथेलियों में अकुलाहट होते देख वह रुमाल को ज़ोर से भींच लिया करती थी ताकि अनुभूतियाँ पनपने न पाएँ किन्तु अकुलाहट कभी ख़त्म न कर पाई वह।

बरस-दर-बरस बीतते चले गए, उसने कत्थक में विशारद कर लिया और साथ ही ग्रेजुएशन भी, विवाह की जल्दबाज़ी उसे कतई न थी । वह घूंघरुओं की रुनक-झुनक में ही ज़िन्दगी के अर्थ तलाशना चाहती थी । गुरुजी जब उसे कत्थक सिखाते तो लगता है उसके जीने का सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही मक़सद है और वह है कत्थक ।

एक-एक पैर में 200-200 घुंघरूओं की झनकार में पसीने से तरबतर सुमि की बलैयां लेते हुए गुरुजी उसके हाथ में एक सिक्का थमा देते थे, जो उसके नृत्य का ईनाम हुआ करता था । सिक्कों से खनखनाता गुल्लक उसने अब तक संभालकर संदूक में सँजो रखा है । यह बात अलग है की इधर बरसों से उसमें सिक्कों की संख्या न बढ़ी है न घटी है । उसने नृत्य करना बंद कर दिया ऐसा भी नहीं था किन्तु वक़्त की मांग के आगे छूट जरूर गया था । हाँ टाँड़ की सफ़ाई करते वक़्त घुंघरू अवश्य अपनी खनखनहाट बिखेरकर उसके कानों में मिश्री-सी घोल देते थे, उनकी झंकार सुमि के भीतर उदासी भर जाती है और वह हौले से उन्हें गिनने लगती है जबकि जानती है की न एक घुँघरू कम हुआ है न अधिक गूँथा था उन लड़ियों में । मन को तसल्ली देने के लिए वह पूरे गिन चुकने के बाद बुदबुदा उठती है-

“भरी पिचकारी मारी सररररर

भोली पनिहारी बोली सररररर”

और कुछ कतरे उसकी आँखों से सररररर करते हुए अक्सर उसकी साड़ी में जज़्ब हो जाते हैं ।

“दहेज में तमाम चीजों के साथ उसके अधूरे सपनों की एक गठरी भी उसने चुपचाप बांध ली थी । पापा ने तुलसा माँ के हाथों संदेश भिजवाया था कि सुमि को कुछ अपनी पसंद की वस्तु चाहिए तो बता दे । पापा से उसका अबोला चल रहा था उन दिनों में, सो तुलसा माँ के माध्यम संवाद किया जाता था । सब जानते थे सुमि के कमरे का दरवाजा सिर्फ़ तुलसा माँ के लिए ही खुलता है, बचपन से ही हर सुख-दुख में सुमि ने तुलसा माँ का आँचल ही तलाशा था, माँ-पापा की डांट से बचने के लिए भी उसका इस्केप कोर्नर तुलसा माँ ही थी ।

बहुत सोचने के पश्चात सकुचाते हुए उसने एक रेडियो की फरमाइश की थी । तुलसा माँ जो उनकी दाई कम माँ अधिक थी भीतर से उसके घुँघरू भी उठा लाई थी और विदाई के वक़्त अपने पल्लू में संभाले-संभाले कार की पिछली सीट पर आ बैठी थीं । सब वाकिफ़ थे की सुमि के बाद तुलसा माँ उस घर में न रह पाएँगी । बस तभी से सुमि की नई-नवेली गृहस्थी के साथ-साथ उसके सुख-दुख भी बाँटती रही थी । अब बुढ़ाने लगी थी तुलसा माँ । सुमि की पोनीटेल में भी तो अब आधे बाल सलेटी हुए जाते हैं पर सुमि की संगत में पनपा तुलसा माँ का रेडियो प्रेम अब तक बरक़रार है, संगीत की समझ उन्हें कितनी थी ये तो पता नहीं किन्तु लय वे बखूबी पकड़ लेती थीं, इसीलिए जब तक रेडियो बजता था उनकी अंगुलियों में थिरकन समाई रहती थीं । सुमि के साथ संगत जमाने में उनका कोई मुक़ाबला नहीं था, सुमि जब कत्थक की प्रेक्टिस किया करती थी तब भी उसके पैरों में घुँघरू बाँधने से लेकर खोलकर सहेजने तक का पूरा जिम्मा तुलसा माँ ने अपने हिस्से ले रखा था ।

