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अंकिता भार्गव
संजना जब तक अपना नाश्ता लेकर आई राज ऑफिस के लिए निकल चुके थे, आज फिर संजना डाईनिंग टेबल पर अकेली बैठी प्लेट में चम्मच घुमा रही थी। उसे तो याद भी नहीं आता कितने दिन बीत गए उसे राज के साथ बैठ कर चाय पिए, फुरसत भरे पलों में बस यूं ही दो बातें किए हुए, अपना दुख सुख बांटे हुए। पिछले बाईस सालों में वक्त की सड़क पर चलते चलते संजना और राज का रिश्ता एक ऐसे मोड़ पर आ गया था कि दोनों नदी के किनारों की तरह हो कर रह गए थे। साथ चल तो रहे थे मगर दो घड़ी एकसाथ बैठ कर बात करने की फुरसत ना निकाल पाते। राज तो अपने बिज़नेस में व्यस्त रहते और संजना आलीशान बंगले में अकेलेपन से जूझती अपनी खीज नौकरों पर निकालती रहती।
घर में हर और संपन्नता बिखरी पड़ी थी, ऐशो आराम की हर वस्तु थी संजना के पास अगर नहीं थी तो बस मानसिक शांति। बच्चे भी बड़े बड़े थे उनकी अपनी दुनिया थी जिसमें संजना के लिए जगह जरा सीमित ही थी। वैसे भी आजकल के बच्चे कुछ ज्यादा ही प्राईवेसी पसंद होते हैं, संजना के बच्चे भी अलग नहीं थे। वह समझती थी पर अपने दिल की घुटन कहने कहां जाती। उसका भी मन करता कि कोई उससे बात करे, कुछ अपनी कहे तो कुछ उसकी सुने पर संजना के आसपास कोई नहीं था ना अपनी कहने के लिए और ना ही उसकी सुनने के लिए। ऐसे में रंजन का साथ उसे सुकून दे जाता था।
रंजन उसका फेसबुक फ्रेंड था। पढने लिखने के शौक के चलते दोनों एक साहित्यिक ग्रुप पर मिले थे फिर दोस्ती भी हो गई। रंजन हमेशा संजना को लिखने के लिए प्रेरित करता, उसकी हर रचना को लाईक भी करता और कमेंट भी। वह दूसरे रचनाकारों की अच्छी कहानी या कविताओं पर संजना को अक्सर मेंशन कर देता ताकि संजना की लेखन संबंधी झिझक कम हो जाए। वह रंजन ही था जिसके कारण संजना के लेखन में दिन पर दिन निखार आ रहा था। गुज़रते वक्त के साथ साथ उन दोनों की दोस्ती और भी पक्की हो रही थी बल्कि सच कहा जाए तो हद से ज्यादा गहरी हो गई थी। दोनों के बीच एक अनकहा खूबसूरत सा रिश्ता पनप गया था। पिछले कुछ दिनों से वे इनबॉक्स में अंतरंग बातें भी करने लगे थे। कभी कभी संजना को अपनी इस दोस्ती के कारण ग्लानी का भी अनुभव होता। उसे लगता जैसे वह राज के साथ बेवफाई कर रही है मगर वह जब भी राज की ओर देखती उन्हें खुदसे दूर किसी फाइल या डील में उलझा पाती और खीज कर फिर रंजन की और मुड़ जाती। वह सोचती काश उसकी शादी राज की बजाए रंजन से हुई होती।
रंजन जैसा भावुक और संवेदनशील साथी जिस स्त्री के पास हो वह दुनिया की सबसे भाग्यशाली स्त्री होगी। संजना को अनायास ही रंजन की अनदेखी पत्नि से ईर्ष्या होने लगी। पर आश्चर्य उसने इतने समय में एकबार भी अपनी वाल पर अपनी पत्नी की तस्वीर नहीं लगाई थी, संजना ने इस विषय में रंजन से जब सवाल किया तो वह बोला उसकी पत्नी को सोशल मीडिया पर तस्वीर लगाना पसंद नहीं। रंजन का जवाब पढ कर संजना को आश्चर्य हुआ भला आज के समय में कौन ऐसी महिला होगी जिसे सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीर लगा कर प्रशंसा पाने से एतराज हो। एक पल संजना के मन में सवाल उठा कि कहीं एतराज खुद रंजन को तो नहीं? हो सकता है वह अपनी पत्नी को सबके सामने लाना ही ना चाहता हो। कहीं महिलाओं को लेकर रंजन का आधुनिक और प्रगतीवादी रवैया और उसके सुलझे हुए विचार छलावा तो नहीं? मगर वह इस बारे में ज्यादा नहीं सोच सकी असल तो वह सोचना ही नहीं चाहती थी, उसके अपने रिश्ते की हकीकत इतनी बदरंग थी कि किसी दूसरे के रिश्तों के रंग कुरेदने की उसकी कोई इच्छा नहीं थी वह तो बस अपनी ही मृगमरीचिका में खोई रहना चाहती थी। जल्द ही वह सब भूल कर फिर से रंजन के साथ चैटिंग में व्यस्त हो गई।
उस दिन भी संजना देर रात तक फ़ोन पर रंजन के साथ ही लगी हुई थी, इधर राज काफी देर से करवटें बदल रहे थे। कुछ देर तो संजना उन्हें अनदेखा करती रही फिर जगाने के इरादे से हाथ बढा कर उन्हें हिलाया। मगर यह क्या राज का बदन तो तवे की तरह जल रहा था, वह चौंक गई, इतना तेज बुखार! शाम से ही राज कुछ बेचैन से थे पर वह खुद में ही इतना खोई थी कि ध्यान ही नहीं दिया। संजना फुर्ति से उठी और फर्स्ट एड बॉक्स उठा लाई, राज को दवा दी और उनके माथे पर ठंडे पानी की पट्टियां रखने लगी। अब इतनी रात को वह इससे अधिक कुछ कर भी नहीं सकती थी। बुखार कम होने पर राज को कुछ आराम आया तो वह संजना का हाथ थाम कर सो गए। संजना देर तक उन्हें देखती रही कितने मासूम लग रहे थे राज सोते हुए।
जाने क्यों आज उसका मन अतीत की गलियों में विचरण करने लगा, उसे राज के साथ बिताए सभी अच्छे पल एक एक कर याद आने लगे। शुरू के दिनों में कैसे उसके आगे पीछे घूमते रहते थे राज, बहुत सख्त थीं संजना की सासुमां, बहुत डरती थी संजना उनसे पर राज हमेशा उसके और अपनी मां के बीच एक पुल बन जाते, सासूमां के साथ संजना के रिश्ते में जो मिठास रही उसमें सबसे बड़ा हाथ राज का ही था। बच्चों का ख्याल रखने में भी उन्होंने संजना का हमेशा पूरा साथ दिया। इतना बुरा वक्त भी नहीं बीता उसका राज के साथ जितना संजना सोचती रहती है, हां यह सच है कि अपनी जिम्मेदारियों के चलते अब राज उसे वक्त कम दे पाते हैं मगर उन्होंने कभी उसकी अवहेलना नहीं की थी। कभी ऐसा कुछ गलत नहीं किया था उसके साथ कि वह अपनी शादी को एक भूल ही मान बैठे। राज उसकी आंखों के सामने ही इतनी तकलीफ में थे कैसे नहीं देख पाई वह, अगर आज उन्हें कुछ हो जाता तो क्या करती संजना? कौन आता उसे संभालने? रंजन! नहीं वह तो एक परछाई भर है वह क्यों आता भला। जाने किस बहाव में बह चली थी संजना की सब कुछ भूल गई थी। संजना ने राज को छू कर देखा, शुक्र है अब बुखार नहीं था, वह राज का हाथ थामे बिस्तर पर अधलेटी सी हो गई और कुछ देर में उसकी भी आंख लग गई।
