Tum mile - 8 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | तुम मिले (8)

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तुम मिले (8)



                          तुम मिले (8)

गेस्टरूम में बैठी हुई मुग्धा सोंच रही थी कि सौरभ के बारे में उसे एक बड़ी बात पता चली। लेकिन जो भी पता चला उससे केस को आगे बढ़ाने में शायद ही कोई मदद मिले। स्थिति अभी भी जस की तस थी। इंतज़ार करने के अलावा उसके और सुकेतु के पास कोई उपाय नहीं है। 
मुग्धा ने मन ही मन तय कर लिया था कि लौटने से पहले वह अपने सास ससुर से पूँछेगी ज़रूर कि उन्होंने सौरभ के बारे में इतनी बड़ी बात उससे क्यों छिपाई। एक फैसले के साथ वह अपनी सास रमा के पास पहुँची। उसे देख कर रमा ने कहा।
"कोई काम था तो जानकी से कह देती। यहाँ क्यों आई हो ?"
"मुझे कुछ बात करनी थी।"
"क्यों अचला से बात करके तो आई हो तुम। उसने सारी बात नहीं बताई।"
मुग्धा सोंच में पड़ गई। इन्हें कैसे पता चला कि मैं अचला भाभी के पास गई थी।
"ज्यादा ना सोंचो। तुमने जानकी से अचला के बारे में पूँछताछ की थी। हमसे कुछ नहीं पूँछ पाई तो अचला के पास चली गई।"
"उन्होंने जो बताया उसी विषय में बात करनी है।"
"यही कि सौरभ को मैंने जन्म नहीं दिया ये बात तुम्हारे घरवालों को नहीं बताई।"
मुग्धा समझ गई कि अचला भाभी ने इन्हें सारी बात बता दी है। 
"जी मुझे यही जानना है।"
रमा जवाब देती उससे पहले ही मुग्धा के ससुर दुर्गेश ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा।
"तुम्हारी शिकायत जायज़ है मुग्धा। हमें यह बात शादी से पहले बता देनी चाहिए थी।"
बैठते हुए उन्होंने आगे कहा।
"मैं रमा का बहुत आभारी हूँ। उसने सौरभ को अपना लिया। सदा अल्पेश से अधिक प्यार दिया। सौरभ हम सभी की आँखों का तारा था। बिज़नेस ज्वाइन करने के कुछ ही समय के अंदर उसने अपनी महत्वपूर्ण जगह बना ली थी। जब उसकी शादी तुम्हारे साथ तय हुई तो हम सब बहुत खुश हुए। सौरभ जैसी लड़की चाहता था तुम वैसी ही थीं। सौरभ चाहता था कि तुम्हारे परिवार को सब सच बता दिया जाए। पर मुझे लगा कहीं बात बिगड़ ना जाए। हमने तय किया था कि जब तुम घर में सही तरह से एडजस्ट हो जीओगी तब तुम्हें सब बता देंगे। लेकिन शादी के बाद शुरुआती कुछ महीने बिज़नेस की मुश्किल में बीत गए। हमने सोंचा कि तुम दोनों एक साथ कुछ दिन बिताओगे तो एक दूसरे को समझ सकोगे। इसलिए सौरभ तुम्हें लेकर छुट्टी पर गया था। लेकिन वहाँ....."
अपनी बात कहते हुए दुर्गेश भावुक हो गए। स्वयं को संभाल कर बोले।
"तुम फिक्र मत करो। मैं सौरभ को ढूंढ़ने की पूरी कोशिश कर रहा हूँ। इस समय केस क्राइम ब्रांच के ऑफिसर नगेश राणा के सौंपा गया है। नागेश बहुत काबिल ऑफिसर है। जल्दी ही मेरा बेटा वापस आ जाएगा। तब उसके साथ दोबारा तुम्हें इस घर में ले आऊँगा।"