विवाह के पश्चात सुमि अपनी तुलसा माँ को लिए देश के दूर इस हिस्से केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में आ बसी, जीवन कुछ कठिनाई भरा न होते हुए भी उतना आसान भी नहीं गुज़रा था उन पर । गृहस्थी की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर यूं ओढ़ ली थी सुमि ने की नृत्य लगभग छूट ही गया । विपिन ने कई मर्तबा उसे टोका भी था कि कत्थक के साथ कथकली को मिक्स करके उसे कोई न कोई नए प्रयोग करने चाहिए । बच्चे छोटे थे तबतक तुलसा माँ के भरोसे बच्चों को छोडकर वह नृत्य की अकादमी से जुड़ी भी रही फिर बच्चों की पढ़ाई तुलसा माँ के बस से बाहर होने लगी तो सुमि ने अपने घूंघरुओं को सहेजकर भविष्य के अनदेखे सपनों के साथ रख दिया था ।

यूं तो उसके पति विपिन रेल्वे में बड़े अधिकारी थे और उनकी पोस्टिंग ‘चेंगन्नूर’ हुई थी ।यहाँ उन्हें रेल्वे की कुछ नयी लाइनें बिछाने का कार्यभार सौंपा गया था । शुरुआती कुछ दिन तो वे रेलवे स्टेशन चेंगन्नूर के पास ही रहे फिर बढ़ते बच्चों की बढ़ी होती जाती पढ़ाई के कारण सुमि को तिरुवनंतपुरम में शिफ्ट करना पड़ा था। दोनों बच्चे अपनी-अपनी राह चल पड़े तब जाकर सुमि और विपिन अपने जन्मस्थान पटना की ओर रुख कर गए थे ।

पिछले दिनों टीवी में ‘सबरीमाला’ मंदिर पर चल रही बहस से सुमि और विपिन को अपने पुराने दिनों की यादें ताज़ा आई हो थीं । ये सभी मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर स्थित है। इसीलिए यहाँ साल भर तीर्थ यात्रियों का तांता लगा रहता था । सुमि वहाँ कभी नहीं जा नहीं पाई थी । दरअसल वह न दस बरस से कम थी न पचास से अधिक और मंदिर के नियमों के अनुसार वहाँ सिर्फ दस बरस से कम या पचास बरस से अधिक की महिलाएं ही दर्शन करने जा सकती थीं ।

हाँ, वहाँ से लौटने से पूर्व तुलसा माँ को जरूर अयप्पा स्वामी के दर्शनों का लाभ प्राप्त हुआ था, दरअसल केरल में शैव और वैष्णवों में बढ़ते वैमनस्य के कारण एक मध्य मार्ग की स्थापना की गई थी, जिसमें अय्यप्पा स्वामी का सबरीमाला मंदिर बनाया गया था। इसमें सभी पंथ के लोग आ सकते हैं। ये मंदिर लगभग 800 साल पुराना माना जाता है। अयप्पा स्वामी को ब्रह्मचारी माना गया है, इसी वजह से मंदिर में उन महिलाओं का प्रवेश वर्जित था जो रजस्वला हो सकती थी और तुलसा माँ इससे मुक्ति पा चुकी थी । हालांकि टी वी पर बहस तेज़ थी कि क्यों महिलाओं को भी पुरूषों के बराबर उस मंदिर में प्रवेश का हक़ दिया जाना चाहिए, अब ये मसला कोई नया तो नहीं है 28 बरस से कोर्ट कचहरी में उलझा हुआ है, सुमि की तरह अन्य महिलाओं को भी देश की न्याय पालिका पर भरोसा है की फैसला सभी के हक़ में होगा ।

वहाँ आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं। वह पोटली नैवेद्य (भगवान को चढ़ाई जानी वाली चीज़ें, जिन्हें प्रसाद के तौर पर पुजारी घर ले जाने को देते हैं) से भरी होती है। मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। तुलसा माँ ने ठीक ऐसा ही किया था, उन्होने जरूर सुमि के परिवार की खुशियों की मनोकामना मांगी होगी तभी तो सुमि का परिवार खुशहाल है ।

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