संजना की नींद ज़रा देर से खुली। राज अभी भी सो ही रहे थे। संजना ने राज का माथा छू कर देखा शुक्र है बुखार नहीं था, राज थोड़ा कुनमुनाए फिर करवट बदल कर सो गए। संजना को याद आया आज उसकी बचपन की सहेली मीनू उससे मिलने आ रही थी। कल ही उसका फोन आया था कि वह अहमदाबाद में रहने वाले अपने रिश्तेदारों के यहां आई हुई है और एक पूरा दिन संजना के साथ बिताना चाहती है इसलिए आज वह उससे मिलने आ रही है। संजना ने घड़ी देखी सात बज रहे थे बस कुछ देर में मीनू आती ही होगी। संजना जल्दी से उठ कर तैयार हुई और किचन में घुस गई। उसने गैस पर राज के लिए दलिया चढ़ा दिया और फिर मीनू के लिए नाश्ते की तैयारी करने लगी। मीनू को खमण ढोकला और मेथी के थेपले बहुत पसंद हैं। संजना ने मीनू के आने से पहले दोनों ही तैयार करके रख दिए।
संजू' राज की आवाज सुन संजना कमरे में पहुंची। राज अभी भी काफी कमजोरी महसूस कर रहे थे। वह सहारा दे कर उन्हें बाथरूम तक ले गई। राज फ्रेश हुए तब तक वह वहीं दरवाजे के पास खड़ी रही। बाथरूम से बाहर निकलते हुए राज ने उसे प्यार से देखा। जाने क्या था उन नज़रों में कि संजना अब तक के सारे गिले शिकवे भूल गई। 'कितने अच्छे हैं राज और मैं ना जाने इनके बारे में क्या क्या सोचती रहती हूं। पूरा विलेन बना कर रख दिया है इन्हें। अगर आज इन्हें रंजन के बारे में पता चल जाए तो ये कभी मुझे कभी माफ कर पाएंगे?' रंजन की याद आते ही संजना का दिल घबराने लगा और उसके माथे पर पसीने की बूंदें आ गई। 'क्या हुआ संजू! तबीयत तो ठीक है तुम्हारी? इतना पसीना क्यों आ रहा है? डॉक्टर के पास चलें?' राज ने जैसे सवालों की झड़ी लगा दी। 'अरे कुछ नहीं बस ऐसे ही, आपकी कल वाली हालत याद आ गई। आप अपना बिल्कुल ख्याल नहीं रखते, अगर आपको कुछ हो जाता तो मैं क्या करती।' संजना की आंखों में आंसू आ गए। राज ने धीरे से उसका सर सहला दिया।
'कहीं मैं गलत समय पर तो नहीं आ गई?' मीनू ने आंखों पर हाथ रखे नाटकीय अंदाज़ में कमरे में प्रवेश किया। 'तुम कभी गलत समय पर नहीं आ सकती। मैंने दरवाज़ा तुम्हारे लिए जानबूझ कर ही खुला रखा था कि तुम्हें इंतज़ार ना करना पड़े।' संजना ने हंसते हुए मीनू को गले लगा लिया। 'अगर दोनों सहेलियों का मिलन हो गया हो तो कुछ खा लें, भई मुझे तो बहुत भूख लगी है मेरा पेट बातों से नहीं भरेगा।' राज ने ठिठोली की तो संजना को याद आया राज को दवाई भी खानी है। वह जल्दी से किचन की ओर बढ गई। संजना डाईनिंग टेबल पर नाश्ता लगा ही थी कि मीनू भी फ्रेश हो कर आ गई। 'भई यह तो सरासर अन्याय है, मुझ बेचारे के लिए दलिया और तुम दोनों सहेलियों की दावत।' आज राज भी मूड में थे। 'चलो आप भी थोड़ा सा चख लो जीजाजी वरना हम दोनों का पेट दुखेगा।' मीनू ने हंसते हुए एक ढोकला उठा कर राज की प्लेट में रख दिया। नाश्ता करके राज फिर लेट गए और दोनों सहेलियां बातें करने लगीं।