अपने ससुर के दुख को देख कर मुग्धा को उनके लिए सहानुभूति महसूस हुई। वह अपने बेटे के लौटने की उम्मीद लगाए थे। जबकी वह सुकेतु के साथ एक नई शुरुआत करना चाहती थी। मुग्धा को अपने ससुर के बारे में सोंच कर बुरा लगा। उसने सोंचा कि वह उन्हें अपने और सुकेतु के बारे में सब बता दे। फिर वह यह सोंच कर चुप हो गई कि अचला ने ज़रूर उसकी सास को सुकेतु के बारे में बताया होगा। वह जब सही समझेंगी बता देंगी। उसने अपने ससुर से कहा।
"पापा मैं कल सुबह अपने मम्मी पापा से मिलने जाऊँगी। वहीं से वापस लौट जाऊँगी। आप प्लीज़ सौरभ के केस के बारे में मुझे बताते रहिएगा।"
उसके ससुर ने उसे आश्वासन दिया कि वह उसे केस के बारे में बताते रहेंगे। मुग्धा ने उन्हें अपना फोन नंबर दे दिया। 
मुग्धा को लौटे एक हफ्ता हो गया था। सारी बात जानने के बाद सुकेतु को भी यही लगा कि अब इंतज़ार करने के अलावा कुछ नहीं किया जा सकता है। दोनों ने ही मानसिक रूप से लंबे इंतज़ार के लिए तैयारी शुरू कर दी। सुकेतु की माँ ने भी दोनों को समझाया कि अब इधर उधर मन भटकाने से अच्छा है कि धैर्य से सही समय की प्रतीक्षा करो। यह तुम लोगों के प्रेम की परीक्षा है। इसमें धैर्य के साथ ही सफल हो सकते हो।
मुग्धा जब से अपनी ससुराल होकर आई थी तब से उसकी दुविधा और बढ़ गई थी। वह चाहती थी कि सौरभ के केस में जल्दी ही कोई सफलता मिले लेकिन यह भी नहीं चाहती थी कि जो खबर मिले उससे ससुराल वालों का दिल दुखे। खासकर अपने ससुर के बारे में सोंच कर उसे बुरा लगता था। 
हलांकि बहुत पहले से ही उसे ऐसा लगने लगा था कि सौरभ के साथ कुछ अनहोनी हो गई है। वह किसी हादसे का शिकार हो गया है। उसके पास इसका कोई सबूत नहीं था। बस यह उसके दिल की चेतावनी मात्र थी। इसी चेतावनी के कारण ही वह सुकेतु के करीब आई थी। 
मुग्धा अक्सर सोंचती थी कि जितने दिन भी उसने सौरभ के साथ बिताए थे उनमें उसे कहीं भी उसे छल कपट नहीं लगा था। वह पल बहुत ही सुखद थे। अपनी परेशानी में उसे कुछ समय के लिए लगा था कि शायद सौरभ के अतीत में कुछ ऐसा हो जो सही ना हो। लेकिन अब सब जान लेने के बाद उसे इस बात का बुरा लग रहा था कि उसने ऐसा सोंचा। ये ठीक था कि अब वह सुकेतु को चाहती थी। उसके साथ ही जीवन पथ पर आगे बढ़ना चाहती थी। पर सौरभ के साथ बिताए पावन पल अभी भी उसके मन में अंकित थे।
मुग्धा ने साफगोई से अपने दिल का हाल सुकेतु को बताया था। सुकेतु का कहना था कि ऐसा होना स्वाभाविक है। उन पलों में तुम सौरभ को अपना हमसफर मानती थी। उसके साथ सुखी जीवन बिताने के सपने देखती थी। वह पल उतने ही पवित्र हैं जितने उसके द्वारा सुहासिनी के साथ बिताए पल। सुहासिनी के साथ बिताए पल आज भी उसे सुख की अनुभूति कराते हैं। 
करीब तीन महीने बीत गए थे। मुग्धा के ससुर ने केस के बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी। मुग्धा निराश होने लगी थी। 
तभी एक दिन उसके ससुर ने फोन कर जो सूचना दी उसे सुन कर मुग्धा सन्न रह गई। फोन हाथ से छूट कर गिर गया। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी। कुछ देर वह निढाल बैठी रही।