Manchaha in Hindi Fiction Stories by V Dhruva books and stories PDF | मनचाहा

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मनचाहा

जब से होश संभाला पापा को संघर्ष करते हुए देखा है मैंने। फिर भी मम्मी बिना किसी शिकायत के जिंदगी में साथ दें रहीं हैं। हम नोर्थ दिल्ली में रहते हैं। मेरे दो बड़े भाई है रवि और कवि और मैं उनकी एक लौती बहन पाखि। छोटे थे तब तीनों बहुत लड़ते झगड़ते, साथ खेलते, साथ स्कूल जाते। तब पापा का बिजनेस अच्छा चलता था। एक बार मंदी के मार ने सब छीन लिया।
पापा के बड़े भाई-बहन थे पर सब दूरी बनाए रखें थे, शायद उनको डर था कि पापा उनसे मदद न मांगे। पर हम स्वमानी थे, जीतना कमाते उतना ही खाते। जब बड़े भैया १०वीं क्लास में आए तब घर के हालात ज्यादा बिगड़ गए। भैया ने अपनी पढ़ाई छोड़ एक फेक्ट्री में काम पर लग गए। मैं और कवि पढ़ाई करते तब वो बेचारा पापा के साथ काम पर जाता। बहुत बुरा लगता उसके लिए, पर हम करते भी क्या छोटे जो थे।
धीरे-धीरे वक्त बहता गया, फिर कवि ने भी पढ़ाई छोड़ दी। वो पहले से पढ़ाई में ज्यादा रुचि नहीं रखता था।

कुछ सालों बाद

अब दोनों भाइयों की शादी हो चुकी है,कमाते भी अच्छा है। पहले पापा फिर २साल बाद मम्मि गुजर गए। मेरी दोनों भाभी मां बहुत अच्छी है। अब तो दोनों भाइयों का एक एक बेटा भी है।
मैंने अब कोलेज में प्रवेश कर लिया है। मेरा addmision M. B.B.S में हुआ है। आज कोलेज का पहला दिन है, थोड़ा डर है नई जगह हैं और पहचान वाला कोई नहीं।
स्कूल में कोई खास फ्रेन्ड नहीं बना था।
कोलेज भी बस से जाना था। तो सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद तैयार हो कर किचन में आई। भाभी ने नाश्ता  बना लिया था, तब तक मैंने मंदिर में पूजा की और भगवान से आशीर्वाद लिया कि ये नया सफ़र अच्छा रहें। फटाफट नाश्ता कर के बस स्टैंड पर आ गई। बस का टाईम नहीं पता था अभी तो जल्दी ही आ गई।
जब क्लास में एंटर हुई तो वहां पहले से ही सब आ चुके थे। मैं ही लास्ट थी, और जगह भी एक ही ख़ाली थी। जहां पर एक लड़की बैठी थी(हर बार लड़का नहीं होता?)। मैं वहां जाकर बैठ गई, उस लड़की को हाय बोला पर उस नकचडी ने कोई जवाब ही ना दिया ?, बड़े बाप की बिगडेल लड़की लगती है। आखिरकार क्लास में मेम का आगमन हुआ। मेम का नाम  विध्यामेम था। वे हमारी physiology का क्लास लेने वाली हैं, उन्होंने पहले सबका introduction लिया, फिर क्लास शुरू किया।
मैं तिरछी नजरों से बाजु वाली को देख रहीं थीं, पता नहीं किस अकड़ में थी। शाम  ५ बजे लेक्चर खत्म हुऐ थे, मैं बस स्टेंड पर बस की राह देख रही थी तभी वो लड़की किसी लड़के के साथ कार में जा रहीं थीं। मुझे लगता हैं वो उसका बोयफ्रेन्ड होगा। फिर मेरी भी बस आ गई और मैं उसमें चढ़ रही थी पर काफी भीड़ के कारण मुझसे चढ़ा नहीं जा रहा था। बस में चढ़ी ही थी पर आगे से धक्का लगने के कारण गिरने ही वालीं थीं कि तभी एक हाथ से पिछेसे मुझे किसीने सहारा दिया। मुड़ के देखा तो...एक हट्टी कट्टी लड़की थी (हर बार लड़का नहीं होता ?)  उसने अपना नाम दिशा बताया, फिर मुझे खयाल आया कि ये तो मेरे ही क्लास में थी। चलो कोई तो मिला जिसे बात कर सकें।

आगे की कहानी के लिए अगले भाग का थोड़ा इंतजार करें।
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