'और बता संजू कैसी है? तेरे रंजन के क्या हाल हैं?' मीनू ने शरारत से पूछा। रंजन का जिक्र आते ही संजना के चेहरे का रंग उड़ गया। इधर मीनू एक के बाद एक रंजन और संजना के मध्य इनबॉक्स में हुई बातचीत का चिट्ठा खोल रही थी और संजना को समझ नहीं आ रहा था कि मीनू को इन सब बातों की जानकारी कैसे हुई? उसकी उलझन देख कर मीनू ने अपने फ़ोन पर रंजन की प्रोफाइल खोल कर उसे दिखा दी। संजना अब भी आश्चर्यचकित सी मीनू को देखे जा रही थी। 'ये रंजन हैं मेरे पति।' संजना की हालत काटो तो खून नहीं वाली हो गई थी, उसे आश्चर्य हो रहा था कि वह इतने दिनों में मीनू के पति को पहचानी कैसे नहीं? हां वह बस एक दो बार ही मिली है मीनू के पति से वह भी इसकी शादी के समय, माना इतने वर्षों में व्यक्ति में काफी परिवर्तन आ जाता है पर फिर भी उसे ज़रा सा भी अंदाज़ा नहीं हुआ। क्या सोचेगी मीनू उसके बारे में? और रंजन! मीनू के पति! कितनी बड़ी बड़ी बातें किया करते थे। अपनी पत्नी की कितनी बुराई करते रहे, खुद को कैसा बेचारा बताते रहे हमेशा और पत्नी को लापरवाह। जबकि सच तो यह है कि मीनू से अच्छी जीवनसाथी उनके लिए और दूसरी हो ही नहीं सकती। संजना की आंखें शर्म से झुक गई।
'अरे यार इतनी सेंटी मत हो। रंजन को तो पता ही नहीं कि उनकी संजना नाम की कोई मित्र भी है जो उनके इतने करीब है।' 'मतलब।' संजना की आंखें चौड़ी हो गई। 'मतलब यह कि रंजन की यह प्रोफाइल मैंने बनाई थी और मैं ही इसे चलाती भी हूं, उनके पास ना तो इतना समय है और ना ही शौक ही है। बस मैं ही मज़े लेती रहती हूं।' 'जो रंजन मुझसे बातें करता है?' 'वह भी मैं ही हूं।' मीनू ने हंसते हुए कहा। संजना जैसे आसमान से नीचे गिरी। उसने गुस्से में खा जाने वाली नज़रों से मीनू को देखा। 'अब यार गुस्सा मत हो, पति को काम से फुरसत नहीं और बच्चों को पढाई से, लाइफ में कोई उत्साह ही नहीं बचा था। ऐसा लगने लगा था जैसे कि किसी को मेरी जरूरत ही नहीं है। वो कहते हैं ना खाली दिमाग शैतान का घर। ऐसेे ही एक दिन मुझे खाली बैठे बैठे खुराफ़ात सूझी और बस यह सब शुरू हो गया। शुरू में तो मज़ा भी बहुत आया, पर अब कुछ दिनों से लगने लगा था कि शायद थोड़ा ज्यादा हो रहा है। इसीलिए तुझे सच बताने का रास्ता ढूंढ रही थी और आज जब वह रास्ता मुझे मिला तो मैं सीधे तुझसे मिलने चली आई।' मीनू ने संजना का हाथ पकड़ कर कहा। संजना को कुछ देर को तो समझ ही नहीं
आया कि वह क्या प्रतिक्रिया दे। एक मन तो कर रहा था कि वह मीनू को एक थप्पड़ लगा दे और दूसरी तरफ उसके मन पर से एक बोझ सा भी हटता महसूस हो रहा था। वह अपना सर पकड़ कर बैठ गई। मीनू ने उसे गले लगा लिया। 'संजना भूल हम दोनों की थी। मुझे इसका पछतावा है और मैं जानती हूं तू भी पछता रही है। मुझे माफ कर दे यार प्लीज़ जाने अनजाने मैं तेरी भावनाओं का भी मज़ाक बना बैठी।'
'तुझे तो मैं माफ कर दूंगी मीनू पर खुदको कैसे माफ करूं। कितनी बेवकूफ थी मैं, कितनी पागल। जाने कैसा भूत सवार हो गया था मुझ पर कि मैं इस आभासी दुनिया को सच मान कर अपना घर बर्बाद करने जा रही थी। तू एक बार सोच कर देख अगर कहीं सच में यह प्रोफाइल रंजनजी चला रहे होते तो?' संजना ने बहुत ठंडे स्वर में पूछा। यह 'तो' कमरे की दीवारों से देर तक टकराता रहा और इसकी प्रतिध्वनि लौट कर मीनू तक आती रही वह देर खामोश बैठी उस प्रतिध्वनी को सुनती रही मगर इस 'तो' का तोड़ नहीं ढूंढ सकी।
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